Thursday, November 17, 2016

मुरली 18 नवंबर 2016

18-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम्हें मन्सा-वाचा-कर्मणा एक्यूरेट बनना है, क्योंकि तुम देवताओं से भी ऊंच ब्राह्मण चोटी हो”
प्रश्न:
सबसे गुप्त और महीन बात कौन सी है जो बच्चे भी मुश्किल ही समझ सकते हैं?
उत्तर:
शिवबाबा और ब्रह्मा बाबा का भेद समझना– यह सबसे गुप्त और महीन बात है। इसमें कई बच्चे मूँझ जाते हैं। यह राज स्वयं बाप बतलाते हैं कि मैं सवेरे-सवेरे इस तन द्वारा तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ, बाकी ऐसे नहीं कि मैं कोई सारा दिन इन पर सवारी करता हूँ।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं। बच्चे कौन हैं? ब्राह्मण। यह कभी भूलो मत कि हम ब्राह्मण हैं, देवता बनने वाले हैं। वर्णो को भी याद करना होता है। यहाँ तुम आपस में ब्राह्मण ही ब्राह्मण हो। ब्राह्मणों को बेहद का बाप पढ़ाते हैं। यह ब्रह्मा नहीं पढ़ाते हैं। शिवबाबा पढ़ाते हैं। ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों को ही पढ़ाते हैं। शूद्र से ब्राह्मण बनने बिना देवता बन नहीं सकते। वर्सा तो शिवबाबा से मिलता है। शिवबाबा तो सभी का बाप है। इस ब्रह्मा को ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। लौकिक बाप तो सबको होते ही हैं। पारलौकिक बाप को भक्ति मार्ग में याद करते हैं। अब तुम बच्चे समझते हो– यह अलौकिक बाप है, जिसको कोई नहीं जानते हैं। भल ब्रह्मा का मन्दिर है। यहाँ भी प्रजापिता आदि देव का मन्दिर है। उनको महावीर भी कहते हैं, कोई दिलवाला भी कहते हैं। परन्तु वास्तव में दिल लेने वाला है शिवबाबा, न कि ब्रह्मा। सभी आत्माओं को सदा सुखी करने वाला, खुशी देने वाला एक ही बाप है। यह भी सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो। दुनिया में तो मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। हम ब्राह्मण ही शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं। तुम भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। याद है बड़ी सहज। योग अक्षर सन्यासियों ने रखा है। तुम तो बाप को याद करते हो। योग तो कॉमन अक्षर है, इनको योग आश्रम भी नहीं कहेंगे। बच्चे और बाप बैठे हैं। बच्चों का फर्ज है– बेहद के बाप को याद करना। हम ब्राह्मण हैं, दादे से वर्सा लेते हैं ब्रह्मा द्वारा इसलिए शिवबाबा कहते हैं– जितना हो सके याद करते रहो। चित्र भी भल याद रखो। याद तो रहेगी, हम ब्राह्मण हैं, बाप से वर्सा लेते हैं। ब्राह्मण कब अपनी जाति को भूलते हैं क्या? तुम शूद्रों के संग में आने से ब्राह्मणपना भूल जाते हो। ब्राह्मण तो देवताओं से भी ऊंच हैं क्योंकि तुम ब्राह्मण नॉलेजफुल हो। भगवान को जानी-जाननहार कहते हैं ना। इसका अर्थ यह नहीं कि सबके दिल में क्या है– वह बैठ देखता है। नहीं, उनको सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज है। वह बीजरूप है। बीज झाड़ के आदि मध्य अन्त को जानते हैं। तो ऐसे बाप को बहुत-बहुत याद करना है। इनकी आत्मा भी उस बाप को याद करती है। वह बाप कहते हैं– यह (ब्रह्मा) भी मुझे याद करेंगे तब यह पद पायेंगे। तुम भी याद करेंगे तो पद पायेंगे। पहले-पहले तुम बिना शरीर (अशरीरी) आये थे। फिर अशरीरी बनकर वापिस जाना है। और सब देह के सम्बन्धी तुमको दु:ख देने वाले हैं, उनको क्यों याद करते हो! जबकि मैं तुमको मिला हूँ। मैं तुमको नई दुनिया में ले जाने आया हूँ। वहाँ कोई दु:ख नहीं। वह है दैवी सम्बन्ध। यहाँ पहले दु:ख होता है– स्त्री और पुरूष के सम्बन्ध में, क्योंकि विकारी बनते हैं। तुमको मैं अब उस दुनिया के लायक बनाता हूँ, जहाँ विकार की बात ही नहीं रहती। यह काम महाशत्रु गाया हुआ है, जो आदि मध्य अन्त दु:ख देते हैं। क्रोध के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि यह आदि मध्य अन्त दु:ख देते हैं। नहीं, काम को जीतना है, वही आदि मध्य अन्त दु:ख देते हैं। पतित बनाते हैं। पतित अक्षर विकार पर पड़ता है। इस दुश्मन पर जीत पानी है। तुम जानते हो हम सतयुग के देवी-देवता बन रहे हैं। जब तक यह निश्चय नहीं तब तक कुछ पा नहीं सकेंगे। बाप समझाते हैं– बच्चों को मन्सा-वाचा-कर्मणा एक्यूरेट बनना है। मेहनत है। दुनिया में यह किसको भी पता नहीं कि तुम भारत को स्वर्ग बनाते हो। आगे चलकर समझेंगे, चाहते भी हैं कि वन वर्ल्ड, वन राज्य, वन रिलीजन, वन भाषा हो। तुम समझा सकते हो– आज से 5 हजार वर्ष पहले एक राज्य, एक धर्म था, जिसको स्वर्ग कहा जाता है। रामराज्य, रावणराज्य को भी कोई नहीं जानते। तुम भी नहीं जानते थे। अब तुम स्वच्छ बुद्धि बने हो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। बाप बैठ तुमको समझाते हैं तो जरूर बाप की मत पर चलो। बाप कहते हैं– पुरानी दुनिया में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो। मुझे याद भी करते रहो। बाप आत्माओं को समझाते हैं। आत्माओं को ही पढ़ाने आया हूँ, इन आरगन्स द्वारा। यह तो पुरानी छी-छी दुनिया, छी-छी शरीर है। तुम ब्राह्मण पूजा के लायक नहीं हो, गायन लायक हो। पूजन लायक देवतायें हैं। तुम श्रीमत पर विश्व को स्वर्ग बनाते हो इसलिए तुम्हारा गायन है, पूजा नहीं हो सकती। गायन जरूर तुम ब्राह्मणों का है, न कि देवताओं का। बाप तुमको ही शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं। देवताओं की आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं। अब तुम्हारी आत्मा पवित्र होती जाती है। शरीर पवित्र नहीं है। अब तुम ईश्वर की मत पर भारत को स्वर्ग बना रहे हो। तुम भी स्वर्ग के लायक बन रहे हो। सतोप्रधान जरूर बनना है। सिर्फ तुम ब्राह्मण ही हो जिसको बाप बैठ पढ़ाते हैं। ब्राह्मणों का झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। ब्राह्मण जो पक्के बन जायेंगे वही जाकर देवता बनेंगे। यह नया झाड़ है, माया के तूफान भी लगते हैं। सतयुग में कोई तूफान नहीं लगेगा। यहाँ माया बाबा की याद में रहने नहीं देती है। हम जानते हैं बाबा की याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हैं। सारा मदार है याद पर। भारत का प्राचीन योग भी मशहूर है ना। विलायत वाले चाहते हैं, प्राचीन योग आकर कोई सिखाये। अब योग दो प्रकार का है– एक हैं हठयोगी, दूसरे हैं राजयोगी। तुम हो राजयोगी। वह तो बहुत दिन से चले आते हैं। राजयोग का अब तुमको पता पड़ा है। सन्यासी क्या जानें राजयोग से। बाप ने आकर बताया है– राजयोग मैं ही आकर सिखाता हूँ, कृष्ण तो सिखला न सके। यह भारत का ही प्राचीन योग है, सिर्फ गीता में मेरे बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। कितना फर्क हो गया है। शिव जयन्ती होती है तो तुम्हारे बैकुण्ठ की भी जयन्ती होती है, जिसमें कृष्ण का राज्य है। तुम जानते हो शिवबाबा की जयन्ती है तो गीता की भी जयन्ती है, बैकुण्ठ की भी जयन्ती हो रही है। तुम पवित्र बन जायेंगे, कल्प पहले मुआिफक स्थापना हो रही है तो शिवबाबा की जयन्ती सो स्वर्ग की जयन्ती, बाबा ही आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो। याद न करने से माया कुछ न कुछ विकर्म करा देती है। याद नहीं किया और लगी चमाट। याद में रहने से चमाट नहीं खायेंगे। यह बॉक्सिंग होती है। तुम जानते हो हमारा दुश्मन कोई मनुष्य नहीं है, रावण दुश्मन है। शादी करने के बाद कुमार-कुमारी भी पतित बनने से एक दो के दुश्मन बन जाते हैं। शादी में लाखों रूपये खर्च करते हैं। बाप कहते हैं– शादी है बरबादी। अब पारलौकिक बाप ने आर्डानेन्स निकाला है कि बच्चे यह काम महाशत्रु है, इन पर जीत पहनो और पवित्रता की प्रतिज्ञा करो। कोई भी पतित न बने। जन्म-जन्मान्तर तुम पतित बने हो इस विकार से, इसलिए काम महाशत्रु कहा जाता है। बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। तुमने 84 जन्म कैसे लिए हैं। अब वापिस जाना है। तुमको तो बड़ा ही शुद्ध अहंकार होना चाहिए। हम आत्मायें बाप की मत पर चल भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। हम ही फिर स्वर्ग में राज्य करेंगे। जितनी मेहनत करेंगे उतना पद पायेंगे। चाहे राजा-रानी बनो, चाहे प्रजा बनो। राजारानी कैसे बनते हैं वह भी देख रहे हो। फालो फादर गाया जाता है। वह अब की बात है। लौकिक सम्बन्ध के लिए नहीं कहा जाता है। यह बाप मत देते हैं, मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। तुम समझते हो हम अच्छी मत पर चलते हैं, बहुतों की सेवा करते हैं। बच्चे बाप के पास आते हैं तो शिवबाबा भी रिफ्रेश करते हैं तो यह भी रिफ्रेश करते हैं। यह भी तो सीखते हैं ना। शिवबाबा कहते हैं मैं आता हूँ सवेरे को। अच्छा फिर कोई मिलने आते हैं तो क्या यह ब्रह्मा नहीं समझायेंगे। ऐसे कहेंगे क्या कि बाबा आप आकर समझाओ मैं नहीं समझाऊंगा। यह बड़ी गुप्त गुह्य बातें हैं ना। मैं तो सबसे अच्छा समझा सकता हूँ। तुम ऐसे क्यों समझते हो कि शिवबाबा ही समझाते हैं। यह नहीं समझाते होंगे। यह भी जानते हो कल्प पहले इसने समझाया है तब तो यह पद पाया है। मम्मा भी समझाती थी ना। वह भी ऊंच पद पाती है। वहाँ बाबा को सूक्ष्म वतन में देखते हैं तो बच्चों को फॉलो करना है। सरेन्डर होते भी गरीब हैं। साहूकार तो सरेन्डर हो न सकें। गरीब ही कहते हैं– बाबा यह सब कुछ आपका है। शिवबाबा तो दाता है, वह कभी लेता नहीं। बच्चों को कहते हैं यह सब कुछ तुम्हारा है। अपने लिए महल यहाँ या वहाँ नहीं बनाता हूँ। तुमको ही स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। अब इन ज्ञान रत्नों से झोली भरनी है। मन्दिर में जाकर कहते हैं झोली भर दो। परन्तु किस प्रकार की, किस चीज की झोली भर दो? अब झोली भरने वाली तो लक्ष्मी है जो पैसा देती है। शिव के पास तो जाते नहीं। कृष्ण के लिए कहते हैं कि गीता सुनाई। परन्तु कृष्ण के लिए नहीं कहते झोली भर दो। शंकर के पास जाकर कहते हैं। समझते हैं शिव और शंकर एक हैं। शंकर तो झोली खाली करने वाला है, हमारी झोली तो कोई खाली नहीं कर सकता। विनाश तो होना ही है। गाया हुआ भी है रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला निकली। परन्तु ऐसे कोई समझते थोड़ेही हैं। तुम बच्चों को गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। धन्धा भी करना है। बाप हर एक की नब्ज देख राय देते हैं क्योंकि बाप समझते हैं मैं कहूँ और कर न सकें, ऐसी राय ही क्यों दूँ। नब्ज देखकर ही राय देते हैं। इनके पास तो आना पड़े। वह पूरी राय देंगे। सबको पूछना चाहिए– बाबा इस हालत में हमको क्या करना चाहिए! अब क्या करें? बाप स्वर्ग में तो ले जाते हैं। तुम जानते हो हम स्वर्गवासी तो बनने वाले हैं, अब हम नर्कवासी हैं। अब तुम न नर्क में हो, न स्वर्ग में हो। जो-जो ब्राह्मण बनते हैं उनका लंगर इस छी-छी दुनिया से उठ चुका। तुम कलियुगी दुनिया से किनारा अब छोड़ चुके हो। कोई ब्राह्मण तीखा जा रहा है, कोई याद की यात्रा में कम। कोई हाथ छोड़ देते हैं तो घुटका खाकर डूब मरते हैं अर्थात् फिर कलियुग में चले जाते हैं। तुम जानते हो खिवैया अब हमको ले जा रहे हैं। वह यात्रा तो अनेक प्रकार की है। तुम्हारी यात्रा एक ही है, यह बिल्कुल ही न्यारी यात्रा है। हाँ, तूफान आते हैं जो याद को तोड़ देते हैं। इस याद की यात्रा को अच्छी रीति पक्का करो, मेहनत करो। तुम कर्मयोगी हो। जितना हो सके हथ कार डे, दिल यार डे। आधाकल्प से तुम आशिक बन माशूक को याद करते आये हो। बाबा हमको यहाँ बहुत दु:ख है, अब हमको सुखधाम का मालिक बनाओ। याद की यात्रा में रहेंगे तो तुम्हारे पाप खलास हो जायेंगे। तुमने ही स्वर्ग का वर्सा पाया था, अब गँवाया है। भारत स्वर्ग था तब कहते हैं प्राचीन भारत। भारत को बहुत मान देते हैं, सबसे बड़ा भी है, सबसे पुराना भी है। यह तो तुम जानते हो विनाश सामने खड़ा है। जो अच्छी रीति समझते हैं उन्हों के अन्दर में बहुत खुशी रहती है। प्रदर्शनी में कितने आते हैं। अहमदाबाद में देखो कितने साधू-सन्त आदि हर प्रकार के आये। कहते हैं तुम तो सत्य कहती हो। परन्तु हमको बाप से वर्सा लेना है, यह थोड़ेही बुद्धि में बैठता है। यहाँ से बाहर निकले खलास। अभी तुम जानते हो कि बाप हमको स्वर्ग में ले जाते हैं। वहाँ न गर्भ जेल, न वह जेल होगी। फिर कभी जेल का मुँह देखने को नहीं मिलेगा। दोनों जेल नहीं रहेंगी। यहाँ यह सब है माया का पाम्प। आजकल हर एक बात क्वीक होती है। मौत भी क्वीक होती रहती है। सतयुग में ऐसे कोई उपद्रव होते ही नहीं हैं। यहाँ मौत भी जल्दी, तो दु:ख भी बहुत होंगे। सब खलास हो जायेंगे। सारी धरती नई हो जायेगी। सतयुग में देवी-देवताओं की राजधानी थी, सो जरूर फिर होगी। आगे चल देखना क्या होता है! बहुत भयंकर सीन है। तुम बच्चों ने साक्षात्कार किया है। बच्चों के लिए मुख्य है याद की यात्रा। यह है चढ़ती कला की यात्रा। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा इसी स्मृति में रहना है कि हम ब्राह्मण हैं। हम ब्राह्मणों को ही भगवान पढ़ाते हैं। हम अभी ब्राह्मण सो देवता बन रहे हैं।
2) ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरकर दान करना है। इस कलियुगी पतित दुनिया का किनारा छोड़ देना है। माया के तूफानों से डरना नहीं है।
वरदान:
पावरफुल दर्पण द्वारा सभी को स्वयं का साक्षात्कार कराने वाले साक्षात्कारमूर्त भव
जैसे दर्पण के आगे जो भी जाता है, उसे स्वयं का स्पष्ट साक्षात्कार हो जाता है। लेकिन अगर दर्पण पावरफुल नहीं तो रीयल रूप के बजाए और रूप दिखाई देता है। होगा पतला दिखाई देगा मोटा, इसलिए आप ऐसे पावरफुल दर्पण बन जाओ, जो सभी को स्वयं का साक्षात्कार करा सको अर्थात् आपके सामने आते ही देह को भूल अपने देही रूप में स्थित हो जायें-वास्तविक सर्विस यह है, इसी से जय-जयकार होगी।
स्लोगन:
शिक्षाओं को स्वरूप में लाने वाले ही ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप आत्मा हैं।