मुरली सार :- ”मीठे बच्चे – पवित्रता बिना भारत स्वर्ग बन नहीं सकता, तुम्हें श्रीमत है घर गृहस्थ में रहते पवित्र बनो, दोनों तरफ तोड़ निभाओ”
प्रश्न:- दूसरे सतसंगों वा आश्रमों से यहाँ की कौन सी रसम बिल्कुल न्यारी है?
उत्तर:- उन आश्रमों में मनुष्य जाकर रहते हैं समझते हैं – संग अच्छा है, घर आदि का हंगामा नहीं है। एम-आब्जेक्ट कुछ नहीं। परन्तु यहाँ तो तुम मरजीवा बनते हो। तुम्हें घरबार नहीं छुड़ाया जाता। घर में रह तुम्हें ज्ञान अमृत पीना है, रूहानी सेवा करनी है। यह रसम उन सतसंगों में नहीं है।
उत्तर:- उन आश्रमों में मनुष्य जाकर रहते हैं समझते हैं – संग अच्छा है, घर आदि का हंगामा नहीं है। एम-आब्जेक्ट कुछ नहीं। परन्तु यहाँ तो तुम मरजीवा बनते हो। तुम्हें घरबार नहीं छुड़ाया जाता। घर में रह तुम्हें ज्ञान अमृत पीना है, रूहानी सेवा करनी है। यह रसम उन सतसंगों में नहीं है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) घर में रहते भी रूहानी सेवा करनी है। पवित्र बनना और बनाना है।
2) इस जीते जागते नर्क में रहते हुए भी बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
1) घर में रहते भी रूहानी सेवा करनी है। पवित्र बनना और बनाना है।
2) इस जीते जागते नर्क में रहते हुए भी बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
वरदान:- बोल पर डबल अन्डरलाइन कर हर बोल को अनमोल बनाने वाले मास्टर सतगुरू भव
आप बच्चों के बोल ऐसे हों जो सुनने वाले चात्रक हों कि यह कुछ बोलें और हम सुनें – इसको कहा जाता है अनमोल महावाक्य। महावाक्य ज्यादा नहीं होते। जब चाहे तब बोलता रहे – इसको महावाक्य नहीं कहेंगे। आप सतगुरू के बच्चे मास्टर सतगुरू हो इसलिए आपका एक-एक बोल महावाक्य हो। जिस समय जिस स्थान पर जो बोल आवश्यक है, युक्तियुक्त है, स्वयं और दूसरी आत्माओं के लाभदायक है, वही बोल बोलो। बोल पर डबल अन्डरलाइन करो।
आप बच्चों के बोल ऐसे हों जो सुनने वाले चात्रक हों कि यह कुछ बोलें और हम सुनें – इसको कहा जाता है अनमोल महावाक्य। महावाक्य ज्यादा नहीं होते। जब चाहे तब बोलता रहे – इसको महावाक्य नहीं कहेंगे। आप सतगुरू के बच्चे मास्टर सतगुरू हो इसलिए आपका एक-एक बोल महावाक्य हो। जिस समय जिस स्थान पर जो बोल आवश्यक है, युक्तियुक्त है, स्वयं और दूसरी आत्माओं के लाभदायक है, वही बोल बोलो। बोल पर डबल अन्डरलाइन करो।
स्लोगन:- शुभचिंतक मणि बन, अपनी किरणों से विश्व को रोशन करते चलो।