Saturday, November 19, 2016

मुरली 20 नवंबर 2016

20-11-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:29-12-81 मधुबन 

दूरदेशी बच्चों से दूर देशी बापदादा का मिलन
आज बापदादा अपने लवली अर्थात् लवलीन बच्चों से मिलने आये हैं। दूरदेश से आये हैं। दूरदेश से आये हुए बच्चों से दूरदेशी बापदादा मिलन मनाने के लिए आये हैं। जितना बच्चों ने बापदादा को दिल से याद किया तो दिल की याद का रेसपान्ड दिलाराम बाप देने के लिए आये हैं। आप एक-एक लवलीन आत्मायें दिखाई दे रही हैं। जिन्होंने दूर होते हुए भी अपना याद प्यार भेजा है, वो सब लवली आत्मायें आकारी रूप में इस संगठन के बीच बापदादा के सामने इमर्ज हैं। बापदादा के सामने बहुत बड़ी सभा लगी हुई है। आप सबके अन्दर जो सबका याद-प्यार समाया हुआ है वह याद का रूप आकार रूप में सबके साथ है। बापदादा सभी बच्चों के उमंग-उत्साह और खुशी के गीत सुन रहे हैं। इतने प्यार के, खुशी के गीत बापदादा सिर्फ देख नहीं रहे हैं। लेकिन देखने के साथ-साथ गीत माला सुन भी रहे हैं। सभी बच्चों के अन्दर, दिल में वा नयनों में एक ही बाप के याद की एकरस स्थिति की झलक दिखाई दे रही है। “एक बाप दूसरा न कोई”, इसी स्थिति में स्थित बच्चों को देख रहे हैं। आज मेले में आये हैं। वाणी सुनाने नहीं आये हैं। सिर्फ तकदीरवान बच्चों की तस्वीरें देखने आये हैं। खिले हुए रूहे गुलाब बच्चों की खुशबू लेने आये हैं। सभी बच्चों ने हिम्मत के आधार पर, स्नेह का प्रत्यक्ष फल सम्मुख मिलन का अच्छा दिखाया है। भिन्न-भिन्न प्रकार के बन्धनों को पार करते हुए अपने स्वीट होम में पहुंच गये हैं। ऐसे बन्धनमुक्त बच्चों को बापदादा पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों की भी कमाल है। यह छोटे बच्चे संगमयुग का श्रृंगार हैं और भविष्य में क्या करेंगे? अब के श्रृंगार हो, भविष्य के अधिकारी हो। सबकी हथेली पर स्वर्ग के स्वराज्य का गोला दिखाई दे रहा है ना। जो चित्र बनाया है वह एक का नहीं है, आप सबका है। अपना चित्र देखा है। समझते हो हम सबका चित्र है या एक श्रीकृष्ण का है? किसका है? आप सबका है या नहीं? तो सदा याद रहता है कि आज ब्राह्मण और कल फरिश्ते से देव-पदधारी बने कि बने? नॉलेज के दर्पण से अपना यह चित्र “फरिश्ता सो देवता” सदा दिखाई देता है? जैसे अभी सबके दिल का आवाज सदा निकलता है, कौन सा? “मेरा बाबा”। ऐसे सदा नॉलेज के दर्पण में अपना चित्र देखते हुए यह आवाज निकलता है कि यह मेरा चित्र है? “मेरा बाबा” मेरा चित्र! क्योंकि अभी अपने राज्य और राज्य करने के राज्य-अधिकारी स्वरूप के बहुत समीप आ रहे हो। जो समीप चीज आ जाती है वह स्पष्ट अनुभव होती है। तो ऐसे स्पष्ट अपना फरिश्ता स्वरूप, देवता स्वरूप अनुभव होता है? अच्छा। आज तो विशेष बच्चों ने बुलाया और बापदादा बच्चों के आज्ञाकारी होने के कारण मिलन मनाने आये हैं। विशेष एक दो आत्माओं के कारण सभी बच्चों से मिलन हुआ। यही लगन का रेसपान्ड है। अच्छा– डबल फारेनर्स की पसन्दी सदा अलग-अलग मिलने की होती है। जैसे बाप बच्चों का दिल देखते हैं वैसे ही बाप भी बच्चों के दिल का रेसपान्ड करते हैं। तो मिलते रहेंगे। अब तो अल्लाह के बगीचे में पहुंच गये हो। मिलन मनाते रहेंगे। अच्छा। ऐसे स्नेह के बन्धन में बंधने वाले और बांधने वाले, सदा लवलीन बच्चों को, सदा बाप के गुणों के गीत गाने वाले खुशमिजाज बच्चों को, सदा खुशी के झूले में झूलने वाले खुशनसीब बच्चों को, सदा खुश रहने की मुबारक के साथ-साथ बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। छोटे-छोटे बच्चों से– बापदादा को छोटे-छोटे बच्चों को देख बहुत खुशी होती है। हरेक बच्चे के मस्तक पर क्या दिखाई दे रहा है? क्या है आपके मस्तक पर? आत्मा मणी के समान चमक रही है। बापदादा सभी बच्चों के मस्तक में चमकती हुई मणी देख रहे हैं। आप सबके मन में क्या संकल्प है? छोटे-छोटे बच्चे अर्थात् बापदादा के गले की माला के मणके। आप बच्चे किस नम्बर में हो, यह जानते हो? (फर्स्ट नम्बर में) लक्ष्य कितना अच्छा रखा है। बापदादा तो छोटे बच्चों को आगे रखेंगे। पीछे नहीं क्योंकि आप सभी छोटे बच्चे जन्म से पवित्र हो और पवित्र आत्माओं के संग में हो इसलिए पवित्र आत्माओं को सदा नयनों पर रखते हैं। तो क्या हो गये आप सभी? आंखों के तारे, नूरे रत्न हो गये ना! ऐसे समझते हो? बच्चों की यादप्यार आने के पहले ही पहुंच गई। सबने बहुत-बहुत, अच्छे-अच्छे चित्र भी भेजे। अच्छे-अच्छे लक्ष्य के संकल्प भी किये। जिन्होंने भी जो लक्ष्य रखा है, कोई टीचर बनकर के जायेंगे, कोई नम्बरवन ब्रह्माकुमारी वा ब्रह्माकुमार बनकर जायेंगे। तो नम्बरवन टीचर वा ब्रह्माकुमार कुमारी की विशेषता क्या ले जायेंगे? बहुत सहज है। सिर्फ एक छोटी-सी बात याद रखनी है। एक बाप की याद में रहना है। एक बाप का सन्देश हरेक को देना है। कोई भी परिस्थिति आये, बात आये, एकरस रहना है। बस यही नम्बरवन ब्रह्माकुमार कुमारी हैं। तो सहज है या मुश्किल है? सभी सुबह को उठते ही गुडमार्निग करते हो? याद में बैठते हो? अभी से भी रोज अमृतवेले उठते ही पहले याद में बैठना। अच्छा– आप सब छोटे-छोटे बच्चों को सबसे अच्छी कौन सी चीज लगती है? (टोली) (फिर तो बापदादा ने सभी को टोली खिलाई) डाक्टर्स के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात सभी ने मिलकर सेकण्ड में शफा देने की कोई गोली निकाली है? आजकल के समय और सरकमस्टान्स प्रमाण अभी सेकण्ड में शफा पाने की इच्छुक अनेक आत्मायें हैं। प्रदर्शनी समझाओ, चाहे भाषण करो लेकिन सब भाषण सुनते, प्रदर्शनी देखते इच्छा क्या रखते हैं कि सेकण्ड में शफा पायें। दो इच्छायें सर्व आत्माओं की हैं– एक तो सदा के लिए शफा हो और दूसरा– बहुत जल्दी से जल्दी शफा हो क्योंकि अनेक प्रकार के दु:ख दर्द सहन करते-करते सब आत्मायें थकी हुई हैं। तो आप डबल डाक्टर्स के पास किस इच्छा से आयेंगी? इन दो इच्छाओं को लेकरके आयेंगी। आपस में जो मीटिंग की उसमें ऐसी कोई चीज निकाली? मेडीटेशन में भी सहज तरीका निकाला? एग्जीबीशन तो बनायेंगे और बनी हुई भी है लेकिन हर चित्र में ऐसा सार भरो– जो उसी सार की तरफ अटेन्शन जाते ही शान्ति और सुख की अनुभूति करें क्योंकि विस्तार तो सब जानते हैं लेकिन हर चित्र में रूहानियत हो। जैसे कोई भी चीज में सेन्ट लगा दो, खुशबू लगा दो तो कोई भी चीज में वह खुशबू आकर्षित जरूर करेगी। अनुभव करेंगे, हाँ यह खुशबू कहाँ से आ रही है। चित्र तो भले बनाओ लेकिन चित्र के साथ जो प्रभाव पड़ेगा वह चित्र में भी चैतन्यता भरी हो। जैसे देखो यहाँ मधुबन में जड़ में चैतन्यता का अनुभव करते हो ना! हर स्थान पर जाओ, चाहे झोपड़ी में जाओ लेकिन क्या अनुभव करते हो? चैतन्यता का अनुभव करते हो ना? इसी रीति से वायुमण्डल ऐसा बनाओ, वायब्रेशन ऐसे फैलाओ जो चित्रों में भी चैतन्यता का अनुभव हो। जो भी स्टॉल बनाओ, तो जैसे साइंस वाले कहाँ हरियाली की फीलिंग दिलाते हैं, कहाँ सागर की, पानी की फीलिंग दिलाते हैं। ऐसा स्टॉल बनाते हैं जो अनुभव होता है कि सागर में आ गये हैं, पहाड़ी पर आ गये हैं। इसी रीति से वातावरण ऐसा हो जो अनुभव करें कि सुख के स्थान पर पहुंच गये हैं। वैसे मेहनत जो की है वह अच्छी की है। मिलन भी हुआ, प्लैन भी निकाले। अभी आवश्यकता है प्वॉइन्ट रूप बन प्वॉइन्ट देने की। प्वॉइन्ट द्वारा प्वॉइन्ट बताना यह समय अभी नहीं है। लेकिन प्वॉइन्ट रूप बनकर प्वॉइन्ट शार्ट में देनी है। तो ऐसा स्वयं को भी शक्तिशाली स्टेज पर सदा लाओ और दूसरों को भी ऐसी स्टेज पर खींचो, जो आपके सामने आते ही ऐसे अनुभव करें कि किसी ऐसे स्थान पर पहुंच गये हैं, जहाँ जो प्राप्ति चाहिए वह होगी। जैसे स्थूल डाक्टरी द्वारा पेशेन्ट को फेथ में लाते हो ना कि यह डाक्टर बड़ा अच्छा है, यहाँ से शफा मिल जायेगी। ऐसे रूहानी डाक्टरी में भी ऐसे शक्तिशाली स्टेज हो जो सबका फेथ हो जाए कि यहाँ पहुंचे हैं तो प्राप्ति अवश्य होगी। दोनों ही बातें निकाली हैं ना? दोनों का बैलेन्स हो। वह भी जरूरी है क्योंकि आजकल के समय अनुसार जो बहुत जन्मों के हिसाब-किताब अर्थात् कर्मभोग हैं, वह समाप्त भी जरूर होने हैं। कर्मभोग का हिसाब खत्म करने के लिए स्थूल दवाई और कर्मयोगी बनाने के लिए यह रूहानी दवाई। अभी सब भोग कर खत्म करेंगे। चाहे मंसा द्वारा, चाहे शरीर द्वारा। सभी आत्मायें मुक्तिधाम में जायेंगी ना। अभी न रोगी रहेंगे, न डाक्टर रहेंगे। इसकी प्रैक्टिस अन्त में भी होगी। जो डाक्टर होंगे लेकिन कुछ कर नहीं सकेंगे। इतने पेशन्ट होंगे। बस उस समय सिर्फ अपनी दृष्टि द्वारा, वायब्रेशन द्वारा, उनको टैम्प्रेरी वरदान द्वारा शान्ति दे सकते हो। मरेंगे भी बहुत। मरने वालों के लिए जलाने का ही समय नहीं होगा क्योंकि अति में जाना है ना अभी। अति में जाकर अन्त हो जायेगी। अभी के समाचारों के अनुसार भी देखो कोई नई बीमारी फैलती है तो कितनी फास्ट फैलती है। जब तक डाक्टर उस नई बीमारी की दवाई निकालें तब तक कई खत्म हो जाते हैं क्योंकि अति में जा रहा है। और जब ऐसा हो तब तो डाक्टर भी समझें कि हमसे भी कोई श्रेष्ठ चीज है। अभी तो अभिमान के कारण कहते हैं, आत्मा वगैरा कुछ नहीं है। डाक्टरी ही सब कुछ है। फिर वह भी अनुभव करेंगे। जब कुछ भी कन्ट्रोल नहीं कर पायेंगे तो कहाँ नजर जायेगी? अभी तो नई-नई बीमारियां कई आने वाली हैं। लेकिन यह नई बीमारियां नया परिवर्तन लायेंगी। आप लोग तो बहुत-बहुत भाग्यवान आत्मायें हो जो विनाश के पहले अपना अधिकार पा लिया। और सब चिल्लायेंगे, हाय हमने कुछ नहीं पाया और आप बापदादा के साथ दिल तख्त नशीन होकर उन्हों को वरदान देंगे। तो कितने भाग्यवान हो। सदा ही खुश रहते हो ना? सदा इसी मस्ती में झूमते हुए सभी पेशन्ट को भी सदा खुशी के झूले में झुलाओ। फिर आपको ही भगवान का अवतार मानने लग जायेंगे लेकिन आप फिर इशारा करेंगे यथार्थ की तरफ। जब ऐसे भावना में आवें तब इशारा कर सकेंगे ना। तो सभी ऐसे तैयार हो ना? सभी डाक्टर का बहुत अच्छा ग्रुप है। अब ऐसा ही वी. आई. पीज ग्रुप लाओ। जो जैसा होता है वह वैसा ही लाता है ना। तो जितने डाक्टर्स आये हैं उतने वी. आई. पीज तो आयेंगे ही ना। फारेन में भी अनुभव के आगे सब झुक जाते हैं। साइंस, साइलेंस की शक्ति के आगे झुकेगी जरूर। अभी बड़े-बड़े साइंस वाले भी नाउम्मीद होने लग गये हैं। कहाँ जायेंगे? जहाँ आप साइलेंस वालों की किरणें दिखाई देंगी वहाँ ही नजर जायेगी। आपके एटम से ही उन्होंने एटम बनाया है। कापी तो आपको की है। अगर आत्मिक शक्ति नहीं होती तो यह एटामिक बाम्बस बनाने वाला कौन? जब चारों ओर अंधकार छा जायेगा तब आपको किरणें अंधकार में स्पष्ट दिखाई देंगी। नॉलेज की लाइट, गुणों की लाइट, शक्तियों की लाइट, सब लाइट्स, लाइट हाउस का कार्य करेंगी। मधुबन में आये रिफ्रेश भी हुए और सेवा भी हुई और प्रत्यक्ष फल भी मिल गया। प्लैन्स जो बनाये हैं उनको आगे बढ़ाते रहना। बापदादा के पास तो आपके संकल्प भी पहुंच जाते हैं। कागज तो आप पीछे लिखते हो। अच्छा। पार्टियों के साथ:- संगमयुगी ब्राह्मणों का श्रृंगार है– सर्वशक्तियां और सर्वगुण सदा बाप की याद के छत्रछाया के अन्दर रहते हो? ऐसे अनुभव करते हो कि सदा बाप की छत्रछाया हमारे ऊपर है? जैसे कल्प पहले के यादगार में देखा है कि पहाड़ी को छत्रछाया बना दिया। तो सारे कलियुगी समस्याओं के पहाड़ को बाप की याद द्वारा समस्या नहीं लेकिन छत्रछाया बना दिया? ऐसे समस्याओं का समाधान करने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान हो? किसी भी प्रकार की समस्या स्वयं को कमजोर तो नहीं बनाती है? विघ्न-विनाशक हो? लगन के आधार पर विघ्न क्या अनुभव होता है? एक खिलौने लगते हैं। इसको कहा जाता है मास्टर सर्वशक्तिवान तो सर्वशक्तियाँ अपने जीवन का एक श्रृंगार बन गई हैं? संगमयुगी ब्राह्मणों का श्रृंगार ही हैं सर्वशक्तियां। तो सर्वशक्तियों से श्रृंगारी हुई सजी सजाई मूर्त। अभी गुणों और शक्तियों से सजे हुए और भविष्य में स्थूल गहनों से सजे हुए। लेकिन अबका श्रृंगार सारे कल्प से श्रेष्ठ है। 16 श्रृंगार, 16 कला सम्पन्न। तो अभी से संस्कार डालने हैं ना। तो ऐसी सजी सजाई मूर्त हो ना। अच्छा।
वरदान:
बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनने वाले अचल-अडोल भव
जो सदा बेहद की वैराग्य वृत्ति में रहते हैं वह कभी किसी भी दृश्य को देख घबराते वा हिलते नहीं, सदा अचल-अडोल रहते हैं क्योंकि बेहद की वैराग्य वृत्ति से नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बन जाते हैं। अगर थोड़ा बहुत कुछ देखकर अंश मात्र भी हलचल होती है या मोह उत्पन्न होता है तो अंगद के समान अचल-अडोल नहीं कहेंगे। बेहद की वैराग्य वृत्ति में गम्भीरता के साथ रमणीकता भी समाई हुई है।
स्लोगन:
राज्य अधिकारी के साथ-साथ बेहद के वैरागी बनकर रहना यही राजऋषि की निशानी है।