मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम उठते-बैठते सब कुछ करते चुप रहो, बाप को याद करो तो वर्सा मिल जायेगा, इसमें गीत कविता आदि की भी दरकार नहीं है''
प्रश्न: बाप को लिबरेटर कहने से कौन सी एक बात सिद्ध हो जाती है?
उत्तर: जब बाप दु:खों से अथवा 5 विकारों से लिबरेट करने वाला है तो जरूर उसमें फँसाने वाला कोई दूसरा होगा। लिबरेटर कभी फँसा नहीं सकता। इसको कहा जाता है दु:ख हर्ता सुख कर्ता तो वह कभी किसी को दु:ख कैसे दे सकते। जब बच्चे दु:खी होते हैं तब उस बाप को याद करते हैं। दु:ख देने वाला है रावण। रावण माया श्रापित करती। बाप आते हैं वर्सा देने।
गीत:- जो पिया के साथ है...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा यह बात याद रखना है कि जो कर्म हम करेंगे, हमें देख और भी करने लग पड़ेंगे। इसलिए कभी भी श्रीमत के विपरीत विकारों के वश हो कोई भी कर्म नहीं करना है।
2) सर्विस का शौक रखना है। बिगर कहे सेवा में लग जाना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है।
वरदान: सर्व शक्तियों द्वारा हर कम्प्लेन को समाप्त कर कम्प्लीट बनने वाले शक्तिशाली आत्मा भव
अन्दर में अगर कोई भी कमी है तो उसके कारण को समझकर निवारण करो क्योंकि माया का नियम है कि जो कमजोरी आपमें होगी, उसी कमजोरी के द्वारा वह आपको मायाजीत बनने नहीं देगी। माया उसी कमजोरी का लाभ लेगी और अन्त समय में भी वही कमजोरी धोखा देगी इसलिए सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा कर, शक्तिशाली आत्मा बनो और योग के प्रयोग द्वारा हर कम्प्लेन को समाप्त कर कम्प्लीट बन जाओ। यही स्लोगन याद रहे -''अब नहीं तो कब नहीं''।
स्लोगन: शान्ति और धैर्यता की शक्ति से विघ्नों को समाप्त करने वाले ही विघ्न-विनाशक हैं।
प्रश्न: बाप को लिबरेटर कहने से कौन सी एक बात सिद्ध हो जाती है?
उत्तर: जब बाप दु:खों से अथवा 5 विकारों से लिबरेट करने वाला है तो जरूर उसमें फँसाने वाला कोई दूसरा होगा। लिबरेटर कभी फँसा नहीं सकता। इसको कहा जाता है दु:ख हर्ता सुख कर्ता तो वह कभी किसी को दु:ख कैसे दे सकते। जब बच्चे दु:खी होते हैं तब उस बाप को याद करते हैं। दु:ख देने वाला है रावण। रावण माया श्रापित करती। बाप आते हैं वर्सा देने।
गीत:- जो पिया के साथ है...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा यह बात याद रखना है कि जो कर्म हम करेंगे, हमें देख और भी करने लग पड़ेंगे। इसलिए कभी भी श्रीमत के विपरीत विकारों के वश हो कोई भी कर्म नहीं करना है।
2) सर्विस का शौक रखना है। बिगर कहे सेवा में लग जाना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है।
वरदान: सर्व शक्तियों द्वारा हर कम्प्लेन को समाप्त कर कम्प्लीट बनने वाले शक्तिशाली आत्मा भव
अन्दर में अगर कोई भी कमी है तो उसके कारण को समझकर निवारण करो क्योंकि माया का नियम है कि जो कमजोरी आपमें होगी, उसी कमजोरी के द्वारा वह आपको मायाजीत बनने नहीं देगी। माया उसी कमजोरी का लाभ लेगी और अन्त समय में भी वही कमजोरी धोखा देगी इसलिए सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा कर, शक्तिशाली आत्मा बनो और योग के प्रयोग द्वारा हर कम्प्लेन को समाप्त कर कम्प्लीट बन जाओ। यही स्लोगन याद रहे -''अब नहीं तो कब नहीं''।
स्लोगन: शान्ति और धैर्यता की शक्ति से विघ्नों को समाप्त करने वाले ही विघ्न-विनाशक हैं।