Monday, December 1, 2014

Murli-2/12/2014-Hindi


सार:- “मीठे बच्चे - सर्वशक्तिमान् बाप से बुद्धियोग लगाने से शक्ति मिलेगी, याद से ही आत्मा रूपी बैटरी चार्ज होती है, आत्मा पवित्र सतोप्रधान बन जाती है   
प्रश्न:-   संगमयुग पर तुम बच्चे कौन-सा पुरूषार्थ करते हो जिसकी प्रालब्ध में देवता पद मिलता है?
उत्तर:- संगम पर हम शीतल बनने का पुरूषार्थ करते हैं । शीतल अर्थात् पवित्र बनने से हम देवता बन जाते हैं । जब तक शीतल न बनें तब तक देवता भी बन नहीं सकते । संगम पर शीतल देवियां बन सब पर ज्ञान के ठण्डे छीटे डाल सबको शीतल करना है । सबकी तपत बुझानी है । खुद भी शीतल बनना है और सबको भी बनाना है ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. सूर्यवंशी में पहले-पहले आने के लिए निश्चयबुद्धि बन फुल मार्क्स लेनी है । पक्का ब्राह्मण बनना है । बेहद की नॉलेज स्मृति में रखनी है ।
2. ज्ञान चिता पर बैठ शीतल अर्थात् पवित्र बनना है । ज्ञान और योग से काम की तपत समाप्त करनी है । बुद्धियोग सदा एक बाप की तरफ लटका रहे ।
वरदान:- सदा याद की छत्रछाया के नीचे, मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने वाले मायाजीत विजयी भव !
बाप की याद ही छत्रछाया है, छत्रछाया में रहना अर्थात् मायाजीत विजयी बनना । सदा याद की छत्रछाया के नीचे और मर्यादा की लकीर के अन्दर रहो तो कोई की हिम्मत नहीं अन्दर आने की । मर्यादा की लकीर से बाहर निकलते हो तो माया भी अपना बनाने में होशियार है । लेकिन हम अनेक बार विजयी बने हैं, विजय माला हमारा ही यादगार है इस स्मृति से सदा समर्थ रहो तो माया से हार हो नहीं सकती ।
स्लोगन:-  सर्व खजानों को स्वयं में समा लो तो सम्पन्नता का अनुभव होता रहेगा ।