Sunday, January 10, 2016

मुरली 11 जनवरी 2016

11-01-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम बाप के पास आये हो रिफ्रेश होने, बाप और वर्से को याद करो तो सदा रिफ्रेश रहेंगे"  
प्रश्न:
समझदार बच्चों की मुख्य निशानी क्या होगी?
उत्तर:
जो समझदार हैं उन्हें अपार खुशी होगी। अगर खुशी नहीं तो बुद्धू हैं। समझदार अर्थात् पारसबुद्धि बनने वाले। वह दूसरों को भी पारसबुद्धि बनायेंगे। रूहानी सर्विस में बिजी रहेंगे। बाप का परिचय देने बिगर रह नहीं सकेंगे।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ समझाते हैं, यह दादा भी समझते हैं क्योंकि बाप बैठ दादा द्वारा समझाते हैं। तुम जैसे समझते हो वैसे दादा भी समझते हैं। दादा को भगवान नहीं कहा जाता। यह है भगवानुवाच। बाप मुख्य क्या समझाते हैं कि देही-अभिमानी बनो। यह क्यों कहते हैं? क्योंकि अपने को आत्मा समझने से हम पतित-पावन परमपिता परमात्मा से पावन बनने वाले हैं। यह बुद्धि में ज्ञान है। सबको समझाना है, पुकारते भी हैं कि हम पतित हैं। नई दुनिया पावन जरूर ही होगी। नई दुनिया बनाने वाला, स्थापन करने वाला बाप है। उनको ही पतित-पावन बाबा कह बुलाते हैं। पतित-पावन, साथ में उनको बाप कहते हैं। बाप को आत्मायें बुलाती हैं। शरीर नहीं बुलायेगा। हमारी आत्मा का बाप पारलौकिक है, वही पतित-पावन है। यह तो अच्छी रीति याद रहना चाहिए। यह नई दुनिया है या पुरानी दुनिया है, यह समझ तो सकते हैं ना। ऐसे भी बुद्धू हैं, जो समझते हैं हमको सुख अपार हैं। हम तो जैसे स्वर्ग में बैठे हैं। परन्तु यह भी समझना चाहिए कि कलियुग को कभी स्वर्ग कह नहीं सकते। नाम ही है कलियुग, पुरानी पतित दुनिया। अन्तर है ना। मनुष्यों की बुद्धि में यह भी नहीं बैठता है। बिल्कुल ही जड़जड़ीभूत अवस्था है। बच्चे नहीं पढ़ते हैं तो कहते हैं ना कि तुम तो पत्थरबुद्धि हो। बाबा भी लिखते हैं तुम्हारे गांव निवासी तो बिल्कुल पत्थरबुद्धि हैं। समझते नहीं हैं क्योंकि दूसरों को समझाते नहीं हैं। खुद पारसबुद्धि बनते हैं तो दूसरे को भी बनाना चाहिए। पुरूषार्थ करना चाहिए। इसमें लज्जा आदि की तो बात ही नहीं। परन्तु मनुष्यों की बुद्धि में आधाकल्प उल्टे अक्षर पड़े हैं तो वह भूलते नहीं हैं। कैसे भुलायें? भुलवाने की ताकत भी तो एक बाप के पास ही है। बाप बिगर यह ज्ञान तो कोई दे नहीं सकते। गोया सब अज्ञानी ठहरे। उनका ज्ञान फिर कहाँ से आये! जब तक ज्ञान सागर बाप आकर न सुनाये। तमोप्रधान माना ही अज्ञानी दुनिया। सतोप्रधान माना दैवी दुनिया। फ़र्क तो है ना। देवी-देवतायें ही पुनर्जन्म लेते हैं। समय भी फिरता रहता है। बुद्धि भी कमजोर होती जाती है। बुद्धि का योग लगाने से जो ताकत मिले वह फिर खलास हो जाती है।

अभी तुमको बाप समझाते हैं तो तुम कितने रिफ्रेश होते हो। तुम रिफ्रेश थे और विश्राम में थे। बाप भी लिखते हैं ना – बच्चों आकर रिफ्रेश भी हो जाओ और विश्राम भी पाओ। रिफ्रेश होने बाद तुम सतयुग में विश्रामपुरी में जाते हो। वहाँ तुमको बहुत विश्राम मिलता है। वहाँ सुख-शान्ति-सम्पत्ति आदि सब कुछ तुमको मिलता है। तो बाबा के पास आते हैं रिफ्रेश होने, विश्राम पाने। रिफ्रेश भी शिवबाबा करते हैं। विश्राम भी बाबा के पास लेते हो। विश्राम माना शान्त। थक कर विश्रामी होते हैं ना! कोई कहाँ, कोई कहाँ जाते हैं विश्राम पाने। उसमें तो रिफ्रेशमेन्ट की बात ही नहीं। यहाँ तुमको बाप रोज़ समझाते हैं तो तुम यहाँ आकर रिफ्रेश होते हो। याद करने से तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हो। सतोप्रधान बनने के लिए ही तुम यहाँ आते हो। उसके लिए क्या पुरूषार्थ है? मीठे-मीठे बच्चे बाप को याद करो। बाप ने सारी शिक्षा तो दी है। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, तुमको विश्राम कैसे मिलता है। और कोई भी यह बातें नहीं जानते तो उन्हों को भी समझाना चाहिए, ताकि वह भी तुम जैसा रिफ्रेश हो जाए। अपना फ़र्ज़ ही यह है, सबको पैगाम देना। अविनाशी रिफ्रेश होना है। अविनाशी विश्राम पाना है। सबको यह पैगाम दो। यही याद दिलाना है कि बाप को और वर्से को याद करो। है तो बहुत सहज बात। बेहद का बाप स्वर्ग रचते हैं। स्वर्ग का ही वर्सा देते हैं। अभी तुम हो संगमयुग पर। माया के श्राप और बाप के वर्से को तुम जानते हो। जब माया रावण का श्राप मिलता है तो पवित्रता भी खत्म, सुख-शान्ति भी खत्म, तो धन भी खत्म हो जाता है। कैसे धीरे-धीरे खत्म होता है-वह भी बाप ने समझाया है। कितने जन्म लगते हैं, दु:खधाम में कोई विश्राम थोड़ेही होता है। सुखधाम में विश्राम ही विश्राम है। मनुष्यों को भक्ति कितना थकाती है। जन्म-जन्मान्तर भक्ति थका देती है। कंगाल कर देती है। यह भी अब तुमको बाप समझाते हैं। नये-नये आते हैं तो कितना समझाया जाता है। हर एक बात पर मनुष्य बहुत सोच करते हैं। समझते हैं कहाँ जादू न हो। अरे तुम कहते हो जादूगर। तो मैं भी कहता हूँ - जादूगर हूँ। परन्तु जादू कोई वह नहीं है जो भेड़-बकरी आदि बना देंगे। जानवर तो नहीं हैं ना। यह बुद्धि से समझा जाता है। गायन भी है सुरमण्डल के साज से.... इस समय मनुष्य जैसे रिढ़ मिसल है। यह बातें यहाँ के लिए हैं। सतयुग में नहीं गाते, इस समय का ही गायन है। चण्डिका का कितना मेला लगता है। पूछो वह कौन थी? कहेंगे देवी। अब ऐसा नाम तो वहाँ होता नहीं। सतयुग में तो सदैव शुभ नाम होता है। श्री रामचन्द्र, श्रीकृष्ण.. श्री कहा जाता है श्रेष्ठ को। सतयुगी सम्प्रदाय को श्रेष्ठ कहा जाता है। कलियुगी विशश सम्प्रदाय को श्रेष्ठ कैसे कहेंगे। श्री माना श्रेष्ठ। अभी के मनुष्य तो श्रेष्ठ है नहीं। गायन भी है मनुष्य से देवता......फिर देवता से मनुष्य बनते हैं क्योंकि 5 विकारों में जाते हैं। रावण राज्य में सब मनुष्य ही मनुष्य हैं। वहाँ हैं देवतायें। उनको डीटी वर्ल्ड, इसको ह्युमन वर्ल्ड कहा जाता है। डीटी वर्ल्ड को दिन कहा जाता है। ह्युमन वर्ल्ड को रात कहा जाता है। दिन सोझरे को कहा जाता है। रात अज्ञान अन्धियारे को कहा जाता है। इस फ़र्क को तुम जानते हो। तुम समझते हो हम पहले कुछ भी नहीं जानते थे। अभी सब बातें बुद्धि में हैं। ऋषि-मुनियों से पूछते हैं रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो तो वह भी नेती-नेती कर गये। हम नहीं जानते। अभी तुम समझते हो हम भी पहले नास्तिक थे। बेहद के बाप को नहीं जानते थे। वह है असुल अविनाशी बाबा, आत्माओं का बाबा। तुम बच्चे जानते हो हम उस बेहद के बाप के बने हैं, जो कभी जलते नहीं हैं। यहाँ तो सब जलते हैं, रावण को भी जलाते हैं। शरीर है ना। फिर भी आत्मा को तो कभी कोई जला नहीं सकते। तो बच्चों को बाप यह गुप्त ज्ञान सुनाते हैं, जो बाप के पास ही है। यह आत्मा में गुप्त ज्ञान है। आत्मा भी गुप्त है। आत्मा इस मुख द्वारा बोलती है इसलिए बाप कहते हैं-बच्चे, देह-अभिमानी मत बनो। आत्म-अभिमानी बनो। नहीं तो जैसे उल्टे बन जाते हो। अपने को आत्मा भूल जाते हो। ड्रामा के राज़ को भी अच्छी रीतिसमझना है। ड्रामा में जो नूँध है वह हूबहू रिपीट होता है। यह किसको पता नहीं है। ड्रामा अनुसार सेकेण्ड बाई सेकेण्ड कैसे चलता रहता है, यह भी नॉलेज बुद्धि में है। आसमान का कोई भी पार नहीं पा सकते हैं। धरती का पा सकते हैं। आकाश सूक्ष्म है, धरती तो स्थूल है। कई चीजों का पार पा नहीं सकते। जबकि कहते भी हैं आकाश ही आकाश, पाताल ही पाताल है। शास्त्रों में सुना है ना, तो ऊपर में भी जाकर देखते हैं। वहाँ भी दुनिया बसाने की कोशिश करते हैं। दुनिया बसाई तो बहुत है ना। भारत में सिर्फ एक ही देवी-देवता धर्म था और खण्ड आदि नहीं था फिर कितना बसाया है। तुम विचार करो। भारत के भी कितने थोड़े टुकड़े में देवतायें होते हैं। जमुना का कण्ठा होता है। देहली परिस्तान थी, इसको कब्रिस्तान कहा जाता है, जहाँ अकाले मृत्यु होती रहती है। अमरलोक को परिस्तान कहा जाता है। वहाँ बहुत नैचुरल ब्युटी होती है। भारत को वास्तव में परिस्तान कहते थे। यह लक्ष्मी-नारायण परिस्तान के मालिक हैं ना। कितने शोभावान हैं। सतोप्रधान हैं ना। नेचुरल ब्युटी थी। आत्मा भी चमकती रहती है। बच्चों को दिखाया था कृष्ण का जन्म कैसे होता है। सारे कमरे में ही जैसे चमत्कार हो जाता है। तो बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं। अभी तुम परिस्तान में जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। नम्बरवार तो जरूर चाहिए। एक जैसे सब हो न सके। विचार किया जाता है, इतनी छोटी आत्मा कितना बड़ा पार्ट बजाती है। शरीर से आत्मा निकल जाती है तो शरीर का क्या हाल हो जाता है। सारी दुनिया के एक्टर्स वही पार्ट बजाते हैं जो अनादि बना हुआ है। यह सृष्टि भी अनादि है। उसमें हर एक का पार्ट भी अनादि है। उनको तुम वन्डरफुल तब कहते हो जबकि जानते हो यह सृष्टि रूपी झाड़ है। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। ड्रामा में फिर भी जिसके लिए जितना समय है उतना समझने में समय लेते हैं। बुद्धि में फ़र्क है ना। आत्मा मन-बुद्धि सहित है ना तो कितना फ़र्क रहता है। बच्चों को मालूम पड़ता है हमको स्कालरशिप लेने की है। तो दिल अन्दर खुशी होती है ना। यहाँ भी अन्दर आने से ही एम ऑब्जेक्ट सामने देखने में आती है तो जरूर खुशी होगी ना! अभी तुम जानते हो यह बनने के लिए यहाँ पढ़ने आये हैं। नहीं तो कभी कोई आ न सके। यह है एम ऑब्जेक्ट। ऐसा कोई स्कूल कहाँ भी नहीं होगा जहाँ दूसरे जन्म की एम ऑब्जेक्ट को देख सके। तुम देख रहे हो यह स्वर्ग के मालिक हैं, हम ही यह बनने वाले हैं। हम अभी संगमयुग पर हैं। न उस राजाई के हैं, न इस राजाई के हैं। हम बीच में हैं, जा रहे हैं। खिवैया (बाप) भी है निराकार। बोट (आत्मा) भी है निराकार। बोट को खींचकर परमधाम में ले जाते हैं। इनकारपोरियल बाप इनकारपोरियल बच्चों को ले जाते हैं। बाप ही बच्चों को साथ में ले जायेंगे। यह चक्र पूरा होता है फिर हूबहू रिपीट करना है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेंगे। छोटा बनकर फिर बड़ा बनेंगे। जैसे आम की गुठली को जमीन में डाल देते हैं तो उनसे फिर आम निकल आयेंगे। वह है हद का झाड़। यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है, इनको वैरायटी झाड़ कहा जाता है। सतयुग से लेकर कलियुग तक सब पार्ट बजाते रहते हैं। अविनाशी आत्मा 84 के चक्र का पार्ट बजाती है। लक्ष्मी-नारायण थे जो अब नहीं हैं। चक्र लगाए अब फिर यह बनते हैं। कहेंगे पहले यह लक्ष्मी-नारायण थे फिर उन्हों का यह है लास्ट जन्म ब्रह्मा-सरस्वती। अभी सबको वापिस जरूर जाना है। स्वर्ग में तो इतने आदमी थे नहीं। न इस्लामी, न बौद्धी.... कोई भी धर्म वाले एक्टर्स नहीं थे, सिवाए देवी-देवताओं के। यह समझ भी कोई में नहीं है। समझदार को टाइटल मिलना चाहिए ना। जितना जो पढ़ता है नम्बरवार पुरूषार्थ से पद पाता है। तो तुम बच्चों को यहाँ आने से ही यह एम ऑब्जेक्ट देख खुशी होनी चाहिए। खुशी का तो पारावार नहीं। पाठशाला वा स्कूल हो तो ऐसा। है कितनी गुप्त, परन्तु जबरदस्त पाठशाला है। जितनी बड़ी पढ़ाई, उतना बड़ा कॉलेज। वहाँ सब फैसिलिटीज़ मिलती हैं। आत्मा को पढ़ना है फिर चाहे सोने के तख्त पर, चाहे लकड़ी के तख्त पर चढ़े। बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए क्योंकि शिव भगवानुवाच है ना। पहले नम्बर में है यह विश्व का प्रिन्स। बच्चों को अब पता पड़ा है। कल्प-कल्प बाप ही आकर अपना परिचय देते हैं। मैं इनमें प्रवेश कर तुम बच्चों को पढ़ा रहा हूँ। देवताओं में यह ज्ञान थोड़ेही होगा। ज्ञान से देवता बन गये फिर पढ़ाई की दरकार नहीं, इसमें बड़ी विशालबुद्धि चाहिए समझने की। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस पतित दुनिया का बुद्धि से सन्यास कर पुरानी देह और देह के सम्बन्धियों को भूल अपनी बुद्धि बाप और स्वर्ग तरफ लगानी है।
2) अविनाशी विश्राम का अनुभव करने के लिए बाप और वर्से की स्मृति में रहना है। सबको बाप का पैगाम दे रिफ्रेश करना है। रूहानी सर्विस में लज्जा नहीं करनी है।
वरदान:
अन्तर स्वरूप में स्थित रह अपने वा बाप के गुप्त रूप को प्रत्यक्ष करने वाले सच्चे स्नेही भव!  
जो बच्चे सदा अन्तर की स्थिति में अथवा अन्तर स्वरूप में स्थित रह अन्तर्मुखी रहते हैं, वे कभी किसी बात में लिप्त नहीं हो सकते। पुरानी दुनिया, सम्बन्ध, सम्पत्ति, पदार्थ जो अल्पकाल और दिखावा मात्र हैं उनसे धोखा नहीं खा सकते। अन्तर स्वरूप की स्थिति में रहने से स्वयं का शक्ति स्वरूप जो गुप्त है वह प्रत्यक्ष हो जाता है और इसी स्वरूप से बाप की प्रत्यक्षता होती है। तो ऐसा श्रेष्ठ कर्तव्य करने वाले ही सच्चे स्नेही हैं।
स्लोगन:
निश्चय और जन्म सिद्ध अधिकार की शान में रहो तो परेशान नहीं होंगे।