Friday, January 8, 2016

मुरली 09 जनवरी 2016

09-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम यहाँ आये हो सर्वशक्तिमान् बाप से शक्ति लेने अर्थात् दीपक में ज्ञान का घृत डालने”  
प्रश्न:
शिव की बरात का गायन क्यों है?
उत्तर:
क्योंकि शिवबाबा जब वापिस जाते हैं तो सभी आत्माओं का झुण्ड उनके पीछे-पीछे भागकर जाता है। मूलवतन में भी आत्माओं का मनारा (छत्ता) लग जाता है। तुम पवित्र बनने वाले बच्चे बाप के साथ-साथ जाते हो। साथ के कारण ही बरात का गायन है।
ओम् शान्ति।
बच्चों को पहले-पहले एक ही प्वाइंट समझने की है कि हम सब भाई-भाई हैं और वह सबका बाप है। उनको सर्वशक्तिमान् कहा जाता है। तुम्हारे में सर्वशक्तियां थी। तुम विश्व पर राज्य करते थे। भारत में ही इन देवी-देवताओं का राज्य था। गोया तुम बच्चों का राज्य था। तुम पवित्र देवी-देवतायें थे, तुम्हारा कुल वा डिनायस्टी है, वह सब निर्विकारी थे। कौन निर्विकारी थे? आत्मायें। अब फिर तुम निर्विकारी बन रहे हो। जैसेकि सर्वशक्तिमान् बाप को याद कर उनसे शक्ति ले रहे हो। बाप ने समझाया है आत्मा ही 84 का पार्ट बजाती है। उनमें जो सतोप्रधान ताकत थी वह फिर दिन-प्रतिदिन कम होती जाती है। सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना है। जैसे बैटरी की ताकत कम होती जाती है तो मोटर खड़ी हो जाती है। बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है। आत्मा की बैटरी फुल डिस्चार्ज नहीं होती है, कुछ न कुछ ताकत रहती है। जैसे कोई मरता है तो दीपक जलाते हैं, उसमें घृत डालते रहते हैं कि ज्योति बुझ न जाए। बैटरी की ताकत कम होती है तो फिर चार्ज करने रखते हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो-तुम्हारी आत्मा सर्वशक्तिमान् थी, अब फिर तुम सर्वशक्तिमान् बाप से अपना बुद्धियोग लगाते हो। तो बाबा की शक्ति हमारे में आ जाए क्योंकि शक्ति कम हो गई है। थोड़ी जरूर रहती है। एकदम खत्म हो जाए तो फिर शरीर न रहे। आत्मा बाप को याद करते-करते बिल्कुल प्योर हो जाती है। सतयुग में तुम्हारी बैटरी फुल चार्ज होती है फिर थोड़ी- थोड़ी कम होती जाती है। त्रेता तक मीटर कम होता है, जिसको कला कहा जाता है। फिर कहेंगे आत्मा जो सतोप्रधान थी वह सतो बनी, ताकत कम हो जाती है। तुम समझते हो हम मनुष्य से देवता बन जाते हैं सतयुग में। अब बाप कहते हैं-मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। अभी तुम तमोप्रधान बन गये हो तो ताकत का देवाला निकल गया है। फिर बाप को याद करने से पूरी ताकत आयेगी, क्योंकि तुम जानते हो देह सहित देह के जो भी सब सम्बन्ध हैं, वह सब खत्म हो जाने हैं फिर तुमको बेहद का राज्य मिलता है। बाप भी बेहद का है तो वर्सा भी बेहद का देते हैं। अभी तुम पतित हो, तुम्हारी ताकत बिल्कुल कम होती गई है। हे बच्चों-अब तुम मुझे याद करो, मैं ऑलमाइटी हूँ, मेरे द्वारा ऑलमाइटी राज्य मिलता है। सतयुग में देवी-देवता सारे विश्व के मालिक थे, पवित्र थे, दैवी गुणवान थे। अभी वह दैवीगुण नहीं हैं। सबकी बैटरी पूरी डिस्चार्ज होने लगी है। फिर अब बैटरी भरती है। सिवाए परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाने के बैटरी चार्ज नहीं हो सकती। वह बाप ही एवर प्योर है। यहाँ सब हैं इमप्योर। जब प्योर रहते हैं तो बैटरी चार्ज रहती है। तो अब बाप समझाते हैं एक को ही याद करना है। ऊंच ते ऊंच है भगवान। बाकी सब हैं रचना। रचना से रचना को कभी वर्सा नहीं मिलता है। क्रियेटर तो एक ही है। वह है बेहद का बाप। बाकी तो सब हैं हद के। बेहद के बाप को याद करने से बेहद की बादशाही मिलती है। तो बच्चों को दिल अन्दर समझना चाहिए-हमारे लिए बाबा नई दुनिया स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार स्वर्ग की स्थापना हो रही है। तुम जानते हो-सतयुग आने वाला है। सतयुग में होता ही है सदा सुख। वह कैसे मिलता है? बाप बैठ समझाते हैं मामेकम् याद करो। मैं एवरप्योर हूँ। मैं कभी मनुष्य तन नहीं लेता हूँ। न दैवी तन, न मनुष्य तन लेता हूँ अर्थात् मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। सिर्फ तुम बच्चों को स्वर्ग की बादशाही देने लिए, जब यह 60 वर्ष की वानप्रस्थ अवस्था में होता है तब इनके तन में आता हूँ। यही पूरा सतोप्रधान से तमोप्रधान बना है। नम्बरवन ऊंच ते ऊंच भगवान फिर हैं सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, जिसका साक्षात्कार होता है। सूक्ष्मवतन बीच का है ना। जहाँ शरीर नहीं हो सकते। सूक्ष्म शरीर सिर्फ दिव्य दृष्टि से देखा जाता है। मनुष्य सृष्टि तो यहाँ है। बाकी वह तो सिर्फ साक्षात्कार के लिए फरिश्ते हैं। तुम बच्चे भी अन्त में जब बिल्कुल पवित्र हो जाते हो तो तुम्हारा भी साक्षात्कार होता है। ऐसे फरिश्ते बन फिर सतयुग में यहाँ ही आकर स्वर्ग के मालिक बनेंगे। यह ब्रह्मा कोई विष्णु को याद नहीं करते हैं। यह भी शिवबाबा को याद करते हैं और यह विष्णु बनते हैं। तो यह समझना चाहिए ना। इन्होंने राज्य कैसे पाया! लड़ाई आदि तो कुछ भी होती नहीं। देवतायें हिंसा कैसे करेंगे!

अभी तुम बच्चे बाप को याद करके राजाई लेते हो। कोई माने न माने। गीता में भी है-हे बच्चों, देह सहित देह के सब धर्म छोड़ मामेकम् याद करो। उनको तो देह है नहीं जो ममत्व रखें। कहते हैं मैं थोड़े समय के लिए इनके शरीर का लोन लेता हूँ। नहीं तो मैं नॉलेज कैसे दूँ! मैं बीजरूप हूँ ना। इस सारे झाड़ की नॉलेज मेरे पास है। और किसको पता नहीं, सृष्टि की आयु कितनी है? कैसे इनकी स्थापना, पालना, विनाश होता है? मनुष्यों को तो पता होना चाहिए। मनुष्य ही पढ़ते हैं। जानवर तो नहीं पढ़ेंगे ना। वह पढ़ते हैं हद की पढ़ाई। बाप तुमको बेहद की पढ़ाई पढ़ाते हैं, जिससे तुमको बेहद का मालिक बनाते हैं। तो यह समझाना चाहिए कि भगवान किसी मनुष्य को अथवा देहधारी को नहीं कहा जाता। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी सूक्ष्म देह है ना। इन्हों का नाम ही अलग है, इनको भगवान नहीं कहा जाता। यह शरीर तो इस दादा की आत्मा का तख्त था। अकाल तख्त है ना। अभी यह अकालमूर्त बाप का तख्त है। अमृतसर में भी एक अकाल तख्त है ना। बड़े-बड़े जो होते हैं वहाँ अकाल तख्त पर जाकर बैठते हैं। अभी बाप समझाते हैं यह सब अकाल आत्माओं के तख्त हैं। आत्मा अकाल है जिसको काल खा न सके। बाकी तख्त तो बदलते रहते हैं। अकालमूर्त आत्मा इस तख्त पर बैठती है। पहले छोटा तख्त होता है फिर बड़ा हो जाता है। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। आत्मा अकाल है। बाकी उनमें अच्छे वा बुरे संस्कार होते हैं तब तो कहा जाता है ना-कर्मों का यह फल है। आत्मा कभी विनाश नहीं होती है। आत्मा का बाप है एक। यह तो समझना चाहिए ना। यह बाबा कोई शास्त्रों की बात सुनाते हैं क्या! शास्त्र आदि पढ़ने से वापिस तो कोई जा नहीं सकते। पिछाड़ी में सब जायेंगे। जैसे टिड्डियों का अथवा मधुमक्खी का झुण्ड जाता है ना। मधुमक्खियों की भी क्वीन होती है। उनके पिछाड़ी सब जाते हैं। बाप भी जायेंगे तो उनके पिछाड़ी सब आत्मायें जायेंगी। वहाँ मूलवतन में जैसे सब आत्माओं का मनारा (छत्ता) है। यहाँ फिर है मनुष्यों का झुण्ड। तो यह झुण्ड भी एक दिन भागना है। बाप आकर सब आत्माओं को ले जाते हैं। शिव की बरात कहा जाता है। बच्चे कहो अथवा सजनियां कहो। बाप आकर बच्चों को पढ़ाकर याद की यात्रा सिखलाते हैं। पवित्र बनने बिगर तो आत्मा जा नहीं सकती। जब पवित्र बन जायेगी तब पहले-पहले शान्तिधाम जायेगी। वहाँ जाकर सब निवास करते हैं। वहाँ से फिर धीरे-धीरे आते रहते हैं, वृद्धि होती रहती है। तुम ही पहले-पहले भागेंगे बाप के पिछाड़ी। तुम्हारा बाप के साथ अथवा सजनियों का साजन के साथ योग है। राजधानी बननी है ना। सब इकट्ठे नहीं आते हैं। वहाँ सब आत्माओं की दुनिया है। वहाँ से फिर नम्बरवार आते हैं। झाड़ धीरे-धीरे वृद्धि को पाता है। पहले-पहले तो है आदि सनातन देवी-देवता धर्म, जो बाप स्थापन करते हैं। पहले-पहले हमको ब्राह्मण बनाते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा है ना। प्रजा में भाई-बहिन हो जाते हैं। ब्रह्माकुमार और कुमारियां ढेर हैं। जरूर निश्चयबुद्धि होंगे तब तो इतने ढेर हुए हैं। ब्राह्मण कितने होंगे? कच्चे वा पक्के? कोई तो 99 मार्क्स लेते हैं, कोई 10 मार्क्स लेते हैं तो गोया कच्चे ठहरे ना। तुम्हारे में भी जो पक्के हैं वह जरूर पहले आयेंगे। कच्चे वाले पिछाड़ी में आयेंगे। यह पार्टधारियों की दुनिया है जो फिरती रहती है। सतयुग, त्रेता.... यह पुरूषोत्तम संगमयुग है। यह अभी बाप ने बताया है। पहले तो हम उल्टा ही समझते आये कि कल्प की आयु लाखों वर्ष है। अभी बाप ने बताया है यह तो पूरा 5 ह॰जार वर्ष का चक्र है। आधाकल्प है राम का राज्य, आधाकल्प है रावण का राज्य। लाखों वर्ष का कल्प होता तो आधा-आधा भी हो न सके। दु:ख और सुख की यह दुनिया बनी हुई है। यह बेहद की नॉलेज बेहद के बाप से मिलती है। शिवबाबा के शरीर का कोई नाम नहीं है। यह शरीर तो इस दादा का है। बाबा कहाँ है? बाबा ने थोड़े समय के लिए लोन लिया है। बाबा कहते हैं हमको मुख तो चाहिए ना। यहाँ भी गऊमुख बनाया हुआ है। पहाड़ी से पानी तो जहाँ-तहाँ आता है। यहाँ फिर गऊ का मुख बना दिया है, उससे पानी आता है, उनको गंगाजल समझ लेते हैं। अब गंगा फिर कहाँ से आई? यह है सब झूठ। झूठी काया, झूठी माया, झूठा सब संसार। भारत जब स्वर्ग था तो सचखण्ड कहा जाता है फिर भारत ही पुराना बनता तो झूठखण्ड कहा जाता है। इस झूठखण्ड में जब सभी पतित बन जाते हैं तब बुलाते हैं - बाबा हमको पावन बनाए इस पुरानी दुनिया से ले चलो। बाप कहते हैं मेरे सब बच्चे काम चिता पर चढ़ काले बन गये हैं। बाप बच्चों को बैठ कहते हैं तुम तो स्वर्ग के मालिक थे ना! स्मृति आई है ना। बच्चों को समझाते हैं, सारी दुनिया को नहीं समझाते। तुमको ही समझाते हैं तो मालूम पड़े कि हमारा बाप कौन है!

इस दुनिया को कहा जाता है फॉरेस्ट ऑफ थॉर्नस। (कांटों का जंगल) सबसे बड़ा काम का कांटा लगाते हैं। भल यहाँ भगत भी बहुत हैं, वेजीटेरियन हैं, परन्तु ऐसे नहीं कि विकार में नहीं जाते हैं। ऐसे तो बहुत बाल ब्रह्मचारी भी रहते हैं। छोटेपन से ही कब छी-छी खाना आदि नहीं खाते हैं। सन्यासी भी कहते हैं-निर्विकारी बनो। वह हद का सन्यास मनुष्य कराते हैं। दूसरे जन्म में फिर गृहस्थी पास जन्म ले फिर घरबार छोड़ चले जाते हैं। सतयुग में यह कृष्ण आदि देवतायें कभी घरबार छोड़ते हैं क्या? नहीं। तो उन्हों का है हद का सन्यास। अभी तुम्हारा है बेहद का सन्यास। सारी दुनिया का, सम्बन्धियों आदि का भी सन्यास करते हो। तुम्हारे लिए अब स्वर्ग की स्थापना हो रही है। तुम्हारी बुद्धि स्वर्ग तरफ ही जायेगी। तो शिवबाबा को ही याद करना है। बेहद का बाप कहते हैं मुझे याद करो। मनमनाभव, मध्याजी भव। तो तुम देवता बन जायेंगे। यह वही गीता का एपीसोड है। संगमयुग भी है। मैं संगम पर ही सुनाता हूँ। राजयोग जरूर आगे जन्म में संगम पर सीखे होंगे। यह सृष्टि बदलती है ना, तुम पतित से पावन बन जाते हो। अब यह है पुरूषोत्तम संगमयुग, जबकि हम ऐसे तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हैं। हर एक बात अच्छी रीति समझकर निश्चय करनी चाहिए। यह कोई मनुष्य थोड़ेही कहते हैं। यह है श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत, भगवान की। बाकी सब हैं मनुष्य मत। मनुष्य मत से गिरते आते हो। अब श्रीमत से तुम चढ़ते हो। बाप मनुष्य से देवता बना देते हैं। दैवी मत स्वर्गवासी की है और वह है नर्कवासी मनुष्य मत, जिसको रावण मत कहा जाता है। रावण राज्य भी कोई कम नहीं है। सारी दुनिया पर रावण का राज्य है। यह बेहद की लंका है जिस पर रावण का राज्य है फिर देवताओं का पवित्र राज्य होगा। वहाँ बहुत सुख होता है। स्वर्ग की कितनी महिमा है। कहते भी हैं स्वर्ग पधारा। तो जरूर नर्क में था ना। हेल से गया तो जरूर फिर हेल में ही आयेगा ना! स्वर्ग अभी है कहाँ? यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। अभी बाप तुम्हें सारी नॉलेज देते हैं। बैटरी भरती है। माया फिर लिंक तोड़ देती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मन-वचन-कर्म से पवित्र बन आत्मा रूपी बैटरी को चार्ज करना है। पक्का ब्राह्मण बनना है।
2) मनमत वा मनुष्य मत छोड़ एक बाप की श्रीमत पर चलकर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है। सतोप्रधान बन बाप के साथ उड़कर जाना है।
वरदान:
सदा बिजी रहने की विधि द्वारा व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन को समाप्त करने वाले सम्पूर्ण कर्मातीत भव!  
सम्पूर्ण कर्मातीत बनने में व्यर्थ संकल्पों के तूफान ही विघ्न डालते हैं। इस व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन को समाप्त करने के लिए अपने मन को हर समय बिजी रखो, समय की बुकिंग करने का तरीका सीखो। सारे दिन में मन को कहाँ-कहाँ बिजी रखना है-यह प्रोग्राम बनाओ। रोज अपने मन को 4 बातों में बिजी कर दो: 1-मिलन (रूहरिहान) 2-वर्णन (सर्विस) 3-मगन और 4-लगन। इससे समय सफल हो जायेगा और व्यर्थ की कम्पलेन खत्म हो जायेगी।
स्लोगन:
सफलता को परमात्म बर्थराइट समझने वाले ही सदा प्रसन्नचित रह सकते हैं।