Tuesday, March 12, 2013

Murli [12-03-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हें बाप के आक्यूपेशन और गुणों सहित उसे याद करना है, याद से ही तुम विकर्माजीत बनेंगे, विकारों की मैल भस्म होगी'' 
प्रश्न:- ज्ञान की धारणा किन बच्चों को बहुत सहज हो सकती है? 
उत्तर:- जिनमें कोई भी पुराने उल्टे सुल्टे संस्कार नहीं हैं, जिनकी बुद्धि याद से शुद्ध होती जाती है, उन्हें ज्ञान की बहुत अच्छी धारणा होती है। 2- पवित्र बुद्धि में ही अविनाशी ज्ञान रत्न ठहरेंगे। 3- भोजन बहुत शुद्ध हो - बाप को स्वीकार कराकर फिर खाने से भी ज्ञान की धारणा अच्छी होती है। ज्ञान को धारण करते-करते तुम मुरलीधर बन जाते हो। 
गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप भल निष्कामी है लेकिन भोजन को भोग जरूर लगाना है। बहुत शुद्धि से भोजन बनाकर बाबा के साथ बैठकर खाना है। 
2) इस रूद्र यज्ञ में योगबल से अपने पाप स्वाहा करने हैं। आवाज में नहीं आना है, चुप रहना है। बुद्धि को योगबल से पवित्र बनाना है। 
वरदान:- रूहानियत में रहकर स्वमान की सीट पर बैठने वाले सदा सुखी, सर्व प्राप्ति स्वरूप भव 
हर एक बच्चे में किसी न किसी गुण की विशेषता है। सभी विशेष हैं, गुणवान हैं, महान हैं, मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं-यह रूहानी नशा सदा स्मृति में रहे-इसको ही कहते हैं स्व-मान। इस स्वमान में अभिमान आ नहीं सकता। अभिमान की सीट कांटों की सीट है इसलिए उस सीट पर बैठने का प्रयत्न नहीं करो। रूहानियत में रहकर स्वमान की सीट पर बैठ जाओ तो सदा सुखी, सदा श्रेष्ठ, सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करते रहेंगे। 
स्लोगन:- अपनी शुभ भावना से हर आत्मा को दुआ देने वाले और क्षमा करने वाले ही कल्याणकारी हैं।