Wednesday, February 6, 2013

Murli [28-01-2013]-Hindi


मुरली सार :- ”मीठे बच्चे, साकार शरीर को याद करना भी भूत अभिमानी बनना है, क्योंकि शरीर 5 भूतों का है, तुम्हें तो देही-अभिमानी बन एक विदेही बाप को याद करना है”
प्रश्न:- सबसे सर्वोत्तम कार्य कौन सा है जो बाप ही करते हैं?
उत्तर:- सारी तमोप्रधान सृष्टि को सतोप्रधान सदा सुखी बना देना यह है सबसे सर्वोत्तम कार्य, जो बाप ही करते हैं। इस ऊंचे कार्य के कारण उनके यादगार भी बहुत ऊंचे-ऊंचे बनाये हैं।
प्रश्न:- किन दो शब्दों में सारे ड्रामा का राज़ आ जाता है?
उत्तर:- पूज्य और पुजारी, जब तुम पूज्य हो तब पुरुषोत्तम हो, फिर मध्यम, कनिष्ट बनते। माया पूज्य से पुजारी बना देती है।
गीत:- महफिल में जल उठी शमा…
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने को निराकार आत्मा समझ निराकार बाप को याद करना है। किसी भी देहधारी को नहीं। मरजीवा बन पुरानी बातों को बुद्धि से भूल जाना है।
2) बाप के रचे हुए इस रूद्र यज्ञ में सम्पूर्ण स्वाहा होना है। शूद्रों को ब्राह्मण धर्म में कनवर्ट करने की सेवा करनी है।
वरदान:- सर्व पुराने खातों को संकल्प और संस्कार रूप से भी समाप्त करने वाले अन्तर्मुखी भव
बापदादा बच्चों के सभी चौपड़े अब साफ देखने चाहते हैं। थोड़ा भी पुराना खाता अर्थात् बाह्यमुखता का खाता संकल्प वा संस्कार रूप में भी रह न जाए। सदा सर्व बन्धनमुक्त और योगयुक्त-इसी को ही अन्तर्मुखी कहा जाता है। इसलिए सेवा खूब करो लेकिन बाह्यमुखी से अन्तर्मुखी बनकर करो। अन्तर्मुखता की सूरत द्वारा बाप का नाम बाला करो, आत्मायें बाप का बन जाएं-ऐसा प्रसन्नचित बनाओ।
स्लोगन:- अपने परिवर्तन द्वारा संकल्प, बोल, सम्बन्ध, सम्पर्क में सफलता प्राप्त करना ही सफलतामूर्त बनना है।