Saturday, January 16, 2016

मुरली 17 जनवरी 2016

17-01-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:04-01-80 मधुबन

“वर्तमान राज्य-अधिकारी ही भविष्य राज्य-अधिकारी”
सभी अपने को डबल राज्य-अधिकारी समझते हो? वर्तमान भी राज्य-अधिकारी और भविष्य में भी राज्य-अधिकारी। वर्तमान, भविष्य का दर्पण है। वर्तमान की स्टेज अर्थात् दर्पण द्वारा अपना भविष्य स्पष्ट देख सकते हो। वर्तमान व भविष्य के राज्य-अधिकारी बनने के लिए सदा यह चेक करो कि मेरे में रूलिंग पावर कहाँ तक है, पहले सूक्ष्म शक्तियाँ, जो विशेष कार्यकर्ता हैं, उनके ऊपर कहाँ तक अपना अधिकार है। संकल्प शक्ति के ऊपर, बुद्धि के ऊपर और संस्कारों के ऊपर। यह विशेष तीन शक्तियाँ राज्य-अधिकारी बनाने में सदा सहयोगी अर्थात् राज्य की कारोबार चलाने वाले मुख्य सहयोगी कार्यकर्ता हैं। अगर यह तीनों कार्यकर्ता आप आत्मा अर्थात् राज्य-अधिकारी राजा के इशारे पर चलते हैं तो सदा वह राज्य यथार्थ रीति से चलता है। जैसे बाप को भी तीन मूर्तियों द्वारा कार्य कराना पड़ता है इसलिए त्रिमूर्ति का विशेष गायन और पूजन है। त्रिमूर्ति शिव कहते हो। एक बाप के तीन विशेष कार्य-कर्ता हैं जिन द्वारा विश्व का कार्य कराते हैं। ऐसे आप आत्मा रचयिता हो और यह तीन विशेष शक्तियाँ अर्थात् त्रिमूर्ति शक्तियाँ आपके विशेष कार्यकर्ता हैं। आप भी इन तीन रचना के रचयिता हो। तो चेक करो कि त्रिमूर्ति रचना आपके कन्ट्रोल में हैं?

मन है उत्पत्ति करने वाला अर्थात् संकल्प रचने वाला। बुद्धि है निर्णय करना अर्थात् पालना के समान कार्य करने वाली। संस्कार है अच्छा व बुरा परिवर्तन कराने वाला। जैसे ब्रह्मा आदि देव है वैसे पहले आदि शक्ति है मन अर्थात् संकल्प शक्ति। आदि शक्ति यथार्थ है तो और भी कार्यकर्ता उनके साथी यथार्थ कार्य करने वाले हैं। पहले यह चेक करो मुझ राजा का पहला आदि कार्यकर्ता सदा समीप के साथी के समान इशारे पर चलता है क्योंकि माया दुश्मन भी पहले इसी आदि शक्ति को बागी अर्थात् ट्रेटर बनाती है और राज्य-अधिकार लेने की कोशिश करती है इसलिए आदि शक्ति को सदा अपने अधिकार की शक्ति के आधार पर सहयोगी, विशेष कार्यकर्ता करके चलाओ। जैसे राजा स्वयं कोई कार्य नहीं करता, कराता है। करने वाले राज्य कारोबारी अलग होते हैं। अगर राज्य कारोबारी ठीक नहीं होते तो राज्य डगमग हो जाता है। ऐसे आत्मा भी करावनहार है, करनहार ये विशेष त्रिमूर्ति शक्तियाँ हैं। पहले इनके ऊपर रूलिंग पावर है तो यह साकार कर्मेन्द्रियाँ उनके आधार पर स्वत: ही सही रास्ते पर चलेंगी। कर्मेन्द्रियों को चलाने वाली भी विशेष यह तीन शक्तियाँ हैं। अब रूलिंग पावर कहाँ तक आई है - यह चेक करो।

जैसे डबल विदेशी हो वैसे डबल रूलर्स हो? हरेक का राज्य-कारोबार अर्थात् स्वराज्य ठीक चल रहा है? जैसे सतयुगी सृष्टि के लिए कहते हैं एक राज्य एक धर्म है। ऐसे ही अब स्वराज्य में भी एक राज्य अर्थात् स्व के इशारे पर सर्व चलने वाले हैं। एक धर्म अर्थात् एक ही धारणा सब की है कि सदा श्रेष्ठाचारी चढ़ती कला में चलना है। मन अपनी मनमत पर चलावे, बुद्धि अपनी निर्णय शक्ति की हलचल करे, मिलावट करें, संस्कार आत्मा को भी नाच नचाने वाले हो जाएं तो इसको एक धर्म नहीं कहेंगे, एक राज्य नहीं कहेंगे। तो आपके राज्य का क्या हाल है? त्रिमूर्ति शक्तियाँ ठीक हैं? कभी संस्कार बन्दर का नाच तो नहीं नचाते हैं? बन्दर क्या करता है? नीचे ऊपर छलांग मारता है ना। संस्कार की भी अभी-अभी चढ़ती कला अभी-अभी गिरती कला। यह बन्दर का नाच है ना। तो ये संस्कार नाच तो नहीं नचाते हैं ना? कन्ट्रोल में है ना सब? कभी बुद्धि मिलावट तो नहीं करती है? जैसे आजकल मिलावट करते हैं तो निर्णय शक्ति भी मिलावट कर देती है, कभी बुद्धि मिलावट तो नहीं कर देती है? अभी-अभी यथार्थ अभी-अभी व्यर्थ तो मिलावट हुई ना।

विदेश में माया आती है? विदेशियों के पास माया नहीं आनी चाहिए क्योंकि विदेश में वर्तमान समय थोड़े ही समय में ऊंचे भी चढ़ते और नीचे भी गिरते हैं। तो थोड़े समय में सब प्रकार के अनुभव करके अब पूरे कर लिए हैं। जैसे कोई चीज़ बहुत खाई जाती है तो दिल भर जाता है। वैसे विदेश में भी सब प्रकार का फुल फोर्स होने के कारण विदेश की आत्मायें अब इनसे थक गई हैं। तो जो थके हुए होते हैं उनको अगर आराम मिल जाता है तो बिल्कुल लेटते ही गुम हो जाते हैं। डीप स्लीप का अनुभव करते हैं। तो विदेशियों को माया ने थोड़े ही समय में बहुत अनुभव करा दिया है। अब क्या करना है? जो नई चीज़ की तलाश थी वह मिल गई फिर माया क्यों आवे? नहीं आनी चाहिए ना, फिर आती क्यों है? (माया के पुराने ग्राहक हैं) माया को भी अगर नये ग्राहक अच्छे मिल जायेंगे तो पुरानों को आपेही छोड़ देगी। रूलिंग पावर वाले के पास माया आ नहीं सकती। माया जहाँ देखती है कार्यकर्ता सब होशियार हैं, अटेन्शन में है तो वहाँ हिम्मत नहीं रख सकती। रूलिंग पावर कहाँ तक हैं - उसकी चेकिंग करो और अगर पावर नहीं है तो उसका कारण क्या है? कारण को निवारण के रूप में परिवर्तित करो। कारण खत्म हो जाना अर्थात् माया खत्म हो गई। माया का मुख्य स्वरूप कारण के रूप में आता है। कारण को निवारण के रूप में कर लो तो माया सदा के लिए समाप्त हो जायेगी। आज तो मिलने आये हैं। मुरलियाँ तो बहुत सुनी अब ऐसे मुरलीधर बनो जो माया मुरली के आगे न्योछावर (सरेन्डर) हो जाए। ऐसे मुरलीधर हो ना कि वह स्थूल साज़ की मुरली चलाने वाले हो? वह तो बहुत अच्छी चलाते हो, इसमें भी मुरलीधर बनो। माया को सरेन्डर कराने की मुरली। यह साज़ भी बजा सकते हो ना? साज़ बजाने का मैजॉरटी को शौक है। जिस समय भी कोई साज़ बजाओ उस समय यह सोचो कि मायाजीत बनने के राज़ का साज़ भी आता है? यह राज़ का साज़ अगर सदैव बजाते रहो तो माया सदा के लिए सरेन्डर हो जायेगी। ऐसे साज़ बजाना आता है? विदेशी भी पदमगुणा भाग्यशाली हैं। दूर से आते हैं लेकिन चान्स भी पदमगुणा मिलता है। जितना देश वाले वर्ष में लेते हैं उससे ज्यादा विदेशियों को थोड़े समय में प्राप्त होता है। विशेष पालना मिल रही है।

सबकी नज़र आप विदेशियों के ऊपर विशेष रहती है। तो विशेष पालना का रूप, प्रत्यक्षफल के रूप में विशेष दिखाना पड़े। जैसे स्थापना में विशेष पालना चली वैसे अभी भी आप लोगों की विशेष पालना चल रही है। तो पहले पालना वालों ने उस पालना का रिटर्न सेवा की स्थापना की। अब आप लोग क्या करेंगे? सेवा की समाप्ति करेंगे और सम्पूर्णता का व प्रत्यक्षता का नाम बाला करेंगे। अब आप लोगों को समाप्ति की डेट फिक्स करनी पड़ेगी। अभी सबका इन्तज़ार आपके ऊपर होगा। बापदादा से पूछेंगे कि विनाश कब होगा? तो कहेंगे विदेशियों से पूछो। देश वालों ने स्थापना की जिम्मेवारी ली। विदेशी भी कोई तो जिम्मेवारी लेंगे ना। है भी विदेश विनाशी और भारत अविनाशी तो भारतवासियों ने स्थापना का किया और विदेशी विनाश के कार्य में विशेष निमित्त बनेंगे। भारतवासी बच्चों ने यज्ञ की स्थापना में अपनी आहुतियाँ डाल कर स्थापना की। यज्ञ रचा। और आप लोग फिर अन्तिम आहुति डालकर समाप्त करो। फिर जय जयकार हो जायेगा। अब जल्दी-जल्दी अन्तिम आहुति डालो। सब मिल करके एक संकल्प का स्वाहा करो तो समाप्ति हो जाएगी। इसकी डेट कब बताऐंगे? 80 में करेंगे या 81 में करेंगे। यह डेट बताना। (एक बार मधुबन में फिर से आयें) विनाश शुरू होगा तो सदा के लिए आ जायेंगे इसलिए तो यहाँ बड़ा हाल बना रहे हैं। सिर्फ वायरलेस का सेट अपना ठीक रखना। यहाँ की वायरलेस है वाइसलेस की वायरलेस। तो वायरलेस द्वारा आवाज़ आपको पहुँच जायेंगी कि आप आ जाओ। अगर वायरलेस सेट नहीं होगा तो आवाज़ भी पहुँच नहीं सकेगा। डायरेक्शन नहीं मिल सकेगा। स्थूल साधन द्वारा आवाज़ नहीं आयेगा। वाइसलेस बुद्धि ही यह अन्तिम डायरेक्शन कैच कर सकेगी इसलिए जल्दी-जल्दी करेंगे तो जल्दी समय आ जायेगा। पहले तो पावरफुल माइक तैयार करो। जिस माइक द्वारा आवाज़ भारत में पहुँचे और फिर जैसे उनका इलेक्शन होता है तो एक दिन पहले एडवरटाइज़मेन्ट के साधन सब बन्द कर देते हैं। पीछे वोटिंग होती है। तो पहले तो माइक द्वारा आवाज़ फैलाओ फिर वो भी साइलेन्स हो जायेगी, फिर रिज़ल्ट आउट होगी। अभी एडवरटाइज़मेन्ट वाले माइक कहाँ तक तैयार किए हैं! पहले आवाज़ फैलेगा फिर ऐसी डेड साइलेंस होगी जो यह आवाज़ फैलाने का पार्ट भी समाप्त हो जायेगा और फिर परिवर्तन होगा। अभी तो पहली स्टेज चल रही है ना। पहली स्टेज में टाइम लगेगा, दूसरी में टाइम नहीं लगेगा।

आस्ट्रेलिया पार्टी:- आस्ट्रेलिया के सर्व बच्चों में सबसे बड़ी विशेषता क्या है? जानते हो? आस्ट्रेलिया वालों का जो दूसरे धर्म में पार्ट बजाने का निमित्त मात्र समय था, वह समय अभी समाप्त हो गया, इसलिए अपने धर्म की पहचान मिलने से सहज और जल्दी आ गए और फिर औरों को भी निकालने का बहुत उमंग है। तो इससे सिद्ध होता है कि टैम्प्रेरी टाइम जो दूसरे धर्म में गए हैं, वह समाप्त हो गया इसलिए यह भी विशेषता है कि जो भी आते हैं मैजॉरिटी वह अपने लगते है। दूसरे धर्म के नहीं लगते हैं। आस्ट्रेलिया अथवा विदेशी होते हुए भी चात्रक आत्मायें लगती हैं तो आत्मा का चात्रकपन सिद्ध करता है कि अपने धर्म वाले हैं। आप लोगों को भी ऐसे ही महसूस होता है ना कि ग़लती से दूसरी डाली पर चले गए हैं। सेवा के लिए यह भी एक थोड़े समय का पार्ट मिला हुआ है। नहीं तो विदेश की सेवा कैसे होती? वहाँ वालों को निमित्त बना के विदेश की सेवा करा रहे हैं। जैसे कल्प पहले का गायन भी है कि पाण्डव गुप्त वेष में यहाँ-वहाँ सेवा के लिए गए थे। तो आप भी रूप-धर्म में परिवर्तन करके पाण्डव-सेना सेवा के लिए गए हो। लेकिन हो पाण्डवसेना। अब तो धर्म, देश, गुण और कर्तव्य सब बदल गया ना? आस्ट्रेलिया निवासी के बजाए अपने को वहाँ रहते भी मधुबन निवासी समझकर रहते हो ना। जन्म का घर मधुबन है। साकार घर मधुबन और निराकारी घर परमधाम। आस्ट्रेलिया आपका दफ्तर है। जैसे आफिस में कार्य के लिए जाते हैं ऐसे आप भी सेवा के लिए जा रहे हो। दफतर में जाते हैं तो घर तो नहीं भूलता है ना। तो घर की एड्रेस अगर आपसे कोई पूछे तो क्या देंगे? (पाण्डव भवन) इसी स्मृति में रहने से सदा उपराम अवस्था में रहेंगे। दफ्तर की वस्तु में कभी लगाव नहीं होता क्योंकि समझते हैं कि यह सेवा के लिए चीजें हैं। हमारी नहीं। तो ऐसे ही उमराम रहते हो? कितनी भी प्यारी चीज़ हो या आकर्षित करने वाले सेवा के साथी हो लेकिन दफ्तर में काम करने वालों के लिए नियम होता है, काम के लिए साथी बने फिर न्यारे। अगर ग़लती से आपस में प्यार हो जाता है तो अच्छा नहीं माना जाता। घर वालों से स्नेह होता है। दफ्तर वालों से काम चलाना होता है, तो ऐसे चलो।

आस्ट्रेलिया वालों ने सेवा तो बढ़ाई है ना। अभी कितने स्थान हैं वहाँ (5) हरेक को राज्य करने के लिए अपनी-अपनी प्रजा तो जरूर बनानी ही है। (विनाश में हम लोगों का क्या होगा) विनाश में आस्ट्रेलिया सारा एक ही टापू बन जायेगा। कुछ पानी में आ जायेगा कुछ ऊपर रह जाएगा। आप लोग सेफ रहेंगे। विनाश के पहले ही आप लोगों को आवाज़ पहुँचेगा। जब तुम सभी सेफ स्थान पर पहुँच जायेंगे फिर विनाश होगा। जैसे गायन है भट्ठी में बिल्ली के पूंगरे सेफ रहे...तो जो बच्चे बाप की याद में रहने वाले हैं, वह विनाश में विनाश नहीं होंगे लेकिन स्वेच्छा से शरीर छोड़ेंगे, न कि विनाश के सरकमस्टान्सेस के बीच में छोडेंगे। इसके लिए एक बुद्धि की लाइन क्लियर हो और दूसरा अशरीरी बनने का अभ्यास बहुत हो। कोई भी बात हो तो आप अशरीरी हो जाओ। अपने आप शरीर छोड़ने का जब संकल्प होगा तो संकल्प किया और चले जायेंगे। इसके लिए बहुत समय से प्रैक्टिस चाहिए। जो बहुत समय के स्नेही और सहयोगी रहते हैं उनको अन्त में मदद जरूर मिलती है। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे स्थूल वस्त्र उतार रहे हैं। ऐसे ही शरीर छोड़ देंगे। सारा दिन में चलते-चलते बीच-बीच में अशरीरी बनने का अभ्यास जरूर करो। जैसे ट्राफिक कन्ट्रोल का रिकार्ड बजता है तो वैसे वहाँ कार्य में रहते भी बीचबीच में अपना प्रोग्राम आपेही सेट करो तो लिंक जुटा रहेगा, इससे अभ्यास होता जायेगा।

आप लोगों में यह भी एक विशेषता है कि जब चाहो नौकरी छोड़ सकते हो, जब चाहो कर सकते हो। निर्बन्धन हो। सिर्फ मन और संस्कारों का बन्धन न हो। वैसे देह और देह के धर्मो से फ़्री हो। आधे बन्धनों से पहले ही फ़्री हो, बाकी थोड़े बन्धनों को याद और सेवा से खत्म कर दो। सभी हाई जम्प लगाने वाले हो।
वरदान:
निमित्तपन की स्मृति द्वारा अपने हर संकल्प पर अटेन्शन रखने वाले निवारण स्वरूप भव!  
निमित्त बनी हुई आत्माओं पर सभी की नज़र होती है इसलिए निमित्त बनने वालों को विशेष अपने हर संकल्प पर अटेन्शन रखना पड़े। अगर निमित्त बने हुए बच्चे भी कोई कारण सुनाते हैं तो उनको फालो करने वाले भी अनेक कारण सुना देते हैं। अगर निमित्त बनने वालों में कोई कमी है तो वह छिप नहीं सकती इसलिए विशेष अपने संकल्प, वाणी और कर्म पर अटेन्शन दे निवारण स्वरूप बनो।
स्लोगन:
ज्ञानी तू आत्मा वह है जिसमें अपने गुण वा विशेषताओं का भी अभिमान न हो।