Wednesday, August 15, 2012

Murli [15-08-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - बाप की याद कायम तब रहेगी जब बुद्धि में ज्ञान होगा, ज्ञानयुक्त बुद्धि से रूहानी यात्रा करनी और करानी है'' 
प्रश्न: ईश्वर दाता है फिर भी ईश्वर अर्थ दान करने की रसम क्यों चली आती है? 
उत्तर: क्योंकि ईश्वर को अपना वारिस बनाते हैं। समझते हैं इसका एवज़ा वह दूसरे जन्म में देगा। ईश्वर अर्थ देना माना उसे अपना बच्चा बना लेना। भक्ति मार्ग में भी बच्चा बनाते हो अर्थात् सब कुछ बलिहार करते हो इसलिए एक बार बलिहार जाने के रिटर्न में वह 21 जन्म बलिहार जाता है। तुम कौड़ी ले आते हो, बाप से हीरा ले लेते हो। इसी पर ही सुदामा का मिसाल है। 
गीत:- रात के राही... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए याद की यात्रा में तत्पर रहना है। रूहानी यात्रा में कभी भी थकना नहीं है। 
2) शिवबाबा को अपना वारिस बनाए उस पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है। माँ बाप को फालो करना है। 21 जन्मों की राजाई का सुख लेना है। 
वरदान: किसी भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाकर दुआओं का अधिकार प्राप्त करने वाले महान आत्मा भव 
महान आत्मा वो है जिसमें स्वयं को बदलने की शक्ति है और जो किसी भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाने में स्वयं को पहले आफर करते हैं - ''मुझे करना है, मुझे बदलना है'', ऐसी आफर करने वालों को तीन प्रकार की दुआयें मिलती हैं - 1-स्वयं को स्वयं की दुआयें अर्थात् खुशी मिलती है। 2-बाप द्वारा और 3- ब्राह्मण परिवार द्वारा। इसलिए अलबेलापन नहीं लाओ कि ये तो होता ही है, चलता ही है..। फुलस्टॉप लगाकर अलबेलेपन को परिवर्तन कर अलर्ट बन जाओ। 
स्लोगन: संकल्पों की एकाग्रता द्वारा ही श्रेष्ठ परिवर्तन में फास्ट गति आ सकती है।