Monday, January 4, 2016

मुरली 04 जनवरी 2016

04-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप तुम्हें जो पढ़ाई पढ़ाते हैं वह बुद्धि में रख सबको पढ़ानी है, हर एक को बाप का और सृष्टि चक्र का परिचय देना है”  
प्रश्न:
आत्मा सतयुग में भी पार्ट बजाती और कलियुग में भी लेकिन अन्तर क्या है?
उत्तर:
सतयुग में जब पार्ट बजाती है तो उसमें कोई पाप कर्म नहीं होता है, हर कर्म वहाँ अकर्म हो जाता है क्योंकि रावण नहीं है। फिर कलियुग में जब पार्ट बजाती है तो हर कर्म विकर्म वा पाप बन जाता है क्योंकि यहाँ विकार हैं। अभी तुम हो संगम पर। तुम्हें सारा ज्ञान है।
ओम् शान्ति।
अब यह तो बच्चे जानते हैं कि हम बाबा के सामने बैठे हैं। बाबा भी जानते हैं-बच्चे हमारे सामने बैठे हैं। यह भी तुम जानते हो-बाप हमको शिक्षा देते हैं, जो फिर औरों को देनी है। पहले-पहले तो बाप का ही परिचय देना है क्योंकि सब बाप को और बाप की शिक्षा को भूले हुए हैं। अभी जो बाप पढ़ाते हैं, यह पढ़ाई फिर 5 हज़ार वर्ष बाद मिलेगी। यह ज्ञान और कोई को है नहीं। मुख्य हुआ बाप का परिचय। फिर यह भी समझाना है हम सब भाई-भाई हैं। सारी दुनिया की जो सब आत्मायें हैं, सब आपस में भाई-भाई हैं। सब अपना मिला हुआ पार्ट इस शरीर द्वारा बजाते हैं। अब तो बाप आये हैं नई दुनिया में ले जाने के लिए, जिसको स्वर्ग कहा जाता है। परन्तु हम सब भाई पतित हैं, एक भी पावन नहीं। सभी पतितों को पावन बनाने वाला है ही एक बाप। यह है ही पतित, विकारी, भ्रष्टाचारी रावण की दुनिया। रावण का अर्थ ही है 5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरूष में। बाबा बहुत सिम्पल रीति समझाते हैं। तुम भी ऐसे समझा सकते हो। तो पहले-पहले यह समझाओ हम आत्माओं का वह बाप है। हम सब ब्रदर्स हैं। पूछो यह ठीक है? लिखो - हम सब भाई-भाई हैं। हमारा बाप भी एक है, हम सब सोल्स का वह है सुप्रीम सोल, उनको फादर कहा जाता है। यह पक्का-पक्का बुद्धि में बिठाओ तो सर्वव्यापी आदि पहले निकल जाए। अल्फ पहले पढ़ना है। बोलो, यह अच्छी रीति बैठ लिखो। आगे सर्वव्यापी कहता था, अब समझता हूँ कि सर्वव्यापी नहीं है। हम सब भाई-भाई हैं, सब आत्मायें कहती हैं - गॉड फादर, परमपिता। पहले तो यह निश्चय बिठाना है कि हम आत्मा हैं, परमात्मा नहीं हैं। न हमारे में परमात्मा व्यापक है। सबमें आत्मा व्यापक है। आत्मा शरीर के आधार से पार्ट बजाती है, यह पक्का कराओ। अच्छा, फिर वह बाप सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान भी सुनाते हैं, और तो कोई भी जानते नहीं कि इस सृष्टि चक्र की एज कितनी है। बाप ही टीचर के रूप में बैठ समझाते हैं। लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं। यह चक्र अनादि, एक्यूरेट बना-बनाया है, इसको जानना पड़े। सतयुग-त्रेता पास्ट हुए, नोट करो। उसको कहा जाता है स्वर्ग और सेमी स्वर्ग। जहाँ देवी-देवताओं का राज्य चलता है, वह 16 कला, वह 14 कला। धीरे-धीरे कलायें कम होती जाती हैं। दुनिया पुरानी तो जरूर होगी ना। सतयुग का प्रभाव बहुत भारी है। नाम ही है स्वर्ग, हेविन, नई दुनिया.... उसकी ही महिमा करनी है। नई दुनिया में है ही एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म। पहले बाप का परिचय फिर चक्र का परिचय दिया जाता है। चित्र भी तुम्हारे पास हैं - निश्चय कराने के लिए। यह सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, त्रेता में राम-सीता का। यह हुआ आधाकल्प, दो युग पास्ट हुए फिर आता है द्वापर-कलियुग। द्वापर में रावण राज्य। देवता वाम मार्ग में चले जाते हैं तो विकार की सिस्टम बन जाती है। सतयुग-त्रेता में सब निर्विकारी रहते हैं। एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म रहता है। चित्र भी दिखाना है, ओरली भी समझाना है। बाप हमको टीचर बन ऐसे पढ़ाते हैं। बाप अपना परिचय खुद ही आकर देते हैं। खुद कहते हैं मैं आता हूँ पतितों को पावन बनाने तो मुझे शरीर जरूर चाहिए। नहीं तो बात कैसे करूँ। मैं चैतन्य हूँ, सत हूँ और अमर हूँ। आत्मा सतो, रजो, तमो में आती है। आत्मा ही पावन और पतित बनती है इसलिए कहा जाता है पतित आत्मा, पावन आत्मा। आत्मा में ही सब संस्कार हैं। पास्ट के कर्म वा विकर्म का संस्कार आत्मा ले आती है। सतयुग में विकर्म होता ही नहीं। कर्म करते हैं, पार्ट बजाते हैं परन्तु वह कर्म अकर्म हो जाता है। गीता में भी अक्षर हैं, अभी तुम प्रैक्टिकल में समझ रहे हो। जानते हो बाबा आया हुआ है पुरानी दुनिया को बदलने, नई दुनिया बनाने। जहाँ कर्म अकर्म हो जाते हैं उसको ही सतयुग कहा जाता है और फिर जहाँ सब कर्म, विकर्म होते हैं उसको कलियुग कहा जाता है। तुम अभी हो संगम पर। बाबा दोनों तरफ की बात समझाते हैं। सतयुग-त्रेता तो है पवित्र दुनिया, वहाँ कोई पाप होता नहीं। जब रावण राज्य शुरू होता है तब ही पाप होते हैं। वहाँ विकार का नाम नहीं होता। चित्र तो सामने हैं राम राज्य और रावण राज्य। बाप समझाते हैं यह पढ़ाई है। बाप के सिवाए और कोई नहीं जानता। यह पढ़ाई तो तुम्हारी बुद्धि में रहनी चाहिए, बाप भी याद आता है, चक्र भी बुद्धि में आ जाता है। सेकेण्ड में सब याद आ जाता है। वर्णन करने में देरी लगती है। इनके 3 फाउन्टेन हैं। झाड़ ऐसा होता है, बीज और झाड़ सेकेण्ड में याद आ जायेंगे। यह बीज फलाने झाड़ का है, ऐसे इनसे फल निकलता है। यह बेहद का मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ कैसे है, इनका राज़ तुम समझाते हो। बच्चों को सारा समझाया है-आधाकल्प डिनायस्टी कैसे चलती है फिर रावण राज्य होता है तो जो सतयुग-त्रेतावासी हैं, वही द्वापरवासी बनते हैं। झाड़ वृद्धि को पाता रहता है। आधाकल्प के बाद रावण राज्य होता है, विकारी बन जाते हैं। बाप से जो वर्सा मिला वह आधाकल्प चला। नॉलेज सुनाकर वर्सा दिया, वह प्रालब्ध भोगी अर्थात् सतयुग-त्रेता में सुख पाया। उसको सुखधाम, सतयुग कहा जाता है। वहाँ दु:ख होता ही नहीं। कितना सिम्पल समझाते हैं। एक को समझाते हो या बहुतों को समझाते हो-तो ऐसे अटेन्शन देना है, समझता है, हाँ-हाँ करता है? बोलो नोट करते जाओ। कोई शंका हो तो पूछना। जो बात कोई नहीं जानता वह हम समझाते हैं। तुम कुछ भी जानते नहीं हो, पूछेंगे फिर क्या?

बाबा तो इस बेहद झाड़ का राज़ समझाते हैं। यह नॉलेज अभी तुम समझते हो। बाप ने समझाया है तुम 84 के चक्र में कैसे आते हो। यह अच्छी रीति नोट करो फिर इस पर विचार करना है। जैसे टीचर एसे (निबन्ध) देते हैं फिर घर में जाकर रिवाइज़ कर आते हैं ना। तुम भी यह नॉलेज देते हो फिर देखो क्या होता है। पूछते रहो। एक-एक बात अच्छी रीति समझाओ। बाप-टीचर का कर्तव्य समझाकर फिर गुरू का समझाओ। उनको बुलाया ही है कि आकर हम पतितों को पावन बनाओ। आत्मा पावन बनती है तो फिर शरीर भी पावन मिलता है। जैसा सोना वैसा जेवर बनता है। 24 कैरेट का सोना उठायेंगे, खाद नहीं डालेंगे तो जेवर भी ऐसे सतोप्रधान बनेंगे। अलाए डालने से तमोप्रधान बन पड़े हैं। पहले-पहले भारत 24 कैरेट पक्के सोने की चिड़िया था अर्थात् सतोप्रधान नई दुनिया थी फिर तमोप्रधान बनी है। यह बाप ही समझाते हैं, और कोई मनुष्य गुरू लोग नहीं जानते। बुलाते हैं आकर पावन बनाओ। सो तो गुरू का काम है। वानप्रस्थ अवस्था में मनुष्य गुरू करते हैं। वाणी से परे स्थान तो है इनकारपोरियल वर्ल्ड, जहाँ आत्मायें रहती हैं। यह है कारपोरियल वर्ल्ड। दोनों का यह मेल है। वहाँ तो शरीर है नहीं। वहाँ कोई कर्म नहीं होता है। बाप में तो सारी नॉलेज है। ड्रामा प्लैन अनुसार उनको कहा ही जाता है नॉलेजफुल। वह चैतन्य सत-चित-आनंद स्वरूप होने के कारण उनको नॉलेजफुल कहा जाता है। बुलाते भी हैं हे पतित-पावन, नॉलेजफुल शिवबाबा, उनका नाम सदैव शिव ही है। बाकी आत्मायें सब आती हैं पार्ट बजाने। तो भिन्न-भिन्न नाम धारण करती हैं। बाप को बुलाते हैं परन्तु उनको कुछ भी समझ नहीं रहती। जरूर भाग्यशाली रथ भी होगा, जिसमें बाप प्रवेश कर तुमको पावन दुनिया में ले जाये। तो बाप समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, मैं उनके तन में आता हूँ जो बहुत जन्मों के अन्त में है, पूरा 84 जन्म लेते हैं। भाग्यशाली रथ पर आना पड़ता है। पहले नम्बर में तो है श्रीकृष्ण। वह है नई दुनिया का मालिक। फिर वही नीचे उतरते हैं। गोल्डन से सिल्वर, कॉपर, आइरन एज में आकर पड़ते हैं। अभी फिर तुम आइरन से गोल्डन बन रहे हो। बाप कहते हैं सिर्फ मुझ अपने बाप को याद करो। जिसमें प्रवेश किया है उनकी आत्मा में तो ज़रा भी नॉलेज नहीं थी। इनमें मैं प्रवेश करता हूँ इसलिए इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है। नहीं तो सबसे ऊंच तो यह लक्ष्मी-नारायण हैं, इनमें प्रवेश करना चाहिए। परन्तु उनमें परमात्मा प्रवेश नहीं करते इसलिए उनको भाग्यशाली रथ नहीं कहा जाता है। रथ में आकर पतितों को पावन बनाना है, तो जरूर कलियुगी तमोप्रधान होगा ना। खुद कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ। गीता में भी अक्षर एक्यूरेट हैं। गीता को ही सर्व शास्त्रमई शिरोमणी कहा जाता है। इस संगमयुग पर ही बाप आकर ब्राह्मण कुल और देवता कुल स्थापन करते हैं। बहुत जन्मों के अन्त में अर्थात् संगमयुग पर ही बाप आते हैं। बाप कहते हैं मैं बीजरूप हूँ। कृष्ण तो है सतयुग का रहवासी। उनको दूसरी जगह तो कोई देख न सके। पुनर्जन्म में तो नाम, रूप, देश, काल सब बदल जाता है। फीचर्स ही बदल जाते हैं। पहले छोटा बच्चा सुन्दर होता है फिर बड़ा होता है वह फिर शरीर छोड़ दूसरा छोटा लेता है। यह बना-बनाया खेल ड्रामा के अन्दर फिक्स है। दूसरा शरीर लिया तो उनको कृष्ण नहीं कहेंगे। उस दूसरे शरीर पर नाम आदि फिर दूसरा पड़ेगा। समय, फीचर्स, तिथि-तारीख आदि सब बदल जाता है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हूबहू रिपीट कहा जाता है। तो यह ड्रामा रिपीट होता रहता है। सतो, रजो, तमो में आना ही है। सृष्टि का नाम, युग का नाम सब बदलते रहते हैं। अभी यह है संगमयुग। मैं आता ही हूँ संगम पर। मैं तुमको सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी सत्य बताता हूँ। आदि से लेकर अन्त तक और कोई भी जानता ही नहीं। सतयुग की आयु कितनी थी, यह पता न होने कारण लाखों वर्ष कह देते हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि में सब बातें हैं। तुम्हें अन्दर में यह पक्का करना है कि बाप, बाप-टीचर-सतगुरू है, जो फिर से सतोप्रधान बनने के लिए बहुत अच्छी युक्ति बताते हैं। गीता में भी है देह सहित देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो। वापिस अपने घर जरूर जाना है। भक्ति मार्ग में कितनी मेहनत करते हैं, भगवान पास जाने के लिए। वह है मुक्तिधाम, कर्म से मुक्त। हम इनकारपोरियल दुनिया में जाकर बैठते हैं। पार्टधारी घर गया तो पार्ट से मुक्त हुआ। सब चाहते हैं हम मुक्ति पायें। मोक्ष तो किसको मिल न सके। यह ड्रामा अनादि-अविनाशी है। कोई कहे यह पार्ट आने-जाने का हमको पसन्द नहीं, परन्तु इसमें कुछ वर न सकें। यह अनादि ड्रामा बना हुआ है। एक भी मोक्ष पा नहीं सकते। वह सब है अनेक प्रकार की मनुष्य मत। यह है श्रीमत, श्रेष्ठ बनाने के लिए। मनुष्य को श्रेष्ठ नहीं कहेंगे। देवताओं को श्रेष्ठ कहा जाता है। उन्हों के आगे सब नमन करते हैं। तो वह श्रेष्ठ ठहरे ना। कृष्ण देवता है बैकुण्ठ का प्रिन्स। वह यहाँ कैसे आयेगा। न उसने गीता सुनाई। शिव के आगे जाकर कहते हैं हमको मुक्ति दो। वह तो कभी जीवनमुक्त, जीवनबंध में आते ही नहीं इसलिए उनको पुकारते हैं मुक्ति दो। जीवनमुक्ति भी वह देते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हम सब आत्मा रूप में भाई-भाई हैं, यह पाठ पक्का करना और कराना है। अपने संस्कारों को याद से सम्पूर्ण पावन बनाना है।
2) 24 कैरेट सच्चा सोना (सतोप्रधान) बनने के लिए कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति को बुद्धि में रख अब कोई भी विकर्म नहीं करना है।
वरदान:
आत्मिक उन्नति के साधन द्वारा सर्व परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाले अकालमूर्त भव!  
जैसे शरीर निर्वाह के लिए अनेक साधन अपनाते हो ऐसे आत्मिक उन्नति के भी साधन अपनाओ, इसके लिए सदा अकालमूर्त स्थिति में स्थित होने का अभ्यास करो। जो स्वयं को अकालमूर्त (आत्मा) समझकर चलते हैं वह अकाले मृत्यु से, अकाल से, सर्व समस्याओं से बच जाते हैं। मानसिक चिंतायें, मानसिक परिस्थितियों को हटाने के लिए सिर्फ अपने पुराने शरीर के भान को मिटाते जाओ।
स्लोगन:
कोई भी बात जो बार-बार फील करता है वह फाइनल में फेल हो जाता है।