Monday, December 15, 2014

Murli-16/12/2014-Hindi

16-12-14 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “मीठे बच्चे - तुम्हें अपने दीपक की सम्भाल स्वयं ही करनी है, तूफानों से बचने के लिए ज्ञान-योग का घृत जरूर चाहिए” प्रश्न:- कौन-सा पुरुषार्थ गुप्त बाप से गुप्त वर्सा दिला देता है? उत्तर:- अन्तर्मुख अर्थात् चुप रहकर बाप को याद करो तो गुप्त वर्सा मिल जायेगा । याद में रहते शरीर छूटे तो बहुत अच्छा, इसमें कोई तकलीफ नहीं । याद के साथ-साथ ज्ञान-योग की सर्विस भी करनी है, अगर नहीं कर सकते तो कर्मणा सेवा करो । बहुतों को सुख देंगे तो आशीर्वाद मिलेगी । चलन और बोलचाल भी बहुत सात्विक चाहिए । गीत:- निर्बल से लड़ाई बलवान की...... ओम् शान्ति | अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. सतोप्रधान बनने के लिए बहुत-बहुत परहेज से चलना है । अपना खान-पान, बोल-चाल सब सात्विक रखना है । बाप समान रूप-बसन्त बनना है । 2. अविनाशी ज्ञान रत्नों की निराकारी खान से अपनी झोली भरकर अपार खुशी में रहना है और दूसरों को भी इन रत्नों का दान देना है । वरदान:- कर्मयोगी बन हर संकल्प, बोल और कर्म श्रेष्ठ बनाने वाले निरन्तर योगी भव ! कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा । अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो योगयुक्त नहीं हैं । अगर साधारण वा व्यर्थ कर्म हो जाता है तो निरन्तर योगी नहीं कहेंगे । कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ हो । श्रेष्ठ कर्म की निशानी है - स्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट । ऐसी आत्मा ही निरन्तर योगी बनती है । स्लोगन:- स्वयं प्रिय, लोक प्रिय और प्रभू प्रिय आत्मा ही वरदानी मूर्त है । ओम् शान्ति | 💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕