Wednesday, November 2, 2016

मुरली 3 नवंबर 2016

03-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

मीठे बच्चे– तुम्हें साइलेन्स में रहकर एक बाप को याद करना है, इसमें घण्टे आदि बजाने की दरकार नहीं हैं।
प्रश्न:
किस बात में बाप समान बनो तो सब काम सिद्ध हो जायेंगे?
उत्तर:
जैसे बाप प्यार का सागर है वैसे बहुत-बहुत प्यारे बनो। क्रोध से काम बिगड़ता है, बनता नहीं इसलिए ऑख दिखाना, जोर से बोलना, गर्म होना, इसकी दरकार नहीं है। शान्त रहना बहुत-बहुत अच्छा है। प्यार से बहुत काम सिद्ध हो सकते हैं।
गीत:-
तुम्हीं हो माता पिता.....   
ओम् शान्ति।
यह महिमा है एक की। परन्तु भक्तिमार्ग में सिर्फ एक की महिमा गाने से भक्ति का शो नहीं होता इसलिए भक्ति में बहुतों की महिमा गाते हैं। वहाँ आवाज भी बहुत होता है। घण्टा-घडि़याल, गीत-भजन, रोना-पीटना कितना भक्ति मार्ग में चलता है। किसम-किसम के आवाज मन्त्र-जन्त्र, स्तुति आदि होती है और ज्ञान मार्ग में है साइलेन्स। सिर्फ इशारा दिया जाता है, आवाज कुछ नहीं। भक्ति में कितनी धूमधाम है। सबसे जास्ती घण्टे बजते हैं शिव के मन्दिर में, जहाँ तहाँ देखो घण्टे ही घण्टे हैं। किसको नींद से जगाने के लिए कोई घण्टे नहीं बजाये जाते हैं। शिवबाबा ने आकर मनुष्यों को कुम्भकरण की अज्ञान नींद से जगाया है, परन्तु घण्टे नहीं बजाते। बिल्कुल शान्ति से दो अक्षरों में ही समझाते हैं। बुद्धिवान जो होते हैं वह दो अक्षर में ही समझ जाते हैं। बाप कहते हैं बच्चे– मुझे याद करो। तुमने ही मुझे बुलाया है हे पतित-पावन आओ। अब मैं आया हूँ तुमको राह बताता हूँ। क्या अब तक तुमको पतित बनकर इस दुनिया में ही रहना है! तुम तो पावन दुनिया में रहने चाहते हो ना। पावन दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है। कहते ही हैं पतित-पावन, तो समझना चाहिए कि पतित-पावन क्या आकर करेगा? जरूर नर्क से स्वर्ग में ले जायेगा। बिना समझे ऐसे ही बुलाते रहते हैं, तालियाँ बजाते रहते हैं। परन्तु यह नहीं जानते कि बाप आयेगा तो क्या आकर करेगा? वास्तव में यह युनिवर्सिटी भी है मनुष्य से देवता बनने की। तब गाते हैं मनुष्य को देवता किये..... इसमें शास्त्र आदि कुछ भी पढ़ना नहीं है। भक्ति मार्ग में बहुत शास्त्र आदि पढ़ते हैं, ढेर लेक्चर आदि होते हैं। मास-मास मण्डप बनाकर बैठ आवाज करते हैं। यहाँ कितना शान्ति में बाप बैठ समझाते हैं। देखो, तुमको बाबा आकर पावन बनाए, पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं। पढ़ाई भी कितनी सहज है। तुम पहले-पहले पावन थे, गोल्डन एज में थे। फिर 84 जन्म लेते-लेते आइरन एज में तमोप्रधान बन गये हो। अब तुमको सतोप्रधान बनना है इसलिए मुझे याद करो। सो भी अजपा। जैसे कन्या की जब शादी होती है तो क्या जाप करती है? याद में रहती है। तुम भी सब पत्नियाँ हो, यह शिवबाबा पतियों का पति है। तुम्हारी सगाई हुई है परमात्मा के साथ। सगाई जब हो गई तो बस याद बुद्धि में बैठ गई। खातिरी हो गई कि हमने सगाई कर ली। फिर एक दो को याद करते रहते हैं। तुमको भी बाप कहते हैं निश्चय बुद्धि हो गये कि हम एक बाप के बच्चे आपस में भाई-भाई हैं। भाइयों को वर्सा मिलता है– एक बाप से, इसलिए बाप को पुकारते हैं। भल मनुष्य तन में आकर भाई-बहन बन जाते हैं। परन्तु पुकारती आत्मा है ना। भाई- भाई पुकारते हैं हे पतित-पावन बाबा आओ। बाबा कहते हैं– मुझे याद करो तो तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। पावन को सतोप्रधान, पतित को तमोप्रधान कहा जाता है। यह बातें बाबा संगम पर ही समझाते हैं। यह है गीता पाठशाला। इस पाठशाला में बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं, नर से नारायण बनाते हैं। वहाँ टीचर तो सामने बैठ पढ़ाते हैं, दिखाई पड़ता है। यह है गुप्त। तो इस टीचर को भी बुद्धियोग से समझना पड़ता है। वह निराकार पतित-पावन बाप है। वही स्मृति दिलाते हैं कि कल्प पहले भी मैंने तुमको राजयोग सिखाया था। तब कहा जाता है मनमनाभव, पवित्र बनो तो यह लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे। इसमें घण्टा-घडि़याल आदि बजाने की दरकार ही नहीं। बाप खुद आकर जगाते हैं। मनमनाभव का अर्थ है साइलेन्स। अपने को आत्मा निश्चय करो। बस! अब हमको अपने घर जाना है। बाप को ही सब कहते हैं कि हमको दु:ख से छुड़ाए मुक्त करो। सन्यासी लोग सिर्फ ब्रह्म को याद करते हैं। अब ब्रह्म तत्व तो है घर। वह घर को याद करेंगे, यहाँ बाप को याद करना है। सिर्फ घर को याद करेंगे तो जैसे सन्यासी हो जायेंगे। ब्रह्म तो भगवान है नहीं। बाप बैठ समझाते हैं– मुझे याद करो तो तुम निर्वाणधाम में चले जायेंगे। फिर वहाँ से आयेंगे स्वर्ग में। यहाँ से मैं तुम बच्चों को साथ ले जाऊंगा। तुमको मालूम है टिडिड्यों का झुण्ड कितना बड़ा होता है। सबकी युनिटी होती है। पहले आगे वाला बैठा तो सब बैठ जायेंगे। मधुमक्खियाँ भी ऐसी होती हैं। रानी ने घर छोड़ा तो सब भागेंगी उनके पिछाड़ी। वह जैसे उन्हों का साजन हुआ। उनमें फिर सजनी ही राज्य करती है हमजिन्स पर। शास्त्रों में भी है आत्मायें सब मच्छरों सदृश्य भागती हैं। अनगिनत आत्मायें हैं। वह मक्खियाँ हर सीजन में अपनी रानी के पीछे भागती हैं। तुमको तो एक बार भागना है। अब सब आत्माओं को जाना है मूलवतन। तुम्हारा आवाज कुछ भी नहीं इसलिए बाबा मिसाल देते हैं। सरसों के दाने मिसल पीसते हैं। बाबा भी बिन्दी, सरसों के दाने मिसल है। खस-खस का दाना भी छोटा होता है। परमात्मा भी बिन्दी है। उनको देखा भी नहीं जाता– दिव्य दृष्टि बिना। बिल्कुल छोटा स्टॉर मिसल है। गीता में दिखाया है अखण्ड ज्योति का साक्षात्कार हुआ, तो यहाँ भी जब अखण्ड ज्योति का साक्षात्कार हो तब समझेंगे साक्षात्कार हुआ। अगर बिन्दी का हुआ तो समझेंगे यह परमात्मा थोड़ेही है। गीता में तो लिखा हुआ है– अर्जुन को बहुत तेजोमय साक्षात्कार हुआ। भक्ति की बातें बुद्धि में बैठी हुई हैं। भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में रात दिन का फर्क है। तुम जानते हो हम 63 जन्म शरीर द्वारा कितना डाँस करते हैं। 63 जन्म कितना भक्ति मार्ग का हंगामा देखते हैं। उसमें भी पहले जब सतोप्रधान भक्ति थी तो एक शिवबाबा की भक्ति करते थे। फिर यह गंगा स्नान आदि बाद में शुरू होते हैं। पहले अव्यभिचारी भक्ति होती है फिर वृद्धि को पाते हैं। यहाँ तो एकदम साइलेन्स लगी पड़ी है। बगैर कौड़ी तुम विश्व के मालिक बनते हो। मम्मा बिना कौड़ी आई और विश्व महारानी बन गई। यह साधारण था। एकदम गरीब घर के बिना कौड़ी खर्च देखो क्या बनते हैं। मम्मा फिर सर्विस बहुत करती थी। जाकर औरों को समझाती थी कि बाबा कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। इसमें खर्चे की तो कोई बात ही नहीं। अगर कोई थोड़ा खर्च भी करते हैं तो अपने लिए। जैसे खेती में दो मुठ्ठी अन्न की डालने से कितना ढेर अन्न निकलता है। खेती बड़ी हो जाती है। यह भी 21 जन्मों के लिए तुम्हारी कितनी आमदनी होती है। मनुष्य से देवता बनना कितना सहज है। एक सेकेण्ड की बात है। बैठे भी कैसे साधारण हैं। अगर कोई बैठ नहीं सकता है तो बाबा कहते हैं सो करके भी (लेट करके) मुरली सुनो। यह है धारणा की बात। अन्दर में बाबा और चक्र को याद करते रहो। याद करते-करते ही शरीर छोड़ना है। बाकी मुख में गंगा जल डालने की कोई बात नहीं है। गुरू गोसाई तो बहुत डर देते हैं कि तुम यह नियम तोड़ेंगे, भक्ति नहीं करेंगे तो यह होगा। समझो कोई की टांग टूट पड़ती है वा नुकसान हुआ तो कहेंगे तुमने भक्ति छोड़ी है तब यह नतीजा निकला, तो डर जाते हैं। यहाँ तो कुछ भी करना नहीं है। बाबा की याद दिलानी है, चक्र का राज समझाना है। अभी कलियुग के बाद सतयुग आना है, विनाश होना है जरूर, इसलिए यह महाभारी लड़ाई खड़ी है। भगवान आकर राजयोग सिखाए नर से नारायण बनाते हैं। यह राजयोग है, प्रजा योग नहीं। शुभ बोलना चाहिए। बच्चों को बहुत मीठा बनना है। बाबा मीठा है ना। क्रोध आदि सब दान में ले लेते हैं। बाप कहते हैं– मैं प्यार का सागर हूँ, तुम भी बनो। बड़ा प्यार से समझाते हैं। नहीं तो बच्चे बहुत हंगामा करते हैं क्योंकि माया माथा खराब कर देती है, इसलिए ख्याल आता है कभी भी किसको कुछ कहें नहीं। प्यार से समझायें। ऑख दिखाना, गर्म होना, जोर से बोलना, इसकी दरकार नहीं है, इससे काम बिगड़ता है। शान्त रहना अच्छा है। विकारों का दान देकर फिर लेते हैं तो अपना पद गंवाते हैं। बाबा का बने गोया 5 विकारों का दान दे दिया। कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। फिर भी बाप पण्डा है ना, पण्डे ब्राह्मण होते हैं। शिवबाबा भी रूहानी पण्डा है। तुम भी पण्डे हो। बाबा ब्रह्मा के तन में आते हैं तो यह भी ब्राह्मण ठहरा। बाबा इसमें बैठा है, उनकी महिमा गाते हैं तुम मात-पिता..... और किसकी यह महिमा नहीं। उनका कर्तव्य भी ऐसा है। यह पाठशाला है, बाप पढ़ाते हैं। यह बच्चों को याद रहना चाहिए। एम आब्जेक्ट है ही विश्व की बादशाही पाना। तो ऐसे पढ़ाने वाले को पूरी तरह याद करना चाहिए। स्कूल से स्टूडेन्ट अच्छा पास होते हैं तो साल-साल टीचर को सौगात भेजते रहते हैं। यह त्योहार आदि सब इस समय के हैं, परन्तु इनके महत्व को कोई जानता नहीं। बाबा है नॉलेजफुल। वह आते ही हैं रचना के आदि-मध्य और अन्त की नॉलेज देने। ठिक्कर-भित्तर में कैसे आयेंगे? एक डॉक्टर ने सिद्ध किया था कि हर चीज में आत्मा है। परमात्मा नहीं कहा। फिर यह कह देते हैं– सर्वव्यापी। उन्होंने कहा सबमें आत्मा, तो सन्यासियों ने कहा सबमें परमात्मा। कितना रात-दिन का फर्क है। वह तो बेहद का बाप है। सबसे बुद्धियोग तुड़ाए अपने साथ जुड़ाते हैं। वह कहते आत्मा बुदबुदा सागर से निकला है, सागर में लीन हो जायेगा। ब्रह्म ज्ञानी समझते हैं– छोटी ज्योति बड़ी ज्योति में लीन हो जायेगी, फिर नई उत्पत्ति होती है। बाबा समझाते हैं यह भक्ति की भी ड्रामा में नूँध है। मैं भी ड्रामा की नूँध अनुसार तुम बच्चों को आकर समझाता हूँ। 84 जन्मों का जो चक्र लगाते हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है। जो कुछ होता है सब नूँध है। कोई गायन भी करते हैं, कोई विघ्न भी डालते हैं। तुम बच्चों को शिवबाबा से वर्सा लेना है। वह आते ही हैं सब आत्माओं को ले जाने के लिए। शरीर का नाम भी नहीं लेते। शरीर सहित थोड़ेही किसको भगाने आया हूँ। मुझे तो कहते हैं हे लिबरेटर आओ। हमको दु:ख से लिबरेट कर और जगह ले चलो। जहाँ चैन, सुख-शान्ति पायें। तो सबका शरीर यहाँ ही छुड़ाए आत्माओं को ले जाऊंगा। तो कालों का काल हुआ ना। मैं सबको इकठ्ठा ले जाऊंगा। कितनी वन्डरफुल बातें बाप बैठ समझाते हैं। कहाँ कोई बात समझ में नहीं आती है तो बोलो यह बात बाबा ने अजुन समझाई नहीं है। जब समझायेंगे तब आपको सुनायेंगे। ऐसे अपने को छुड़ा देना चाहिए। बच्चे समझते हैं बाबा ज्ञान का सागर है। नई-नई बातें सुनाते रहते हैं। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाने वाला रचयिता बाप है, जो आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। तुम लाइट हाउस भी हो तो स्वदर्शन चक्रधारी भी हो। परन्तु माया भुला देती है। घुटका खाते हैं। कुछ न कुछ लैस आ जाती है। कर्मो का हिसाब-किताब है ना। जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं बनी है तो कुछ न कुछ होता रहता है। हिसाब-किताब चुक्तू हुआ और शरीर छोड़ देंगे, लड़ाई शुरू हो जायेगी। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) विकारों का दान देकर वापिस नहीं लेना है। मुख से शुभ बोलना है, बहुत मीठा बनना है। बाप के समान प्यार का सागर बनकर रहना है।
2) साइलेन्स में रह बिना कौड़ी खर्च विश्व की बादशाही लेनी है। बाप की याद में रह थोड़ा बहुत खर्च कर 21 जन्मों की आमदनी करनी है।
वरदान:
कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति और पोजीशन के नशे द्वारा कल्प-कल्प के अधिकारी भव
मैं और मेरा बाबा-इस स्मृति में कम्बाइन्ड रहो तथा यह श्रेष्ठ पोजीशन सदा स्मृति में रहे कि हम आज ब्राह्मण हैं कल देवता बनेंगे। हम सो, सो हम का मन्त्र सदा याद रहे तो इस नशे और खुशी में पुरानी दुनिया सहज भूल जायेगी। सदा यही खुमारी रहेगी कि हम ही कल्प-कल्प की अधिकारी आत्मा हैं। हम ही थे, हम ही हैं और हम ही कल्प-कल्प होंगे।
स्लोगन:
स्वयं का स्वयं ही टीचर बनो तो सर्व कमजोरियां स्वत: समाप्त हो जायेंगी।