Monday, March 25, 2013

Murli [25-03-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - देही-अभिमानी बनो तो पुराने जगत से नाता तोड़ने और नये जगत से नाता जोड़ने की खूबी सहज आ जायेगी, एक बाप से लव जुट जायेगा'' 
प्रश्न:- किन बच्चों का बुद्धियोग पारलौकिक मात-पिता से सदा जुटा हुआ रह सकता है? 
उत्तर:- जो जीते जी मरकर ईश्वरीय सर्विस पर तत्पर रहते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते भी सभी का बुद्धियोग बाप से जुड़ाने की सेवा करते हैं, बाप से जो रोशनी मिली है वह दूसरों को देते हैं, स्वर्ग का मालिक बनाने के लिए पावन बनने की युक्ति बताते हैं - उनका बुद्धियोग स्वत: बाप से जुटा रहता है। 
गीत:- कौन है पिता, कौन है माता... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) किसके भाव-स्वभाव में जलना मरना नहीं है। अपना स्वभाव बहुत-बहुत मीठा बनाना है। सहनशील बनना है। 
2) बाप का खिदमतगार बनने के लिए विचार सागर मंथन करना है। बुद्धि में ज्ञान का ही चिंतन करते रहना है। देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। 
वरदान:- स्वयं को संगमयुगी समझ व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाली समर्थ आत्मा भव 
यह संगमयुग समर्थ युग है। तो सदा यह स्मृति रखो कि हम समर्थ युग के वासी, समर्थ बाप के बच्चे, समर्थ आत्मायें हैं, तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा। कलियुग है व्यर्थ, जब कलियुग का किनारा कर चुके, संगमयुगी बन गये तो व्यर्थ से किनारा हो ही गया। यदि सिर्फ समय की भी याद रहे तो समय के प्रमाण कर्म स्वत: चलेंगे। आधाकल्प व्यर्थ सोचा, व्यर्थ किया, लेकिन अब जैसा समय, जैसा बाप वैसे बच्चे। 
स्लोगन:- जो सदा ईश्वरीय विधान पर चलते हैं वही ब्रह्मा बाप समान मास्टर विधाता बनते हैं।