Saturday, May 17, 2014

Murli-[17-5-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - कड़े ते कड़ी बीमारी है किसी के नाम रूप में फँसना, अन्तर्मुखी बन इस 
बीमारी की जांच करो और इससे मुक्त बनो'' 

प्रश्न:- नाम-रूप की बीमारी को समाप्त करने की युक्ति क्या है? इससे नुकसान कौन-कौन से होते हैं? 
उत्तर:- नाम-रूप की बीमारी को समाप्त करने के लिए एक बाप से सच्चा-सच्चा लव रखो। याद के समय 
बुद्धि भटकती है, देहधारी में जाती है तो बाप को सच-सच सुनाओ। सच बताने से बाप क्षमा कर देंगे। 
सर्जन से बीमारी को छिपाओ नहीं। बाबा को सुनाने से खबरदार हो जायेंगे। बुद्धि किसी के नाम रूप में 
लटकी हुई है तो बाप से बुद्धि जुट नहीं सकती। वह सर्विस के बजाए डिससर्विस करते हैं। बाप की निंदा 
कराते हैं। ऐसे निंदक बहुत कड़ी सज़ा के भागी बनते हैं। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) अपनी वृत्ति को बहुत शुद्ध, पवित्र बनाना है। कोई भी बेकायदे उल्टा काम नहीं करना है। 
बहुत-बहुत खबरदार रहना है। बुद्धि कहाँ पर भी लटकानी नहीं है। 

2) सच्चा प्यार एक बाप में रखना है, बाकी सबसे अनासक्त, नाम मात्र प्यार हो। आत्म-अभिमानी
स्टेज ऐसी बनानी है जो शरीर में भी लगाव न रहे। 

वरदान:- श्रीमत प्रमाण सेवा में सन्तुष्टता की विशेषता का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव 

कोई भी सेवा करो, कोई जिज्ञासु आवे या नहीं आवे लेकिन स्वयं, स्वयं से सन्तुष्ट रहो। निश्चय रखो कि 
अगर मैं सन्तुष्ट हूँ तो मैसेज काम जरूर करेगा। इसमें उदास नहीं हो। स्टूडेन्ट नहीं बढ़े कोई हर्जा नहीं, 
आपके हिसाब-किताब में तो जमा हो गया और उन्हों को सन्देश मिल गया। अगर स्वयं सन्तुष्ट हो तो 
खर्चा सफल हुआ। श्रीमत प्रमाण कार्य किया, तो श्रीमत को मानना यह भी सफलतामूर्त बनना है। 

स्लोगन:- असमर्थ आत्माओं को समर्थी दो तो उनकी दुआयें मिलेंगी।