मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - बाप समान रहमदिल बन हर एक को जीयदान देना है, ऐसा प्रबन्ध करना है जो बहुत मनुष्यों का सौभाग्य बने''
प्रश्न:- इस समय दुनिया में हर एक मनुष्य गरीब है इसलिए उन्हें कौन सी सहुलियत तुम्हें देनी है?
उत्तर:- तुम्हारे पास जो भी अविनाशी ज्ञान रत्नों रूपी रोटी लेने के लिए आते हैं उनकी झोली बहुत प्यार से तुम्हें भरनी है, सभी को सुख देना है। हर एक को प्यार से चलाना है। कोई भी रूठ न जाये। तुम्हारे पास बहुत मनुष्य आते हैं अपना जीयदान लेने इसलिए भण्डारे खोलते जाओ। उन्हें खुशनसीब बनाने के लिए तुम्हारा दरवाजा सदा खुला रहना चाहिए। अगर जीयदान देने के बजाए लात मारते तो यह बहुत बड़ा पाप है।
गीत:- बचपन के दिन भुला न देना...
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) मुरझाये हुए को सुरजीत बनाना है। प्यार से एक-एक को सम्भालना है। किसी भी कारण से किसी के पैर खिसकने न पायें - यह ध्यान रखना है।
2) पावन दुनिया में ऊंच पद के लिए दूसरे सब प्रश्नों को छोड़ बाप और वर्से को याद करना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है। बहुतों को जीयदान देने की सेवा करनी है।
वरदान:- अपने अनादि स्वरूप में स्थित रह सर्व समस्याओं का हल करने वाले एकान्तवासी भव
आत्मा का स्वधर्म, सुकर्म, स्व स्वरूप और स्वदेश शान्त है। संगमयुग की विशेष शक्ति साइलेन्स की शक्ति है। आपका अनादि लक्षण है शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना। इसी साइलेन्स की शक्ति में विश्व की सर्व समस्याओं का हल समाया हुआ है। शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता से परखने वा निर्णय करने की शक्ति प्राप्त होती है जो व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं का सहज समाधान है।
स्लोगन:- अपनी दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति से शान्ति का अनुभव कराना ही महादानी बनना है।
प्रश्न:- इस समय दुनिया में हर एक मनुष्य गरीब है इसलिए उन्हें कौन सी सहुलियत तुम्हें देनी है?
उत्तर:- तुम्हारे पास जो भी अविनाशी ज्ञान रत्नों रूपी रोटी लेने के लिए आते हैं उनकी झोली बहुत प्यार से तुम्हें भरनी है, सभी को सुख देना है। हर एक को प्यार से चलाना है। कोई भी रूठ न जाये। तुम्हारे पास बहुत मनुष्य आते हैं अपना जीयदान लेने इसलिए भण्डारे खोलते जाओ। उन्हें खुशनसीब बनाने के लिए तुम्हारा दरवाजा सदा खुला रहना चाहिए। अगर जीयदान देने के बजाए लात मारते तो यह बहुत बड़ा पाप है।
गीत:- बचपन के दिन भुला न देना...
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) मुरझाये हुए को सुरजीत बनाना है। प्यार से एक-एक को सम्भालना है। किसी भी कारण से किसी के पैर खिसकने न पायें - यह ध्यान रखना है।
2) पावन दुनिया में ऊंच पद के लिए दूसरे सब प्रश्नों को छोड़ बाप और वर्से को याद करना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है। बहुतों को जीयदान देने की सेवा करनी है।
वरदान:- अपने अनादि स्वरूप में स्थित रह सर्व समस्याओं का हल करने वाले एकान्तवासी भव
आत्मा का स्वधर्म, सुकर्म, स्व स्वरूप और स्वदेश शान्त है। संगमयुग की विशेष शक्ति साइलेन्स की शक्ति है। आपका अनादि लक्षण है शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना। इसी साइलेन्स की शक्ति में विश्व की सर्व समस्याओं का हल समाया हुआ है। शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता से परखने वा निर्णय करने की शक्ति प्राप्त होती है जो व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं का सहज समाधान है।
स्लोगन:- अपनी दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति से शान्ति का अनुभव कराना ही महादानी बनना है।