मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - एक बाप ही है जिसकी अपरमअपार महिमा है, बाप जैसी महिमा और किसी की भी हो नहीं सकती''
प्रश्न: तुम बच्चों को इस पढ़ाई का बहुत-बहुत कदर होना चाहिए - क्यों?
उत्तर: क्योंकि सारे कल्प में एक ही बार बाप परमधाम से पढ़ाने के लिए आते हैं। मनुष्य पढ़ने के लिए भारत से विदेश में जाते, यह कोई बड़ी बात नहीं। यहाँ तो पढ़ाने वाला कितनी दूर से आता है। तो बच्चों को पढ़ाई का बहुत कदर होना चाहिए। थोड़ी दिक्कत भी हो तो हर्जा नहीं। तुम्हारे स्कूल गली-गली में बनने चाहिए, नहीं तो इतने सब पढ़ेंगे कैसे! बाबा का परिचय तो सबको मिलना है जरूर।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) श्रीमत पर सदा श्रेष्ठ बनने का पुरूषार्थ करना है। पढ़ाई के लिए बहाना नहीं देना है। पढ़ाई पढ़नी जरूर है।
2) जैसे आदि में पवित्र गृहस्थ आश्रम था, ऐसे अभी अपना पवित्र गृहस्थ आश्रम बनाना है। बलिहारी एक बाप की है, उसका ही गुणगान करना है।
वरदान: डबल लाइट स्थिति द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव
अभी चढ़ती कला का समय समाप्त हुआ, अभी उड़ती कला का समय है। उड़ती कला की निशानी है डबल लाइट। थोड़ा भी बोझ होगा तो नीचे ले आयेगा। चाहे अपने संस्कारों का बोझ हो, वायुमण्डल का हो, किसी आत्मा के सम्बन्ध-सम्पर्क का हो, कोई भी बोझ हलचल में लायेगा इसलिए कहीं भी लगाव न हो, जरा भी कोई आकर्षण आकर्षित न करे। जब ऐसे आकर्षण मुक्त, डबल लाइट बनो तब सम्पूर्ण बन सकेंगे।
स्लोगन: स्नेह का चुम्बक बनो तो ग्लानि करने वाले भी समीप आकर स्नेह के पुष्पों की वर्षा करेंगे।