Wednesday, January 27, 2016

मुरली 28 जनवरी 2016

28-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

"मीठे बच्चे– जब यह भारत स्वर्ग था तब तुम घोर सोझरे में थे, अभी अन्धियारा है, फिर सोझरे में चलो।"  
प्रश्न:
बाप अपने बच्चों को कौन सी एक कहानी सुनाने आये हैं?
उत्तर:
बाबा कहते मीठे बच्चे– मैं तुम्हें 84 जन्मों की कहानी सुनाता हूँ। तुम जब पहले-पहले जन्म में थे तो एक ही दैवी धर्म था फिर तुमने ही दो युग के बाद बड़े-बड़े मन्दिर बनाये हैं। भक्ति शुरू की है। अभी तुम्हारा यह अन्त के भी अन्त का जन्म है। तुमने पुकारा दुःख हर्ता सुख कर्ता आओ.... अब मैं आया हूँ।
गीतः
आज अन्धेरे में है इन्सान......  
ओम् शान्ति।
तुम बच्चे जानते हो अभी यह कलियुगी दुनिया है, सब अन्धियारे में हैं। पहले सोझरे में थे, जबकि भारत स्वर्ग था। यही भारतवासी जो अभी अपने को हिन्दू कहलाते हैं यह असुल देवी-देवतायें थे। भारत में स्वर्गवासी थे जब और कोई धर्म नहीं था। एक ही धर्म था। स्वर्ग, वैकुण्ठ, बहिश्त, हेविन– यह सब इस भारत के नाम थे। भारत पवित्र और प्राचीन धनवान था। अभी तो भारत कंगाल है क्योंकि अभी कलियुग है। तुम जानते हो हम अन्धियारे में हैं। जब स्वर्ग में थे तो सोझरे में थे। स्वर्ग के राज-राजेश्वर, राज-राजेश्वरी श्री लक्ष्मी-नारायण थे। उसको सुखधाम कहा जाता है। बाप से ही तुमको स्वर्ग का वर्सा लेना है, जिसको जीवनमुक्ति कहा जाता है। अभी तो सब जीवन-बंध में हैं। खास भारत और आम दुनिया रावण की जेल में, शोकवाटिका में हैं। ऐसे नहीं रावण सिर्फ लंका में था और राम भारत में था, उसने आकर सीता चुराई। यह तो सब हैं दन्त कथायें। गीता है मुख्य, सर्व शास्त्रमई शिरोमणी श्रीमत अर्थात् भगवान की सुनाई हुई है, भारत में। मनुष्य तो कोई की सद्गति कर नहीं सकते। सतयुग में थे जीवनमुक्त देवी-देवतायें, जिन्होंने यह वर्सा कलियुग अन्त में पाया था। भारतवासियों को यह पता नहीं है, न कोई शास्त्रों में है। शास्त्रों में है भक्ति मार्ग का ज्ञान। सद्गति मार्ग का ज्ञान मनुष्य मात्र में बिल्कुल है नहीं। सब भक्ति सिखलाने वाले हैं। कहेंगे शास्त्र पढ़ो, दान-पुण्य करो। यह भक्ति द्वापर से चली आती है। सतयुग और त्रेता में है ज्ञान की प्रालब्ध। ऐसे नहीं कि वहाँ भी यह ज्ञान चलता आता है। यह जो वर्सा भारत को था वह बाप से संगमयुग पर ही मिला था जो फिर अभी तुमको मिल रहा है। भारतवासी जब नर्कवासी बेहद दुःखी बन जाते हैं तब पुकारते हैं– हे पतित-पावन दुःख हर्ता सुख कर्ता। किसका? सर्व का क्योंकि भारत खास, दुनिया आम सबमें 5 विकार हैं। बाप है पतित-पावन। बाप कहते हैं– मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगम पर आता हूँ। सर्व का सद्गति दाता बनता हूँ। अहिल्यायें, गणिकायें और जो गुरू लोग हैं उन सबका उद्धार मुझे ही करना पड़ता है क्योंकि यह तो है ही पतित दुनिया। पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है। भारत में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। भारतवासी यह नहीं जानते कि यह स्वर्ग के मालिक थे। पतित खण्ड माना झूठ खण्ड, पावन खण्ड माना सचखण्ड। भारत पावन खण्ड था, यह भारत है अविनाशी खण्ड, जो कभी विनाश नहीं होता है। जब इनका (लक्ष्मी-नारायण का) राज्य था तो और कोई खण्ड थे नहीं। वह सभी बाद में आते हैं। मनुष्यों ने तो कल्प लाखों वर्ष का लिख दिया है। बाप कहते हैं कल्प की आयु 5 हज़ार वर्ष है। वह फिर कह देते मनुष्य 84 लाख जन्म लेते हैं। मनुष्य को कुत्ता, बिल्ली, गधा आदि सब बना दिया है। परन्तु कुत्ते बिल्ली का जन्म अलग है, 84 लाख वैराइटी हैं। मनुष्यों की तो वैरायटी एक ही है। उनके ही 84 जन्म हैं। बाप कहते हैं भारतवासी अपने धर्म को ड्रामा प्लैन अनुसार भूल गये हैं। कलियुग अन्त में बिल्कुल ही पतित बन पड़े हैं। फिर बाप संगम पर आकर पावन बनाते हैं। उसको कहा जाता है दुःखधाम। फिर भारत सुखधाम होगा। बाप कहते हैं– हे बच्चों, तुम भारतवासी, स्वर्गवासी थे फिर तुम 84 जन्मों की सीढ़ी उतरते हो। सतो से रजो-तमो में जरूर आना है। तुम देवताओं जैसा धनवान एवरहैप्पी, एवरहेल्दी, वेल्दी कोई नहीं होता। भारत कितना साहूकार था, हीरे-जवाहरात तो पत्थरों मिसल थे। दो युग बाद भक्तिमार्ग में इतने बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं। वह भी कितने भारी मन्दिर बनाये। सोमनाथ का मन्दिर बड़े से बड़ा था। सिर्फ एक मन्दिर तो नहीं होगा ना। और भी राजाओं के मन्दिर थे। कितना लूटकर ले गये हैं। बाप तुम बच्चों को स्मृति दिलाते हैं। तुमको कितना साहूकार बनाया था। तुम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थे यथा महाराजा-महारानी। उन्हों को भगवान-भगवती भी कह सकते हैं। परन्तु बाप ने समझाया है– भगवान एक है, वह बाप है। सिर्फ ईश्वर वा प्रभू कहने से भी याद नहीं आता कि वह सभी आत्माओं का बाप है। बाप कहानी बैठ सुनाते हैं। अभी तुम्हारे बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। एक की बात नहीं है, न कोई युद्ध का मैदान आदि है। भारतवासी यह भूल गये हैं कि उन्हों का राज्य था। सतयुग की आयु लम्बी कर देने से बहुत दूर ले गये हैं। बाप आकर समझाते हैं– मनुष्य को भगवान नहीं कह सकते। मनुष्य किसी की सद्गति नहीं कर सकते। कहावत है– सर्व का सद्गति दाता, पतितों का पावन कर्ता एक है। एक ही सच्चा बाबा है जो सचखण्ड की स्थापना करने वाला है। पूजा भी करते हैं परन्तु भक्ति मार्ग में तुम जिसकी पूजा करते आये हो, एक की भी बायोग्राफी को नहीं जानते इसलिए बाप समझाते हैं, तुम शिवजयन्ती तो मनाते हो ना। बाप है नई दुनिया का रचयिता, हेविनली गॉड फादर। बेहद सुख देने वाला। सतयुग में बहुत सुख था। वह कैसे और किसने स्थापन किया? यह बाप ही बैठ समझाते हैं। नर्कवासी को आकर स्वर्गवासी बनाना या भ्रष्टाचारियों को श्रेष्ठाचारी देवता बनाना, यह तो बाप का ही काम है। बाप कहते हैं– मैं तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ। तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। तुमको पतित कौन बनाते हैं? यह रावण। मनुष्य कह देते दुःख भी ईश्वर ही देते हैं। बाप कहते हैं– मैं तो सभी को इतना सुख देता हूँ जो फिर आधाकल्प तुम बाप का सिमरण नहीं करेंगे। फिर जब रावण राज्य होता है तो सबकी पूजा करने लग पड़ते हैं। यह है तुम्हारा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म। कहते हैं बाबा कितने जन्म हमने लिए? बाबा कहते हैं– मीठे-मीठे भारतवासियों, हे आत्माओं, अब तुमको बेहद का वर्सा देता हूँ। बच्चे, तुमने 84 जन्म लिए हैं। अभी तुम 21 जन्म के लिए बाप से वर्सा लेने आये हो। सभी तो इकट्ठे नहीं आयेंगे। तुम ही सतयुग का सूर्यवंशी पद फिर से लेते हो अर्थात् सच्चे सत्य बाबा से सत्य नर से नारायण बनने का ज्ञान सुनते हो। यह है ज्ञान, वह है भक्ति। शास्त्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग के लिए। वह ज्ञान मार्ग के नहीं हैं। यह है प्रीचुअल रूहानी नॉलेज। सुप्रीम रूह बैठ नॉलेज देते हैं। बच्चों को देही-अभिमानी बनना पड़े। अपने को आत्मा निश्चय कर मामेकम् याद करो। बाप समझाते हैं– आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार होते हैं, जिस अनुसार ही मनुष्य को अच्छा वा बुरा जन्म मिलता है। बाप बैठ समझाते हैं यह जो पावन था, अन्तिम जन्म में पतित है, तत् त्वम्। मुझ बाप को इस पुरानी रावण की दुनिया, पतित दुनिया में आना पड़ता है। आना भी उस तन में है जो फिर पहले नम्बर में जाना है। सूर्यवंशी ही पूरे 84 जन्म लेते हैं। यह है ब्रह्मा और ब्रह्मावंशी ब्राह्मण। बाप समझाते तो रोज़ हैं। पत्थरबुद्धि को पारसबुद्धि बनाना मासी का घर नहीं है। हे आत्मायें, अब देही-अभिमानी बनो। हे आत्मायें, एक बाप को याद करो और राजाई को याद करो। देह के संबंध को छोड़ो। मरना तो सभी को है। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। एक सतगुरू बिगर सर्व का सद्गति दाता कोई हो नहीं सकता। बाप कहते हैं– हे भारतवासी बच्चों, तुम पहले-पहले मेरे से बिछुड़े हो। गाया जाता है– आत्मायें-परमात्मा अलग रहे बहुकाल..... पहले-पहले तुम भारतवासी देवी-देवता धर्म वाले आये हो। और धर्म वालों के जन्म थोड़े होते हैं। सारा चक्र कैसे फिरता है सो बाप बैठ समझाते हैं। जो धारण नहीं करा सकते हैं, उनके लिए भी बहुत सहज है। आत्मायें धारण करती हैं, पुण्य आत्मा, पाप आत्मा बनती हैं ना। तुम्हारा यह 84 वां अन्तिम जन्म है। तुम सब वानप्रस्थ अवस्था में हो। वानप्रस्थ अवस्था वाले गुरू करते हैं, मत्र लेने के लिए। तुमको तो अभी देहधारी गुरू करने की दरकार नहीं है। तुम सबका मैं बाप, टीचर, गुरू हूँ। मुझे कहते भी हो– हे पतित-पावन शिवबाबा। अभी स्मृति आई है। सब आत्माओं का बाप है, आत्मा सत है, चैतन्य है क्योंकि अमर है। सभी आत्माओं में पार्ट भरा हुआ है। बाप भी सत चैतन्य है। वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप होने कारण कहते हैं– मैं सारे झाड़ के आदि-मध्य- अन्त को जानता हूँ इसलिए मुझे नॉलेजफुल कहा जाता है। तुमको भी सारी नॉलेज है। बीज से झाड़ कैसे निकलता है। झाड़ बढने में टाइम लगता है ना। बाप कहते हैं मैं बीजरूप हूँ, अन्त में सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पा लेता है। अभी देखो देवी-देवता धर्म का फाउण्डेशन है नहीं। प्रायः गुम है। जब देवता धर्म गुम हो जाता है तब बाप को आना पड़ता है– एक धर्म की स्थापना कर बाकी सबका विनाश करा देते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा बाप स्थापना करा रहे हैं, आदि सनातन देवी-देवता धर्म की। यह भी सारा ड्रामा बना हुआ है। इनकी एण्ड होती नहीं। बाप आते हैं अन्त में। जबकि सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज सुनाना है तो जरूर संगम पर आयेंगे। तुम्हारा एक बाप है। आत्मायें सभी ब्रदर्स हैं, मूलवतन में रहने वाली। उस एक बाप को सब याद करते हैं। दुःख में सिमरण सब करें.. रावण राज्य में दुःख है ना। यहाँ सिमरण करते हैं तो बाप सबका सद्गति दाता एक है। उनकी ही महिमा है। बाप नहीं आये तो भारत को स्वर्ग कौन बनावे! इस्लामी आदि जो भी हैं सब इस समय तमोप्रधान हैं। सबको पुनर्जन्म तो जरूर लेना है। अभी पुनर्जन्म मिलता है नर्क में। ऐसे नहीं कि स्वर्ग में चले जाते हैं। जैसे हिन्दू लोग कहते हैं स्वर्गवासी हुआ तो जरूर नर्क में था ना। अभी स्वर्ग में गया। तुम्हारे मुख में गुलाब। स्वर्गवासी हुआ फिर नर्क के आसुरी वैभव तुम उनको क्यों खिलाते हो! बंगाल में मछलियां आदि भी खिलाते हैं। अरे, उनको इन सब खाने की दरकार ही क्या है! कहते हैं फलाना पार निर्वाण गया, बाप कहते यह सब हैं गपोड़े। वापिस कोई भी जा नहीं सकते। जबकि पहले नम्बर वालों को ही 84 जन्म लेने पड़ते हैं।

बाप समझाते हैं इसमें कोई तकलीफ नहीं है। भक्ति मार्ग में कितनी तकलीफ है। राम-राम जपते रोमांच खड़े हो जाते। वह सब है भक्ति मार्ग। यह सूर्य-चांद भी तुम जानते हो कि रोशनी करने वाले हैं। यह कोई देवतायें थोड़ेही हैं। वास्तव में ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा और ज्ञान सितारे हैं। उन्हों की महिमा है। वह फिर कह देते सूर्य देवताए नमः। उनको देवता समझ पानी देते हैं। तो बाप समझाते हैं यह सब है भक्ति मार्ग, जो फिर भी होगा। पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति एक शिवबाबा की, फिर देवताओं की, फिर उतरते-उतरते अभी तो देखो टिवाटे पर (जहाँ तीन रास्ते मिलते हैं) भी मिट्टी का दीवा जगाए, तेल आदि डाल उनकी भी पूजा करते हैं। तत्वों की भी पूजा करते हैं। मनुष्यों के भी चित्र बनाए पूजते हैं। अब इनसे प्राप्ति तो कुछ भी नहीं होती, इन बातों को तुम बच्चे ही समझते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आत्मा से बुरे संस्कारों को निकालने के लिए देही-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है। यह अन्तिम 84 वां जन्म है, वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए पुण्य आत्मा बनने की मेहनत करनी है।
2) देह के सब सम्बन्धों को छोड़ एक बाप को और राजाई को याद करना है, बीज और झाड़ का ज्ञान सिमरण कर सदा हर्षित रहना है।
वरदान:
संगठन में सहयोग की शक्ति द्वारा विजयी बनने वाले सर्व के शुभचिंतक भव!  
यदि संगठन में हर एक, एक दो के मददगार, शुभचिंतक बनकर रहें तो सहयोग की शक्ति का घेराव बहुत कमाल कर सकता है। आपस में एक दो के शुभचिंतक सहयोगी बनकर रहो तो माया की हिम्मत नहीं जो इस घेराव के अन्दर आ सके। लेकिन संगठन में सहयोग की शक्ति तब आयेगी जब यह दृढ संकल्प करेंगे कि चाहे कितनी भी बातें सहन करना पड़े लेकिन सहन करके दिखायेंगे, विजयी बनकर दिखायेंगे।
स्लोगन:
कोई भी इच्छा, अच्छा बनने नहीं देगी इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या बनो।