Saturday, March 2, 2013

Murli [2-03-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-संगदोष संशयबुद्धि बनाता इसलिए संगदोष में फंसकर कभी पढ़ाई नहीं छोड़ना, कहा जाता-संग तारे कुसंग बोरे'' 
प्रश्न:- बाप की कौन सी श्रीमत तुम्हें कौड़ी से हीरे जैसा बना देती है? 
उत्तर:- बाप की श्रीमत है बच्चे घर गृहस्थ में रहते हुए कमल फूल समान रहो। जैसे कमल फूल को कीचड़ और पानी टच नहीं करता, ऐसे विकारी दुनिया में रहते हुए विकार टच न करें। यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, निर्विकारी दुनिया में चलना है इसलिए पवित्र बनो। इसी एक श्रीमत से तुम कौड़ी से हीरे जैसा बन जायेंगे। स्वर्ग का मालिक बन जायेंगे। 
गीत:- मुझको सहारा देने वाले... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) किसी भी तूफान के कारण निश्चय में कमी न आये-इसके लिए संगदोष से अपनी सम्भाल करनी है। श्रीमत पर पूरा-पूरा चलना है। 
2) इस अन्तिम जन्म में श्रीमत पर सम्पूर्ण निर्विकारी जरूर बनना है। विकारी दुनिया में रहते हुए विकार टच न करें, यह सम्भाल करनी है। 
वरदान:- पुराने हिसाब-किताब को समाप्त कर सम्पूर्णता का समारोह मनाने वाले बन्धनमुक्त भव 
इस पराये देश में जब सभी बंधन-युक्त आत्मा बन जाते हैं तब बाप आकर स्वरूप और स्वदेश की स्मृति दिलाकर बन्धनमुक्त बनाए स्वदेश में ले जाते हैं और स्वराज्य अधिकारी बनाते हैं। तो अपने स्वदेश में चलने के लिए सब हिसाब-किताब के समाप्त‍ि का समाप्त‍ि समारोह मनाओ। जब अभी यह समारोह मनायेंगे तब अन्त में सम्पूर्णता समारोह मना सकेंगे। बहुतकाल के बन्धनमुक्त ही बहुतकाल के जीवनमुक्त पद को प्राप्त करते हैं। 
स्लोगन:- अपने उमंग-उत्साह के सहयोग और मीठे बोल से कमजोर को शक्तिशाली बना देना ही शुभचिंतक बनना है।