Friday, November 18, 2016

मुरली 19 नवंबर 2016

19-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम्हारी चलन बहुत-बहुत मीठी रॉयल होनी चाहिए, क्रोध का भूत बिल्कुल न हो”
प्रश्न:
21 जन्मों की प्रालब्ध पाने के लिए बच्चों को किस बात का ध्यान जरूर रखना है?
उत्तर:
इस दुनिया में रहते, सब कुछ करते, बुद्धि का योग एक सच्चे माशुक के साथ रहे। ऐसी कोई बुरी आदत न हो जिससे बाप की आबरू खत्म हो। घर में रहते भी इतना प्यार से रहो जो दूसरे समझें कि इसमें तो बहुत अच्छे दैवीगुण हैं।
गीत:-
जाग सजनियां जाग..   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। इसका अर्थ भी जरूर बच्चे समझ गये होंगे। बाप आकर नई-नई बातें सुनाते हैं। नई दुनिया के नये युग के लिए यह बातें बच्चों ने 5 हजार वर्ष पहले सुनी थी। अब फिर सुन रहे हैं। बाकी बीच में सिर्फ भक्ति मार्ग की बातें ही सुनी हैं। सतयुग में यह बातें होती नहीं। वहाँ है ज्ञान मार्ग की प्रालब्ध। अब तुम बच्चे नई दुनिया के लिए सच्ची कमाई कर रहे हो। नॉलेज को सोर्स आफ इनकम कहा जाता है। पढ़ाई द्वारा कोई बैरिस्टर, इंजीनियर आदि बनते हैं। आमदनी भी होती है। तुम इस पढ़ाई से राजाओं का राजा बनते हो। यह कितनी जबरदस्त कमाई है। अब तुम बच्चों को यह निश्चय है, अगर थोड़ा संशय है तो आगे चलते-चलते निश्चय होता जायेगा। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति गाई हुई है। बाबा का बना और वर्से का मालिक बना। बाप जो स्वर्ग का रचयिता है वह आया है हमको मालिक बनाने। यह तो बच्चों को निश्चय होना चाहिए। यह भी जानते हो कि दो बाप हैं। एक है लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक, जिसको कहते हैं परमपिता परमात्मा, ओ गॉड फादर। लौकिक फादर को कभी परमपिता नहीं कहेंगे। सबका सुख दाता, शान्ति दाता वह एक ही पारलौकिक बाप है। सतयुग में सब सुखी रहते हैं। बाकी आत्मायें शान्तिधाम में रहती हैं। सतयुग में तुमको सुख-शान्ति, धन-दौलत, निरोगी काया सब कुछ था। तो ऐसे मोस्ट बिलवेड बाप को सब पुकारते हैं। साधू-सन्त लोग भी साधना करते हैं, लेकिन किसकी साधना करते हैं, यह जानते नहीं। वह करते हैं ब्रह्म की साधना। तो हम ब्रह्म में लीन हो जायें, परन्तु लीन तो हो न सकें। ब्रह्म को याद करने से पाप थोड़ेही कटेंगे। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। सर्वशक्तिमान् मैं हूँ वा ब्रह्म, जो रहने का स्थान है? ब्रह्म महतत्व में सभी आत्मायें निवास करती हैं। तो ब्रह्म को उन्होंने भगवान समझ लिया है। जैसे भारतवासियों ने हिन्दुस्तान में रहने के कारण अपना धर्म हिन्दू समझ लिया है। वैसे ब्रह्म तत्व रहने के स्थान को परमात्मा समझ लिया है, वह है ब्रह्माण्ड। वहाँ आत्मायें, ज्योतिर्बिन्दु अण्डा आकार में रहती हैं, इसलिए उनको ब्रहमाण्ड कहते हैं। यह है मनुष्य सृष्टि। ब्रह्माण्ड अलग है, मनुष्य सृष्टि अलग है। आत्मा क्या है– यह किसको भी पता नहीं है। कहते भी हैं– भ्रकुटी के बीच में चमकता है अजब सितारा। फिर कहते आत्मा अंगूठे सदृश्य है। परन्तु बाप कहते हैं– आत्मा बिल्कुल सूक्ष्म बिन्दू है, जिसको इन ऑखों से देख नहीं सकते, इनको देखने की, पकड़ने की बहुत कोशिश करते हैं। परन्तु किसको पता नहीं पड़ता। तुम बच्चे जानते हो तो अब तुमको भारत को स्वर्ग बनाने में बाप का मददगार भी बनना पड़े। बाप आते ही भारत में हैं। शिव जयन्ती भारत में ही मनाते हैं। जैसे क्राइस्ट होकर गया तो क्रिश्चियन लोग क्रिसमस मनाते रहते हैं। क्राइस्ट कब आया वह भी जानते हैं। परन्तु भारतवासियों को यह पता ही नहीं कि बाप कब आया था, कृष्ण कब आया था? किसका भी उन्हों को पता नहीं है। महिमा सारी कृष्ण की गाते हैं। उसको झूले में झुलाते हैं, प्यार करते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि उनका जन्म कब हुआ। कह देते द्वापर में गीता सुनाई। परन्तु कृष्ण द्वापर में तो आते नहीं। लीला है एक बाप की। तब उनके लिए कहते हैं तुम्हारी गति मत... कृष्ण है सतयुग का प्रिन्स। पहले से माता को साक्षात्कार हो जाता है कि योगबल से बच्चा पैदा होने वाला है। वहाँ शरीर भी ऐसे ही छोड़ते हैं। एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। सर्प का मिसाल। वास्तव में सन्यासी ये मिसाल दे नहीं सकते। तुम विकारी मनुष्यों को बैठ ज्ञान की भूँ-भूँ कर तमोप्रधान से सतोप्रधान बना देते हो। यह तुम्हारा धन्धा है– भूँ-भूँ कर मनुष्य को देवता बना देते हो। कछुओं आदि का मिसाल भी इस समय का है। कर्म करके फिर जितना समय मिले बाप को याद करना है। तुम जानते हो यह हमारा अन्तिम जन्म है। अब नाटक पूरा होना है, पुराना शरीर है। इसका कर्मभोग चुक्तू करना है। जब सतोप्रधान हो जायेंगे तो फिर कर्मातीत अवस्था हो जायेगी, फिर हम इस शरीर में रह नहीं सकेंगे। कर्मातीत अवस्था हुई फिर शरीर छोड़ देंगे, फिर लड़ाई शुरू होगी। मच्छरों सदृश्य सब शरीर खत्म हो आत्मायें चली जायेंगी। पवित्र बनने बिगर तो कोई जा नहीं सकेंगे। यह है दु:खधाम रावण का स्थापन किया, और राम का स्थापन किया हुआ है शिवालय। वास्तव में परमात्मा का नाम है शिव, न कि राम। सतयुग शिवालय में सभी देवतायें रहते हैं। फिर भक्ति मार्ग में शिव की प्रतिमा के लिए मन्दिर, शिवालय आदि बनाते हैं। अब शिवबाबा का यह तख्त है। आत्मा इस तख्त पर विराजमान है। बाप भी यहाँ बाजू में आकर विराजमान होते हैं और आकर पढ़ाते हैं। सदैव तो नहीं रहता। याद करो तो यह आया। बाप कहते हैं– मैं तुम्हारा बेहद का बाप हूँ। वर्सा मेरे से तुमको मिलना है। ब्रह्मा थोड़ेही बेहद का बाप है इसलिए तुम मुझे याद करो। मीठे बच्चे जानते हैं कि बाबा ज्ञान का सागर है, प्यार का सागर है। तो तुम बच्चों को भी प्यार का सागर बनना है। स्त्री-पुरूष एक दो को सच्चा प्यार नहीं करते, वह तो काम विकार को ही प्यार समझते हैं परन्तु बाबा ने कहा है कि काम महाशत्रु है। यह आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है। देवतायें निर्विकारी थे, तब तो कहते हैं– कृष्ण जैसा बच्चा मिले, कृष्ण जैसा पति मिले। कृष्णपुरी को याद करते हैं ना। अब बाप कृष्णपुरी स्थापन कर रहे हैं। तुम स्वयं श्रीकृष्ण जैसे अथवा मोहन जैसे बन सकते हो। प्रिन्स प्रिन्सेज और भी होंगे। तो यह सब यहाँ बन रहे हैं। उनकी भी लिस्ट रहती है। माला के 8 दाने भी हैं, तो 108 दाने भी हैं। लोग 9 रतन की अंगूठी पहनते हैं। अब यह 8 कौन हैं? बीच में कौन है? यह भी तुम जानते हो कि मीठे ते मीठे बाप द्वारा हम रत्न बन रहे हैं। बाप कहते हैं– बच्चे आपस में बहुत प्यार से चलना है। नहीं तो बाबा का नाम बदनाम करेंगे। फिर सतगुरू की निंदा कराने वाले ठौर नहीं पा सकते। सबको मन्त्र भी बताना है कि एक बाप को याद करो तो खाद निकल जायेगी। घर में भी इतना प्यार से चलना चाहिए जो दूसरे समझें कि इसमें क्रोध नहीं है। बहुत प्यार आ गया है। शराब, सिगरेट आदि पीना बहुत बुरी आदत है, ऐसी सब बुरी आदतें छोड़ देनी चाहिए। दैवीगुण यहाँ ही धारण करने हैं। राजधानी स्थापन करने में मेहनत लगती है। दूसरे धर्म वाले राजधानी स्थापन नहीं करते। वह ऊपर से एकदम पिछाड़ी में आते रहते हैं। तुम 21 जन्म की प्रालब्ध बना रहे हो, इसमें माया के तूफान बहुत आयेंगे। फिर भी पुरूषार्थ कर दैवी गुण धारण करने हैं। अगर क्रोध से बात करेंगे तो लोग कहेंगे इनमें भूत है। गोया बेहद बाप की आबरू गँवाई। फिर ऐसे ऊंच पद कैसे पायेंगे? बहुत मीठा अनासक्त बनना है। यहाँ रहते, सब कुछ करते योग माशूक के साथ चाहिए। बाबा ने कहा है मुझे याद करो तो पाप भस्म हो जायेंगे, इसको योग अग्नि कहा जाता है। यहाँ हठयोग की दरकार नहीं है। अपना शरीर तन्दरूस्त रखना है, मोस्ट वैल्युबुल शरीर है। भोजन भी शुद्ध खाना है। देवताओं को कैसा भोग लगाते हैं। श्रीनाथ द्वारे जाकर देखो, बंगाल में तो काली पर बकरे का भोग लगाते हैं। वे अपने पित्रों को भी मछली खिलाते हैं। नहीं तो समझते हैं कि पित्र नाराज हो जायेंगे। कोई ने रिवाज डाला है, वह चलता रहता है। देवी-देवताओं के राज्य में कोई पाप नहीं होता। वह है रामराज्य। यहाँ कर्म-विकर्म बनते हैं। वहाँ कर्म-अकर्म बनते हैं। अब हरिद्वार में जाकर बैठते हैं। हरि कृष्ण को कहते हैं। अब कृष्ण तो है सतयुग में। वास्तव में हरि नाम शिव का है। दु:ख हरने वाला। परन्तु गीता में कृष्ण का नाम डाल, हरि कृष्ण को समझ लिया है। वास्तव में दु:ख हरने वाला है शिवबाबा। हरि का द्वार सतयुग को कहा जाता है। भक्ति मार्ग में जो कुछ आता है बोलते रहते हैं। बाप कहते हैं– मैं संगमयुग पर आता हूँ, पुरानी दुनिया को नई बनाने। रावण है पुराना दुश्मन। हर वर्ष उनको जलाते हैं। कितने पैसे खर्च करते हैं। सब वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ मनी है। बंगाल में कितनी देवियाँ बनाते हैं, उनको खिलापिलाकर पूजा कर फिर जाकर डुबोते हैं। इस पर एक गीत है। बच्चों को बहुत मीठा बनना है। कभी गुस्से से बात नहीं करनी है। बाप से कभी रूठना नहीं है। रूठ कर अगर पढ़ाई छोड़ा गोया अपने पैर पर कुल्हाड़ा मारा। यहाँ तुम आये हो विश्व का मालिक बनने। महाराजा श्री नारायण, महारानी श्री लक्ष्मी को कहा जाता है। बाकी श्री श्री है शिवबाबा का टाइटल। श्री कहा जाता है देवताओं को। श्री अर्थात् श्रेष्ठ। अब तुम ख्याल करो हम क्या थे? माया ने हमारा माथा मुड़वा कर हमको क्या बना दिया है। भारत कितना साहूकार था। फिर कंगाल कैसे बना? क्या हुआ? कुछ भी समझते नहीं। अब तुम जानते हो हम सो देवता थे, फिर क्षत्रिय बनें। वह कह देते आत्मा सो परमात्मा। नहीं तो हम सो का अर्थ कितना सहज है। वो लोग कहते हैं मनुष्य का जन्म सिर्फ एक होता है। परन्तु बाप समझाते हैं कि मनुष्य के जन्म 84 होते हैं। उस 84 जन्म में तुम्हारा यह संगम का एक जन्म दुर्लभ है। जबकि तुम बेहद बाप से स्वर्ग का वर्सा पाते हो। तुम बहुत रॉयल बाप के बच्चे हो, तो तुम्हारे में कितनी रॉयल्टी होनी चाहिए। रॉयल मनुष्य कभी जोर से बात नहीं करते। दुनिया में घर-घर में कितना हंगामा होता है। स्वर्ग में ऐसी कोई बात नहीं। यह बाबा भी वल्लभाचारी कुल का था। फिर भी कहाँ वह सतयुग के देवतायें, कहाँ आजकल के वैष्णव लोग! ऐसे नहीं– वैष्णव हैं तो विकार में नहीं जाते हैं। रावण राज्य में सब विकार से पैदा होते हैं। सतयुग में हैं सम्पूर्ण निर्विकारी। अब तुम सम्पूर्ण निर्विकारी बन रहे हो और विश्व के मालिक बनते हो योगबल द्वारा। तुम्हारी चलन बहुत मीठी रॉयल होनी चाहिए। कोई डिबेट या शास्त्रवाद नहीं करना है। वह जब शास्त्रवाद करने बैठते हैं तो एक दो को लाठी भी मार देते हैं। उन बिचारों का कोई भी दोष नहीं है। इस नॉलेज को जानते ही नहीं। यह है रूहानी नॉलेज, जो मिलती है रूहानी बाप से। वह ज्ञान का सागर है। उनके शरीर का नाम नहीं है, वह अव्यक्तमूर्त है। कहते हैं मेरा नाम शिव है। मैं स्थूल वा सूक्ष्म शरीर नहीं लेता हूँ। ज्ञान का सागर, आनंद का सागर मुझे ही कहते हैं। शास्त्रों में क्या-क्या लिखा है। हनुमान पवन पुत्र था, अब पवन से बच्चा कैसे पैदा होगा! फिर परमात्मा के लिए कहते कच्छ मच्छ अवतार, कितनी गाली दी है। बाबा आकर उल्हना देते हैं कि तुमने आसुरी मत पर मुझे इतनी गाली दी। 24 अवतार से पेट नहीं भरा फिर कण-कण, ठिक्कर-भित्तर में ठोक दिया है। यह सब शास्त्र द्वापर से बने हैं। पहले-पहले सिर्फ शिव की पूजा होती थी। गीता भी बाद में बनाई है। अब बाप समझा रहे हैं, यह सारा अनादि खेल है। अब मैं आया हूँ तुमको विश्व का मालिक बनाने, तो बाप को पूरा फालो करना चाहिए। लक्षण भी बहुत अच्छे होने चाहिए। यह भी वण्डर है ना। कलियुग के अन्त में क्या है फिर सतयुग में क्या देखेंगे। कलियुग में भारत इनसालवेन्ट, सतयुग में भारत सालवेन्ट। उस समय और कोई खण्ड नहीं होता। यह गीता एपीसोड रिपीट हो रहा है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हम रॉयल बाप के बच्चे हैं इसलिए अपनी चलन बहुत रॉयल रखनी है। आवाज से नहीं बोलना है। बहुत मीठा बनना है।
2) कभी भी बाप से वा आपस में रूठना नहीं है। रूठ कर पढ़ाई कभी नहीं छोड़नी है। जो भी बुरी आदतें हैं उन्हें छोड़ना है।
वरदान:
एक बाप की याद में सदा मगन रह एकरस अवस्था बनाने वाले साक्षी दृष्टा भव
अभी ऐसे पेपर आने हैं जो संकल्प, स्वप्न में भी नहीं होंगे। परन्तु आपकी प्रैक्टिस ऐसी होनी चाहिए जैसे हद का ड्रामा साक्षी होकर देखा जाता है फिर चाहे दर्दनाक हो या हंसी का हो, अन्तर नहीं होता। ऐसे चाहे कोई का रमणीक पार्ट हो, चाहे स्नेही आत्मा का गम्भीर पार्ट हो.....हर पार्ट साक्षी दृष्टा होकर देखो, एकरस अवस्था हो। परन्तु ऐसी अवस्था तब रहेगी जब सदा एक बाप की याद में मगन होंगे।
स्लोगन:
दृढ़ निश्चय से अपने भाग्य को निश्चित कर दो तो सदा निश्चिंत रहेंगे।