Thursday, January 7, 2016

मुरली 07 जनवरी 2016

07-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - अपने स्वीट बाप को याद करो तो तुम सतोप्रधान देवता बन जायेंगे, सारा मदार याद की यात्रा पर है''  
प्रश्न:
जैसे बाप की कशिश बच्चों को होती है वैसे किन बच्चों की कशिश सबको होगी?
उत्तर:
जो फूल बने हैं। जैसे छोटे बच्चे फूल होते हैं, उन्हें विकारों का पता भी नहीं तो वह सबको कशिश करते हैं ना। ऐसे तुम बच्चे भी जब फूल अर्थात् पवित्र बन जायेंगे तो सबको कशिश होगी। तुम्हारे में विकारों का कोई भी कांटा नहीं होना चाहिए।
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे जानते हैं कि यह पुरूषोत्तम संगमयुग है। अपना भविष्य का पुरूषोत्तम मुख देखते हो? पुरूषोत्तम चोला देखते हो? फील करते हो कि हम फिर नई दुनिया सतयुग में इनकी (लक्ष्मी-नारायण की) वंशावली में जायेंगे अर्थात् सुखधाम में जायेंगे अथवा पुरूषोत्तम बनेंगे। बैठे-बैठे यह विचार आते हैं! स्टूडेन्ट जो पढ़ते हैं तो जो दर्जा पढ़ते हैं, वह जरूर बुद्धि में होगा ना-मैं बैरिस्टर या फलाना बनूँगा। वैसे तुम भी जब यहाँ बैठते हो तो यह जानते हो हम विष्णु डिनायस्टी में जायेंगे। विष्णु के दो रूप हैं-लक्ष्मी-नारायण, देवी-देवता। तुम्हारी बुद्धि अभी अलौकिक है। और कोई मनुष्य की बुद्धि में यह बातें रमण नहीं करती होंगी। तुम बच्चों की बुद्धि में यह सब बातें हैं। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। यहाँ बैठे हो समझते हो सत बाबा जिसको शिव कहा जाता है, उनके संग में बैठे हैं। शिवबाबा ही रचता है, वही रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं और वह नॉलेज देते हैं। जैसेकि कल की बात सुनाते हैं। यहाँ बैठे हो तो यह तो याद होगा ना कि हम आये हैं-रिज्युवनेट होने अर्थात् यह शरीर बदल देवता शरीर लेने। आत्मा कहती है हमारा यह तमोप्रधान पुराना शरीर है, इसे बदलकर ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनने का है। एम ऑब्जेक्ट कितनी श्रेष्ठ है। पढ़ाने वाला टीचर जरूर पढ़ने वाले स्टूडेन्ट से होशियार होगा ना। पढ़ाते हैं, अच्छे कर्म सिखलाते हैं तो जरूर ऊंच होगा ना। तुम जानते हो हमको सबसे ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं। भविष्य में हम सो देवता बनेंगे। हम जो पढ़ते हैं सो भविष्य नई दुनिया के लिए। और कोई को नई दुनिया का पता भी नहीं है। तुम्हारी बुद्धि में अब आता है यह लक्ष्मी-नारायण नई दुनिया के मालिक थे। तो जरूर फिर रिपीट होगा। तो बाप समझाते हैं तुमको पढ़ाकर मनुष्य से देवता बनाता हूँ। देवताओं में भी जरूर नम्बरवार होंगे। दैवी राजधानी होती है ना। तुम्हारा सारा दिन यही ख्यालात चलता होगा कि हम आत्मा हैं। हमारी आत्मा जो बहुत पतित थी, सो अब पावन बनने के लिए पावन बाप को याद करती है। याद का अर्थ भी समझना है। आत्मा याद करती है अपने स्वीट बाप को। बाप खुद कहते हैं-बच्चे, मुझे याद करने से तुम सतोप्रधान देवता बन जायेंगे। सारा मदार याद की यात्रा पर है। बाप जरूर पूछेंगे ना-बच्चे कितना समय याद करते हो? याद करने में ही माया की लड़ाई होती है। तुम खुद समझते हो यह यात्रा नहीं परन्तु जैसेकि लड़ाई है, इसमें विघ्न बहुत पड़ते हैं। याद की यात्रा में रहने में ही माया विघ्न डालती है अर्थात् याद भुला देती है। कहते भी हैं बाबा हमको आपकी याद में रहने में माया के तूफान बहुत लगते हैं। नम्बरवन तूफान है देह-अभिमान का। फिर है काम, क्रोध, लोभ, मोह.....। बच्चे कहते हैं बाबा हम बहुत कोशिश करते हैं याद में रहने में कोई विघ्न न आये परन्तु फिर भी तूफान लगते हैं। आज क्रोध का तूफान, आज लोभ का तूफान आया। आज हमारी अवस्था अच्छी रही, कोई भी तूफान नहीं आया। याद की यात्रा में सारा दिन रहे, बड़ी खुशी थी। बाबा को बहुत याद किया। याद में प्रेम के आंसू बहते रहते हैं। बाप की याद में रहने से तुम मीठे बन जायेंगे।

तुम बच्चे यह भी समझते हो कि हम माया से हार खाते-खाते कहाँ तक आकर पहुँचे हैं। बच्चे हिसाब निकालते हैं। कल्प में कितने मास, कितने दिन.. हैं। बुद्धि में आता है ना। अगर कोई कहे लाखों वर्ष आयु है तो फिर कोई हिसाब थोड़ेही कर सके। बाप समझाते हैं-यह सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। इस सारे चक्र में हम कितने जन्म लेते हैं। कैसे डिनायस्टी में जाते हैं। यह तो जानते हो ना। यह बिल्कुल नई बातें, नई नॉलेज है नई दुनिया के लिए। नई दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है। तुम कहेंगे हम अभी मनुष्य हैं, देवता बन रहे हैं। देवता पद है ऊंच। तुम बच्चे जानते हो हम सबसे न्यारी नॉलेज ले रहे हैं। हमको पढ़ाने वाला बिल्कुल न्यारा विचित्र है। उनको यह साकार चित्र नहीं है। वह है ही निराकार। तो ड्रामा में देखो कैसा अच्छा पार्ट रखा हुआ है। बाप पढ़ाये कैसे? तो खुद बतलाते हैं-मैं फलाने तन में आता हूँ। किस तन में आता हूँ, वह भी बताते हैं। मनुष्य मूँझते हैं-क्या एक ही तन में आयेगा! परन्तु यह तो ड्रामा है ना। इसमें चेंज हो नहीं सकती। यह बातें तुम ही सुनते हो और धारण करते हो और सुनाते हो-कैसे हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं? हम फिर और आत्माओं को पढ़ाते हैं। पढ़ती आत्मा है। आत्मा ही सीखती, सिखलाती है। आत्मा मोस्ट वैल्युबुल है। आत्मा अविनाशी, अमर है। सिर्फ शरीर खत्म होता है। हम आत्मायें अपने परमपिता परमात्मा से नॉलेज ले रही हैं। रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त, 84 जन्मों की नॉलेज ले रहे हैं। नॉलेज कौन लेते हैं? आत्मा। आत्मा अविनाशी है। मोह भी रखना चाहिए अविनाशी चीज़ में, न कि विनाशी चीज़ में। इतना समय तुम विनाशी शरीर में मोह रखते आये हो। अभी समझते हो-हम आत्मा हैं, शरीर का भान छोड़ना है। कोई-कोई बच्चे लिखते भी हैं मुझ आत्मा ने यह काम किया। मुझ आत्मा ने आज यह भाषण किया। मुझ आत्मा ने आज बहुत बाबा को याद किया। वह है सुप्रीम आत्मा, नॉलेजफुल। तुम बच्चों को कितनी नॉलेज देते हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन को तुम जानते हो। मनुष्यों की बुद्धि में तो कुछ भी नहीं है। तुम्हारी बुद्धि में है रचता कौन है? इस मनुष्य सृष्टि का क्रियेटर गाया जाता है, तो जरूर कर्तव्य में आते हैं।

तुम जानते हो और कोई मनुष्य नहीं जिसको आत्मा और परमात्मा बाप याद हो। बाप ही नॉलेज देते हैं कि अपने को आत्मा समझो। तुम अपने को शरीर समझ उल्टे लटक पड़े हो। आत्मा सत् चित आनन्द स्वरूप है। आत्मा की सबसे जास्ती महिमा है। एक बाप के आत्मा की कितनी महिमा है। वही दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। मच्छर आदि की तो महिमा नहीं करेंगे कि वह दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, ज्ञान का सागर है। नहीं, यह बाप की महिमा है। तुम भी हर एक खुद दु:ख हर्ता सुख कर्ता हो क्योंकि उस बाप के बच्चे हो ना, जो सबका दु:ख हरकर और सुख देते हैं। सो भी आधाकल्प के लिए। यह नॉलेज और कोई में है नहीं। नॉलेजफुल एक ही बाप है। हमारे में नो नॉलेज। एक बाप को ही नहीं जानते हैं तो बाकी फिर क्या नॉलेज होगी। अभी तुम फील करते हो हम पहले नॉलेज लेते थे, कुछ भी नहीं जानते थे। बेबी में (छोटे बच्चे में) नॉलेज नहीं होती है और कोई अवगुण भी नहीं होता है, इसलिए उनको महात्मा कहा जाता है क्योंकि पवित्र है। जितना छोटा बच्चा उतना नम्बरवन फूल। बिल्कुल ही जैसे कर्मातीत अवस्था है। कर्म विकर्म को कुछ नहीं जानते। सिर्फ अपने को ही जानते हैं। वह फूल हैं इसलिए सबको कशिश करते हैं। जैसे अब बाबा कशिश करते हैं। बाप आये ही हैं तुम सबको फूल बनाने। तुम्हारे में कई बहुत खराब कांटे भी हैं। 5 विकार रूपी कांटे हैं ना। इस समय तुमको फूलों और कांटों का ज्ञान हैं। कांटों का जंगल भी होता है। बबूल का कांटा सबसे बड़ा होता है। उन कांटों से भी बहुत चीजें बनती हैं। भेंट की जाती है मनुष्यों की। बाप समझाते हैं, इस समय बहुत दु:ख देने वाले मनुष्य कांटे हैं इसलिए इनको दु:ख की दुनिया कहा जाता है। कहते भी हैं बाप सुखदाता है। माया रावण दु:ख दाता है। फिर सतयुग में माया नहीं होगी तो यह कुछ भी बातें नहीं होंगी। ड्रामा में एक पार्ट दो वारी नहीं हो सकता। बुद्धि में है सारी दुनिया में जो पार्ट बजता है, वह सब नया। तुम विचार करो-सतयुग से लेकर यहाँ तक के दिन ही बदल जाते, एक्टिविटी बदल जाती। 5 हज़ार वर्ष की पूरी एक्टिविटी का रिकार्ड आत्मा में भरा हुआ है, वह बदल नहीं सकता। हर आत्मा में अपना पार्ट भरा हुआ है। यह एक बात भी कोई समझ नहीं सकते। अभी आदि-मध्य-अन्त को तुम जानते हो। यह स्कूल है ना। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानना है और फिर बाप को याद कर पवित्र बनने की पढ़ाई है। इनके पहले जानते थे क्या-हमको यह बनना है। बाप कितना क्लीयर कर समझाते हैं। तुम पहले नम्बर में यह थे फिर तुम नीचे उतरते-उतरते अब क्या बन गये हो। दुनिया को तो देखो क्या बन गई है! कितने ढेर मनुष्य हैं। इन लक्ष्मी-नारायण की राजधानी का विचार करो - क्या होगा! यह जहाँ रहते होंगे कैसे हीरे-जवाहरातों के महल होंगे। बुद्धि में आता है-अभी हम स्वर्गवासी बन रहे हैं। वहाँ हम अपने मकान आदि बनायेंगे। ऐसे नहीं कि नीचे से द्वारिका निकल आयेगी। जैसे शास्त्रों में दिखाया है। शास्त्र नाम ही चला आता है, और तो कोई नाम रख नहीं सकते। और किताब होते हैं पढ़ाई के। दूसरे नाविल्स होते हैं। बाकी इनको पुस्तक अथवा शास्त्र कहते हैं। वह है पढ़ाई के किताब। शास्त्र पढ़ने वालों को भक्त कहा जाता है। भक्ति और ज्ञान दो चीजें हैं। अब वैराग्य किसका? भक्ति का या ज्ञान का? जरूर कहेंगे भक्ति का। अब तुमको ज्ञान मिल रहा है, जिससे तुम इतना ऊंच बनते हो। अब बाप तुमको सुखदाई बनाते हैं। सुखधाम को ही स्वर्ग कहा जाता है। सुखधाम में तुम चलने वाले हो तो तुमको ही पढ़ाते हैं। यह ज्ञान भी तुम्हारी आत्मा लेती है। आत्मा का कोई धर्म नहीं है। वह तो आत्मा है। फिर आत्मा जब शरीर में आती है तो शरीर के धर्म अलग होते हैं। आत्मा का धर्म क्या है? एक तो आत्मा बिन्दु मिसल है और शान्त स्वरूप है।



शान्तिधाम, मुक्तिधाम में रहती है। अब बाप समझाते हैं-सब बच्चों का हक है। बहुत बच्चे हैं जो और और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं। वह फिर निकलकर अपने असली धर्म में आ जायेंगे। जो देवी-देवता धर्म छोड़ दूसरे धर्म में गये हैं, वह सब पत्ते लौटकर आ जायेंगे, अपनी जगह पर। इन सब बातों को और कोई समझ नहीं सकेंगे। पहले-पहले तो बाप का परिचय देना है। इनमें ही सब मूँझ पड़े हैं। तुम बच्चे जानते हो अभी हमको कौन पढ़ाते हैं? बाप पढ़ाते हैं। कृष्ण तो देहधारी है। इनको (ब्रह्मा को) दादा कहेंगे। सब भाई-भाई हैं ना। फिर है मर्तबे के ऊपर। यह भाई का शरीर है, यह बहन का शरीर है। यह भी अब तुम जानते हो। आत्मा तो एक छोटा सा सितारा है। इतनी सब नॉलेज छोटे सितारे में है। सितारा शरीर के सिवाए बात भी नहीं कर सकता। सितारे को पार्ट बजाने के लिए अंग भी चाहिए। सितारों की दुनिया ही अलग है। फिर यहाँ आकर आत्मा शरीर धारण करती है। वह है आत्माओं का घर। आत्मा छोटी बिन्दी है। शरीर बड़ी चीज़ है। तो उनको कितना याद करते हैं! अभी तुमको याद करना है-एक परमपिता परमात्मा को। यही सत्य है जबकि आत्माओं और परमात्मा का मेला होता है। गायन भी है आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल.. हम बाबा से अलग हुए हैं ना। याद आता है कितना समय अलग हुए हैं! बाप जो कल्प-कल्प सुनाते आये हैं, वही आकर सुनाते हैं। इसमें ज़रा भी फर्क नहीं हो सकता। सेकण्ड बाई सेकण्ड जो एक्ट चलती है वह नई। एक सेकण्ड पास होता है, मिनट पास होता है, उनको जैसे छोड़ते जाते हैं। पास होता जाता है ताकि कहेंगे-इतने वर्ष, इतने दिन, मिनट, इतने सेकण्ड पास कर आये हैं। पूरा 5 हज़ार वर्ष होगा फिर एक नम्बर से शुरू होगा। एक्यूरेट हिसाब है ना। मिनट सेकण्ड सब नोट करते हैं। अभी तुमसे कोई पूछे-इसने कब जन्म लिया था? तुम गिनती कर बताते हो। कृष्ण ने पहले नम्बर में जन्म लिया है। शिव का तो मिनट, सेकण्ड कुछ भी नहीं निकाल सकते हो। कृष्ण की तिथि-तारीख पूरा लिखा हुआ है। मनुष्यों की घड़ी में फर्क पड़ सकता है-मिनट सेकण्ड का। शिवबाबा के अवतरण में तो बिल्कुल फर्क नहीं पड़ सकता। पता भी नहीं पड़ता है कि कब आया! ऐसे भी नहीं साक्षात्कार हुआ तब आया। नहीं, अन्दाज़ से कह देते हैं। बाकी ऐसे नहीं उस समय प्रवेश हुआ। साक्षात्कार हुआ कि हम फलाना बनेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सुखधाम में चलने के लिए सुखदाई बनना है। सबके दु:ख हरकर सुख देना है। कभी भी दु:खदाई कांटा नहीं बनना है।
2) इस विनाशी शरीर में आत्मा ही मोस्ट वैल्युबुल है, वही अमर अविनाशी है इसलिए अविनाशी चीज़ से प्यार रखना है। देह का भान मिटा देना है।
वरदान:
स्व-स्थिति द्वारा सर्व परिस्थितियों को पार करने वाले निराकारी, अलंकारी भव!  
जो अलंकारी हैं वे कभी देह-अहंकारी नहीं बन सकते। निराकारी और अलंकारी रहना - यही है मन्मनाभव, मध्याजीभव। जब ऐसी स्व-स्थिति में सदा स्थित रहते तो सर्व परिस्थितियों को सहज ही पार कर लेते, इससे अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं। स्व में आत्मा का भाव देखने से भाव-स्वभाव की बातें समाप्त हो जाती हैं और सामना करने की सर्व शक्तियां स्वयं में आ जाती हैं।
स्लोगन:
संकल्प का एक कदम आपका तो सहयोग के हजार कदम बाप के।