14-12-14 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ``अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज:12-01-79 मधुबन
वरदाता बाप द्वारा मिले हुए खुशी के खजानों का भण्डार
वरदान:- एक बाप को अपना संसार बनाकर सदा एक की आकर्षण में रहने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव
सदा इसी अनुभव में रहो कि एक बाप दूसरा न कोई। बस एक बाबा ही संसार है और कोई
आकर्षण नहीं, कोई कर्मबंधन नहीं। अपने किसी कमजोर संस्कार का भी बंधन न हो।
जो किसी पर मेरे पन का अधिकार रखते हैं उन्हें क्रोध या अभिमान आता है - यह भी
कर्मबन्धन है। लेकिन जब बाबा ही मेरा संसार है, यह स्मृति रहती है तो सब मेरा-मेरा
एक मेरे बाबा में समा जाता है और कर्मबन्धनों से सहज ही मुक्त हो जाते हैं।
स्लोगन:- महान आत्मा वह है जिसकी दृष्टि और वृत्ति बेहद की है।
स्लोगन:- महान आत्मा वह है जिसकी दृष्टि और वृत्ति बेहद की है।