Thursday, March 30, 2017

मुरली 30 मार्च 2017

30/03/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है इसलिए विकारों का सन्यास करो, इस अन्तिम जन्म में रावण की जंजीरों से अपने को छुड़ाओ”
प्रश्न:
बाप का सहारा किन बच्चों को मिलता है? बाप किन बच्चों से सदा राज़ी रहता है?
उत्तर:
बाप का सहारा उन्हें मिलता - जो सच्ची दिल वाले हैं। कहा जाता सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। जो बाप के हर डायरेक्शन को अमल में लाते हैं, बाबा उनसे राज़ी रहता है। बाप का डायरेक्शन है याद में रह पवित्र बन फिर सर्विस करो, किसको रास्ता बताओ। शूद्रों के संग से अपनी सम्भाल करो। कर्मेन्द्रियों से कभी बुरा काम नहीं करना। जो इन सब बातों की धारणा करते बाप उनसे राज़ी रहता।
गीत:-
मुझको सहारा देने वाले.....  
ओम् शान्ति।
बच्चे यहाँ ज्ञान सुन रहे हैं। किसका ज्ञान? क्या शास्त्रों का? नहीं। बच्चे जानते हैं कि शास्त्रों का ज्ञान तो सभी मनुष्य मात्र लेते हैं। हमको यहाँ परमपिता परमात्मा ज्ञान देते हैं। कोई भी शास्त्र आदि पढ़ने अथवा अध्ययन करने वाले सन्यासी ऐसे नहीं कहेंगे। वो कोई ज्ञान नहीं सुनाते हैं। कोई भी सतसंग में जाओ तो मनुष्य बैठा होगा। उनको शास्त्री जी, पण्डित जी वा महात्मा जी कहेंगे। नाम का तैलुक रखते ही हैं मनुष्य के साथ। यहाँ बच्चे जानते हैं हमको कोई मनुष्य ज्ञान नहीं देते, परन्तु मनुष्य द्वारा निराकार परमपिता परमात्मा ज्ञान देते हैं। यह बातें कोई भी सतसंग में नहीं सुनाई जाती हैं। भाषण करने वालों की बुद्धि में भी यह बातें नहीं हो सकती। हमको भी जो ज्ञान दे रहा है, वह कोई मनुष्य वा देवता नहीं है। भल इस समय देवी-देवता धर्म नहीं है फिर भी ब्रह्मा विष्णु शंकर सूक्ष्मवतनवासी जो हैं उन्हों का तो नाम गाया जाता है। लक्ष्मी-नारायण आदि यह सब हैं दैवीगुण वाले मनुष्य। इस समय सब हैं आसुरी गुण वाले मनुष्य। कोई भी मनुष्य नहीं समझते कि हम आत्मा हैं। फलाने द्वारा परमात्मा हमको ज्ञान दे रहे हैं। वह तो समझते हैं फलाना महात्मा, फलाना शास्त्री हमको कथा सुना रहे हैं। वेद शास्त्र आदि सुना रहे हैं, गीता सुना रहे हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसे शास्त्रों की बातें सुनाता नहीं हूँ। तुम तो अपने को आत्मा निश्चय करते हो और फिर कहते हो पतित-पावन आओ। सर्व का दु:ख हर्ता सुख कर्ता, वह है सर्व का शान्ति दाता, सर्व का मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता। वह तो कोई मनुष्य नहीं हो सकता। मनुष्य सवेरे-सवेरे उठकर कितनी भक्ति करते हैं। कोई भजन गाते हैं, कथा करते हैं - इसको कहा जाता है भक्ति मार्ग। भक्ति मार्ग वालों को यह मालूम नहीं कि भक्ति मार्ग क्या होता है। यहाँ सब जगह भक्ति ही भक्ति है। ज्ञान है दिन, भक्ति है रात। जब ज्ञान है तो भक्ति नहीं। जब भक्ति है तो ज्ञान नहीं। द्वापर कलियुग है भक्ति, सतयुग, त्रेता है ज्ञान का फल। वह ज्ञान का सागर ही फल देते हैं। भगवान क्या फल देगा! फल माना वर्सा। भगवान वर्सा देगा मुक्ति का। साथ में मुक्तिधाम में ले जायेगा। इस समय मनुष्य इतने हो गये हैं जो रहने की जगह नहीं है, अनाज नहीं है, इसलिए भगवान को आना पड़ता है। रावण सबको पतित बनाते हैं फिर पतित-पावन आकर पावन बनाते हैं। पावन बनाने वाला और पतित बनाने वाला दोनों ही अलग-अलग हैं। अब तुम जान गये हो कि पावन दुनिया को पतित बनाने वाला कौन है और पतित दुनिया को पावन बनाने वाला कौन है! कहते हैं पतित-पावन आओ - एक को ही बुलाते हैं। सर्व का पालन कर्ता एक है। सतयुग में कोई विकारी हो नहीं सकता। पतित अर्थात् जो विकार में जाते हैं। सन्यासी विकार में नहीं जाते इसलिए उनको पतित नहीं कहेंगे। कहा जाता है पवित्र आत्मा, 5 विकार का सन्यास किया हुआ है, नम्बरवन विकार है काम। क्रोध तो सन्यासियों में भी बहुत है। स्त्री को छोड़ते हैं, समझते हैं उनके संग में मनुष्य निर्विकारी रह नहीं सकते। शादी का मतलब ही यह है। सतयुग में यह कायदा नहीं। बाप समझाते हैं बच्चे वहाँ पतित कोई होता ही नहीं। देवताओं की महिमा है सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी। रावण राज्य शुरू होता ही है द्वापर युग से। बाप खुद कहते हैं काम को जीतो। तुम मुझे याद करो और पवित्र दुनिया को याद करो तो तुम पतित नहीं बनेंगे। मैं पावन दुनिया स्थापन करने आया हूँ और दूसरी बात एक बाप के बच्चे ब्राह्मण ब्राह्मणियां तुम आपस में भाई-बहन ठहरे। यह बात जब तक अच्छी तरह किसकी बुद्धि में नहीं बैठेगी तब तक विकारों से छूट नहीं सकते। जब तक ब्रह्मा की सन्तान न बनें तब तक पावन बनना बड़ा मुश्किल है। मदद नहीं मिलेगी। अच्छा ब्रह्मा की बात छोड़ो। तुम कहते हो हम भगवान के बच्चे हैं, साकार में कहते हो इस हिसाब से भाई-बहिन हो गये। फिर विकार में जा न सकें। यह तो सब कहेंगे हम ईश्वर की सन्तान हैं और बाप कहते हैं बच्चे मैं आ गया हूँ, अब जो मेरे आकर बनते हैं वह आपस में भाई-बहिन हो गये। ब्रह्मा द्वारा भाई-बहन की रचना होती है तो फिर विकार में जा न सकें।



बाप कहते हैं यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है। एक जन्म के लिए तो इस विकार का त्याग करो। सन्यासी लोग छोड़ते हैं जंगल में जाने के लिए। तुम छोड़ते हो पवित्र दुनिया में जाने के लिए। सन्यासियों को कोई टैम्पटेशन नहीं है। गृहस्थी लोग उनको बहुत मान देते हैं। परन्तु वह कोई मन्दिरों में पूजने लायक नहीं बनते हैं। मन्दिर में पूज्यनीय लायक हैं देवतायें क्योंकि उन्हों की आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होते हैं। यहाँ हमको पवित्र शरीर मिल न सके। यह तो तमोप्रधान पतित शरीर है। 5 तत्व भी पतित हैं। वहाँ आत्मा भी पवित्र रहती है तो 5 तत्व भी सतोप्रधान पवित्र रहते हैं। अभी आत्मा भी तमोप्रधान तो तत्व भी तमोप्रधान हैं इसलिए बाढ़, तूफान आदि कितने होते रहते हैं। किसको दु:ख देना - यह तमोगुण है। सतयुग में तत्व भी किसको दु:ख नहीं देते। इस समय मनुष्य की बुद्धि भी तमोप्रधान है। सतो रजो तमो में भी जरूर आना है। नहीं तो पुरानी दुनिया कैसे हो जो फिर नई बनाने वाला आये। अब बाप कहते हैं बच्चे पावन बनो। यह अन्तिम जन्म रावण की जंजीरों से अपने को छुड़ाओ। आसुरी मत पर आधाकल्प तुम पतित रहे हो, यह बहुत बुरी आदत है। सबसे बड़ा दुश्मन है काम। छोटेपन में भी विकार में चले जाते हैं क्योंकि संग ऐसा मिलता है। समय ही ऐसा है, पतित जरूर बनना है। सन्यास धर्म का भी पार्ट है। सृष्टि को जल मरने से कुछ बचाते हैं। अब ड्रामा को भी तुम बच्चे ही जानते हो। भल कहते हैं क्रिश्चियन धर्म को इतने वर्ष हुए परन्तु यह नहीं जानते कि क्रिश्चियन धर्म फिर खत्म कब होगा! कहते हैं कलियुग को अभी 40 हजार वर्ष चलना है तो क्रिश्चियन आदि सब धर्म 40 हजार वर्ष तक वृद्धि को पाते रहेंगे! अब 5 हजार वर्ष में ही जगह पूरी नहीं रही तो 40 हजार वर्ष में पता नहीं क्या हो जाए। शास्त्रों में तो बहुत गपोड़े लगा दिये हैं इसलिए कोई विरला ही इन बातों को समझ कदम-कदम श्रीमत पर चलते हैं। श्रीमत पर चलना कितना डिफीकल्ट है। लक्ष्मी-नारायण जिन्हों को सारी दुनिया पूजती है - वह अब तुम बन रहे हो। यह तुम ही जानते हो सो भी नम्बरवार। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो और घर को याद करो। घर तो जल्दी याद आता है ना। मनुष्य 8-10 वर्ष की मुसाफिरी कर घर लौटते हैं तो खुशी होती है कि अब हम अपने बर्थप्लेस में जा रहे हैं। अब वह मुसाफिरी होती है थोड़े समय की, इसलिए घर को भूलते नहीं हैं। यहाँ तो 5 हजार वर्ष हो गये हैं इसलिए घर को तो बिल्कुल ही भूल गये हैं।



अब बाप ने आकर बतलाया है कि बच्चे यह पुरानी दुनिया है - इनको तो आग लगनी है। कोई भी बचेगा नहीं, सबको मरना है इसलिए इस सड़ी हुई दुनिया और सड़े हुए शरीर से प्यार मत रखो। शरीर बदलते-बदलते पांच हजार वर्ष हुए हैं। 84 बार शरीर चेंज करते आये हैं। अब बाप कहते हैं तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए तब तो मैं आया हूँ। तुम्हारा पार्ट पूरा हुआ तो सबका पूरा हुआ। इस नॉलेज को धारण करना है। सारी नॉलेज बुद्धि में है। बाप द्वारा नॉलेजफुल बनने से फिर सारे विश्व के मालिक बन जाते हो और विश्व भी नई बन जाती है। भक्ति मार्ग में जो भी कर्मकाण्ड की वस्तुयें हैं सबको खत्म करना है। फिर कोई एक भी हे प्रभू कहने वाला नहीं रहेगा। हाय राम, हे प्रभू यह अक्षर दु:ख में ही निकलते हैं। सतयुग में नहीं निकलेंगे क्योंकि वहाँ दु:ख की बात नहीं। तो ऐसा बाप जिसको याद किया जाता है, उनकी मत पर क्यों नहीं चलना चाहिए। ईश्वरीय मत से सदा सुखी बन जायेंगे। यह समझते भी श्रीमत पर न चले तो उनको महामूर्ख कहा जाता है। ईश्वरीय मत और आसुरी मत दोनों में रात-दिन का फ़र्क हो जाता है। अब जज करना है कि हम किस तरफ जायें। माया की तरफ तो दु:ख ही दु:ख है। ईश्वर की तरफ 21 जन्म का सुख है। अब किसकी मत पर चलें!



बाप कहते हैं श्रीमत पर चलने चाहो तो चलो। पहली बात है कि काम पर जीत पहनो। उनसे भी पहली बात है कि मुझे याद करो। यह पुराना शरीर तो छोड़ना ही है। अब वापिस जाना है। इस समय हमको ख्याल है कि हम 84 जन्मों की पुरानी खाल छोड़ता हूँ। वहाँ सतयुग में समझते हैं - यह बूढ़ा शरीर छोड़ फिर बचपन में आयेंगे। इस पुरानी दुनिया का महाविनाश होना है। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। यह बाप बैठ सम्मुख समझाते हैं। यह सब बातें ध्यान में रहें तो अहो सौभाग्य, कितना सहज है। फिर भी पता नहीं स्वीट होम, स्वीट राजधानी को क्यों भूल जाते हैं। याद क्यों नहीं करते! संगदोष में आकर गन्दे बनते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे गन्दे विकल्प बहुत आयेंगे, परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई काम नहीं करना। ऐसे नहीं विकर्म करके फिर लिखो बाबा यह विकर्म हो गया, क्षमा करो। विकर्म कर दिया तो उसका फिर सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। एक तो न बतलाने से दण्ड पड़ जाये। इस समय पता पड़ता है कि अजामिल कौन बनता है। जो ईश्वर की गोद लेकर फिर विकार में जाते तो सिद्ध होता है कि यह बड़ा अजामिल, पाप आत्मा है जो विकार बिगर रह नहीं सकते। बाइसकोप (सिनेमा) सबको गन्दा बनाने वाला है। तुम्हें कोई भी विकार से दूर भागना चाहिए। ब्राह्मण हैं निर्विकारी तो संग भी ब्राह्मणों का चाहिए। शूद्रों के संग में दु:खी होते हैं। शरीर निर्वाह अर्थ तो सब कुछ करना ही है। परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नहीं करना चाहिए। हाँ, बच्चों को सुधारने के लिए समझाना है, कोई न कोई युक्ति से हल्की सजा देनी है। रचना रची है तो रेसपान्सिबिल्टी भी है। उन्हों को भी सच्ची कमाई करानी है। छोटे-छोटे बच्चों को भी थोड़ा बहुत सिखलाना अच्छा है। शिवबाबा को याद करने से मदद मिलेगी। सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होता है। सच्ची दिल वाले बच्चों को ही बाप का सहारा मिलता है। अब सारी दुनिया में कोई किसका सहारा नहीं। सहारा होता है सुख में ले जाने का। एक परमात्मा को ही याद करते हैं, वही आकर सबको शान्ति देते हैं। सतयुग में सब सुखी हैं। बाकी सब आत्मायें शान्ति देश में रहती हैं। भारत स्वर्ग था, सब विश्व के मालिक थे। अशान्ति मारामारी कुछ नहीं था। जरूर वह नई दुनिया बाबा ने ही रची होगी। बाबा से वर्सा मिला होगा। कैसे? वह भी कोई समझते नहीं। उसको रामराज्य कहा जाता था। अब नहीं है। था तो सही ना। वही भारत जो पूज्य था, वह पुजारी बना है फिर पूज्य जरूर बनेगा। अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। शिव भगवानुवाच, श्रीकृष्ण की आत्मा अन्तिम जन्म में सुन रही है, फिर कृष्ण बनने वाली है। सवेरे उठकर बाबा को याद करना है। वह टाइम बहुत अच्छा है। वायब्रेशन भी शुद्ध रहता है। जैसे आत्मा रात को थक जाती है तो कहती है मैं डिटेच हो जाती हूँ। तुम्हारा भी यहाँ होते हुए बुद्धियोग वहाँ लगा रहे। अमृतवेले उठकर याद करने से दिन में भी याद आयेगी। यह कमाई है। जितना याद करेंगे उतना विकर्माजीत बनेंगे, धारणा होगी। जो पवित्र बनते हैं, याद में रहते हैं वही सर्विस कर सकेंगे। डायरेक्शन पर चलते हैं तो बाबा राज़ी होते हैं। पहले सर्विस करनी है, सबको रास्ता बताना है। योग का रास्ता बताने के लिए भी ज्ञान देंगे ना! योग में रहने से विकर्म विनाश होंगे। साथ में चक्र को भी फिराना है। रूप बसन्त बनना है। फिर प्वाइंट्स भी आती रहेंगी। अच्छा !



मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस सड़ी हुई दुनिया और सड़े हुए शरीर से ममत्व निकाल एक बाप को और घर को याद करना है। शूद्रों के संग से अपनी सम्भाल करनी है।
2) विकर्माजीत बनने के लिए अमृतवेले उठ याद में बैठना है। इस शरीर से डिटैच होने का अभ्यास करना है।
वरदान:
हर सेकण्ड, हर खजाने को सफल कर सफलता की खुशी अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव
सफलता मूर्त बनने का विशेष साधन है-हर सेकण्ड को, हर श्वांस को, हर खजाने को सफल करना। यदि संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में सर्व प्रकार की सफलता का अनुभव करना चाहते हो तो सफल करते जाओ, व्यर्थ नहीं जाये। चाहे स्व के प्रति सफल करो, चाहे और आत्माओं के प्रति सफल करो तो आटोमेटिकली सफलता की खुशी अनुभव करते रहेंगे क्योंकि सफल करना अर्थात् वर्तमान में सफलता प्राप्त करना और भविष्य के लिए जमा करना।
स्लोगन:
जब संकल्प में भी कोई आकर्षण आकर्षित न करे तब कहेंगे सम्पूर्णता की समीपता।