Saturday, January 23, 2016

मुरली 23 जनवरी 2016

23-01-16 प्रातःमुरली ओम् शान्ति बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे– बाप की श्रीमत का रिगार्ड रखना माना मुरली कभी भी मिस नहीं करना, हर आज्ञा का पालन करना।  
प्रश्न:
अगर तुम बच्चों से कोई पूछे राज़ी-खुशी हो? तो तुम्हें कौन-सा जवाब फ़लक से देना चाहिए?
उत्तर:
बोलो– परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले की, वह मिल गया, बाकी क्या चाहिए। पाना था सो पा लिया.....। तुम ईश्वरीय बच्चों को किसी बात की परवाह नहीं। तुम्हें बाप ने अपना बनाया, तुम्हारे पर ताज रखा फिर परवाह किस बात की।
ओम् शान्ति।
बाप समझाते हैं बच्चों की बुद्धि में जरूर होगा कि बाबा– बाप भी है, टीचर भी है, सुप्रीम गुरू भी है, इसी याद में जरूर होंगे। यह याद कभी कोई सिखला भी नहीं सकते। बाप ही कल्प-कल्प आकर सिखलाते हैं। वही ज्ञान सागर पतित-पावन भी है। वह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। यह अब समझा जाता है , जबकि ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। बच्चे भल समझते तो होंगे परन्तु बाप को ही भूल जाते हैं तो टीचर गुरू फिर कैसे याद आयेगा। माया बहुत ही प्रबल है जो तीन रूप में महिमा होते हुए भी तीनों को भुला देती है, इतनी सर्वशक्तिमान् है। बच्चे भी लिखते हैं बाबा हम भूल जाते हैं। माया ऐसी प्रबल है। ड्रामा अनुसार है बहुत सहज। बच्चे समझते हैं ऐसा कभी कोई हो नहीं सकता। वही बाप टीचर सतगुरू है– सच-सच, इसमें गपोड़े आदि की कोई बात नहीं। अन्दर में समझना चाहिए ना! परन्तु माया भुला देती है। कहते हैं हम हार खा लेते हैं, तो कदम-कदम में पद्म कैसे होंगे! देवताओं को ही पद्म की निशानी देते हैं। सबको तो नहीं दे सकते। ईश्वर की यह पढाई है, मनुष्य की नहीं। मनुष्य की यह पढाई कभी हो नहीं सकती। भल देवताओं की महिमा की जाती है परन्तु फिर भी ऊंच ते ऊंच एक बाप है। बाकी उनकी बड़ाई क्या है, आज गदाई कल राजाई। अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो ऐसा (लक्ष्मी-नारायण) बनने का। जानते हो इस पुरूषार्थ में बहुत फेल होते हैं। पढते फिर भी इतने हैं जितने कल्प पहले पास हुए थे। वास्तव में ज्ञान है भी बहुत सहज परन्तु माया भुला देती है। बाप कहते हैं अपना चार्ट लिखो परन्तु लिख नहीं पाते हैं। कहाँ तक बैठ लिखें। अगर लिखते भी हैं तो जांच करते हैं– दो घण्टा याद में रहे? फिर वह भी उन्हों को मालूम पड़ता है, जो बाप की श्रीमत को अमल में लाते हैं। बाप तो समझेंगे इन बिचारों को लज्जा आती होगी। नहीं तो श्रीमत अमल में लानी चाहिए। परन्तु दो परसेन्ट मुश्किल चार्ट लिखते हैं। बच्चों को श्रीमत का इतना रिगार्ड नहीं है। मुरली मिलते हुए भी पढते नहीं हैं। दिल में लगता जरूर होगा– बाबा कहते तो सच हैं, हम मुरली ही नहीं पढते तो बाकी औरों को समझायेंगे क्या?

(याद की यात्रा) ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह तो बच्चे समझते हैं बरोबर हम आत्मा हैं, हमको परमपिता परमात्मा पढा रहे हैं। और क्या कहते हैं? मुझे याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनो। इसमें बाप भी आ गया, पढाई और पढाने वाला भी आ गया। सद्गति दाता भी आ गया। थोड़े अक्षर में सारा ज्ञान आ जाता है। यहाँ तुम आते ही हो इसको रिवाइज करने लिए। बाप भी यही समझाते हैं क्योंकि तुम खुद कहते हो हम भूल जाते हैं इसलिए यहाँ आते हैं रिवाइज करने। भल कोई यहाँ रहते हैं तो भी रिवाइज नहीं होता है। तकदीर में नहीं है। तदबीर तो बाप कराते ही हैं। तदबीर कराने वाला एक बाप ही है। इसमें कोई की पास खातिरी भी नहीं हो सकती है। न स्पेशल पढाई है। उस पढाई में स्पेशल पढने लिए टीचर को बुलाते हैं। यह तो तकदीर बनाने लिए सबको पढाते हैं। एक-एक को अलग कहाँ तक पढायेंगे। कितने ढेर बच्चे हैं। उस पढाई में कोई बड़े आदमी के बच्चे होते हैं तो उन्हों को स्पेशल पढाते हैं। टीचर जानते हैं कि यह डल है इसलिए उनको स्कालरशिप लायक बनाते हैं। यह बाप ऐसे नहीं करते हैं। यह तो एकरस सबको पढाते हैं। वह हुआ टीचर का एक्स्ट्रा पुरुषार्थ कराना। यह तो एक्स्ट्रा पुरुषार्थ किसको अलग से कराते नहीं। एक्स्ट्रा पुरुषार्थ माना ही मास्टर कुछ कृपा करते हैं। ऐसे तो भल पैसे लेते हैं, खास टाइम दे पढाते हैं जिससे वह जास्ती पढकर होशियार होते हैं। यहाँ तो जास्ती कुछ पढने की बात है ही नहीं। इनकी तो बात ही नई है। एक ही महामत्र देते हैं– ठमनमनाभव । याद से क्या होता है, यह तो समझते हो बाप ही पतित-पावन है। जानते हो उनको याद करने से ही पावन बनेंगे।

अब तुम बच्चों को ज्ञान है, जितना याद करेंगे उतना पावन बनेंगे। कम याद करेंगे तो कम पावन बनेंगे। यह तुम बच्चों के पुरुषार्थ पर है। बेहद के बाप को याद करने से हमको यह (लक्ष्मी-नारायण) बनना है। उन्हों की महिमा तो हर एक जानते हैं। कहते भी हैं आप पुण्य आत्मा हो, हम पाप आत्मा हैं। ढेर मन्दिर बने हुए हैं। वहाँ सब क्या करने जाते हैं? दर्शन से फ़ायदा तो कुछ भी नहीं। एक-दो को देख चले जाते हैं। बस दर्शन करने जाते हैं। फलाना यात्रा पर जाता है, हम भी जावें। इससे क्या होगा? कुछ भी नहीं। तुम बच्चों ने भी यात्राएं की हैं। जैसे और त्योहार मनाते हैं, वैसे यात्रा भी एक त्योहार समझते हैं। अभी तुम याद की यात्रा भी एक त्योहार समझते हो। तुम याद की यात्रा में रहते हो। अक्षर ही एक है मनमनाभव। यह तुम्हारी यात्रा अनादि है। वह भी कहते हैं– वह यात्रा हम अनादि करते आए हैं। परन्तु तुम अभी ज्ञान सहित कहते हो हम कल्प-कल्प यह यात्रा करते हैं। बाप ही आकर यह यात्रा सिखलाते हैं। वह चारों धाम जन्म बाय जन्म यात्रा करते हैं। यह तो बेहद का बाप कहते हैं– मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। ऐसे तो और कोई कभी नहीं कहते कि यात्रा से तुम पावन बनेंगे। मनुष्य यात्रा पर जाते हैं तो वह उस समय पावन रहते हैं, आजकल तो वहाँ भी गन्द लगा पड़ा है, पावन नहीं रहते। इस रूहानी यात्रा का तो किसको पता नहीं है। तुमको अभी बाप ने बताया है– यह याद की यात्रा है सच्ची। वह यात्रा का चक्र लगाने जाते हैं फिर भी वैसे का वैसा बन जाते हैं। चक्र लगाते रहते हैं। जैसे वास्कोडिगामा ने सृष्टि का चक्र लगाया। यह भी चक्र लगाते हैं ना। गीत भी है ना - चारों तरफ लगाये फेरे..... फिर भी हरदम दूर रहे। भक्तिमार्ग में तो कोई मिला नहीं सकते। भगवान कोई को मिला नहीं। भगवान से दूर ही रहे। फेरे लगाकर फिर भी घर में आकर 5 विकारों में फंसते हैं। वह सब यात्रायें हैं झूठी। अभी तुम बच्चे जानते हो यह है पुरुषोत्तम संगमयुग, जबकि बाप आये हैं। एक दिन सब जान जायेंगे बाप आया हुआ है। भगवान आखरीन मिलेगा, लेकिन कैसे? यह तो कोई भी जानते नहीं। यह तो मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि हम श्रीमत पर इस भारत को फिर से स्वर्ग बना रहे हैं। भारत का ही तुम नाम लेंगे। उस समय और कोई धर्म होता नहीं। सारी विश्व पवित्र बन जाती है। अभी तो ढेर धर्म हैं। बाप आकर तुमको सारे झाड़ का नॉलेज सुनाते हैं। तुमको स्मृति दिलाते हैं। तुम सो देवता थे, फिर सो क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र बने। अभी तुम सो ब्राह्मण बने हो। यह हम सो का अर्थ बाप कितना सहज समझाते हैं। ओम् अर्थात् मैं आत्मा फिर हम आत्मा ऐसे चक्र लगाती हैं। वह तो कह देते हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो हम आत्मा। एक भी नहीं जिसको हम सो का अर्थ यथार्थ मालूम हो। तो बाप कहते हैं यह जो मत्र है यह हरदम याद रखना चाहिए। चक्र बुद्धि में नहीं होगा तो चक्रवर्ती राजा कैसे बनेंगे? अभी हम आत्मा ब्राह्मण हैं, फिर हम सो देवता बनेंगे। यह तुम कोई से भी जाकर पूछो, कोई नहीं बतायेंगे। वह तो 84 का अर्थ भी नहीं समझते। भारत का उत्थान और पतन गाया हुआ है। यह ठीक है। सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी.... अभी तुम बच्चों को सब मालूम पड़ गया है। बीजरूप बाप को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। वह इस चक्र में नहीं आते हैं। ऐसे नहीं, हम जीव आत्मा सो परमात्मा बन जाते हैं। नहीं, बाप आपसमान नॉलेजफुल बनाते हैं। आप समान गॉड नहीं बनाते हैं। इन बातों को बहुत अच्छी रीति समझना है, तब बुद्धि में चक्र चल सकता है, जिसका नाम स्वदर्शन चक्र रखा है। तुम बुद्धि से समझ सकते हो– हम कैसे इस 84 के चक्र में आते हैं। इसमें सब आ जाता है। समय भी आता है, वर्ण भी आ जाते हैं, वंशावली भी आ जाती है।

अब तुम बच्चों की बुद्धि में यह सारा ज्ञान होना चाहिए। नॉलेज से ही ऊंच पद मिलता है। नॉलेज होगी तो औरों को भी देंगे। यहाँ तुमसे कोई पेपर आदि नहीं भराये जाते हैं। उन स्कूलों में जब इम्तहान होते हैं तो पेपर्स विलायत से आते हैं। जो विलायत में पढते होंगे उन्हों की तो वहाँ ही रिजल्ट निकालते होंगे। उनमें भी कोई बड़ा एज्युकेशन अथॉरिटी होगा जो जांच करते होंगे पेपर्स की। तुम्हारे पेपर्स की जांच कौन करेंगे? तुम खुद ही करेंगे। खुद को जो चाहो सो बनाओ। पुरुषार्थ से जो चाहे सो पद बाप से ले लो। प्रदर्शनी आदि में बच्चे पूछते हैं ना - क्या बनेंगे? देवता बनेंगे, बैरिस्टर बनेंगे.... क्या बनेंगे? जितना बाप को याद करेंगे, सर्विस करेंगे उतना फल मिलेगा। जो अच्छी रीति बाप को याद करते हैं वह समझते हैं हमको सर्विस भी करनी है। प्रजा बनानी है ना! यह राजधानी स्थापन हो रही है। तो उसमें सब चाहिए। वहाँ वजीर होते नहीं। वजीर की दरकार उनको रहती जिसको अक्ल कम होता है। तुमको वहाँ राय की दरकार नहीं रहती है। बाबा के पास राय लेने आते हैं– स्थूल बातों की राय लेते हैं, पैसे का क्या करें? धन्धा कैसे करें? बाबा कहते हैं यह दुनियावी बातें बाप के पास नहीं ले आओ। हाँ, कहाँ दिलशिकस्त बन न जाएं तो कुछ न कुछ आथत देकर बता देते हैं। यह कोई मेरा धन्धा नहीं है। मेरा तो ईश्वरीय धन्धा है तुमको रास्ता बताने का। तुम विश्व का मालिक कैसे बनो? तुमको मिली है श्रीमत। बाकी सब हैं आसुरी मत। सतयुग में कहेंगे श्रीमत। कलियुग में आसुरी मत। वह है ही सुखधाम। वहाँ ऐसे भी नहीं कहेंगे कि राजी-खुशी हो? तबियत ठीक है? यह अक्षर वहाँ होते नहीं। यह यहाँ पूछा जाता है। कोई तकलीफ तो नहीं है? राजी-खुशी हो? इसमें भी बहुत बातें आ जाती हैं। वहाँ दुःख है ही नहीं, जो पूछा जाए। यह है ही दुःख की दुनिया। वास्तव में तुमसे कोई पूछ नहीं सकता। भल माया गिराने वाली है तो भी बाप मिला है ना। तुम कहेंगे– क्या तुम खुश-खैराफत पूछते हो! हम ईश्वर के बच्चे हैं, हमसे क्या खुश-खैराफत पूछते हो। परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले बाप की, वह मिल गया, फिर किसकी परवाह! यह हमेशा याद करना चाहिए– हम किसके बच्चे हैं! यह भी बुद्धि में ज्ञान है– कि जब हम पावन बन जायेंगे तो फिर लड़ाई शुरू हो जायेगी। तो जब भी तुमसे कोई पूछे कि तुम खुश राज़ी हो? तो बोलो हम तो सदैव खुशराज़ी हैं। बीमार भी हो तो भी बाप की याद में हो। तुम स्वर्ग से भी जास्ती यहाँ खुश-राज़ी हो। जबकि स्वर्ग की बादशाही देने वाला बाप मिला है, जो हमको इतना लायक बनाते हैं तो हमको क्या परवाह रखी है! ईश्वर के बच्चों को क्या परवाह! वहाँ देवताओं को भी परवाह नहीं। देवताओं के ऊपर तो है ईश्वर। तो ईश्वर के बच्चों को क्या परवाह हो सकती है। बाबा हमको पढाते हैं। बाबा हमारा टीचर, सतगुरू है। बाबा हमारे ऊपर ताज रख रहे हैं, हम ताजधारी बन रहे हैं। तुम जानते हो हमको विश्व का ताज कैसे मिलता है। बाप नहीं ताज रखते। यह भी तुम जानते हो सतयुग में बाप अपना ताज अपने बच्चों पर रखते हैं, जिसको अंग्रेजी में कहते हैं क्राउन प्रिन्स। यहाँ जब तक बाप का ताज बच्चे को मिले तब तक बच्चे को उत्कण्ठा रहेगी– कहाँ बाप मरे तो ताज हमारे सिर पर आवे। आश होगी प्रिन्स से महाराजा बनूँ। वहाँ तो ऐसी बात नहीं होती। अपने समय पर कायदे अनुसार बाप बच्चों को ताज देकर फिर किनारा कर लेते हैं। वहाँ वानप्रस्थ की चर्चा होती नहीं। बच्चों को महल आदि बनाकर देते हैं, आशायें सब पूरी हो जाती हैं। तुम समझ सकते हो सतयुग में सुख ही सुख है। प्रैक्टिकल में सब सुख तब पायेंगे जब वहाँ जायेंगे। वह तो तुम ही जानो, स्वर्ग में क्या होगा? एक शरीर छोड़ फिर कहाँ जायेंगे? अभी तुम्हें प्रैक्टिकल में बाप पढा रहे हैं। तुम जानते हो हम सच-सच स्वर्ग में जायेंगे। वह तो कह देते हम स्वर्ग में जाते हैं, पता भी नहीं है स्वर्ग किसको कहा जाता है। जन्म-जन्मान्तर यह अज्ञान की बातें सुनते आये, अभी बाप तुमको सत्य बातें सुनाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा राजी-खुशी रहने के लिए बाप की याद में रहना है। पढाई से अपने ऊपर राजाई का ताज रखना है।
2) श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है। सदा श्रीमत का रिगार्ड रखना है।
वरदान:
दाता बन हर सेकण्ड, हर संकल्प में दान देने वाले उदारचित, महादानी भव!  
आप दाता के बच्चे लेने वाले नहीं लेकिन देने वाले हो। हर सेकण्ड हर संकल्प में देना है, जब ऐसे दाता बन जायेंगे तब कहेंगे उदारचित, महादानी। ऐसे महादानी बनने से महान् शक्ति की प्राप्ति स्वतः होती है। लेकिन देने के लिए स्वयं का भण्डारा भरपूर चाहिए। जो लेना था वह सब कुछ ले लिया, बाकी रह गया देना। तो देते जाओ देने से और भी भण्डारा भरता जायेगा।
स्लोगन:
हर सबजेक्ट में फुल मार्क्स जमा करनी है तो गम्भीरता का गुण धारण करो।