Sunday, March 12, 2017

मुरली 13 मार्च 2017

13-03-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– बाप ही तुम्हारा बाप टीचर और गुरू है, उनका जीते जी बनकर माला में पिरो जाना है”
प्रश्न:
तुम बच्चे किस निश्चय के आधार से पक्के ब्राह्मण बनते हो?
उत्तर:
तुम्हें पहला निश्चय हुआ कि इन आंखों से देह सहित जो कुछ दिखाई देता है– यह सब पुराना है। यह दुनिया बहुत छी-छी है, यह हमारे रहने लायक नहीं है। हमको बाप से नई दुनिया का वर्सा मिलता है, इस निश्चय के आधार से तुम जीते जी इस पुरानी दुनिया और पुराने शरीर से मरकर बाप का बनते हो। तुम्हें निश्चय है कि बाप द्वारा ही विश्व की बादशाही मिलती है।
गीत:
मरना तेरी गली में....   
ओम् शान्ति।
यह बच्चे गीत गाते हैं, जो पत्थरबुद्धि थे वह अब गीत गाते हैं पारसबुद्धि बनने के लिए। एक गीत भी है कि पत्थरों ने गीत गाया। वह पत्थर तो गीत नहीं गाते, परन्तु पत्थरबुद्धि मनुष्य गाते हैं। अब तुमको ईश्वरीय बुद्धि मिली है। ईश्वर ने अपने बच्चों को बुद्धि दी है। जब हम ईश्वर के बने हैं तो देह सहित हम सारी दुनिया को भूल जाते हैं क्योंकि यह रहने लायक दुनिया नहीं है। बहुत छी-छी है, इसमें बहुत खिट-खिट है, गोरखधन्धे हैं। कोई सुख नहीं है, इसलिए हम आपके गले में पिरो जाते हैं। अपने को आत्मा निश्चय कर हम आपके ही बन जाते हैं। तो पुरानी दुनिया, पुराने शरीर से दिल हट जाती है क्योंकि जानते हैं आपसे हमको नई दुनिया का वर्सा मिलता है। जब तक यह निश्चय नहीं तो वह ब्राह्मण बन न सकें। जीते जी बाप का बनना है। निराकार बाप को ही कहा जाता है बाबा। आप हमारे बाप भी हो, शिक्षक भी हो, सतगुरू भी हो। आप हमें प्रत्यक्षफल देने वाले भी हो। बाप के रूप में विश्व की बादशाही का वर्सा देने वाले हो। शिक्षक के रूप में सारे ब्रह्माण्ड और दुनिया के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज देते हो। सतगुरू के रूप में हमें मुक्तिधाम में साथ ले जायेंगे, फिर जीवनमुक्ति में भेज देंगे। कहते भी हैं हे बाबा हम आपके साथ ही चलेंगे। आप ही हमारे सच्चे सतगुरू हो। वो गुरू लोग तो साथ नहीं ले जाते। उनको तो मुक्ति जीवनमुक्ति के रास्ते का ही मालूम नहीं है। वो लोग तो आपको ही सर्वव्यापी कह देते हैं तो वर्सा कौन देंगे! किसको कहेंगे ओ गॉड। अभी तुम बच्चे जानते हो हम निराकार शिवबाबा के बने हैं। अब हमारा देह-भान टूट गया है। हम आपके डायरेक्शन पर चलते हैं। आप कहते हो देह के सम्बन्ध से बुद्धि हटाए, अपने को आत्मा निश्चय कर मेरे को याद करो। जब आत्मा शरीर से निकल जाती है तो आप मुये मर गई दुनिया। फिर कोई सम्बन्ध नहीं रहता। जब तक माँ के गर्भ में प्रवेश न करे तब तक तुम्हारे लिए कोई दुनिया ही नहीं है। दुनिया से तुम अलग हो। अब बाप कहते हैं बच्चे तुम जीते जी सब कुछ भूल मेरे बनो। मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। यह दुनिया खत्म होने वाली है। देवतायें कब पतित दुनिया में नहीं आते हैं। लक्ष्मी का आह्वान करते हैं तो सफाई आदि बहुत करते हैं, परन्तु यह सतयुग थोड़ेही है जो लक्ष्मी आवे। फिर नारायण कहाँ से आयेगा? भला महालक्ष्मी को 4 भुजायें क्यों देते हैं? कोई यह थोड़ेही समझते हैं कि यह दोनों ही हैं। ऐसा तो कोई चित्र बन नहीं सकता जिसको 4 भुजा हों। फिर दो मुख देना चाहिए। 4 टांगे तो कभी नहीं दिखायेंगे क्योंकि ऐसा तो मनुष्य कब हो न सके। यह सब समझाने के लिए है कि यह युगल लक्ष्मी-नारायण हैं। अलग होंगे तो 2 भुजा, 2 टांगे भी होंगी। बाप कहते हैं पहले-पहले यह निश्चय कराओ कि हमारा बाप टीचर गुरू तीनों ही है, हम सबको ले जायेगा। इनका कोई चेलाचाटी नहीं है, जो पिछाड़ी में ज्ञान देगा वा साथ ले जायेगा। बाप समझाते हैं अब वापिस जाना है क्योंकि नाटक पूरा होता है। बाप कहते हैं सबका सद्गति दाता पतित-पावन मैं हूँ। कालों का काल हूँ। यह जमघटों आदि का साक्षात्कार होता है क्योंकि पाप करते हैं तो सजा भी खाते हैं। बाकी जमघट आदि हैं नहीं। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। गर्भ में सजा मिलती है तो त्राहि-त्राहि करते हैं। अब पहले-पहले बच्चों को यही निश्चय करना है कि यही हमारा बाप टीचर सतगुरू है और एक को ही याद करना है। रचता भी एक होता है। 10 या 100 रचता नहीं हैं, न कि 10 दुनियायें हैं। बच्चे कहते हैं बाबा हम आपके गले का हार बनें। फिर हमारी रूद्र माला बनेगी। इस समय तुम ब्राह्मण पुरुषार्थी हो। तुम्हारी माला नहीं बन सकती क्योंकि तुम गिरते और चढ़ते हो। तुम जानते हो हम बाबा की माला बन फिर विष्णु की माला बन जायेंगे। पहले-पहले आपकी निराकारी माला परमधाम में आयेंगे फिर साकारी माला बन विष्णु लोक में आयेंगे। मनुष्य इन बातों को नहीं जानते। बच्चे कहते हैं हम आपके जीते जी बने हैं। नहीं तो साकार मनुष्य, साकारी मनुष्यों को एडाप्ट करते हैं। यहाँ तुम निराकारी आत्माओं को निराकार शिवबाबा एडाप्ट करते हैं। ब्रह्मा द्वारा कहते हैं हे आत्मायें तुम मेरी हो। ऐसे नहीं कहते हे साकार तुम मेरे हो। यहाँ निराकार, निराकार को कहते हैं मै आपकी हूँ। बाकी जो एडाप्ट करते वह शरीर को देखते हैं। अपने को भी आत्मा नहीं समझते। भाई-भाई को एडाप्ट करे तो क्या मिलेगा? यहाँ तो बाप एडाप्ट करते हैं, वर्सा देने के लिए। यह बड़ी गुह्य बातें हैं जो अच्छी रीति पढ़ेंगे उनकी बुद्धि में यह बातें बैठेंगी। निराकार बाप कहते हैं– देह का भान छोड़ मेरे बनो तो मैं तुमको निराकारी दुनिया में साथ ले चलूँगा। कृष्ण की आत्मा को परमात्मा नहीं कह सकते। वह भी 84 जन्म पूरे लेते हैं। लक्ष्मी-नारायण की राजधानी चली है। राजा, राजा है, रानी, रानी है। सबको अपना भिन्न-भिन्न पार्ट मिला हुआ है। 84 जन्म लेते हैं। एक की बात नहीं। प् नर्जन्म तो सबको लेना है। तुम बच्चों को समझाना है– 84 का चक्र कैसे फिरता है। 84 लाख जन्म कहने से सारी बात बिगड़ जाती है। लाखों वर्ष की बात भी याद न पड़े। अभी याद पड़ता है। आज भ्रष्टाचारी दुनिया है, कल श्रेष्ठाचारी बनेगी। हम लिख सकते हैं जैसे शास्त्रों में लिखा हम न्यु इण्डिया बनाकर छोड़ेंगे। अब न्यु इण्डिया तो होती है न्यु वर्ल्ड में। वहाँ देवता धर्म के सिवाए और कोई धर्म होता ही नहीं। अब तो भारत में अथाह धर्म हैं। अनेक प्रकारों की टाल-टालियाँ हैं, यह सब पिछाड़ी के हो गये। यह भी दिखाया है लक्ष्मी-नारायण सो अब ब्रह्मा सरस्वती बने हैं। फिर ब्रह्मा-सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे इसलिए दिखाते हैं विष्णु से ब्रह्मा निकला, ब्रह्मा से फिर विष्णु निकला। तुम अब विष्णु के कुल के बन रहे हो। खुशी का पारा उनको चढ़ेगा जो अच्छी रीति समझते हैं कि बरोबर अब नाटक पूरा होने वाला है। नाटक कहने से आदि मध्य अन्त सब याद आ जाता है। तुम्हारे पास जो समझू-सयाने होंगे उनको बेहद के ड्रामा की याद रहेगी। पहले सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राज्य हुआ फिर बाहर वाले आये। वैश्य वंशी, शूद्र वंशी बनें। हम आत्माओं ने ऐसे 84 जन्म लिए। यह भी बहुतों को याद नहीं पड़ता। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान होना चाहिए। यह है 5 हजार वर्ष का नाटक, यह बुद्धि में रहना चाहिए। आत्मा कितनी छोटी है! 84 जन्मों का पार्ट बजाती है। परमात्मा भी कितना छोटा है। वह भी पार्ट बजाने के लिए बांधा हुआ है। ड्रामा के वश है। संगम होगा तो उनके पार्ट बजाने का टाइम इमर्ज होगा। शास्त्रों में फिर लिख दिया है भगवान को संकल्प उठा कि नई सृष्टि रचूँ, परन्तु लिखा ऐसा है जो कोई समझ न सके। वह सब हैं पास्ट की बातें। तुम तो प्रैक्टिकल पार्ट बजा रहे हो। तुम जानते हो हमारा बाप-टीचर-गुरू तीनों ही है। लौकिक बाप को कभी ऐसे नहीं कहेंगे। गुरू को तो गुरू ही कहेंगे। यहाँ तो तीनों ही एक है। यह समझने की बातें हैं। नॉलेजफुल गॉड फादर को ही कहते हैं। उसमें सारे झाड़ की नॉलेज है क्योंकि चैतन्य है। आकरके सारी नॉलेज देते हैं। अब तुम बच्चे जानते हो कि हम इस देह को भी छोड़ बाबा के साथ चले जायेंगे। जब तुम कर्मातीत बन जायेंगे तब तुम्हारे में कोई भूत नहीं रहेगा। देह-अभिमान का पहला नम्बर भूत है। इन सब भूतों का बड़ा है रावण। भारत में ही रावण को जलाते हैं, परन्तु रावण क्या चीज है, कोई जानते ही नहीं। यह दशहरा, रक्षाबंधन, दीपमाला कब से मनाते आये हैं, कुछ भी पता नहीं। आखरीन यह रावण मरना है या ऐसे ही चलता रहेगा, कुछ पता नहीं पड़ता। रावण को जलाते हो फिर जी उठता है क्योंकि उनका राज्य है। सतयुग में रावण होता ही नहीं। वहाँ योगबल से बच्चे होते हैं, जबकि योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो तो क्या योग से बच्चे पैदा नहीं हो सकते। वहाँ रावण ही नहीं, तो भोग का भी नाम नहीं इसलिए कृष्ण को योगेश्वर कहते हैं। वह सम्पूर्ण निर्विकारी है। योगी कभी भोग (विकार) नहीं करते। अगर भोगी बनें तो फिर योग सिद्ध न हो। अब तुम योग सीख रहे हो। भोगी बनने से अथवा विकार में जाने से योग लग न सके। तुम बच्चों को बाप टीचर सतगुरू तीनों का इकठ्ठा वर्सा मिलता है। सतगुरू सबको साथ ले जाते हैं, ले तो सबको जायेंगे परन्तु तुम गले का हार बनते हो। साजन सब सजनियों को ले जायेंगे। पहले साजन चलेगा फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी फिर उनका सारा जो घराना है, इस्लामियों की बरात अथवा घराना, बौद्धियों का घराना। सभी आत्माओं को अपने-अपने सेक्शन में जाकर बैठ जाना है। आत्मा स्टार है। यह बड़ी समझने की बातें हैं। तकदीरवान ही धारण कर औरों को भी समझायेंगे। वह फिर महिमा भी लिखते हैं। फलाने ने हमको समझाया तो हमारे कपाट खुल गये, इसने हमको जीयदान दे दिया, फिर उनसे ही प्रीत हो जाती है। उनको ही याद करते रहते हैं, फिर उनसे ही छुड़ाया जाता है। दलाल को थोड़ेही याद किया जाता है। दलाल ने तो दलाली की, खलास। फिर साजन को सजनी याद करती है। ब्रह्मा भी हो गया दलाल। याद उस शिवबाबा को ही करना है। यह दलाल भी उनको ही याद करते हैं, इनकी महिमा नहीं। यह तो पतित है। पहले इनमें प्रवेश कर इनको पावन बनाया। एक है पतित, एक है पावन। सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा है पावन। उनकी भी शक्ल दिखानी चाहिए। समझानी तो बार-बार दी जाती है, परन्तु जबकि आकर बाप का बनें। बाबा हम आपके हो गये। आप हमारे बाप, टीचर, सतगुरू हो। बाप कहेंगे मैं भी तुमको स्वीकार करता हूँ, परन्तु याद रखना मेरी पत (इज्जत) नहीं गँवाना। मेरा बनकर फिर विकार में नहीं जाना। वास्तव में इस समय सब नर्कवासी हैं। याद करते हैं स्वर्ग को। कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ। अरे स्वर्ग है कहाँ? अगर स्वर्ग गया तो फिर यहाँ बुलाकर खाना आदि क्यों खिलाते हो? पतित दुनिया में पतित ब्राह्मणों को ही खिलाते हैं। पावन तो कोई है नहीं। परन्तु इस छोटी बात को भी कोई समझ नहीं सकते। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान देने वाले दलाल से प्रीत न रख एक शिवबाबा को ही याद करना है। वही जीयदान देने वाला है।
2) इस बेहद नाटक को बुद्धि में रख अपार खुशी में रहना है। देह का भान छोड़ अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
वरदान:
पवित्रता के फाउन्डेशन को मजबूत कर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण और सम्पन्न भव
ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन पवित्रता है। ये फाउण्डेशन मजबूत है तो सम्पूर्ण सुख-शान्ति की अनुभूति होती है। यदि अतीन्द्रिय सुख वा स्वीट साइलेन्स का अनुभव कम है तो जरूर पवित्रता का फाउण्डेशन कमजोर है। ये व्रत धारण करना कम बात नहीं है। बापदादा पवित्रता के व्रत को पालन करने वाली आत्माओं को दिल से दुआओं सहित मुबारक देते हैं। इस व्रत में सम्पूर्ण और सम्पन्न भव का वरदान प्राप्त करने के लिए व्यर्थ सोचने, देखने, बोलने और करने में फुलस्टॉप लगाकर परिवर्तन करो।
स्लोगन:
सदा एक के अन्त में खोये हुए रहना– यही एकान्तवासी बनना है।