Sunday, January 10, 2016

मुरली 10 जनवरी 2016

10-01-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:15-12-79 मधुबन

"विदेशी बच्चों के साथ अव्यक्त बाप-दादा की मुलाकात"
आज सभी पदमापदम भाग्यशाली बच्चों को बाप-दादा भी देख हर्षित हो रहे हैं। एक-एक विश्व के शो केस के अन्दर अमूल्य रत्न हैं। हरेक रत्न अपनी-अपनी वैल्यु यथा-शक्ति जानते हैं। लेकिन बाप-दादा सदा सर्व बच्चों की सम्पन्न स्टेज ही देखते हैं। वर्तमान फरिश्ता रूप और भविष्य देवता रूप, मध्य का पूज्य रूप - तीनों ही रूप आदि, मध्य और अन्त का देखते हुए हरेक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। हरेक रत्न कोटों में से कोई और कोई में भी कोई है। ऐसे ही अपने को समझते हो ना? एक तरफ विश्व की कोटों आत्मायें रखो और दूसरी तरफ एक अपने को रखो तो कोटों से भी ज्यादा आप हरेक का वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ है। इतना नशा सदा रहता है? आज दिन तक भी आपके पूज्य स्वरूप देवी वा देवता के रूप की भक्त लोग पूजा कर रहे हैं। आपके जड़ चित्रों में चैतन्य देवताओं का आह्वन कर रहे हैं। पुकार रहे हैं, आओ, आ करके अशान्ति से छुड़ाओ। भक्तों की पुकार, अपनी भविष्य में होने वाली प्रजा का भी आह्वन सुनाई देता है?

आज की राजनीति की हलचल को देख आप विश्व के महाराजन महारानियों को वा वैकुण्ठ रामराज्य को सब याद कर रहे हैं कि अब वह राज्य चाहिए। रामराज्य में वा सतयुगी वैकुण्ठ में आप सब बाप के साथ-साथ राज्य-अधिकारी हो ना। तो आप अधिकारियों को आपकी प्रजा आह्वन कर रही है कि फिर से वह राज्य लाओ। आप सब श्रेष्ठ आत्माओं को उनकी आवाज़ नहीं पहुँचती है? सब चिल्ला रहे हैं, कोई भूख से चिल्ला रहे हैं, कोई मन की अशान्ति से चिल्ला रहे हैं, कोई टैक्स से चिल्ला रहे हैं, कोई परिवार की समस्याओं से चिल्ला रहे हैं, कोई अपनी कुर्सी की हलचल के कारण चिल्ला रहे हैं, बड़े-बड़े राज्य-अधिकारी एक-दूसरे से भयभीत होकर चिल्ला रहे हैं, छोटे-छोटे बच्चे पढ़ाई के बोझ से चिल्ला रहे हैं। छोटे से बड़े, सब चिल्ला रहे हैं। चारों ओर का चिल्लाना आप सबके कानों तक पहुँचता है? ऐसे समय पर बाप के साथ-साथ आप सब भी टॉवर ऑफ पीस हो। सबकी नज़र टॉवर ऑफ पीस की तरफ जा रही है। सब देख रहे हैं - हाहाकार के बाद जय-जयकार कब होती है। तो सब टॉवर ऑफ पीस बताओ, कब जय-जयकार कर रहे हो? क्योंकि बाप-दादा ने साकार रूप में निमित्त आप बच्चों को ही रखा है। तो हे साकारी फरिश्ते, कब अपने फरिश्ते रूप से विश्व के दु:ख दूर कर सुखधाम बनायेंगे? तैयार हो?

विदेशी तो लास्ट इज़ फास्ट वाले हैं ना। फास्ट गति से कब सर्व की सद्गति कर रहे हो? एवररेडी हो? बाप-दादा सबको बच्चों के तरफ ही इशारा करते हैं। शक्तियों की पूजा ज्यादा है। दो तरफ लम्बी लाइन लगती है। पाण्डवों की यादगार हनुमान के पास और शक्तियों की तरफ से वैष्णव देवी के पास - दोनों के पास लम्बी लाइन लगती है। दिन-प्रतिदिन लाइन लम्बी होती जा रही है। तो सर्व भक्तों को भक्ति का फल, गति-सद्गति देने वाले हो ना? तो सदा अपने को मास्टर गति- सद्गति दाता समझ, गति और सद्गति का प्रसाद भक्तों को बाँटों, प्रसाद बाँटना आता है। टोली बाँटने का अभ्यास तो हो ही गया है, अब यह प्रसाद बाँटना है।

आज तो विशेष विदेशियों से मिलने आये हैं। आज अमृतवेले का दृश्य सुनाया कि विश्व में क्या देखा? एक चिल्लाना, दूसरा चलाना। एक तरफ चिल्ला रहे हैं और दूसरे तरफ सब कार्य को धक्के से चला रहे हैं। सब बातों में यह सोचते हैं कि चलना ही है। जैसे कोई स्वयं नहीं चल पाता तो धक्के से व आर्टिफिशियल पहिये लगाकर चलाते हैं। आजकल की भाषा में - हर कार्य में जब तक किसी-न-किसी साधन के पहिये नहीं लगाते तब तक कार्य नहीं चलता। तो पहिये लगाने का सीज़न है, फैशन है। इससे क्या सिद्ध होता है कि वैसे कार्य नहीं चल सकता लेकिन धक्के से चला रहे हैं अथवा पहिये लगाकर चला रहे हैं। तो आज का समाचार था - विश्व में चिल्लाना और काम वा जीवन को चलाना इसलिए आजकल गवर्नमेन्ट भी कामचलाऊ है। तो चलाना और चिल्लाना, यही आज के विश्व की हालत है। कोई चिल्ला रहा है कोई चला रहा है। तो सुना, संसार समाचार।

विदेशियों में भी विशेषतायें हैं तब ही बाप-दादा ने दूर-दूर देशों से भी अपने बच्चों को ढूँढ लिया है। कभी स्वप्न में भी सोचा था क्या कि हम ऐसे बाप के सिकीलधे बनेंगे? लेकिन बाप तो बच्चों को कोने-कोने से भी छाँटकर अपने परिवार के गुलदस्ते में लगा देते हैं। तो सब भिन्न-भिन्न स्थान से आये हुए एक ही ब्राह्मण परिवार के गुलदस्ते के वैराइटी पुष्प हो।

विदेशियों की विशेषता - डबल विदेशी बच्चों को ड्रामा अनुसार विशेष लिफ्ट भी मिली हुई है। जिस लिफ्ट के आधार से लास्ट सो फास्ट अच्छे ही जा रहे हैं। वह लिफ्ट की गिफ्ट कौन-सी है? विदेशियों की विशेषता अर्थात् विदेशियों को विशेष लिफ्ट इसलिए मिली हुई है जो विदेश में सुख के साधन सब प्रकार के भोगकर अब थके हुए हैं और भारतवासी अभी शुरू कर रहे हैं। तो विदेशियों का उन अल्पकाल के साधनों से जैसे किसी का पेट भर जाता है ना तो उसके आगे कुछ भी रखो, आसक्ति नहीं जाती, वैभवों से, वस्तुओं से, अल्पकाल के सुखों से जी भर चुका है इसलिए एक तरफ से किनारा सहज हो चुका था और जिसकी आवश्यकता थी वह सहारा मिल गया, इसलिए सहज ही एक बाप दूसरा न कोई, इस स्थिति का अनुभव कर रहे हो। त्याग किया जरूर है लेकिन जी भरने के बाद त्याग किया है। विदेशियों को यह लिफ्ट है जो पहले से ही बुद्धि किनारे हो गई है। और सहारे को ढूँढने की वायुमण्डल में शुरूआत हो गई है, इसलिए भारतवासियों का त्याग करने में हृदय विदीर्ण होता है। विदेशियों का उछल से, एक धक से, छोड़ा और छूटा। दूसरी बात विदेशियों के संस्कार-स्वभाव में भी यह भरा हुआ है कि जो सोचा वह किया। डोन्टकेयर हैं। जो सोचा वह करना ही है। सोचने वाले नहीं कि यह क्या कहेंगे, वह क्या कहेंगे! लोक मर्यादा से पहले ही पार हैं इसलिए भारतवासियों से ज्यादा पुरूषार्थ में सहज और तीव्र जाते हैं। उनको लोक मर्यादा ज्यादा होती है। डबल विदेशियों की लोक मर्यादा पहले ही छूटी हुई है। आधे नाते पहले ही टूटे हुए हैं इसलिए लास्ट सो फास्ट जाते हैं। समझा, विदेशियों की ड्रामा अनुसार विशेषता है। अज्ञान की बाते हैं। लेकिन ड्रामा में यह संस्कार परिवर्तन होने में सहज साधन बन गये हैं - इसलिए विदेशियों को सहज होता है। विदेशी नष्टोमोहा होने में होशियार हैं, इण्डियन भी विदेश में रहकर विदेश के वातावरण में तो जाते हैं ना। विदेशी जम्प लगाने में होशियार हो गये हैं। समझा, विदेशियों की विशेषता?

आस्ट्रेलिया पार्टी - आस्ट्रेलिया वालों ने बहुत अच्छी सेवा की वृद्धि की है। बिछुड़ी हुई आत्माओं को बाप से मिलाने वाले रूहानी सेवाधारी हो। एक-एक बाप के समीप आने और लाने वाला रत्न है। बाप-दादा भी ऐसे रूहानी सेवाधारियों को देख हर्षित होते हैं। नये-नये भी पुराने लगते हैं क्योंकि कल्प-कल्प के अधिकारी हैं। आस्ट्रेलिया वालों की विशेषता है - बिना कोई विशेष सहयोग के भी अपने पाँव पर खड़े होकर बाप के सम्बन्ध, सम्पर्क के आधार पर सेवा की, वृद्धि की तो सभी सदा बाप के समीप अपने को अनुभव करते हो? (शक्तियाँ) शक्तियों का झण्डा ऊंचा है। मेहनत पाण्डवों ने की है और झण्डा शक्तियों को दिया है। यही अच्छा है क्योंकि शक्तियाँ हैं गाइड और पाण्डव हैं गार्ड। गार्ड खुद पीछे होकर गाइड को आगे रखते हैं। तो शक्तियाँ गाइड बनकर सबको रास्ता दिखा रही हो? शक्तियाँ हो या कुमारी? शक्तियों की विशेषता है - सदा मायाजीत। माया अर्थात् वार करने वाले को अपनी सवारी बनाने वाली। ऐसे हो ना।

बाप-दादा ने तो विदेशी बच्चों का आह्वन 10-12 वर्ष पहले से किया है। इतनी स्वीट आत्मायें हो। सभी सदा बाप-दादा द्वारा प्राप्त हुए सुख-शान्ति वा आनन्द के झूले में झूलते रहते हो ना? जो सदा झूले में झूलने वाले हैं वह भविष्य में भी साकार रूप के भिन्न रूप के साथ झूले में झूलते हैं। तो सभी श्रीकृष्ण के साथ झूलेंगे ना! जब बाप के समान बनेंगे तब ही बाप के साथ झूले में झूल सकेंगे। नहीं तो दूर बैठे देखने वाले बन जायेंगे! सदा साथ रहने वाले वहाँ भी साथ-साथ झूलते हैं। हरेक ने स्वर्ग जाने की टिकट बुक कर दी है? कौन-सी क्लास की टिकट बुक की है? एयरकन्डीशन की टिकट किन्हें मिलेगी? जो यहाँ पर हर कन्डीशन में सेफ रहेंगे। कोई भी परिस्थिति आ जाए, कैसी भी समस्यायें आ जाएं लेकिन हर समस्या को सेकेण्ड में पार करने वाले। एयरकन्डीशन की टिकट बुक कराने के लिए पहले यह सर्टिफिकेट चाहिए। जैसे उस टिकट के लिए पैसे देते हो। ऐसे यहाँ “सदा विजयी” बनने की मनी चाहिए - जिससे टिकट मिल सके। बहुत मेहनत करके मनी इकट्ठे करके यहाँ आये हो ना! यह मनी इकट्ठे करना उससे भी सहज है। जो सदा बाप के साथ रहते हैं उसकी हर सेकेण्ड में बहुत ही कमाई जमा होती रहती है। तो इतने समय में कितनी कमाई जमा कर ली है? अच्छा, नया प्लैन क्या बनाया है? शक्तियों और पाण्डवों का संगठन अच्छा है। आपस में निर्विघ्न हो, स्नेही और सहयोगी होकर चलते हो? कोई खिटखिट तो नहीं होती? और भी ज्यादा से ज्यादा निर्विघ्न सेवाकेन्द्र बनाओ तब इनाम मिलेगा। ज्यादा सेन्टर भी हों और निर्विघ्न भी हों? (बापदादा हमारे पास आस्ट्रेलिया में आयेंगे?) बाप-दादा तो रोज़ चक्र लगाते हैं। आप सोचो जब बच्चे बाप को याद करते हैं तो बाप कैसे याद का रिटर्न नही देंगे? बाप-दादा रोज़ अमृतवेले हर बच्चे की सम्भाल करने के लिए, देखने के लिए विश्व-भ्रमण करते हैं। आप रूहरिहान नहीं करते हो? आते हैं तब तो रूहरिहान करते हो! रोज़ रूहरिहान करते हो या कभी-कभी? एक होता है बैठना और दूसरा होता है - मिलन मनाना, तो बैठते हो लेकिन पॉवरफुल स्टेज पर बैठो तो सदा समीप का अनुभव करेंगे। अभी तो जब तक हैं तब तक मिलते रहेंगे। बाबा कहा और साथ का अनुभव किया। कोई भी बात आये, सेकेण्ड में बाबा कहा और साथ का अनुभव कर लिया। यह बाबा शब्द ही जादू का शब्द है। तो जैसे जादू की रिंग या जादू की कोई चीज़ अपने साथ रखते हैं, वैसे ‘बाबा’ शब्द अपने साथ रखो। तो कभी भी किसी भी कार्य में कोई भी मुश्किल नहीं आयेगी। अगर कोई बात हो भी जाए तो ‘बाबा’ शब्द याद करने और कराने से निर्विघ्न हो जायेंगे। बाबा-बाबा का महामन्त्र सदा स्मृति में रखो तो सदा ऐसे अनुभव करेंगे जैसे छत्रछाया के नीचे चल रहे हैं।

मौरीशियस - सदा बाप द्वारा मिले हुए खज़ानों से खेलते रहते हो ना? जो लाडले और सिकीलधे होते हैं, वे सदा रत्नों से खेलते हैं। तो आप सबको भी बाप-दादा द्वारा अखुट ज्ञान रत्न प्राप्त हुए हैं, उसी अखुट खज़ाने में खेलते रहते हो? इन्ही रत्नों से खेलने और दूसरों को भी मालामाल करने में सदा बिज़ी रहते हो ना? यही कार्य है ना? बाकी प्रवृत्ति तो निमित्त मात्र है। ब्राह्मण जीवन का कर्तव्य है - सुनना और सुनाना। यही निजी कार्य है। (बाँधेलियाँ हैं) बाँधेलिया तो प्रवृत्ति में रहते भी निवृत रहती है। हर घड़ी लगन रहती है कि किस घड़ी निर्बन्धन बन बाप से मिलें। तन वहाँ है लेकिन मन बाप के पास रहता है। परतन्त्र तन के हैं, मन के तो नहीं है ना। तन को कितने भी तालों में रखें, मन को तो ताला नहीं लगा सकते। अगर मायाजीत हैं तो मन स्वतन्त्र है। बाँधेलिया अपनी वृत्ति द्वारा, शुद्ध संकल्प द्वारा, विश्व के वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकती हैं। बाँधेलियों को इस सेवा का बहुत बड़ा चान्स है। आजकल मन्सा सेवा ही चाहिए क्योंकि विश्व को आवश्यकता है - मन के शान्ति की। तो मन्सा द्वारा शान्ति के वायब्रेशन्स फैला सकती हो। शान्ति के सागर बाप की याद में इसी संकल्प में रहना, यही मन्सा सेवा है। ऑटोमेटिक शान्ति की किरणें फैलती रहेंगी। तो शान्ति का दान देने वाली, महादानी हो ना?

जहाँ बाप साथ है, वहाँ कोई कुछ भी नहीं कर सकता। अगर कोई थोड़ा शोर करते हैं तो भी धीरे-धीरे ठण्डे हो जायेंगे। जैसे दीपावली पर मच्छर निकलते हैं और समाप्त हो जाते हैं ना। आप सागर के बच्चे सागर हो, सारे विश्व को सच्चा आर्य बनाने वाले हो - तो कोई कर ही क्या सकता है। तालाब सागर में समाकर समाप्त हो जायेंगे। जितना आप लोग बाप को याद करते हो, बाप आपको पदमगुणा याद करते हैं इसलिए रोज़ याद का रिटर्न देने के लिए चक्र लगाते हैं। बच्चे भल सोये भी पड़े हों, बाप सर्व बच्चों की देख-रेख का अपना कार्य सदा ही करते हैं। कोई कैच करते हैं कोई नहीं करते हैं, वह हुआ बच्चों का पुरूषार्थ। उसी समय कैच करो तो बहुत कुछ अनुभव कर सकते हो। सारे दिन के लिए एक खुराक मिल जायेगी।

पेपर आना अर्थात् अनुभवी बनाना अर्थात् सदा के लिए विघ्न-विनाशक की डिग्री लेना इसलिए जब पेपर आता है तो समझना चाहिए कि क्लास आगे बढ़ गये। बाप-दादा सदा बच्चों की रक्षा करते हैं, इसलिए सदा उसी छत्र-छाया में रहो। अच्छा।
वरदान:
सम्पूर्ण समर्पण की विधि द्वारा अपने पन का अधिकार समाप्त करने वाले समान साथी भव!  
जो वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ में राज्य करेंगे-इस वायदे को तभी निभा सकेंगे जब साथी के समान बनेंगे। समानता आयेगी समर्पणता से। जब सब कुछ समर्पण कर दिया तो अपना वा अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता है। जब तक किसी का भी अधिकार है तो सर्व समर्पण में कमी है इसलिए समान नहीं बन सकते। तो साथ रहने, साथ उड़ने के लिए जल्दी-जल्दी समान बनो।
स्लोगन:
अपने समय, श्वांस और संकल्प को सफल करना ही सफलता का आधार है।