Thursday, November 24, 2016

मुरली 24 नवंबर 2016

24-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– शिवबाबा का बनकर कोई भी भूल नहीं करना, भूल करने से बाप का नाम बदनाम कर देंगे”
प्रश्न:
सबसे बड़ी प्रवृत्ति किसकी है और कैसे?
उत्तर:
शिवबाबा की सबसे बड़ी प्रवृत्ति है। भक्ति में सब त्वमेव माताश्च पिता कहकर पुकारते हैं तो प्रवृत्ति वाला हुआ ना। परन्तु जब तक वह साकार में न आये तब तक उनकी कोई प्रवृत्ति नहीं क्योंकि ऊपर में तो आत्मायें बाप के साथ निराकारी रूप में रहती हैं। जब साकार में आकर इनमें प्रवेश करते हैं तो सबसे बड़ी प्रवृत्ति है।
ओम् शान्ति।
भारत खास और दुनिया आम यह नहीं जानते कि बेहद का बाप निवृत्ति वाला है या प्रवृत्ति वाला? जब बाप आते हैं, तो बच्चे-बच्चे कह बुलाते हैं क्योंकि उनको पुकारा भी जाता है– त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव.. तो गृहस्थी बन जाते। वहाँ तो सब जानते हैं– शिव निराकार है। भल शिव का आकार है परन्तु बाल बच्चे तो नहीं हैं। अगर हैं भी तो सब आत्मायें बच्चे हैं। सब एक जैसे बच्चे हैं, इसलिए समझते हैं सब परमात्मा हैं। आत्मा भी बिन्दी रूप है, परमात्मा का भी बिन्दी रूप है। गृहस्थी लोग ही गाते हैं त्वमेव माताश्च पिता.. सन्यासी निवृत्ति मार्ग वाले कह देते परमात्मा ब्रह्म है। वह त्वमेव माताश्च पिता नहीं कहेंगे। उनका मार्ग अलग है। यह भी भूल से लक्ष्मी-नारायण के आगे जाकर महिमा गाते हैं– त्वमेव माताश्च पिता.. या कहेंगे अचतम् केश्वम्.. भक्ति मार्ग में स्तुतियाँ तो अथाह गाते हैं। वास्तव में परमात्मा बाप है, उनसे वर्सा कैसे और क्या मिलना है। तुम बच्चे जानते हो– वह बाप भी है, दादा भी है, बड़ी माँ भी है, प्रजापिता भी है। इस द्वारा कहते हैं बच्चे, मैं तुम्हारा बाप भी हूँ फिर मुझे भी प्रवृत्ति मार्ग में आना पड़ता है। यह मेरी युगल भी है, बच्चा भी है। जब इसमें प्रवेश करता हूँ तब प्रवृत्ति वाला बन जाता हूँ। मुझे ही सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर, सुप्रीम गुरू भी कहते हैं। गुरू गाइड करते हैं मुक्ति के लिए। वह तो है सब झूठ। यह है सत्य। अंग्रेजी में परमात्मा को ट्रुथ कहते हैं। तो ट्रुथ क्या आकर सत्य बताते हैं, यह किसको पता नहीं। हम तुमको भी पता नहीं था। तो जैसे नई बात हो गई ना। वह ज्ञान का सागर, सचखण्ड स्थापन करने वाला है। जरूर कभी सच बताके गया है तब ही तो गायन है। सचखण्ड को हेविन कहते हैं। वहाँ डीटी सावरन्टी दिखाते हैं। अभी है पुरानी दुनिया, फिर नई दुनिया होने वाली है। पुरानी दुनिया को आग लगनी है। स्थापना के समय विनाश भी गाया जाता है। करन-करावनहार परमात्मा गाया हुआ है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं। कैसे कराते हैं? वह तो खुद ही आकर बतायेंगे। मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। कहते हैं परमात्मा करन-करावनहार है। और फिर ड्रामा का भी पता पड़ गया। कलियुग अन्त, सतयुग आदि.... इस संगम को ही ऊंच मानना चाहिए। कलियुग के बाद आता है सतयुग। फिर नीचे उतरना होता है। स्वर्ग, नर्क गाया हुआ है। मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। जरूर कोई समय स्वर्गवासी हुए हैं। यह खास भारतवासी ही कहते हैं क्योंकि जानते हैं भारत सबसे प्राचीन है। तो जरूर यही हेविन होगा। बातें कितनी सहज हैं परन्तु ड्रामानुसार समझते नहीं हैं तब तो बाप आते हैं समझाने। पुकारते भी हैं बाबा आओ। आपमें जो नॉलेज है वह आकर हमें दो। पतितों को पावन बनाने आओ। फिर कहते हैं हमारा दु:ख हरकर सुख दो, परन्तु यह पता नहीं कि क्या नॉलेज देंगे! क्या सुख देंगे! अब तुम बच्चे जानते हो वह बाप है तो जरूर बाप से रचना हुई होगी। फादर माना रचता। बच्चे ने फादर कहा तो क्रियेशन ठहरे। क्रियेशन भी जरूर कहाँ से पैदा हुई होगी। फिर बच्चों को प्रापर्टी भी दी होगी। यह तो कॉमन बात है, इसलिए ही मुझको त्वमेव माताश्च पिता कहते हैं। तो बाबा बड़ा गृहस्थी हुआ ना। बुलाते भी हैं हे मात पिता आओ, आकर पावन बनाओ। अब फादर तो है परन्तु मदर बिगर रचना कैसे हो सकती है। यह फिर यहाँ रचना बाबा कैसे रचते हैं। यह है बिल्कुल नई बात। यहाँ भी बहुतों की बुद्धि में ठहरता नहीं है और सब जगह सिर्फ परमात्मा को फादर कह बुलाते हैं। यहाँ दोनों हैं मदर फादर, तो प्रवृत्ति मार्ग हुआ ना। वहाँ सिर्फ फादर कहने से उन्हों को मुक्ति का वर्सा मिलता है। वह आते भी पीछे हैं। यह तो सब जानते हैं क्रिश्चियन धर्म के आगे बौद्धी धर्म था, उनके आगे इस्लामी धर्म था। इस सीढ़ी में और धर्म तो हैं नहीं इसलिए गोले के बाजू में रखना चाहिए। यह है पाठशाला। अब पाठशाला में सिर्फ एक किताब थोड़ेही होगा। पाठशाला में तो मैप्स भी चाहिए। वह जिस्मानी विद्या तो काम में नहीं आयेगी। मैप्स से मनुष्य झट समझ जायेंगे। यह तुम्हारे मुख्य मैप्स हैं। कितना विस्तार से समझाया जाता है फिर भी पत्थरबुद्धि समझते नहीं। बाबा ने समझाया है– प्रदर्शनी में त्रिमूर्ति पर ही पहले समझाना है। यह तुम्हारा बाबा है, वह दादा है। ज्ञान कैसे देवे? वर्सा कैसे देवे? भारतवासियों को ही वर्सा मिलना है। परमपिता परमात्मा ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय 3 धर्म की स्थापना करते हैं। ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण ही रचते हैं, यह है यज्ञ, इसको कहा जाता है रूद्र ज्ञान यज्ञ। और भक्ति मार्ग के जो यज्ञ हैं– वह देरी से शुरू होते हैं क्योंकि पहले-पहले होती है शिव की पूजा फिर देवताओं की पूजा। उस समय कोई यज्ञ नहीं होता। बाद में यह यज्ञ करना शुरू करते हैं। पहले देवताओं की पूजा करते हैं, फूल चढ़ाते हैं। अब तुम पूजा लायक नहीं हो। लोग शिव के ऊपर जाकर अक-धतूरा क्यों चढ़ाते हैं? बाप समझाते हैं– तुम सब काँटे थे। उनसे फिर कोई सदा गुलाब, कोई गुलाब, कोई मोतिया बनते हैं। कोई फिर अक के फूल भी बन पड़ते हैं। पूरा नहीं पढ़ते तो अक बन जाते हैं। कोई काम के नहीं रहते। शिवबाबा पर सब काँटे चढ़ते हैं, फिर उन्हों को फूल बनाते हैं परन्तु फूलों की भी वैरायटी बन जाती है। बगीचे में वैरायटी फूल होते हैं ना। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। कोई तख्तनशीन बनेंगे, कोई क्या बनेंगे– यह सब बातें बाप ही समझाते हैं और कोई समझा न सके। भक्ति मार्ग कितना लम्बा चौड़ा है। परन्तु उसमें ज्ञान जरा भी नहीं। सतयुग में देवीदेवता थे। कलियुग में एक भी देवता नहीं। तो जरूर परमात्मा ने मनुष्यों को देवता बनाया होगा। तो बाप आकर ऐसा कर्म सिखलाते हैं जो मनुष्य सीखकर, दैवीगुण धारण कर देवी-देवता बन गये। और धर्म वाले क्या सिखलायेंगे? क्योंकि उन्हों को तो ऊपर से उनके पिछाड़ी में आना है। तो वह सिर्फ पवित्रता का ज्ञान देते हैं। क्राइस्ट जब आता है तो क्रिश्चियन तो कोई है नही। ऊपर से उनके पिछाड़ी आते हैं। बाबा ने समझाया है मुख्य धर्म हैं 4, जो धर्म स्थापन करते हैं, उनका जो शास्त्र है, उनको कहा जाता है धर्म शास्त्र। तो मुख्य हैं 4 धर्म। बाकी सब हैं छोटे-छोटे धर्म जो वृद्धि को पाते रहेंगे। इस्लामी धर्म का शास्त्र अपना, बौद्धियों का अपना। तो धर्म शास्त्र सिर्फ यही ठहरे। ब्राह्मण धर्म तो अभी का है। वो लोग गाते हैं ब्राह्मण देवता नम:... तो उन ब्राह्मणों को समझाना है कि परमात्मा जब ब्रह्मा द्वारा आकर ब्रह्मा मुख वंशावली रचते हैं, वही सच्चे ब्राह्मण हैं। तुम तो प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद हो ही नहीं। तुम सिर्फ अपने को ब्राह्मण कहलाते हो, परन्तु अर्थ नहीं जानते। ब्रह्मा भोजन जब खाते हैं तो संस्कृत में श्लोक पढ़ ब्रह्मा भोजन की महिमा गाते हैं। महिमा सारी फालतू करते हैं। उनसे पूछना चाहिए कि तुम ब्राहमण कैसे ठहरे? पहले तो ब्रह्मा चाहिए– जिस द्वारा परमात्मा सृष्टि रचे। तो सच्चे ब्राह्मण हो तुम। ब्राह्मणों को तो चोटी दिखाते हैं ना। विराट रूप में फिर ब्राह्मण दिखाते नहीं। तो ब्राह्मण आये कहाँ से। तुम अपने को ब्राह्मण कहलाते हो तो परमात्मा जब आकर ब्रह्मा द्वारा नई रचना रचे तब ब्राह्मण हो, फिर ब्राह्मण ही देवता बनते हैं। ब्राह्मण होते ही हैं संगम पर। कलियुग में सब शूद्र हैं। ब्राह्मणों की बहुत महिमा करते हैं। यह सब बातें बाबा समझाते हैं। अल्फ बे, बाकी है डीटेल। भक्ति का भी समझाना पड़े। बाबा कह देते तुम कोई भगत हो, बाकी बाबा कब गुस्सा आदि नहीं करते हैं। बाप समझानी तो देगा ना क्योंकि बच्चे अगर भूल करते हैं तो नाम बदनाम किसका होगा? शिवबाबा का इसलिए बाबा बच्चों के कल्याण अर्थ शिक्षा देते हैं। समझो इनसे कोई भूल हो जाती है तो भी उसको सुधारने के लिए ड्रामा में नूँध है। उससे भी फायदा निकलेगा क्योंकि यह बड़ा बच्चा है ना। सारा मदार इस पर है, इनसे कोई नुकसान नहीं होगा। यह कहते हैं ऐसे करो तो कर देना चाहिए। तो नुकसान से भी फायदा निकल आयेगा। नुकसान की कोई बात नहीं। हर बात में कल्याण ही कल्याण है। अकल्याण भी ड्रामा में था। भूलें तो सबसे होती रहेंगी। परन्तु अन्त में कल्याण तो कोई भी हालत में होना है क्योंकि बाप है कल्याणकारी। सबका कल्याण करना है। सबको सद्गति दे दते हैं। अब सबकी कयामत का समय है। पापों का बोझा सबके सिर पर है तो सबका हिसाब-किताब चुक्तू होगा। सजायें मिलने में देरी नहीं लगती है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है तो क्या सेकेण्ड में पापों की सजा नहीं भोग सकते हैं! जैसे काशी कलवट में होता है। शरीर छूट जाता है। परन्तु ऐसे नहीं शिवबाबा से जाकर मिले। नहीं, सिर्फ पिछला पापों का हिसाब चुक्तू हो फिर नयेसिर शुरू हो जाता है। बीच से कोई वापिस जा नहीं सकता। भल ज्ञान सेकेण्ड का है परन्तु पढ़ाई तो पढ़नी है। रोज शिवबाबा की आत्मा जो ज्ञान का सागर है, वही आकर पढ़ाते हैं। कृष्ण तो देहधारी है। पुनर्जन्म में आते हैं। बाबा तो अजन्मा है, जिनको पढ़ना नहीं है वह तो जरूर विघ्न डालेंगे। यज्ञ में विघ्न तो पड़ेंगे। अबलाओं पर अत्याचार होंगे। वह सब कुछ हो रहा है कल्प पहले मुआिफक। असुर कैसे हंगामा करते हैं, चित्र फाड़ते हैं, कोई समय आग लगाने में भी देरी नहीं करेंगे। हम क्या करेंगे। अन्दर में समझते भावी, बाहर में पुलिस आदि को रिपोर्ट करनी पड़ेगी। अन्दर में जानते हैं कल्प पहले जो हुआ था सो होगा, इसमें दु:ख की कोई बात नहीं। नुकसान हुआ, धोबी के घर से गई छू। फिर दूसरा बन जायेगा। बाबा ने कह दिया है– जहाँ प्रदर्शनी आदि करते हो तो 8 दिन के लिए इनश्योरेन्स करा दो। कोई अच्छा आदमी होगा तो चार्ज भी नहीं लेगा। न इनश्योरेन्स किया तो भी क्या होगा। फिर नये अच्छे चित्र बन जायेंगे। कदम-कदम में पदम हैं। तुम्हारा कदम-कदम, सेकेण्ड-सेकेण्ड बहुत वैल्युबुल है। तुम पदमपति बनते हो, 21 जन्मों के लिए बाबा से वर्सा लेते हो तो कितना अच्छी रीति समझाना चाहिए। वहाँ स्वर्ग में तुम्हारे पास अनगिनत धन होगा। गिनती की बात नहीं। तो कितना बाबा तुमको धनवान सुखी बनाते हैं। इनकम कितनी बड़ी है। प्रजा भी कितनी साहूकार बनती है। यह है सोर्स ऑफ इनकम 21 जन्म के लिए। यह है मनुष्य से देवता बनने की पाठशाला। पढ़ाता कौन है? बाप। फिर ऐसी पढ़ाई में गफलत नहीं करनी चाहिए। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा स्मृति रहे कि इस कल्याणकारी युग में हर बात में कल्याण है, हमारा अकल्याण हो नहीं सकता। हर बात में कल्याण समझ सदा निश्चिंत रहना है।
2) सदा गुलाब बनने के लिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है। पढ़ाई में गफलत नहीं करनी है। अक का फूल नहीं बनना है।
वरदान:
समस्याओं को चढ़ती कला का साधन अनुभव कर सदा सन्तुष्ट रहने वाले शक्तिशाली भव
जो शक्तिशाली आत्मायें हैं वह समस्याओं को ऐसे पार कर लेती हैं जैसे कोई सीधा रास्ता सहज ही पार कर लेते हैं। समस्यायें उनके लिए चढ़ती कला का साधन बन जाती हैं। हर समस्या जानी पहचानी अनुभव होती है। वे कभी भी आश्चर्यवत नहीं होते बल्कि सदा सन्तुष्ट रहते हैं। मुख से कभी कारण शब्द नहीं निकलता लेकिन उसी समय कारण को निवारण में बदल देते हैं।
स्लोगन:
स्व-स्थिति में स्थित रहकर सर्व परिस्थितियों को पार करना ही श्रेष्ठता है।