Saturday, August 18, 2012

Murli [18-08-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप और ब्रह्म-पुत्रा नदी का यह संगम हीरे समान है, यहाँ तुम बच्चे आते हो - कौड़ी से हीरे जैसा बनने'' 
प्रश्न: सतयुगी राजधानी की स्थापना कब और कैसे होगी? 
उत्तर: जब सारी पतित सृष्टि की सफाई हो अर्थात् पुरानी सृष्टि का विनाश हो तब सतयुगी राजधानी की स्थापना होगी। उसके पहले तुम्हें तैयार होना है, पावन बनना है। नई राजधानी का संवत तब शुरू होगा जब एक भी पतित नहीं रहेगा। यहाँ से संवत शुरू नहीं होगा। भल राधे-कृष्ण का जन्म हो जायेगा लेकिन उस समय से सतयुग नहीं कहेंगे। जब वह लक्ष्मी-नारायण के रूप में राज-गद्दी पर बैठेंगे तब संवत प्रारम्भ होगा, तब तक आत्मायें आती जाती रहेंगी। यह सब विचार सागर मंथन करने की बातें हैं। 
गीत:- यही बहार है... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) जब तक जीना है पुरूषार्थ करते रहना है। बाप की शिक्षाओं को अमल में लाना है। बाप समान मास्टर ज्ञान सागर बनना है। 
2) रूहानी पण्डा बन सबको सच्ची यात्रा करानी है। हीरे जैसा बनना और बनाना है। 
वरदान: संगमयुग के महत्व को जान श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव 
संगमयुग छोटा सा युग है, इस युग में ही बाप के साथ का अनुभव होता है। संगम का समय और यह जीवन दोनों ही हीरे तुल्य हैं। तो इतना महत्व जानते हुए एक सेकण्ड भी साथ को नहीं छोड़ना। सेकण्ड गया तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गया। सारे कल्प की श्रेष्ठ प्रालब्ध जमा करने का यह युग है, अगर इस युग के महत्व को भी याद रखो तो तीव्र पुरूषार्थ द्वारा राज्य अधिकार प्राप्त कर लेंगे। 
स्लोगन: सर्व को स्नेह और सहयोग देना ही विश्व सेवाधारी बनना है।