Tuesday, November 22, 2016

मुरली 23 नवंबर 2016

23-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– संगमयुग पर तुम्हें बाप द्वारा अच्छी बुद्धि और श्रेष्ठ मत मिलती है, जिससे तुम ब्राह्मण से देवता बन जाते हो”
प्रश्न:
तुम बच्चे किस मस्ती में रहो तो चलन बड़ी रॉयल हो जायेगी?
उत्तर:
तुम्हें ज्ञान की मस्ती चढ़ी रहनी चाहिए। ओहो! हम भगवान के सम्मुख बैठे हैं। हम यहाँ से जायेंगे, जाकर विश्व का मालिक, क्राउन प्रिन्स बनेंगे। जब ऐसी मस्ती रहे तो चलन स्वत: रॉयल हो जायेगी। मुख से बहुत मीठे बोल निकलेंगे। आपस में बहुत प्यार रहेगा।
गीत:-
महफिल में जल उठी शमा...   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों, रूहानी बच्चों ने आकर ब्राह्मण बन रूहानी बाबा से यह जरूर समझा है कि हम हैं संगमयुगी ब्राह्मण। बाप ने हमारे बुद्धि का ताला खोला है। अब हम समझते हैं कि यह है संगमयुग। मनुष्य जो भी पतित भ्रष्टाचारी हैं, वो फिर पावन बन भविष्य में पावन श्रेष्ठाचारी पुरूषोत्तम कहलायेंगे। यह लक्ष्मी-नारायण कभी तो पुरूषार्थ कर पुरूषोत्तम बने हैं ना। इन्हों की हिस्ट्री जरूर चाहिए। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य कब स्थापन हुआ? न कलियुग में, न सतयुग में। स्वर्ग स्थापन होता ही है संगम पर। इतने विस्तार में कोई जाते नहीं हैं। तुम जानते हो यह संगमयुग है। कलियुग के बाद सतयुग नई दुनिया होती है तो जरूर संगमयुग भी होगा। फिर नई दुनिया में नया राज्य होगा। बुद्धि चलनी चाहिए। तुम जानते हो बाप द्वारा हमको अच्छी बुद्धि और श्रीमत मिल रही है। कहते हैं हे ईश्वर इनको सदैव सुमत अथवा अच्छी मत दो। वह सारी दुनिया का बाप है। सबको अच्छी मत देने वाला है। संगमयुग पर आकर अपने बच्चों को अच्छी मत देते हैं। जिसको पाण्डव सम्प्रदाय और दैवी सम्प्रदाय शास्त्रों में लिखा हुआ है। ब्राह्मण सम्प्रदाय और दैवी सम्प्रदाय को भी कोई समझ नहीं सकते। ब्रह्मा द्वारा ही ब्राह्मण सम्प्रदाय बन सकते हैं। परमपिता परमात्मा ही ब्रह्मा द्वारा यह रचना रचते हैं। प्रजापिता है तब तो इतने सब ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ हैं। जब तक कोई आकर तुम ब्राह्मणों द्वारा ज्ञान न लेवे तब तक सद्गति कैसे हो सकती। तुम्हारे पास बहुत आयेंगे। सन्यासी भी आयेंगे और धर्म वाले भी आयेंगे, बाप से वर्सा लेने। स्वर्ग में उनका पार्ट नहीं है परन्तु सन्देश सबको देना है कि बाप आया है। इस समय हिन्दू कहलाने वाले कोई भी देवीदेवता धर्म को जानते ही नहीं। वह जो पहले सतोप्रधान थे, वह फिर तमो में आने कारण अपने को देवी-देवता कहला नहीं सकते। तुम बच्चे जानते हो, रावण का राज्य भी यहाँ होता है और परमपिता परमात्मा जिसको राम भी कहते हैं, उनका जन्म भी यहाँ ही होता है, गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम। परन्तु पतित किसने बनाया, रावण कौन है, क्यों पतित-पावन बाप को बुलाते हैं? यह किसको भी पता नहीं है। यह कोई समझते नहीं कि हमारे में जो 5 विकार हैं, वही रावण हैं। जिसमें 5 विकार नहीं वह राम सम्प्रदाय हैं। अभी रामराज्य नहीं है इसलिए सब चाहते हैं कि नई दुनिया, नया पवित्र राज्य चाहिए। राम कहा जाता है शिवबाबा को, परन्तु उन्होंने परमात्मा राम को समझ लिया है इसलिए शिवबाबा को भुला दिया है। तुम समझा सकते हो कि रामराज्य किसको कहा जाता है। शास्त्रों में लिख दिया है कि राम की सीता चुराई गई, यह हो सकता है क्या कि राजा की रानी को कोई चुरा ले जाये। शास्त्र भी ढेर हैं। मुख्य शास्त्र है गीता। शास्त्रों में लिखा है कि ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म की स्थापना करते हैं। तो प्रजापिता भी यहाँ ही चाहिए। ब्रह्मा को इतने ढेर बच्चे हैं तो यह हैं मुख वंशावली, इतने कुख वंशावली हो न सकें। जबकि सरस्वती भी मुख वंशावली है तो ब्रह्मा की स्त्री हो नहीं सकती। अब बाप कहते हैं– ब्रह्मा मुख द्वारा तुम ब्राह्मण बनते हो, मेरे बच्चे बनते हो। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा की कितनी महिमा है। बाप पतित-पावन, लिबरेटर भी है। यह सब गाते भी हैं परन्तु समझते नहीं हैं, इसलिए पहले बाप का परिचय देना है कि वह पतित-पावन है, गीता का भगवान भी है। निराकार शिवबाबा है तो जरूर आकर ज्ञान सुनाया होगा। अब जिस शरीर द्वारा ज्ञान सुनाते हैं उसका नाम रखा है ब्रह्मा। नहीं तो ब्रह्मा कहाँ से आये! ब्रह्मा का बाप कौन? ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का रचयिता कौन? यह है गुह्य प्रश्न। त्रिमूर्ति देवता तो कहते हैं परन्तु यह आये कहाँ से! अब बाप समझाते हैं, इनका भी रचता ऊंचे ते ऊंचा भगवत ही है, जिसको शिव कहते हैं। यह 3 देवतायें लाइट के हैं, इनमें हड्डी मास नहीं है परन्तु मोटी बुद्धि समझ नहीं सकते। इस पर समझाना है– ऊंचे ते ऊंचा भगवान है। वह ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग का वर्सा देते हैं। गाते भी हैं मनुष्य से देवता किये..... फिर दिखाते हैं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला। कभी नाभी से भी बच्चा होता है क्या? अब बाप बैठ सब राज समझाते हैं। परन्तु जब कोई समझे ना। तुम जानते हो आत्मा को ही पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है। ऐसे नहीं कि पवित्र आत्मा सो परमात्मा है। परमात्मा बाप तो सदा पावन है। तमोप्रधान को पतित कहा जाता है। सतयुग में जब सुख था तो दु:ख का नाम भी नहीं था। मनुष्य तो कह देते हैं स्वर्ग अभी ही है। कुछ भी समझते नहीं परन्तु अन्त में आकर बाप से वर्सा लेंगे। तुम बच्चे ही जानते हो कि हम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। विश्व का मालिक और कोई बन न सके। विश्व पर राज्य सतयुग में होता है। कलियुग में सारी विश्व पर राज्य कर न सकें। यह भी किसको पता नहीं है। गीता में भी है कि महाभारी लड़ाई लगी थी तब ही सब धर्म विनाश हो जाते हैं। जैसे एक वट का वृक्ष होता है, वह जब सूख जाता है तो आपस में टकराने पर आग लग जाती है और सारा जंगल जल जाता है। यह मनुष्य सृष्टि झाड़ भी जड़जड़ीभूत हो गया है। इनको भी अब आग लगने वाली है, एक दो में लड़कर खत्म हो जायेंगे। आग का सामान बनाते ही रहते हैं। अब एटॉमिक बाम्ब्स द्वारा आग लगनी है, यह राज वह नहीं जानते। अब कलियुग नर्क बदल स्वर्ग होने वाला है। इस ज्ञान में मस्ती बहुत चाहिए। अपने को देखना है कि हम उस मस्ती वा नशे में रहते हैं? हम परमात्मा की सन्तान हैं, उनसे स्वर्ग का वर्सा पा रहे हैं। आपस में बात करने की रॉयल्टी चाहिए। यहाँ से सब कुछ सीखना है। बाद में वही संस्कार ले जायेंगे। अति मीठा बनना है, बड़ा नशा रहना चाहिए। शिवबाबा के हम बच्चे हैं। देवता पद पाने वाले हैं, तो एक दो में कितना प्यार से बोलना चाहिए। परन्तु बच्चों के मुख से अजुन फूल निकलते नहीं हैं। तुम कितने ऊंच हो। तुमको यह याद रहे कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं फिर सतयुग में महाराजा बनेंगे। गोया हम विश्व के क्राउन प्रिन्स बनेंगे। तुम बच्चों को आन्तरिक खुशी होनी चाहिए कि हम परमात्मा के सम्मुख बैठे हैं, जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है उनकी श्रीमत पर चलना है। तुम जानते हो हमारी राजधानी स्थापन हो रही है। राजधानी में सब चाहिए। परन्तु तुम बच्चों के मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए। बाबा रूप भी है तो बसन्त भी है। कहानियाँ सब अभी की हैं। बाप है ज्ञान का सागर। वह ज्ञान की वर्षा करते हैं। बाकी वह इन्द्र देवता बरसात बरसाते हैं, ऐसी बात है नहीं। यह बादल नेचुरल बनते हैं, बरसात करते हैं। सतयुग में यह 5 तत्व भी तुम्हारे गुलाम बन जाते हैं और यहाँ मनुष्य सबके गुलाम बन पड़े हैं। यहाँ हर बात में मेहनत करनी पड़ती है। वहाँ सब बात स्वत: हो जाती है। तो बच्चों को बाबा की याद सदा रहनी चाहिए इससे खुशी का पारा सदा चढ़ा रहेगा। वो लोग (साइंस वाले) भी मंथन करते हैं। तुम बच्चों को वाणी का मंथन करना है। वाणी का प्रवाह कभी-कभी बहुत अच्छा रहता है, कभी कम, इनको कहा जाता है मंथन करना। बच्चे बाप की अवस्था को देख रहे हैं और बाबा अपना अनुभव सुनाते हैं। तो कब बहुत उछल का प्रवाह रहता है, कभी कम। कभी बहुत अच्छी प्वाइंट्स निकलती हैं। बाबा भी मददगार बन जाते हैं। यह तुम भी फील करते हो। बाबा तो कभी मुरली हाथ में नहीं उठाते हैं। बच्चे मैगजीन लिखते हैं– तो बाबा कभी-कभी देखते हैं कि बच्चे कभी गफलत तो नहीं करते हैं। मैगजीन में भी अच्छी-अच्छी मुरली की प्वाइंट्स आती हैं और सब तरफ जाती रहती हैं। कोई की तरफ मुरली नहीं जाती है तो बाबा कहते हैं रचता और रचना का ज्ञान 7 रोज में समझ लिया है ना। बाकी क्या चाहिए। बाकी 5 विकारों को भस्म करने का पुरूषार्थ करना है और तो कोई तकलीफ है नहीं। तुम बच्चे कोई के भी सतसंग में जा सकते हो, सेवा करने का भी उमंग आना चाहिए। जब सब धर्म वाले इकठ्ठे होते हैं तो समझाना चाहिए कि हर एक का धर्म अलग-अलग है। भाई-भाई कहते हैं परन्तु मिलकर एक नहीं हो सकते। यह सिर्फ कहने की बात है। बाप कहते हैं– मैं आकर ब्राह्मण बनाए फिर देवी-देवता धर्म स्थापन करता हूँ, वहाँ दूसरा कोई धर्म रहता नहीं है। यह वही महाभारत लड़ाई है। गीता में भी इसका वर्णन किया हुआ है। यह एक ही पढ़ाई है। पढ़ाने वाला भी एक ही है। ज्ञान जब पूरा होगा तो बाप कहते हैं मैं भी चला जाऊंगा। मुझे कलियुग के अन्त में ज्ञान सुनाना है, मुझे कल्प-कल्प आना है। एक सेकेण्ड भी कम जास्ती नहीं होगा। जब ज्ञान पूरा हो फिर कर्मातीत अवस्था में चले जायेंगे, तो विनाश भी हो जायेगा। दिन-प्रतिदिन तुम्हारी सर्विस बढ़ती जायेगी। यहाँ तो न किसी में पवित्रता है, न दैवीगुणों की धारणा है। वहाँ पवित्रता का अन्तर देखो कितना है। तुम अभी संगम में बैठे हो, यही पुरूषोत्तम युग है। अभी तुम पुरूषोत्तम बन रहे हो। परन्तु वह जलवा, वह चलन भी चाहिए। कभी मुख से पत्थर नहीं निकलने चाहिए। रत्न ही मुख से निकलने चाहिए। अभी तुम देवता समान गुल-गुल बन रहे हो। गॉड आकर गॉड गॉडेज बनाते हैं। देवताओं को ही भगवान-भगवती कहते हैं। परन्तु ऐसा बनाते कौन है? यह कोई नहीं जानते। तुम्हारी बुद्धि में पूरे रचता और रचना की नॉलेज है फिर औरों को आप समान बनाने की जवाबदारी है। बहुत आते रहेंगे। स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण ही बनते हैं। माया के तूफान भी बच्चों को ही आते हैं। कहाँ तूफान आने से हड्डी-हड्डी टूट जाती है। चलते-चलते कोई डिससर्विस भी करते हैं। बाप कहते हैं कोई भी छी-छी काम नहीं करो। तुम मुख वंशावली ब्राह्मण हो, वह हैं कुख वंशावली। कितना फर्क है। वह जिस्मानी यात्रा पर ले जाते हैं, तुम्हारी है रूहानी यात्रा। तुम बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हो। यह भी किसमें अक्ल नहीं है जो समझे कि वह भी ब्राहमण, हम भी ब्राह्मण। परन्तु सच्चा ब्राह्मण कौन है? वह ब्राह्मण अपने को ब्रह्माकुमार नहीं कहला सकते। तुम अपने को ब्रह्माकुमार कहलाते हो तो जरूर ब्रह्मा भी होगा। परन्तु उनकी बुद्धि में यह बातें आती नहीं हैं, जो पूछें। बाबा कल्प-कल्प तुम बच्चों को आकर यह बातें समझाते हैं कि तुम ब्रह्मा की औलाद ब्राह्मण सब भाई-बहिन ठहरे। फिर वह विकार में कैसे जा सकते। अगर कोई जाते हैं तो ब्राह्मण कुल को कलंकित करते हैं। अपने को ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाकर फिर पतित हो नहीं सकते। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) वाणी से जो सुनते हैं उस पर मंथन करना है। पुरूषोत्तम बन रहे हैं इसलिए चलन बहुत रॉयल बनानी है। मुख से कभी पत्थर नहीं निकालने हैं।
2) बहुतों को आप समान बनाने की जवाबदारी समझ सर्विस पर तत्पर रहना है। कोई भी छी-छी गंदा काम करके डिससर्विस नहीं करनी है।
वरदान:
सेकण्ड में देह रूपी चोले से न्यारा बन कर्मभोग पर विजय प्राप्त करने वाले सर्व शक्ति सम्पन्न भव
जब कर्मभोग का जोर होता है, कर्मेन्द्रियां कर्मभोग के वश अपनी तरफ आकर्षित करती हैं अर्थात् जिस समय बहुत दर्द हो रहा हो, ऐसे समय पर कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर्मेन्द्रियों से भोगवाने वाले ही सर्व शक्ति सम्पन्न अष्ट रत्न विजयी कहलाते हैं। इसके लिए बहुत समय का देह रूपी चोले से न्यारा बनने का अभ्यास हो। यह वस्त्र, दुनिया की वा माया की आकर्षण में टाइट अर्थात् खींचा हुआ न हो तब सहज उतरेगा।
स्लोगन:
सर्व का मान प्राप्त करने के लिए निर्माणचित बनो-निर्माणता महानता की निशानी है।