Tuesday, May 6, 2014

Murli-[5-5-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - देही-अभिमानी बाप तुम्हें देही-अभिमानी भव का पाठ पढ़ाते हैं, 
तुम्हारा पुरूषार्थ है देह-अभिमान को छोड़ना'' 

प्रश्न:- देह-अभिमानी बनने से कौन-सी पहली बीमारी उत्पन्न होती है? 
उत्तर:- नाम-रूप की। यह बीमारी ही विकारी बना देती है इसलिए बाप कहते हैं आत्म-अभिमानी 
रहने की प्रैक्टिस करो। इस शरीर से तुम्हारा लगाव नहीं होना चाहिए। देह के लगाव को छोड़ 
एक बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे। बाप तुम्हें जीवनबन्ध से जीवनमुक्त बनने की 
युक्ति बताते हैं। यही पढ़ाई है। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) सतोप्रधान बनने के लिए सिवाए बाप के और किसी को भी याद नहीं करना है। 
देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है। 

2) सबसे क्षीरखण्ड होकर रहना है। इस अन्तिम जन्म में विकारों पर विजय प्राप्त कर 
जगतजीत बनना है। 

वरदान:- महसूसता की शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन करने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव 

कोई भी परिवर्तन का सहज आधार महसूसता की शक्ति है। जब तक महसूसता की शक्ति नहीं 
आती तब तक अनुभूति नहीं होती और जब तक अनुभूति नहीं तब तक ब्राह्मण जीवन की 
विशेषता का फाउण्डेशन मजबूत नहीं। उमंग-उत्साह की चाल नहीं। जब महसूसता की शक्ति 
हर बात का अनुभवी बनाती है तब तीव्र पुरूषार्थी बन जाते हो। महसूसता की शक्ति सदाकाल 
के लिए सहज परिवर्तन करा देती है। 

स्लोगन:- स्नेह के स्वरूप को साकार में इमर्ज कर ब्रह्मा बाप समान बनो।