Saturday, November 12, 2016

मुरली 12 नवंबर 2016

12-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

मीठे बच्चे, स्वयं को राजयोगी समझ विकारी सम्बन्धों से ममत्व निकाल दो, सिर्फ तोड़ निभाने के लिए साथ रहो।
प्रश्न:
तुम बच्चों ने देह-भान को भुलाया है, इसका यादगार शास्त्रों में किस रूप से दिखाया है?
उत्तर:
दिखाते हैं पाण्डव पहाड़ों पर गल गये। परन्तु उनको क्या पड़ी थी जो पहाड़ों पर बर्फ में जाकर शरीर छोड़ेंगे। लाँ कहता है हिमालय के पहाड़ों पर कोई शरीर नहीं छोड़ते। बाकी तुम योगबल से शरीर छोड़ देते हो। देह-भान को भूल अशरीरी बनने की प्रैक्टिस करते हो।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं। समझाते तो हर रोज हैं फिर भी कई बातें भूल जाती हैं। बच्चों को बुद्धि में यह तो रखना है कि यह संगमयुग है। हम संगमयुग पर हैं। बाप आते भी हैं संगमयुग पर। कलियुग अन्त और सतयुग आदि का संगम गाया हुआ है। बुलाते भी इस समय हैं। पतित दुनिया कहा जाता है कलियुग के अन्त को इसलिए और कोई टाइम पर बुलाते नहीं। बाप आयेंगे भी नहीं। जब कलियुग का अन्त होता है तब ही मुझे बुलाते हैं– बाबा हम पतितों को पावन बनाने आओ। कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि में आओ। बुलाते हैं परन्तु उनको पता नहीं है कि कल्प की आयु कितनी है। समझते हैं भक्ति करते-करते, धक्का खाते-खाते आखरीन में मिल ही जायेंगे। कल्प का अन्त कब होगा, यह किसको पता नहीं है। याद करते ही तब हैं जब कलियुग का अन्त होता है। सतयुग त्रेता में तो है ही सुख, द्वापर में भी इतना दु:ख नहीं होता है। कलियुग में मनुष्य जब बहुत दु:खी होते हैं तब बाप को पुकारना शुरू करते हैं। तमोप्रधान माना दु:खी, तब ही पुकारेंगे ना। हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ। दु:ख के बन्धन तो बहुत हैं। दु:ख के टाइम ही भगवान को पुकारते हैं कि इस बन्धन से छुड़ाओ। जब कोई रास्ता नहीं मिलता है तो बहुत जोर से पुकारते हैं। परन्तु फिर भी पाते नहीं। जैसे मेज (भूलभुलैया) होता है ना। जहाँ से भी जाते हैं रास्ता नहीं मिलता। जब थक जाते हैं फिर चिल्लाते हैं। तो यहाँ भी मनुष्य जब बहुत दु:खी हो जाते हैं तब चिल्लाते हैं– हे दु:खहर्ता सुख कर्ता, हे अन्धों की लाठी। इस समय ही पुकारते हैं हे अन्धों की लाठी। अभी तुम संगम पर हो। एक तरफ हैं पाण्डव और दूसरे तरफ हैं कौरव। अंधा उनको कहा जाता है जो रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं। सज्जे उनको कहा जाता है जो बाप द्वारा रचता और रचना को जान गये हैं। तुम तो समझाते हो हमको राज्य-भाग्य मिला है तब तो चित्र दिखाते हैं। सतयुग है शिवबाबा का स्थापन किया हुआ, इसलिए उनका नाम पड़ा शिवालय। फिर विकारी बनते हैं तो वाम मार्ग की स्थापना होती है इसलिए इसको वेश्यालय कहा जाता है। सतयुग है शिवालय। कलियुग है वेश्यालय। तुम संगमयुगी ब्राह्मणों को यह मालूम है कि अभी हम न वेश्यालय में हैं और न शिवालय में हैं। हम शिवालय में जा रहे हैं। अभी वेश्यालय, विकारी सम्बन्धों से हमारा ममत्व निकल गया है। अभी है हमारा भविष्य के सम्बन्धों से ममत्व। हम अभी राजयोगी हैं, वह हैं योगी। उनसे हमारा क्या कनेक्शन है। फिर भी तोड़ निभाने के लिए रहना तो अपने घर में ही है। फिर भी ब्राह्मणों से बहुत कनेक्शन रहता है क्योंकि ब्राह्मणों जितनी ऊंच सेवा और कोई नहीं कर सकते हैं। रूहानी सेवा करने बाप ही निमित्त बनते हैं। वह बाप भी है, टीचर भी है तो गुरू भी है। सत्य बाबा, सत्य टीचर, सतगुरू भी है। सत्य को सुप्रीम ही कहते हैं। उन द्वारा हमको वर्सा मिल रहा है। यह याद रहने से कितनी हर वक्त खुशी रहनी चाहिए, फिर औरों को समझाने के लिए पुरूषार्थ किया जाता है। पहलेपहले तो है वह पारलौकिक बाप। वह सत्य शिक्षक भी है, सतगुरू भी है। सृष्टि चक्र के आदि मध्य अन्त का ज्ञान देते हैं, इसलिए उनको ज्ञान का सागर कहा जाता है। पहले-पहले तो उनकी महिमा करनी है। वह सत्य बाप, सत्य टीचर, सत्य सतगुरू है। सत्य धर्म की स्थापना करते हैं। मांगते हैं ना कि एक राज्य हो। वह तो सतयुग में होता है। यहाँ तो हो न सके। मनुष्य कहते हैं वन वर्ल्ड हो जाए, एकता हो जाए। वर्ल्ड तो एक ही होती है। सिर्फ वर्ल्ड में एक राज्य हो, यह हो सकता है। देवताओं का राज्य था, वहाँ और कोई हंगामें की बात नहीं थी। बेहद का बाप ही आकर राजधानी स्थापन करते हैं। यह भी अब तुम समझ गये हो। बाप ही राजयोग सिखलाते हैं न कि श्रीकृष्ण। उन्होंने कृष्ण के लिए समझ लिया है। राजयोग सिखलाया ही तब जब राजधानी स्थापन करनी थी। बाकी शास्त्रों में तो है महिमा। सिर्फ महिमा करने से कोई राजयोग सिखलाते हैं क्या? वो गीता आदि जो सुनाते हैं वह कोई राजयोग सिखलाते हैं क्या? गीता सुनाते हैं वह तो सिर्फ जो होकर गये हैं उनकी महिमा करते हैं। भगवान ने जिन्हों को सुनाया उन्होंने ही राज्य पद पाया। बाकी यह त्योहार आदि सब भक्ति मार्ग के हैं। मुख्य है ही संगमयुग की बात। शिवबाबा आते हैं, शिव जयन्ती के बाद कृष्ण जयन्ती। शिवबाबा के आने के बाद जरूर नई दुनिया स्थापन होगी। कृष्ण तो है सतयुग का मालिक। शिवबाबा ने आकर कृष्ण को ऐसा बनाया। एक कृष्ण को थोड़ेही ज्ञान दिया होगा। कृष्णपुरी स्थापन की होगी। आत्मा को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने के लिए योग सिखाया है। तुम ही फिर सतो रजो तमो में आते हो ना। ऐसे नहीं कि सतयुग में ही तुमको बैठ जाना है। 84 जन्मों का हिसाब भी है। सतयुग के बाद त्रेता.. जरूर आना ही है। दिन के बाद रात होनी ही है। सतयुग की स्थापना कौन करते हैं, कैसे करते हैं? क्योंकि सतयुग है ही नई दुनिया। बाप कहते हैं हम पुरानी दुनिया बदलते हैं। यह वही महाभारी, महाभारत की लड़ाई मूसलों की हैं। कहते हैं पाण्डव भी थे। पाण्डवों की जीत हुई। स्वराज्य मिला है जरूर। तो स्वराज्य में आयेंगे ना। शरीर भल कहाँ भी छोड़ें, राजाई में तो आना है। लॉ कहता है हिमालय पहाड़ों पर कोई शरीर छोड़ते नहीं हैं। योग तो यहाँ ही सीखते हैं। योगबल से ही शरीर छोड़ना है। उनको क्या पड़ी है जो पहाड़ों पर बर्फ में जाकर शरीर छोड़ेंगे। यह भी गपोड़े हैं। जैसे सर्प पुरानी खाल छोड़ नई लेते हैं। वैसे आत्मा भी एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। शान्तिधाम में जाकर फिर आयेंगे सतयुग में। बाबा ने समझाया है सतयुग में शरीर छोड़ेंगे तो आपेही अपने समय पर जब शरीर बूढ़ा होता है तब एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। वहाँ तो वापिस शान्तिधाम में नहीं जायेंगे। शान्तिधाम में अभी जाना है। अभी वह प्रैक्टिस की जाती है जो तुम्हारी वह प्रैक्टिस अविनाशी हो जाती है। यहाँ तो प्रैक्टिस इसलिए कराते हैं क्योंकि पुरानी दुनिया को ही छोड़ना है। वहाँ तो नई दुनिया है। स्वर्गवासी शरीर छोड़ेंगे तो स्वर्ग में ही आयेंगे। नर्कवासी शरीर छोड़ेंगे तो नर्क में ही रहेंगे। स्वर्ग में जा न सकें। सतयुग में तो तब जायेंगे जब बाप आकर राजयोग सिखलाये, तब दैवी राजधानी में अर्थात् सतयुग में जा सकें। राजा-महाराजा का लकब यहाँ भी मिलता है। पद दूसरा मिलता है, परन्तु नाम वह चलता रहता है, बदल नहीं सकता। कोई-कोई का टाइटल कायम कर देते हैं जो पैसे से टाइटल लेते हैं। आगे लाख दो लाख देते थे तो लकब (टाइटिल) मिलता था। तो यह रूहानी बाप रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं। उनको कहा जाता है सप्रीचुअल फादर, आत्माओं का बाप.. जिसको बुलाते हैं कि हे बाबा आओ, आकर हमको पतित से पावन बनाओ। यहाँ बड़ा दु:ख है। हमको रामराज्य में ले चलो। ड्रामा अनुसार 5 हजार वर्ष पहले भी ऐसे कहा था। परमपिता परमात्मा को आना ही है। यह चक्र फिरता रहता है। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। यह अक्षर जरूर डालने होते हैं। ड्रामा के प्लैन अनुसार आता हूँ। ड्रामा अक्षर भी लिखना पड़े। तो मनुष्यों को पता पड़े कि यह 5 हजार वर्ष का ड्रामा है। अभी सब मनुष्य-मात्र पतित हैं इसलिए खुद कहते हैं हम पापी हैं, नीच हैं। बरोबर वेश्यालय भी है, विषय सागर है ना। विष्णुपुरी क्षीर सागर थी, जहाँ लक्ष्मी-नारायण दोनों थे। यह क्षीरसागर भेंट में कहा जाता है। बाकी क्षीरसागर कोई होता नहीं है। सागर तो सतयुग में भी यही होता है। कलियुग में भी है। सतयुग में सारे सागर के तुम मालिक हो। सारी पृथ्वी, आकाश के तुम मालिक हो। अभी तो टुकड़ा-टुकड़ा हो गया है। अब यह है संगमयुग। संगमयुग जब याद आये तब समझें कि अब सतयुग में जाते हैं। संगम है तो बाबा भी जरूर होगा। वह इस दुनिया को बदलने वाला है। स्थापना तो ब्रह्मा द्वारा यहाँ होती है। अब तुम चित्र बनाते हो। बाबा तो है ही बिन्दी, लाइट माइट की। तुम्हारी आत्मा भी लाइट है। अब तुमको लाइट कैसे देवें, तो तुम्हारे सिर पर बिन्दी दे दी है। आत्मा को लाइट कैसे दें! लाइट देने से बड़ा बन जाता है। वह बड़ी लाइट को ही पूजते हैं इसलिए मनुष्य परमात्मा को ज्योति स्वरूप कह देते हैं। वास्तव में लाइट है पवित्रता की निशानी। मनुष्य समझते हैं– ज्योति स्वरूप है। बिन्दी को अगर लाइट भी छोटी दें तो पूजा कैसे होगी, इसलिए बड़ा कर देते हैं। बाप कहते हैं मैं परम आत्मा, सुप्रीम सोल हूँ जिसको तुम परमात्मा कहते हो। परन्तु छोटी बिन्दी की पूजा कैसे हो। लाइट कैसे दें। कोई लिंग की पूजा करते हैं, साहूकार हैं तो हीरा गोल बनाकर उनकी पूजा करते हैं। नाम तो शिवालिंग ही रखेंगे। है तो स्टॉर। और कोई चीज नहीं है। यह बड़ी गुह्य बातें समझने की हैं। आत्मा कोई बड़ी छोटी नहीं होती। नहीं तो फिट कैसे हो। अभी तुम जैसे अपनी आत्मा को जानते हो वैसे बाप को जानते हो। आत्मा बाप को बुलाती है, तुमने अपनी आत्मा को देखा है? तो परमात्मा को कैसे देखेंगे? हाँ दिव्य दृष्टि से देख सकते हैं। सो तुम जबकि जानते हो फिर देखने से फायदा ही क्या। यह तो पढ़ाई पढ़ने की है, जिससे मनुष्य देवता बनते हैं। यह है फ्यूचर नई दुनिया के लिए पढ़ाई। यह लक्ष्मी-नारायण कहाँ ऐसे कर्म सीखे? संगम पर। बाप कहते हैं मैं संगम पर ही आकर तुमको नई दुनिया के लिए पढ़ाई पढ़ाता हूँ। बाबा प्रदर्शनी में तार देते हैं, उसमें भी यह लिखना है यह संगमयुग है। बाप कहते हैं तुम हमसे बर्थ राइट ले सकते हो– भविष्य 21 जन्मों के लिए। संगमयुग अक्षर जरूर लिखना है। एक्यूरेट जो तार जाती है उसकी कापी वहाँ लगानी है। बड़े अक्षरों में लिख देना चाहिए। दिन प्रतिदिन क्लीयर होता जाता है। नीचे लिखते ही हैं बापदादा। शिवबाबा जो आत्माओं का बाप है वह प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सिखलाते हैं। बाप कहते हैं मुझे शरीर का आधार तो चाहिए ना। शिव तो है निराकार। उनको तो अपना कोई शरीर है नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तो सूक्ष्म आकारी हैं बाकी तो सबको शरीर है। बाप कहते हैं– मुझे शरीर है कहाँ। परन्तु ऐसे तो नहीं कि मैं नाम रूप से न्यारा हूँ। बहुत क्लीयर बच्चों को समझाते हैं। मैं हूँ निराकार। परन्तु जब मैं आता हूँ तो मुझे शरीर जरूर चाहिए। मैं गर्भ में नहीं आता हूँ। मैं खुद बतलाता हूँ कि मैं इस साधारण तन में आया हूँ। यह पहले पूज्य था, अब पुजारी बना है। माला में भी है पहले शिवबाबा फिर दो दाने हैं। प्रवृत्ति मार्ग है ना। अभी तुमको पता है प्रवृत्ति मार्ग की ही माला है, जो प्रवृत्ति मार्ग में पतित थे, अब शिवबाबा की मत से पावन बन सृष्टि को पावन बनाया है, इसलिए यादगार माला बनी हुई है। रूद्र माला और विष्णु की वैजयन्ती माला है। ब्राह्मणों की माला नहीं बनती है। कोशिश की थी बनाने की परन्तु बनी नहीं इसलिए माला बनाना, अव्यक्त नाम देना छोड़ दिया। नाम जो यहाँ के थे वह नाम यहाँ ही छोड़ फिर वही अपना पुराना नाम ले भाग जाते हैं। उनको उस नये नाम से कोई बुलायेंगे नहीं। तो बाप हमारा बाप टीचर गुरू है, ऐसे बाप को तो बहुत लव से याद करना है परन्तु माया ऐसी है जो भुला देती है इसलिए अवस्था डगमग होती है। मुरझाये-पने की फीलिंग आती है। शिवबाबा की याद से फिर खड़े हो जाते हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) विकारी सम्बन्धों से ममत्व निकाल देना है। भविष्य के नये सम्बन्धों से बुद्धियोग लगाना है।
2) औरों को समझाने के लिए हर वक्त खुशी में रहना है। सत बाप, सत शिक्षक और सतगुरू की श्रीमत पर चल अन्धों की लाठी बनना है।
वरदान:
सदा कम्बाइण्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा मुश्किल कार्य को सहज बनाने वाले डबल लाइट भव
जो बच्चे निरन्तर याद में रहते हैं वे सदा साथ का अनुभव करते हैं। उनके सामने कोई भी समस्या आयेगी तो अपने को कम्बाइंड अनुभव करेंगे, घबरायेंगे नहीं। ये कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति कोई भी मुश्किल कार्य को सहज बना देती है। कभी कोई बड़ी बात सामने आये तो अपना बोझ बाप के ऊपर रख स्वयं डबल लाइट हो जाओ। तो फरिश्ते समान दिन-रात खुशी में मन से डांस करते रहेंगे।
स्लोगन:
किसी भी कारण का निवारण कर सन्तुष्ट रहने और करने वाले ही सन्तुष्टमणि हैं।