Thursday, May 1, 2014

Murli-[1-5-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम्हें पहला-पहला निश्चय चाहिए कि हमको पढ़ाने 
वाला स्वयं शान्ति का सागर, सुख का सागर बाप है। कोई मनुष्य किसी को 
सुख-शान्ति नहीं दे सकता'' 

प्रश्न:- सबसे ऊंची मंज़िल कौन-सी है? उस मंज़िल को पाने का पुरूषार्थ क्या है? 
उत्तर:- एक बाप की याद पक्की हो जाए, बुद्धि और कोई की तरफ न जाये, यह 
ऊंची मंज़िल है। इसके लिए आत्म-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना पड़े। 
जब तुम आत्म-अभिमानी बन जायेंगे तो सब विकारी ख्यालात खत्म हो जायेंगे। 
बुद्धि का भटकना बंद हो जायेगा। देह के तरफ बिल्कुल दृष्टि न जाये, यह मंज़िल 
है इसके लिए आत्म-अभिमानी भव। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) ज्ञान से अपनी दृष्टि का परिर्वतन करना है। आत्म-अभिमानी बन विकारी 
ख्यालात 
समाप्त करने हैं। किसी भी विकार की बांस न रहे, देह तरफ बिल्कुल दृष्टि न जाये। 

2) बेहद का बाप ही हमें पढ़ाते हैं - ऐसा पक्का निश्चय हो तब याद मजबूत होगी। 
ध्यान रहे, माया निश्चय से जरा भी हिला न दे। 

वरदान:- श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति द्वारा सिद्धियां प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव 

आप मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों के संकल्प में इतनी शक्ति है जो जिस समय 
चाहो वह कर सकते हो और करा भी सकते हो क्योंकि आपका संकल्प सदा शुभ, 
श्रेष्ठ और कल्याणकारी है। जो श्रेष्ठ और कल्याण का संकल्प है वह सिद्ध जरूर होता है। 
मन सदा एकाग्र अर्थात् एक ठिकाने पर स्थित रहता है, भटकता नहीं है। 
जहाँ चाहे जब चाहे मन को वहाँ स्थित कर सकते हैं। इससे सिद्धि स्वरूप स्वत: 
बन जाते हैं। 

स्लोगन:- परिस्थितियों की हलचल के प्रभाव से बचना है तो विदेही स्थिति में 
रहने का अभ्यास करो।