Wednesday, December 24, 2014

Murli-25/12/2014-Hindi

25 दिसंबर 2014 “मीठे बच्चे - अपने लक्ष्य और लक्ष्य-दाता बाप को याद करो तो दैवीगुण आ जायेंगे, किसी को दुःख देना, ग्लानि करना, यह सब आसुरी लक्षण हैं”    प्रश्न:-    बाप का तुम बच्चों से बहुत ऊंचा प्यार है, उसकी निशानी क्या है? उत्तर:- बाप की जो मीठी-मीठी शिक्षायें मिलती हैं, यह शिक्षायें देना ही उनके ऊंचे प्यार की निशानी है । बाप की पहली शिक्षा है - मीठे बच्चे, श्रीमत के बिगर कोई उल्टा-सुल्टा काम नहीं करना, 2 तुम स्टूडेंट हो तुम्हें अपने हाथ में कभी भी लॉ नहीं उठाना है । तुम अपने मुख से सदैव रत्न निकालो, पत्थर नहीं। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. कोई भी बेकायदे, श्रीमत के विरूद्ध चलन नहीं चलनी है । स्वयं को स्वयं ही सुधारना है । छी-छी गन्दे मनुष्यों से अपनी सम्भाल करनी है ।  2. बन्धनमुक्त हैं तो पूरा-पूरा बलिहार जाना है । अपना ममत्व निकाल देना है । कभी भी किसी की निंदा वा परचिंतन नहीं करना है । गन्दे खराब ख्यालातों से स्वयं को मुक्त रखना है ।   वरदान:- समर्थ स्थिति का स्विच आन कर व्यर्थ के अंधकार को समाप्त करने वाले अव्यक् भव !    जैसे स्थूल लाइट का स्विच आन करने से अंधकार समाप्त हो जाता है । ऐसे समर्थ स्थिति है स्विच । इस स्विच को आन करो तो व्यर्थ का अंधकार समाप्त हो जायेगा । एक-एक व्यर्थ संकल्प को समाप्त करने की मेहनत से छूट जायेंगे । जब स्थिति समर्थ होगी तो महादानी-वरदानी बन जायेंगे क्योंकि दाता का अर्थ ही है समर्थ । समर्थ ही दे सकता है और जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ खत्म हो जाता है । तो यही अव्यक्त फरिश्तों का श्रेष्ठ कार्य है ।   स्लोगन:-  सत्यता के आधार से सर्व आत्माओं के दिल की दुआयें प्राप्त करने वाले ही भाग्यवान आत्मा है ।    ओम् शांति | ________