30-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे बच्चे– बेहद के बाप को याद करना– यह है गुप्त बात, याद से याद मिलती है, जो याद नहीं करते उन्हें बाप भी कैसे याद करें।"
प्रश्न:
संगम पर तुम बच्चे कौन सी पढाई पढते हो जो सारा कल्प नहीं पढाई जाती?
उत्तर:
जीते जी शरीर से न्यारा अर्थात् मुर्दा होने की पढाई अभी पढते हो क्योंकि तुम्हें कर्मातीत बनना है। बाकी जब तक शरीर में हैं तब तक कर्म तो करना ही है। मन भी अमन तब हो जब शरीर न हो इसलिए मन जीते जगतजीत नहीं, लेकिन माया जीते जगतजीत।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं क्योंकि यह तो बच्चे समझते हैं बेसमझ को ही पढाया जाता है। अब बेहद का बाप ऊंच ते ऊंच भगवान आते हैं तो किसको पढाते होंगे? जरूर जो ऊंच ते ऊंच बिल्कुल बेसमझ होंगे इसलिए कहा ही जाता है विनाश काले विपरीत बुद्धि। विपरीत बुद्धि कैसे हो गये हैं? 84 लाख योनियां लिखा हुआ है ना! तो बाप को भी 84 लाख जन्मों में ले आये हैं। कह देते हैं परमात्मा कुत्ते, बिल्ली, जीव-जन्तु सबमें है। बच्चों को समझाया जाता है, यह तो सेकेण्ड नम्बर प्वाइंट देनी होती है। बाप ने समझाया है जब कोई नया आता है तो पहले-पहले उनको हद के और बेहद के बाप का परिचय देना चाहिए। वह बेहद का बड़ा बाबा और वह हद का छोटा बाबा। बेहद का बाप माना ही बेहद आत्माओं का बाप। वह हद का बाप जीव आत्मा का बाप हो गया। वह है सब आत्माओं का बाप। यह नॉलेज भी सब एकरस नहीं धारण कर सकते हैं। कोई 1 परसेन्ट धारण करते हैं तो कोई 95 परसेन्ट धारण करते हैं। यह तो समझ की बात है। सूर्यवंशी घराना होगा ना! राजा-रानी तथा प्रजा। यह बुद्धि में आता है ना। प्रजा में सब प्रकार के मनुष्य होते हैं। प्रजा माना प्रजा। बाप समझाते हैं यह पढाई है। अपनी बुद्धि अनुसार हरेक पढते हैं। हरेक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। जिसने कल्प पहले जितनी पढाई धारण की है उतनी अब भी धारण करते हैं। पढाई कब छिपी नहीं रह सकती। पढाई अनुसार ही पद मिलता है। बाप ने समझाया है– आगे चल इम्तहान तो होता ही है। बिगर इम्तहान ट्रांसफर तो हो न सके। पिछाड़ी में सब मालूम पड़ेगा। बल्कि अभी भी समझ सकते हैं कि किस पद के हम लायक हैं। भल लज्जा के मारे सबके साथ-साथ हाथ उठा देते हैं। दिल में समझते भी हैं हम यह कैसे बन सकेंगे! तो भी हाथ उठा देते हैं। समझते हुए भी फिर हाथ उठा लेना यह भी अज्ञान कहेंगे। कितना अज्ञान है, बाप तो झट समझ जाते हैं। इससे तो उन स्टूडेन्ट्स में अक्ल होता है। वह समझते हैं हम स्कालरशिप लेने के लायक नहीं हैं, पास नहीं होऊंगा। इससे तो वह अज्ञानी अच्छे जो समझते हैं– टीचर जो पढाते हैं उसमें हम कितने मार्क्स लेंगे! ऐसे थोड़ेही कहेंगे हम पास विद् ऑनर होंगे। तो सिद्ध होता है यहाँ इतनी भी बुद्धि नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। जब तुम आये हो यह (लक्ष्मी-नारायण) बनने तो चलन बड़ी अच्छी चाहिए। बाप कहते हैं कोई तो विनाश काले विपरीत बुद्धि हैं क्योंकि कायदेसिर बाप से प्रीत नहीं है, तो क्या हाल होगा। ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।
बाप बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं– विनाश काले विपरीत बुद्धि का अर्थ क्या है– बच्चे ही पूरा नहीं समझ सकते तो फिर और क्या समझेंगे! जो बच्चे समझते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं वही पूरा अर्थ को नहीं समझते। बाप को याद करना– यह तो है गुप्त बात। पढाई तो गुप्त नहीं है ना। पढाई में नम्बरवार हैं। सब एक जैसा थोड़ेही पढ़ेंगे। बाप तो समझते हैं यह अभी बेबीज़ हैं। ऐसे बेहद के बाप को तीन-तीन, चार-चार मास याद भी नहीं करते हैं। मालूम कैसे पड़े कि याद करते हैं? जबकि उनकी चिट्ठी आये। फिर उस चिट्ठी में सर्विस समाचार भी हो कि यह-यह रूहानी सर्विस करता हूँ। सबूत चाहिए ना। ऐसे तो देह-अभिमानी होते हैं जो न तो कभी याद करते हैं, न सर्विस का सबूत दिखाते हैं। कोई तो समाचार लिखते हैं बाबा फलाने-फलाने आये उनको यह समझाया, तो बाप भी समझते हैं बच्चा जिन्दा है। सर्विस समाचार ठीक देते हैं। कोई तो 3-4 मास पत्र नहीं लिखते। कोई समाचार नहीं तो समझेंगे मर गया या बीमार है! बीमार मनुष्य लिख नहीं सकते हैं। यह भी कोई लिखते हैं हमारी तबियत ठीक नहीं थी इसलिए पत्र नहीं लिखा। कोई तो समाचार ही नहीं देते, न बीमार हैं। देह- अभिमान है। फिर बाप भी याद किसको करे। याद से याद मिलती है, परन्तु देह-अभिमान है। बाप आकर समझाते हैं मुझे सर्वव्यापी कह 84 लाख से भी जास्ती योनियों में ले जाते हैं। मनुष्यों को कहा जाता है पत्थरबुद्धि हैं। भगवान के लिए तो फिर कह देते पत्थर भित्तर के अन्दर विराजमान है। तो यह बेहद की गालियां हुई ना! इसलिए बाप कहते हैं मेरी कितनी ग्लानि करते हैं। अभी तुम तो नम्बरवार समझ गये हो। भक्तिमार्ग में गाते भी हैं– आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे। आपको वारिस बनायेंगे। यह वारिस बनाते हैं जो कहते हैं पत्थर-ठिक्कर में हो! कितनी ग्लानि करते हैं, तब बाप कहते हैं यदा यदाहि...... अभी तुम बच्चे बाप को जानते हो तो बाप की कितनी महिमा करते हो। कोई महिमा तो क्या, कभी याद कर दो अक्षर लिखते भी नहीं। देह-अभिमानी बन पड़ते हैं। तुम बच्चे समझते हो हमको बाप मिला है, हमारा बाप हमको पढाते हैं। भगवानुवाच है ना! मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। विश्व की राजाई कैसे प्राप्त हो उसके लिए राजयोग सिखाता हूँ। हम विश्व की बादशाही लेने लिए बेहद के बाप से पढते हैं– यह नशा हो तो अपार खुशी आ जाए। भल गीता भी पढते हैं परन्तु जैसे आर्डिनरी किताब पढते हैं। कृष्ण भगवानुवाच– राजयोग सिखाता हूँ, बस। इतना बुद्धि का योग वा खुशी नहीं रहती। गीता पढने वा सुनाने वालों में इतनी खुशी नहीं रहती। गीता पढकर पूरी की और गया धन्धे में। तुमको तो अभी बुद्धि में है– बेहद का बाप हमको पढाते हैं। और कोई की बुद्धि में यह नहीं आयेगा कि हमको भगवान पढाते हैं। तो पहले-पहले कोई भी आवे तो उनको दो बाप की थ्योरी समझानी है। बोलो भारत स्वर्ग था ना, अभी नर्क है। ऐसे तो कोई कह न सके कि हम सतयुग में भी हैं, कलियुग में भी हैं। किसको दुःख मिला तो वह नर्क में है, किसको सुख मिला तो स्वर्ग में है। ऐसे बहुत कहते हैं– दुःखी मनुष्य नर्क में हैं, हम तो बहुत सुख में बैठे हैं, महल माड़ियां आदि सब कुछ हैं। बाहर का बहुत सुख देखते हैं ना। यह भी तुम अभी समझते हो सतयुगी सुख तो यहाँ हो नहीं सकता। ऐसे भी नहीं, गोल्डन एज को आइरन एज कहो अथवा आइरन एज को गोल्डन एज कहो एक ही बात है। ऐसे समझने वाले को भी अज्ञानी कहेंगे। तो पहले-पहले बाप की थ्योरी बतानी है। बाप ही अपनी पहचान देते हैं। और तो कोई जानते नहीं। कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है। अभी तुम चित्र में दिखाते हो– आत्मा और परमात्मा का रूप तो एक ही है। वह भी आत्मा है परन्तु उनको परम आत्मा कहा जाता है। बाप बैठ समझाते हैं– मैं कैसे आता हूँ! सभी आत्माएं वहाँ परमधाम में रहती हैं। यह बातें बाहर वाला तो कोई समझ नहीं सकता। भाषा भी बहुत सहज है। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। अब कृष्ण तो गीता सुनाते नहीं हैं। वह तो सबको कह न सके कि मामेकम् याद करो। देहधारी की याद से तो पाप कटते नहीं हैं। कृष्ण भगवानुवाच– देह के सब संबंध त्याग मामेकम् याद करो परन्तु देह के संबंध तो कृष्ण को भी हैं और फिर वह तो छोटा-सा बच्चा है ना। यह भी कितनी बड़ी भूल है। कितना फ़र्क पड़ जाता है एक भूल के कारण। परमात्मा तो सर्वव्यापी हो नहीं सकता। जिसके लिए कहते हैं सर्व का सद्गति दाता है तो क्या वह भी दुर्गति को पाते हैं! परमात्मा कब दुर्गति को पाता है क्या? यह सब विचार सागर मंथन करने की बातें हैं। टाइम वेस्ट करने की बात नहीं है। मनुष्य तो कह देते कि हमको फुर्सत नहीं है। तुम समझाते हो कि आकर कोर्स लो तो कहते फुर्सत नहीं। दो दिन आयेंगे फिर चार दिन नहीं आयेंगे.....। पढ़ेंगे नहीं तो यह लक्ष्मी-नारायण कैसे बन सकेंगे? माया का कितना फोर्स है। बाप समझाते हैं जो सेकेण्ड, जो मिनट पास होता है वह हूबहू रिपीट होता है। अनगिनत बार रिपीट होते रहेंगे। अभी तो बाप द्वारा सुन रहे हो। बाबा तो जन्म-मरण में आते नहीं। भेंट की जाती है पूरा जन्म-मरण में कौन आता है और न आने वाला कौन? सिर्फ एक ही बाप है जो जन्म-मरण में नहीं आता है। बाकी तो सब आते हैं इसलिए चित्र भी दिखाया है। ब्रह्मा और विष्णु दोनों जन्म मरण में आते हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा पार्ट में आते-जाते हैं। एन्ड हो न सके। यह चित्र फिर भी आकर सब देखेंगे और समझेंगे। बहुत सहज समझ की बात है। बुद्धि में आना चाहिए हम सो ब्राह्मण हैं फिर हम सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। फिर बाप आयेंगे तो हम सो ब्राह्मण बन जायेंगे। यह याद करो तो भी स्वदर्शन चक्रधारी ठहरे। बहुत हैं जिनको याद ठहरती नहीं। तुम ब्राह्मण ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। देवतायें नहीं बनते हैं। यह नॉलेज, कि चक्र कैसे फिरता है, इस नॉलेज को पाने से वह यह देवता बने हैं। वास्तव में कोई भी मनुष्य स्वदर्शन चक्रधारी कहलाने के लायक नहीं है। मनुष्यों की सृष्टि मृत्युलोक ही अलग है। जैसे भारतवासियों की रस्म-रिवाज अलग है, सबका अलग-अलग होता है। देवताओं की रस्म-रिवाज अलग है। मृत्युलोक के मनुष्यों की रस्म-रिवाज अलग। रात-दिन का फर्क है इसलिए सब कहते हैं– हम पतित हैं। हे भगवान, हम सब पतित दुनिया के रहने वालों को पावन बनाओ। तुम्हारी बुद्धि में है पावन दुनिया आज से 5 हज़ार वर्ष पहले थी, जिसको सतयुग कहा जाता है। त्रेता को नहीं कहेंगे। बाप ने समझाया है– वह है फर्स्टक्लास, यह है सेकेण्ड क्लास। तो एक-एक बात अच्छी रीति धारण करनी चाहिए। जो कोई भी आये तो सुनकर वन्डर खावे। कोई तो वन्डर खाते हैं। परन्तु फिर उनको फुर्सत नहीं रहती, जो पुरुषार्थ करे। फिर सुनते हैं पवित्र जरूर रहना है। यह काम विकार ही है जो मनुष्य को पतित बनाता है। इनको जीतने से ही तुम जगतजीत बनेंगे। बाप ने कहा भी है– काम विकार जीत जगतजीत बनो। मनुष्य फिर कह देते मन जीते जगतजीत बनो। मन को वश में करो। अब मन अमन तो तब हो जब शरीर न हो। बाकी मन अमन तो कभी होता ही नहीं। देह मिलती ही है कर्म करने के लिए तो फिर कर्मातीत अवस्था में कैसे रहेंगे? कर्मातीत अवस्था कहा जाता है मुर्दे को। जीते जी मुर्दा, शरीर से न्यारा। तुमको भी शरीर से न्यारा बनने की पढाई पढाते हैं। शरीर से आत्मा अलग है। आत्मा परमधाम की रहने वाली है। आत्मा शरीर में आती है तो उनको मनुष्य कहा जाता है। शरीर मिलता ही है कर्म करने लिए। एक शरीर छूट जायेगा फिर दूसरा शरीर आत्मा को लेना है कर्म करने लिए। शान्त तो तब रहेंगे जब कर्म नहीं करना होगा। मूलवतन में कर्म होता नहीं। सृष्टि का चक्र यहाँ फिरता है। बाप को और सृष्टि चक्र को जानना है, इसको ही नॉलेज कहा जाता है। यह आंखें जब तक पतित क्रिमिनल हैं, तो इन आंखों से पवित्र चीज़ देखने में आ नहीं सकती इसलिए ज्ञान का तीसरा नेत्र चाहिए। जब तुम कर्मातीत अवस्था को पायेंगे अर्थात् देवता बनेंगे फिर तो इन आंखों से देवताओं को देखते रहेंगे। बाकी इस शरीर में इन आंखों से कृष्ण को देख नहीं सकते। बाकी साक्षात्कार किया तो उससे कुछ मिलता थोड़ेही है। अल्पकाल के लिए खुशी रहती है, कामना पूरी हो जाती है। ड्रामा में साक्षात्कार की भी नूँध है, इससे प्राप्ति कुछ नहीं होती। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) शरीर से न्यारी आत्मा हूँ, जीते जी इस शरीर में रहते जैसे मुर्दा– इस स्थिति के अभ्यास से कर्मातीत अवस्था बनानी है।
2) सर्विस का सबूत देना है। देहभान को छोड़ अपना सच्चा-सच्चा समाचार देना है। पास विद् ऑनर होने का पुरुषार्थ करना है।
वरदान:
करन-करावनहार की स्मृति द्वारा सहजयोग का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव!
कोई भी कार्य करते यही स्मृति रहे कि इस कार्य के निमित्त बनाने वाला बैकबोन कौन है। बिना बैकबोन के कोई भी कर्म में सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए कोई भी कार्य करते सिर्फ यह सोचो मैं निमित्त हूँ, कराने वाला स्वयं सर्व समर्थ बाप है। यह स्मृति में रख कर्म करो तो सहज योग की अनुभूति होती रहेगी। फिर यह सहजयोग वहाँ सहज राज्य करायेगा। यहाँ के संस्कार वहाँ ले जायेंगे।
स्लोगन:
इच्छायें परछाई के समान हैं आप पीठ कर दो तो पीछे-पीछे आयेंगी।