Monday, November 21, 2016

मुरली 22 नवंबर 2016

22-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– विचार सागर मंथन कर सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ निकालो, जिससे सबको बाप का परिचय मिल जाए”
प्रश्न:
बाप हर एक बच्चे को ऊंच तकदीर बनाने की युक्ति कौन सी बताते हैं?
उत्तर:
अपनी ऊंच तकदीर बनानी है तो अन्दर से सब छी-छी बुरी आदतें निकाल दो। झूठ बोलना, गुस्सा करना यह बहुत खराब आदतें हैं। सर्विस का शौक रखो। जैसे बाप निरहंकारी बन सेवा करते हैं। ऐसे जितना हो सके औरों के कल्याण अर्थ रूहानी सेवा में बिजी रहो।
गीत:-
मरना तेरी गली में...   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को पहली-पहली यह प्वाइंट समझनी और समझानी है कि बाप कौन है! बच्चों को अतीन्द्रिय सुख तब फील होता है जब निश्चय करते हैं कि हम बेहद बाप की सन्तान हैं। बस इस एक ही बात से खुशी का पारा चढता है। यह है स्थाई खुशी की प्वाइंट। तुम जानते हो हम अपने को ब्रह्माकुमार कुमारियां कहलाते हैं। यह है नई रचना। तो पहले सबको निश्चय करना है कि यह हमारा बाप है। बाप के नीचे फिर है विष्णु (त्रिमूति के चित्र पर) बाप से विष्णुपुरी का वर्सा मिलता है तो कितनी खुशी होनी चाहिए। यह निश्चय कराके फिर लिखाना चाहिए। विष्णु का अर्थ वैष्णव भी निकालते हैं। भारतवासी अच्छी तरह जानते हैं कि यह देवी-देवतायें निर्विकारी थे। स्वर्ग में इन्हों का पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। गाते भी हैं आप है सम्पूर्ण निर्विकारी, हम विकारी। सतयुग में सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। कलियुग में सम्पूर्ण विकारी हैं। विकारी को पतित, भ्रष्टाचारी कहेंगे। क्रोधी को पतित भ्रष्टाचारी नहीं कहा जाता। क्रोध तो सन्यासियों में भी होता है। तो पहले-पहले परिचय देना है बाप का। ऊंचे ते ऊंचा बाप जब भारत में आता है तो यह महाभारी लड़ाई भी लगती है जरूर क्योंकि परमात्मा आकर पतित दुनिया से पावन दुनिया में ले जाते हैं। शरीरों का तो विनाश होना है। यह निश्चय होना चाहिए कि हमको बाप पढ़ाते हैं तो कितना रेग्युलर होना चाहिए। यहाँ हॉस्टेल नहीं है। हॉस्टेल बनायें तो फिर बहुत मकान चाहिए। 7 रोज, 4 रोज के लिए भी आतें हैं तो भी बहुत मकान चाहिए। बाप कहते हैं- गृहस्थ व्यवहार में रह सिर्फ बाबा को याद करो। बस बाबा ही पतित-पावन है। बाप कहते हैं मुझे याद करो– मैं गैरन्टी करता हूँ तो तुम्हारे सब पाप भस्म हो जायेंगे। पहले तो यह लिखवा लेना चाहिए कि बरोबर हम शिवबाबा की सन्तान हैं, फिर विश्व के मालिकपने के हकदार बनते हैं। राजा-रानी प्रजा सब विश्व के मालिक हैं। मेले प्रदर्शनी में जो भी समझाने वाले हैं, उनको बाबा डायरेक्शन देते हैं– मूल बात समझानी है कि ऊंचे ते ऊंचा भगवान एक ही है। वही ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। ज्ञान का सागर है तो जरूर डायरेक्शन भी वही देंगे। कृष्ण तो दे न सके। शिवबाबा बिगर और कोई भगवान है नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी देवतायें हैं। स्वर्ग में हैं दैवीगुण वाले मनुष्य, यहाँ कलियुग में हैं आसुरी गुण वाले मनुष्य। यह भी पीछे समझाना है। पहले-पहले तो बाप का परिचय देकर सही करानी चाहिए। भिन्न-भिन्न युक्तियाँ विचार सागर मंथन करने की निकालनी चाहिए और बाबा को बतानी चाहिए कि बाबा इस प्रकार का प्रश्न पूछते हैं, इस प्रकार हमने समझाया। फिर बाबा भी ऐसी प्वाइंट सुनायेंगे जो उनको असर पड़े। बाबा को सर्वव्यापी अथवा कच्छ मच्छ अवतार कहना यह भी ग्लानी है, इसलिए बाबा का परिचय देना है। बाबा ही विश्व का मालिक बनाते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक, सतोप्रधान थे। फिर पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बन गये हैं। फिर बाप कहते हैं- मुझे याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे। कोई भी धर्म वाले हों बाप का सन्देश सबके लिए है। उनको कहते हैं गॉड फादर लिबरेटर। लिबरेट करने जरूर पतित दुनिया में आयेंगे। कलियुग अन्त में सारी दुनिया ही तमोप्रधान है, जब सतोप्रधान बनें तब नई दुनिया में जा सकें। बाकी जो वहाँ नहीं आते वह शान्तिधाम में रहते हैं। यह बुद्धि में बिठाना है, जो समझें तो हमको उस बाप को याद करना है। कोई देहधारी को याद नहीं करना है। बाप है ही विदेही, विचित्र और सबके चित्र भिन्न-भिन्न हैं। कोई को समझाने का शौक रहना चाहिए। प्रदर्शनी में बहुत लोग आते हैं। सेन्टर पर इतने नहीं आते हैं। सर्विस में रहने से बच्चों को बहुत हुल्लास रहेगा। यहाँ बाप को घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। सर्विस में रहेंगे तो याद की यात्रा भूलेंगे नहीं। खुद याद करेंगे औरों को भी याद करायेंगे। तुम बच्चे पढ़ रहे हो। तुम्हारी बुद्धि में है हम राजाई जरूर लेंगे। यह याद रहने से भी खुशी रहती है। भूल जाने से घबराहट आती है। बाबा को लिखना चाहिए कि बाबा हम अतीन्द्रिय सुख में है। बाकी थोड़ा समय है हम चलें अपने सुखधाम। 63 जन्म हम बहुत बीमार रहे। कोई दवाई न्हीं हुई तो नासूर बन गया। कोई की सम्भाल मिल न सकी, बीमारी अन्दर घर कर गई। यह बीमारी ऐसी है जो सिवाए अविनाशी सर्जन के कभी छूट नहीं सकती। अभी सबके छूटने का टाइम है। पवित्र बन मुक्तिधाम में चले जायेंगे। कोई कहते हैं मुक्ति में रहना अच्छा है। पार्ट ही नहीं। जैसे नाटक में किसने थोड़ा पार्ट कर लिया तो उनको हीरो हीरोइन अथवा ऊंचा पार्टधारी नहीं कहेंगे। बाप समझाते हैं जितना हो सके बाप को याद करो तो पक्के हो जाओ। याद भूलनी नहीं चाहिए। मुख्य है एक बाप। बाकी यह छोटे-छोटे चित्र हैं– समझाने के लिए, इनसे सिद्ध करना है शिव-शंकर एक नहीं। बाकी सूक्ष्मवतन में कोई बात होती नहीं। अभी तुम समझते हो यह सब है भक्ति मार्ग, ज्ञान देने वाला है एक बाप। वह देते हैं संगम पर, यह पक्का करो। भारतवासियों को तो कल्प-कल्प स्वर्ग का वर्सा मिलता ही है। 5 हजार वर्ष की बात है। वह फिर लाखों वर्ष कह देते हैं। वह कहते सिर्फ कलियुग लाखों वर्ष का है और हम कहते यह सारा चक्र ही 5 हजार वर्ष का है। गपोड़ा कितना बड़ा लगाया है। बुलाते हैं हे पतित-पावन। कृष्ण को पतितपावन तो नहीं कहेंगे। कोई भी धर्म वाला कृष्ण को लिबरेटर नहीं कहेंगे। हे पतित-पावन करके पुकारते हैं तो बुद्धि ऊपर चली जाती है फिर भी समझते नहीं। माया का कितना अन्धियारा है, गफलत में पड़े हैं। कहते हैं शास्त्र अनादि हैं। परन्तु सतयुग त्रेता में यह होते नहीं। यह पढ़ाई ऐसी है जो बीमारी में भी बैठ क्लास में पढ़ सकते हैं। यहाँ बहाना चल न सके। गऊ बहुत अच्छी होती है, कोई तो लात भी मार देती है। यहाँ भी जिसमें क्रोध है तो अंहकार वश लात भी मार देते हैं। डिससर्विस कर देते हैं। कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिए। परन्तु कर्मबन्धन ऐसा है जो ऊंच पद पाने नहीं देते। बाप ऊंची तकदीर बनाने का रास्ता बताते हैं। परन्तु कोई नहीं बनायेंगे तो बाप क्या करे, बहुत भारी कमाई है। कमाई का फखुर रहना चाहिए। कमाई नहीं करेंगे तो परिणाम क्या होगा! कल्प-कल्प ऐसा हाल होगा। बाप तो सबको सावधानी देते हैं, इनसल्ट नहीं करते। बच्चों में कोई छी-छी आदत नहीं होनी चाहिए। झूठ बोलना बड़ा खराब है। यज्ञ की सर्विस खुशी से करनी चाहिए। बाबा के पास आते हैं तो बाप इशारा करते हैं सर्विस करो। जो तुमको खिलाते हैं उनकी सर्विस जरूर करनी चाहिए। सेवा करना बाप सिखलाते हैं। देखो, ऊंचे ते ऊंचा बाप भी कितनी सेवा करते हैं। जो काम अज्ञान में नहीं किया, वह भी करना पड़े। इतना निरहंकारी बनना है। कायदे के विरूद्ध कोई काम नहीं करना है। जितना हो सके औरों के कल्याण अर्थ सब कुछ हाथों से करना पड़े। लाचारी हालत में कुछ कराया वह और बात है। अपने को निरहंकारी, निर्मोही बनाना है। बाबा की याद बिगर किसका कल्याण हो न सके। जितना याद करेंगे उतना पावन बनेंगे। याद में ही विघ्न पड़ते हैं। ज्ञान में इतने विघ्न नहीं पड़ते, ज्ञान की तो अनेक प्वाइंट हैं। बाप को याद करने से खुशबूदार फूल बनेंगे। कम याद करेंगे तो रतन-ज्योत बनेंगे। अक के भी फूल होते हैं। तो अपने को खुशबूदार फूल बनाना चाहिए। कोई बदबू नहीं होनी चाहिए। आत्मा को खुशबूदार बनना है। इतनी छोटी बिन्दी में सारा ज्ञान भरा हुआ है, वन्डर है। सृष्टि एक ही है ऊपर वा नीचे सृष्टि नहीं है। त्रिमूति का अर्थ भी तुम जानते हो। उन्होंने सिर्फ नाम रख दिया है– त्रिमूति मार्ग। कोई ब्रह्मा को त्रिमूर्ति कह देते हैं। उनकी बायोग्राफी का कुछ पता नहीं। शास्त्रों में है श्रेष्ठाचारी मनुष्यों की जीवन कहानी। लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण आदि हैं तो सब मनुष्य। परन्तु औरों की जीवन कहानी को शास्त्र नहीं कहा जायेगा। देवताओं की जीवन कहानी को शास्त्र कहा जाता है। बाकी शिवबाबा की जीवन कहानी कहाँ है? वह तो निराकार है। खुद कहते हैं मैं तो पतित-पावन हूँ, मुझे सब फादर कह बुलाते हैं। मैं आकर स्वर्ग की स्थापना करता हूँ। भारत 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग था। अब फिर बनना है। कितना सहज है। परन्तु पत्थरबुद्धि ऐसे हैं जो ताला खुलता ही नहीं है। ज्ञान और योग का ताला बंद है। बाप कहते हैं– घर-घर में पैगाम दो कि ऊंचे ते ऊंचा है बाप। फर्स्ट फ्लोर मूलवतन, सेकेण्ड फ्लोर सूक्ष्मवतन। थर्ड फ्लोर है यह साकारी दुनिया। अगर इन फ्लोर्स की भी बच्चों को याद रहे तो पहले बाबा जरूर याद पड़े। सर्विस के लिए भागना चाहिए। बाबा कहाँ भी जाने की मना नहीं करते। भल शादी में जाओ, तीर्थो पर जाओ, सर्विस करने जाओ। भाषण करो– बोलो एक है रूहानी यात्रा, दूसरी है जिस्मानी यात्रा। प्वाइंट तो बहुत मिलती रहती हैं। वानप्रस्थियों के झुण्ड में जाकर सर्विस करो। उन्हों का भी सुनो। वो लोग क्या कहते हैं। हाथ में पर्चा हो। मुख्य 4-5 बातें लिखी हुई हों– ईश्वर सर्वव्यापी नहीं, गीता का भगवान कृष्ण नहीं, यह साफ लिख दो। जो कोई पढ़े तो समझे यह सच तो है, इसमें चतुराई बड़ी चाहिए। बाबा त्रिमूर्ति के लिए भी समझाते हैं। यह घड़ी-घड़ी पॉकेट से निकाल देखते रहो। कोई को भी समझाओ– यह बाबा, यह वर्सा। विष्णु का चित्र भी अच्छा है। ट्रेन में भी सर्विस कर सकते हो, बाप को याद करो तो विश्व के मालिक बन जायेंगे। सर्विस बहुत हो सकती है। परन्तु कोई को अक्ल आता नहीं है। बहुत पुरूषार्थ करना है। लड़ाई के मैदान में सुस्त थोड़ेही होना चाहिए। बहुत खबरदारी रखनी है। मन्दिरों में बहुत सर्विस हो सकती है। बस बाबा कहते हैं मन्मनाभव। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनो। मुख्य बात पक्की करा देनी चाहिए। बच्चों को सर्विस का बहुत ख्याल होना चाहिए। त्रिमूर्ति के चित्र में सारा ज्ञान भरा हुआ है। सीढ़ी भी अच्छी है। हर एक अपनी उन्नति चाहते हैं, धन कमाने की। छोटे बच्चों को भी युक्तियाँ सिखलाओ, सब आफरीन देंगे। कमाल है ब्रह्माकुमार-कुमारियों की, छोटे बच्चे भी इतना ज्ञान देते हैं जो कोई सन्यासी आदि दे न सके। मुफ्त में चीज मिलेगी तो समझेंगे यह हमारे कल्याण के लिए देते हैं। बोलो, यह फ्री है। आप भल पढ़ो, इनसे अपना कल्याण करो। शिवबाबा भोला भण्डारी है ना। ढेर बच्चे हैं। बाबा को पैसे की क्या दरकार है। ट्रेन में भी तुम बहुत सर्विस कर सकते हो। आदमी अच्छा देखा तो झट उनको समझाए चित्र दे देना चाहिए। कहो तुम अपना भी कल्याण करो और औरों का भी कल्याण करना। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कोई भी काम कायदे के विरूद्ध नहीं करना है। बहुत-बहुत निरहंकारी, निर्मोही रहना है। जितना हो सके हर कार्य अपने हाथों से करना है। यज्ञ की सर्विस बहुत खुशी से करनी है।
2) पढ़ाई में कभी बहाना नहीं देना है। बीमारी में भी पढ़ना जरूर है। हुल्लास में रहने के लिए सर्विस का शौक रखना है।
वरदान:
मनमत, परमत को समाप्त कर श्रीमत पर पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव
श्रीमत पर चलने वाले एक संकल्प भी मनमत वा परमत पर नहीं कर सकते। स्थिति की स्पीड यदि तेज नहीं होती है तो जरूर कुछ न कुछ श्रीमत में मनमत वा परमत मिक्स है। मनमत अर्थात् अल्पज्ञ आत्मा के संस्कार अनुसार जो संकल्प उत्पन्न होता है वह स्थिति को डगमग करता है इसलिए चेक करो और कराओ, एक कदम भी श्रीमत के बिना न हो तब पदमों की कमाई जमा कर पदमापदम भाग्यशाली बन सकेंगे।
स्लोगन:
मन में सर्व के कल्याण की भावना बनी रहे-यही विश्व कल्याणकारी आत्मा का कर्तव्य है।