Friday, February 24, 2012

Murli [24-02-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम सबको सच्ची गीता सुनाकर सुख देने वाले सच्चे-सच्चे व्यास हो, तुम्हें अच्छी तरह पढ़कर सबको पढ़ाना है, सुख देना है''
प्रश्न: सबसे ऊंची मंजिल कौन सी है, जिस पर पहुंचने का तुम पुरूषार्थ करते हो?
उत्तर: अपने को अशरीरी समझना, इस देह-अभिमान पर जीत पाना - यही ऊंची मंजिल है क्योंकि सबसे बड़ा दुश्मन है देह-अभिमान। ऐसा पुरुषार्थ करना है जो अन्त में बाप के सिवाए कोई याद न आये। शरीर छोड़ बाप के पास जाना है, यह शरीर भी याद न रहे। यही मेहनत करनी है।
गीत:- इस पाप की दुनिया से....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) योगबल से अपने सब बन्धनों को काट बंधनमुक्त होना है, किसी में भी मोह नहीं रखना है।
2) जो भी ईश्वरीय डायरेक्शन मिलते हैं उन पर पूरा-पूरा चलना है। अच्छी तरह से पढ़ना और पढ़ाना है। मियाँ मिटठू नहीं बनना है।
वरदान: एकरस स्थिति के आसन पर मन-बुद्धि को बिठाने वाले सच्चे तपस्वी भव
तपस्वी सदा आसनधारी होते हैं, वे कोई न कोई आसन पर बैठकर तपस्या करते हैं। आप तपस्वी बच्चों का आसन है-एकरस स्थिति, फरिश्ता स्थिति। इन्हीं श्रेष्ठ स्थितियों के आसन पर स्थित होकर तपस्या करो। जैसे स्थूल आसन पर शरीर बैठता है ऐसे श्रेष्ठ स्थिति के आसन पर मन-बुद्धि को बिठा दो और जितना समय चाहो, जब चाहो - आसन पर बैठ जाओ। इस समय श्रेष्ठ स्थिति के आसन पर बैठने वालों को भविष्य में राज्य का सिंहासन प्राप्त होता है।
स्लोगन: दूसरे के विचारों को अपने विचारों से मिलाकर सर्व को सम्मान देना ही माननीय बनने का साधन है।