Thursday, February 14, 2013

Murli [14-02-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - इस समय तुम्हें निराकारी मत मिल रही है, गीता शास्त्र निराकारी मत का शास्त्र है, साकारी मत का नहीं, यह बात सिद्ध करो'' 
प्रश्न:- कौन सी गुह्य बात बड़ी युक्ति से फर्स्टक्लास बच्चे ही समझा सकते हैं? 
उत्तर:- यह ब्रह्मा ही श्रीकृष्ण बनते हैं। ब्रह्मा को प्रजापिता कहेंगे श्रीकृष्ण को नहीं। निराकार भगवान ने ब्रह्मा मुख से ब्राह्मण रचे हैं। श्रीकृष्ण तो छोटा बच्चा है। गीता का भगवान निराकार परमात्मा है। कृष्ण की आत्मा ने पुरुषार्थ करके यह प्रालब्ध पाई। यह बहुत गुह्य बात है - जो फर्स्टक्लास बच्चे ही युक्ति से समझा सकते हैं। 20 नाखून का जोर देकर यह बात सिद्ध करो तब सर्विस की सफलता होगी।
गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप का प्रिय बनने के लिए बुद्धि में ज्ञान को धारण कर ज्ञानी तू आत्मा बनना है। बाप से योग लगाना है। ध्यान की आश नहीं रखनी है। 
2) माताओं को आगे रख उनका नाम बढ़ाना है। अथॉरिटी से गीता के भगवान को सिद्ध करना है। 20 नाखून के जोर से सर्विस को बढ़ाना है। 
वरदान:- समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करने वाले स्मृति स्वरूप भव 
इस ज्ञान का इसेन्स है स्मृति स्वरूप बनना। हर कार्य करने के पहले इस वरदान द्वारा समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ निर्णय करो कि यह व्यर्थ है वा समर्थ है फिर कर्म में आओ, कर्म करने के बाद फिर चेक करो कि कर्म का आदि, मध्य और अन्त तीनों काल समर्थ रहा? यह समर्थ स्थिति का आसन ही हंस आसन है, इसकी विशेषता ही निर्णय शक्ति है। निर्णय शक्ति द्वारा सदा ही मर्यादा पुरुषोत्तम स्थिति में आगे बढ़ते जायेंगे। 
स्लोगन:- अनेक प्रकार के मानसिक रोगों को दूर भगाने का साधन है - साइलेन्स की शक्ति।