Thursday, November 24, 2016

मुरली 25 नवंबर 2016

25-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– स्वीट फादर और स्वीट राजधानी को याद करो तो बहुत-बहुत स्वीट बन जायेंगे”
प्रश्न:
तुम बच्चे कौन सा पुरूषार्थ कर मनुष्य से देवता बनते हो?
उत्तर:
तुम अभी ज्ञान मानसरोवर में डुबकी मार ज्ञान परी बनते हो, ज्ञान स्नान से तुम्हारी सीरत बदलती जाती है। जो भी अवगुण हैं, निकलते जाते हैं। बाप और विष्णुपुरी को याद कर तुम पावन देवता बन जाते हो। देवताओं में पवित्रता की ही आकर्षण है। इसी कारण मनुष्य देवताओं के मन्दिरों में दूर-दूर से खींचकर जाते हैं।
गीत:-
हमारे तीर्थ न्यारे हैं...   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने यह गीत सुना। बच्चे ही लकी सितारे गाये जाते हैं। ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान लकी सितारे। वह सूर्य चन्द्रमा तो माण्डवे को रोशनी करते हैं, इसलिए तुम्हारी महिमा गाई हुई है। तुम हो ज्ञान सितारे, उनको ज्ञान सितारे नहीं कहा जाता। ज्ञान सूर्य नाम सुनकर समझते हैं कि शायद वह सूर्य ज्ञान स्वरूप है क्योंकि समझते हैं पत्थर-भित्तर में भगवान है तो सूर्य को बहुत मानते हैं। अपने को सूर्यवंशी कहलाते हैं। सूर्य की पूजा करते हैं, झण्डा भी सूर्य का है। तुम्हारा है त्रिमूर्ति का झण्डा। कितना वन्डरफुल है। इसमें लिखा हुआ भी है सत्य मेव जयते। सचमुच विश्व पर विजय तो वही प्राप्त कराते हैं। तुम हो शिव शक्ति पाण्डव सेना। उन्होंने नाम रख दिया है– त्रिमूर्ति मार्ग, त्रिमूर्ति हाउस। इनका अर्थ भी बाप समझाते हैं कि इन त्रिमूर्ति से मैं क्या कर्तव्य कराता हूँ। ब्रह्मा द्वारा स्थापना....। उन्होंने त्रिमूर्ति से शिव को निकाल चित्र खण्डित कर दिया है। अब तुम जानते हो इस त्रिमूर्ति के चित्र में कितना राज है। सत्य शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा राजाई देते हैं। हम बच्चे शिवबाबा द्वारा कल्प पहले मिसल फिर से पवित्रता, सुख-शान्ति और सम्पत्ति का राज्य ले रहे हैं। पढ़ाई हमेशा ब्रह्मचर्य में ही पढ़ी जाती है। अभी तो कोई-कोई शादी के बाद भी कोर्स उठा लेते हैं क्योंकि आमदनी जास्ती हो जाती है। यहाँ तुम्हारी आमदनी अनगिनत है। बच्चे जानते हैं कि शिवबाबा हमको विश्व का मालिक बनाने आया है। श्रीमत श्रेष्ठ गाई हुई है। बाबा का बच्चा बना तो जरूर बाप की मत पर चलेगा। भाई-भाई की मत पर नहीं। वह तो अनेक जन्म चले, उनसे कुछ फायदा नहीं हुआ। अब बाबा की मत पर चलना है। साधू-सन्त आदि सब भाई-भाई हैं। अब बाप आया है ऊंची मत देने। नेचर-क्योर की भी बहुत दवाइयाँ करते हैं। वह हैं सब अल्पकाल के लिए। यह है 21 जन्मों के लिए नेचर-क्योर। वह कहेंगे ठण्डे पानी में स्नान करो। यह करो, खान-पान की परहेज करो। यहाँ वह खान-पान की बात नहीं। यहाँ तो स्वीट फादर बच्चों को कहते हैं अब मुझे याद करो तो तुम बहुत स्वीट बन जायेंगे। देवतायें स्वीट हैं ना, उनमें कितनी आकर्षण रहती है। आगे शिव के मन्दिर भी ऊंची-ऊंची पहाडि़यों पर बनते थे। मनुष्य पैदल कर दीदार करने जाते थे क्योंकि प्योरिटी खींचती थी। देवतायें जब पवित्र थे तो विश्व पर राज्य करते थे। अब उनके चित्रों के आगे जाकर वन्दना नमन करते हैं। अब उस स्वीट फादर को याद तो सब करते हैं। उनको आना भी यहाँ ही है। जरूर उनसे वैकुण्ठ के सुख घनेरे मिलते हैं तब तो उनको याद करते हैं। जब रावण राज्य का अन्त होगा तब तो बाप आकर स्वर्ग की राजाई देंगे। बाबा आते भी भारत में हैं। शिव जयन्ती भी भारत में मनाते हैं परन्तु उनसे क्या मिलता है, किसको पता नहीं। बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को स्वीट बनाने। तुम कितने छी-छी बन गये थे। बाबा नॉलेजफुल है, अब तुमको सब नॉलेज मिल रही है। बीज को ही सारी नॉलेज होगी ना। वह है बीज, सत है, चैतन्य है और फिर ज्ञान का सागर है, सत्य बोलते हैं। वह भी आत्मा है, परन्तु परम है। परम आत्मा माना परमात्मा। वह सदैव परमधाम में रहते हैं, ऊंचे ते ऊंचा है। बहुत कहते हैं नाम-रूप से न्यारा है। परन्तु नाम-रूप से न्यारी कोई भी वस्तु होती नहीं है। उनका नाम शिव है। सभी उनकी पूजा करते हैं, वह निराकार है। अब आया हुआ है। आगे हम देह-अभिमानी थे। अब बाप कहते हैं बच्चे, आत्म- अभिमानी भव। गीता में भी है मन्मनाभव। सिर्फ उसमें शिव के बदले कृष्ण का नाम डालने से खण्डन हो गई है। फिर भी किताब पढ़ने से थोड़ेही राजाई मिलेगी। राजाई होती है सतयुग में। जरूर बाप संगम पर आयेगा। अभी ड्रामा अनुसार भक्ति पूरी होती है। भक्ति के बाद है ज्ञान। यह है पुरानी दुनिया, सतयुग है नई दुनिया। सतयुग में सूर्यवंशी राज्य करते थे। यह है राजयोग। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने का। सतयुग में इन्हों का राज्य था। अब कलियुग में देखो क्या है! अब तुम सतयुग में जाने के लिए फिर पढ़ रहे हो। भक्ति मार्ग के जो भी इतने वेद-शास्त्र आदि हैं उनको छोड़ना पड़ता है। ज्ञान मिल गया फिर भक्ति की दरकार नहीं। ज्ञान से हम विश्व के मालिक बनते हैं। बाबा आया है– भक्ति का फल देने। ज्ञान सुना रहे हैं। अब हमको पतित से पावन भी जरूर बनना ही है क्योंकि पतित तो वापिस जा नहीं सकते। मुक्तिधाम में भी सब पावन आत्मायें रहती हैं। सुखधाम में भी सब पवित्र रहती हैं। अभी कलियुग में सब पतित हैं। अब उनको पावन कौन बनायेगा? पतित-पावन है एक बाप। अब बाप कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में आता हूँ। सबसे जास्ती नम्बरवन भगत यह दादा था। फिर ब्रह्मा कहो या लक्ष्मी-नारायण की आत्मा कहो। यह बड़ी गूढ़ बात है समझने की। विष्णु की नाभी से ब्रह्मा और ब्रह्मा की नाभी से विष्णु निकला...... विष्णु 84 जन्मों के बाद ब्रह्मा बनते हैं। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। बाप भी गीता पाठी था। जब ज्ञान आया, देखा बाबा तो विश्व की बादशाही देते हैं। विष्णु का भी साक्षात्कार हुआ फिर फट से गीता आदि छूट गई। बाबा की प्रवेशता थी ना। फिर कभी हाथ भी नहीं लगाया। एक बाप को ही याद करने लगा। यह कहते हैं मैं भी उस बाप से सुनने लगा। शिवबाबा कहते हैं– हम जब बच्चों को सुनाते थे तो यह भी सुनते थे। इनके तन में मैं प्रवेश कर आया हूँ, इसलिए इनका नाम रखा है अर्जुन। शास्त्रों में घोड़े का रथ दिखाते हैं। कितना फर्क है। घोड़े गाड़ी में एक को बैठ ज्ञान दिया क्या? अभी तुम समझते हो यह कैसे हो सकता है। तुम प्रैक्टिकल देख रहे हो– बाबा कैसे पढ़ाते हैं। कितने सेन्टर्स हैं। तो पढ़ाने के लिए जरूर पाठशाला चाहिए, न कि युद्ध का मैदान। बाबा राजयोग सिखाता है। सतयुग में कोई शास्त्र होता नहीं। मैंने अब ज्ञान सुनाया। बस सतयुग में दरकार ही नहीं। पुरानी दुनिया का जो कुछ है यह सब खाक में मिल जायेगा। यह राजस्व अश्वमेध यज्ञ है। अश्व इस रथ को कहा जाता है, इनको भी स्वाहा करना है। आत्मा बाप की बनी फिर यह पुराना शरीर भी खत्म हो जायेगा। कृष्णपुरी में यह छी-छी शरीर थोड़ेही ले जायेंगे। आत्मा अमर है। होली में दिखाते हैं– कोकी जल जाती है, धागा नहीं जलता है। बाबा फिर बेहद की बात समझाते हैं– अब तक जो सुना है वह भूल जाओ। अब भारत झूठ खण्ड बन गया है, कल सचखण्ठ था। सचखण्ड बाप ने बनाया फिर रावण ने झूठ खण्ड बनाया। यह रावण सबका पुराना दुश्मन है। बस कोई ने जो बोला उस पर चल पड़ते हैं। जैसे देलवाड़ा मन्दिर में आदि देव का नाम महावीर रख दिया है। महावीर हनूमान को कहा जाता है। अब कहाँ वह, कहाँ यह। इस मन्दिर में हूबहू तुम्हारा यादगार है। ऊपर स्वर्ग, नीचे तपस्या। आदिनाथ की मूर्ति गोल्डन बनाई है। कहते हैं ना– भारत सोने की चिडि़या थी। भारत जितना सोना और कोई जगह नहीं। सोने के महल बने थे। छतों में दीवारों में हीरे जवाहर लगे हुए थे। मन्दिरों में कितने हीरे-जवाहर थे जो फिर लूट गये। मस्जिदों में जाकर लगाये। तो उस समय क्या वैल्यु होगी। अकीचार धन था तब तो लूटकर ले गये। यह सब जानते हैं कि प्राचीन भारत बहुत साहूकार था। अब कितना गरीब बन गया है। गरीब पर तरस पड़ता है। रावण ने कितना इनसालवेन्ट बनाया है। बाप फिर सालवेन्ट बनाते हैं। यह बेहद का नाटक है, इसके आदि-मध्य-अन्त को कोई भी नहीं जानते। बाप नॉलेजफुल है। ऐसे नहीं कि सबके अन्दर को बैठ देखता हूँ। यह सब ड्रामा में नूँध है। पाप जो करते हैं उनकी सजा तो मिलती ही है। मेरे को तो कहते ही हैं नॉलेजफुल, पतित-पावन। पुकारते हैं हे बाबा आओ, आकर हमको नॉलेज दो। पावन बनाओ। तो मैं यह कार्य आकर करता हूँ। बाकी शास्त्रों की जो बातें हैं, वह बाप कहते हैं भूल जाओ और जो मैं सुनाता हूँ वह सुनो। अब बाप द्वारा राजयोग सीख रहे हो। फिर सूर्यवंशी बनेंगे। फिर चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी, शूद्रवंशी बनेंगे। यह ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। सतयुग में सब भूल जायेगा। वहाँ बाप को कोई याद नहीं करते हैं। वर्सा मिल गया फिर याद किसलिए करेंगे। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। वृक्षपति है ही बाप। वह कहते हैं मुझे याद करो। क्रियेटर एक होता है कि पत्थर-ठिक्कर भी क्रियेटर होंगे? बाप कहते हैं कि रावण ने तुम्हारी बुद्धि कितनी खराब कर दी है। बड़े-बड़े विद्वानों को अहंकार कितना है। बाप को जानते ही नहीं। न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। बाप कहते हैं– मैंने तुमको राजाई दे दी। तुमने सब धनदौलत खत्म कर दिया, अब भीख मांग रहे हो, इसलिए आसुरी सम्प्रदाय कहा गया है। देवताओं की कितनी महिमा गाई है। फिर कहते हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। अब तुम बच्चों को गुण धारण करने हैं, अवगुणों को निकाल दो। रावण ने तुमको बन्दर मिसल बना दिया है। अब बाप तुमको देवता बनाते हैं। जिसमें 5 विकार हैं उनको बन्दर कहा जाता है। (नारद का मिसाल) अभी तुम्हारी सीरत बदलती जाती है फिर हम देवता बन जायेंगे। इस ज्ञान सरोवर में डुबकी मार हम ज्ञान परी बन जाते हैं। उन्होंने फिर पानी को मान-सरोवर समझ लिया है। यह है ज्ञान स्नान की बात। यह तो बच्चे जानते हैं, बाबा हूबहू 5 हजार वर्ष पहले मिसल हमको समझा रहे हैं, इसमें कोई संशय पड़ नहीं सकता। पतित-पावन बाप को और विष्णुपुरी को याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। मनुष्य मुक्ति के लिए कितना माथा मारते हैं परन्तु घर का किसको भी पता नहीं है। कोई समझते हैं आत्मा लीन हो जायेगी। कोई समझते हैं आत्मा दूसरा शरीर लेती नहीं। अनेक मत हैं, बाप को कोई जानता ही नहीं। सारी दुनिया समझती है कृष्ण भगवानुवाच। यहाँ बाप कहते हैं शिव भगवानुवाच। कितना रातदिन का फर्क है। नाम ही एकदम बदल दिया है। अच्छा। मीठे-मीठे बच्चों, बापदादा दोनों कहते हैं। दोनों के बच्चे हैं ना। यह भी स्टूडेन्ट, तुम भी स्टूडेन्ट। यह भी पढ़ रहे हैं। जो भारत को पावन बनाने की सर्विस में हैं, वही बच्चे ठहरे। जो पावन नहीं बनते उनको देखते भी बाबा नहीं देखते। समझते हैं सजायें खाकर फिर आकर बबोरची बनेंगे। जो पावन बनते हैं, वह विश्व के मालिक बनेंगे। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) स्वीट बनने के लिए स्वीट बाप को बड़े प्यार से याद करना है। सच्चे बाप से सच्चा रहना है। एक बाप की श्रेष्ठ मत पर चलना है।
2) पुरूषार्थ कर सम्पूर्ण बनना है। भारत को पावन बनाने की सर्विस करनी है। किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है।
वरदान:
संकल्प के इशारों से सारी कारोबार चलाने वाले सदा लाइट के ताजधारी भव
जो बच्चे सदा लाइट रहते हैं उनका संकल्प वा समय कभी व्यर्थ नहीं जाता। वही संकल्प उठता है जो होने वाला है। जैसे बोलने से बात को स्पष्ट करते हैं वैसे ही संकल्प से सारी कारोबार चलती है। जब ऐसी विधि अपनाओ तब यह साकार वतन सूक्ष्मवतन बनें। इसके लिए साइलेन्स की शक्ति जमा करो और लाइट के ताजधारी रहो।
स्लोगन:
इस दु:खधाम से किनारा कर लो तो कभी दु:ख की लहर आ नहीं सकती।