Thursday, March 9, 2017

मुरली 10 मार्च 2017

10-03-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– कोई भी कर्म, विकर्म न बने इसकी पूरी सम्भाल करनी है, कदम-कदम पर बाप की श्रीमत लेकर कर्म में आना है”
प्रश्न:
विकर्मो से कौन बच सकते हैं? बाप की सहायता किन्हें मिलती है?
उत्तर:
जो बाप से सदा सच्चे रहते, प्रतिज्ञा कर विकारों का दान देकर वापिस लेने का संकल्प नहीं करते, वह विकर्मो से बच जाते हैं। बाप की सहायता उन्हें मिलती जो कर्म, विकर्म बनने के पहले राय लेते हैं। साकार को अपना सच्चा-सच्चा समाचार बताते हैं। बाबा कहते बच्चे, सर्जन के आगे कभी अपनी बीमारी छिपाना नहीं। पापों को छिपायेंगे तो वृद्धि होती रहेगी, पद भी भ्रष्ट हो जायेगा, सजायें भी खानी पड़ेंगी।
गीत:
बचपन के दिन भुला न देना...   
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना कि बाप बच्चों को सावधानी देते हैं कि हे बच्चे, तुम आकर ईश्वर के बने हो और जानते हो हम ईश्वर की सन्तान हैं। सारी दुनिया मानती है कि वह गॉड फादर है। फादर माना हम उनकी सन्तान ठहरे। परमपिता तो बच्चे ही कहेंगे। तुम लौकिक के बच्चे तो हो। अब पारलौकिक बाप के बने हो। किसलिए? बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेने के लिए। बाप है ही स्वर्ग का रचयिता, स्वर्ग में जरूर देवताओं की बादशाही है। यह जानकर तुम बच्चे बने हो। राजा को अगर बच्चा नहीं होता तो गोद में लेते हैं। गोद लेते हैं साहूकार की, कभी गरीब की गोद नहीं लेंगे। कुछ लाभ होगा तब ही गोद लेंगे। तुम भी अभी जानते हो हम ईश्वर के बने हैं, उससे स्वर्ग की बादशाही मिलेगी। अब ऐसे बाप को कभी भूलना नहीं चाहिए, उनकी मत पर चलना चाहिए। रावण की मत पर तो विकर्म करते रहेंगे। इन 5 विकारों के वश नहीं होना है। कहाँ भी देखो धोखा खाता हूँ तो झट बाबा से मत लेना। कर्म-विकर्म बनाने के पहले पूछना चाहिए तो बाबा हम यह कर सकते हैं! तो समझाया जाता है कि कभी देह-अभिमान में नहीं आना। अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा की मत पर चलते रहना, कदम-कदम। कभी कोई बात समझ में न आये तो पूछना कि बाबा मैं फलाने पर फिदा हुआ हूँ। मेरे को काम के भूत ने घेरा है। तूफान तो बहुत आयेंगे, परन्तु अपने को सम्भालना है। गटर में गिरा तो गोया बेहद के बाप को भूल काला मुँह कर दिया। बाबा तुमको गोरा बनाने आये हैं इसलिए 5 विकारों के फंदे में कभी नहीं फँसना। फँसेंगे तब जब देह-अभिमान में आयेंगे। देही-अभिमानी होगा तो बाबा का डर रहेगा। विकार में जाने से तो बड़ा विकर्म बन जायेगा क्योंकि तुमने विकारों का दान दिया है। अगर दान देकर वापिस लिया तो हाल वही होगा जैसे हरिश्चन्द्र का मिसाल है। यहाँ पैसे की तो कोई बात नहीं। यहाँ तो है 5 विकारों का दान। तुम्हारे पास जो कांटे हैं वह दान में दे दो फिर कभी काम में नहीं लाना। अगर वापिस लेना हो तो इतलाव करना। न बताने से पाप वृद्धि को पाता जायेगा। फिर-फिर विकार में जाते रहेंगे। बतलाने से सहायता मिलेगी। हम शिवबाबा के बच्चे हैं। बाप से प्रतिज्ञा की है, कभी हार नहीं खायेंगे। यह है 5 विकारों रूपी दुश्मन को जीतने की बॉ क्सिंग। उसमें कभी हरायेंगे नहीं। अगर गिरा तो शिवबाबा तो झट जान जायेगा। फिर हुक्म मिला हुआ है साकार को लिखना, नहीं लिखेंगे तो विकर्म बढ़ता जायेगा और सौ गुणा सजा खानी पड़ेगी। बाबा को बताने से आधा कट हो जायेगा। ऐसे बहुत बच्चे हैं जो लज्जा के मारे समाचार देते नहीं हैं। जैसे कोई गन्दी बीमारी होती है तो सर्जन को बताने में दिल खाती है। तो सर्जन क्या कहेंगे? फिर नतीजा क्या निकलता है? बीमारी बढ़ती जाती है। बाप समझाते हैं बच्चे कोई भी पाप हो तो छिपाना नहीं। नहीं तो बिल्कुल पद भ्रष्ट हो जायेगा और कल्प-कल्पान्तर ऐसा ही पद भ्रष्ट मिलेगा, फिर ज्ञान तो ले नहीं सकेंगे। पूछते हैं बाबा उनकी गति क्या होगी? वह बहुत सजा खायेंगे। कयामत के समय सजाओं का हिसाब-किताब चुक्तू होता है ना। जैसे काशी कलवट खाते हैं। सच-सच शिव पर बलि तुम अब चढ़ते हो। शिव का बनते हो वर्सा लेने के लिए। बाकी वह जो काशी कलवट खाते हैं, वह तो घात करना है। परन्तु नौधा भक्ति से बलि चढ़ते हैं तो जो पाप किये हुए हैं, उसकी सजा उस समय भोग कर पाप खत्म होते हैं। फिर पाप करने से तो छूट न सकें। योग अग्नि से ही पाप भस्म हो सकते हैं। माया के राज्य में कर्म-विकर्म ही बनते हैं। सतयुग में विकर्म नहीं बनता क्योंकि माया का राज्य ही नहीं। अब सारी दुनिया भ्रष्टाचारी है। पहला नम्बर भ्रष्टाचार है विकार में जाना। जो पैदा ही भ्रष्टाचार से होते हैं, वह पाप ही करते हैं। है ही रावण राज्य। रावण को जलाते हैं, परन्तु रावण क्या चीज है, बिल्कुल ही नहीं जानते। रावण कहा ही जाता है 5 विकारों को। स्वर्ग में यह विकार होते नहीं, इसलिए उनको वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है। वहाँ दूसरा कोई राज्य अथवा खण्ड होता ही नहीं। इस्लामी, बौद्धी आदि सब पीछे आये हैं। वह भी पहले सतोप्रधान होते हैं फिर रजो तमो में आते हैं। सतयुग त्रेता में सम्पूर्ण निर्विकारी थे। अब धीरे-धीरे सम्पूर्ण विकारी बनते आये हैं। पूरा विकारी बनने में भी समय लगता है। सतयुग में 16 कला फिर 14 कला, फिर कला उतरते जाते हैं क्योंकि है ही उतरती कला। अब तुम्हारी है चढ़ती कला। चढ़ती कला राम बनाते हैं, उतरती कला रावण बनाते हैं। जैसे चन्द्रमा की धीरे-धीरे कला कम होती जाती है। दुनिया भी ऐसे है। अभी तो नो कला। ऐसे समय पर बाप आकर फिर 16 कला बनाते हैं। यह खेल सारा भारत के ऊपर ही बना हुआ है। वर्ण भी भारत पर ही हैं। नहीं तो 84 जन्मों का हिसाब कहाँ? बाप समझाते हैं यह है ही आइरन एजड दुनिया। कलियुग का अन्त है फिर सतयुग का आदि होगा। जो देवी देवता धर्म वाले धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो गये हैं वह फिर आयेंगे। तुम आये हो ना। देखो झाड़ के अन्त में ब्रह्मा खड़ा है। वह है तमोप्रधान और नीचे तपस्या कर रहे हैं– सतोप्रधान बनने के लिए। तो जैसे ब्रह्मा तपस्या कर रहे हैं, वैसे ब्रह्माकुमार कुमारियां। अब जो यह ब्रह्मा सतोप्रधान बन रहे हैं, उनमें परमात्मा आकर अपना परिचय देते हैं। इनको बताते हैं तो बच्चों को भी बताते हैं। बाबा और तुम बच्चे जो कल्प वृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे हो– देवता बनने के लिए। यह मन्दिर हूबहू तुम्हारा जड़ यादगार है। अब ऐसा कोई बुद्धिवान बच्चा हो तो इस मन्दिर की पूरी हिस्ट्री जॉग्राफी बताये कि यह ऊंचे ते ऊंचा मन्दिर है। इसमें मम्मा भी है, बाबा भी है, बच्चे भी तपस्या कर रहे हैं। जिन्होंने भारत को स्वर्ग बनाया है उनकी हिस्ट्री-जॉग्राफी विलायत वाले सुनेंगे तो कहेंगे– यह तो हमारे बाप का मन्दिर है, जो भारत को हेविन बनाते हैं। जो इस समय प्रैक्टिकल में बैठा है। यह तो कोई जानते नहीं। यह सब चित्र अन्धश्रद्धा के बने हुए हैं, इनको भूत पूजा कहा जाता है। गुडियों की पूजा। गुरू नानक की आत्मा जिसने सिक्ख धर्म स्थापन किया वह नई आत्मा थी, निर्विकारी थी। वह कहाँ आई? जरूर किसी शरीर में प्रवेश किया होगा। तो पवित्र आत्मा कभी दु:ख नहीं भोग सकती। पहले तो उनको सुख भोगना है, पीछे दु:ख। ऐसा कोई विकर्म ही नहीं किया तो दु:ख क्यों भोगे! हम भी पहले सम्पूर्ण रहते हैं फिर धीरे-धीरे कलायें कम होती हैं। हर एक मनुष्य का ऐसे होता है। बुलाते हैं पतित पावन आओ तो जरूर आकर पावन दुनिया की स्थापना करेंगे और पतित दुनिया का विनाश करेंगे। ब्रह्मा द्वारा स्थापना और शंकर द्वारा विनाश, कितना अच्छी रीति समझाते हैं। यह उनकी बुद्धि में बैठेगा जो देवी-देवता धर्म का होगा, इसलिए बाबा कहते हैं भक्तों को यह ज्ञान दो। कोई को यह पता ही नहीं है कि हम पहले देवी-देवता धर्म के थे फिर असुर बने हैं। लक्ष्मी-नारायण ने पूरे 84 जन्म लिए हैं। अभी तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो, जो बाद में आते हैं वह ब्राह्मण नहीं बनेंगे। यह बातें उनकी बुद्धि में बैठेंगी जिनकी बुद्धि में कल्प पहले बैठी होंगी। नहीं तो बाहर गया और खलास। इसमें मेहनत है और जगह तो सिर्फ कथायें सुन फिर घर में आकर विकारों में गिरते हैं। गुरू को पूरा फालो करते नहीं फिर फालोअर्स कैसे कहलायेंगे। गुरू लोग भी उनको कुछ कहते नहीं। अगर कहें तो फिर एक भी फालोअर्स न रहे फिर खायें कहाँ से! गृहस्थियों का ही तो खाते हैं। फिर विकारियों के पास जन्म लेना पड़ता है। देवतायें तो सन्यास करते नहीं। यह है प्रवृत्ति मार्ग का सन्यास। वह है निवृत्ति मार्ग का सन्यास। बाप आकर स्त्री पुरूष दोनों को समझाते हैं। बच्चे सम्पूर्ण पवित्र बनेंगे तो सम्पूर्ण राज्य पद पायेंगे। कम पवित्र बनेंगे तो कम पद पायेंगे। फालो करना है मॉ बाप को। बाप कहते हैं– माँ बाप के मिसल मेहनत करो तो गद्दी नशीन होंगे। मुख्य बात है पवित्रता की। अब देह-अभिमान छोड़ दो। मैं आत्मा हूँ, बाबा लेने आया है, पवित्र बनने से ही पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। कुम्भ का मेला कहते हैं। वह त्रिवेणी आदि का है नदियों का मेला, उनको संगम कहते हैं। वास्तव में यह है अनेक नदियों और सागर का मेला। तुम सब ज्ञान नदियां हो– बाप ज्ञान सागर है। बाप कहते हैं मेरे से योग लगाओ तो तुम पतित से पावन बन जायेंगे। मरना तो है ही। बाप से वर्सा लेना है, तो अभी ही भक्ति का फल भगवान से ले सकते हो। नहीं तो समझेंगे तुमने भक्ति की ही नहीं है। भक्ति करने वाले ही आकर राज्य-भाग्य लेंगे। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। और सभी की बुद्धि में तो शास्त्र ही होंगे। यहाँ ज्ञान सागर बाप समझाते हैं तो तुम श्रेष्ठ बन रहे हो। राजधानी स्थापन करने में कितनी मेहनत होती है। रूद्र ज्ञान यज्ञ में बहुत विघ्न पड़ते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अभिमान में आकर कभी भी विकारों के फंदे में नहीं फंसना है। कर्म, विकर्म न बनें इसलिए कर्म के पहले बाप से राय लेनी है।
2) माँ बाप को फालो करना है। ऊंच पद के लिए सम्पूर्ण पावन जरूर बनना है।
वरदान:
सदा खुशी की खुराक खाने वाले और खुशी बांटने वाले, खुशनसीब बेफिक्र भव
ब्राह्मण जीवन की खुराक खुशी है। जो सदा खुशी की खुराक खाने वाले और खुशी बांटने वाले हैं वही खुशनसीब हैं। उनके दिल से यही निकलता कि मेरे जैसा खुशनसीब और कोई नहीं। भले सागर की लहरें भी डुबोने आ जाएं तो भी फिक्र नहीं क्योंकि जो योगयुक्त हैं वह सदा ही सेफ हैं इसलिए सारे कल्प में इस समय ही आप बेफिक्र जीवन का अनुभव करते हो। सतयुग में भी बेफिक्र होंगे लेकिन ज्ञान नहीं होगा।
स्लोगन:
सहज पुरुषार्थी बनना है तो सर्व की दुआओं से स्वयं को भरपूर करो।