Tuesday, February 6, 2018

07-02-18 प्रात:मुरली

07-02-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम्हें क्षीरखण्ड होकर रहना है, मतभेद में नहीं आना है, कोई भी गन्दी आदत है तो उसे छोड़ देना है, किसी को भी दु:ख नहीं देना है”
प्रश्न:
जन्म-जन्मान्तर के लिए ऊंच पद पाने के लिए कौन सा रहम स्वयं पर जरूर करना है?
उत्तर:
स्वयं की अन्दर से जांच करके जो भी बुरी आदतें हैं, क्रोध आदि विकार हैं उन्हें निकाल देना, क्षीरखण्ड होकर रहना, एक की श्रीमत पर चलना, मतभेद में न आना, कोई भी ईविल बातें न सुनना, न सुनाना - यही अपने ऊपर रहम करना है। इससे ही जन्म-जन्मान्तर के लिए ऊंच पद मिल जाता है। जो अपने ऊपर रहम नहीं करते वह 21 जन्मों के सुख को लकीर लगा देते हैं।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए......  
ओम् शान्ति।
शिवबाबा की महिमा बच्चों ने सुनी। यह महिमा कौन करते हैं और कौन जानते हैं? सिर्फ ब्राह्मण कुल भूषण अर्थात् नई मनुष्य सृष्टि की सम्प्रदाय जिन्हें परमपिता परमात्मा ने अपना बनाया या जन्म दिया है वही जानते हैं क्योंकि पहले-पहले इस सृष्टि में वही ब्रह्मा द्वारा जन्म लेते हैं। जैसे तुमने पहले-पहले जन्म लिया है परमपिता परमात्मा से। तो वह है सभी का सहायक, सारी दुनिया का सहायक, सभी दु:ख दूर करने वाला है। मनुष्य बहुत दु:खी हैं क्योंकि अभी है कलियुग का अन्त। तो सभी का सहायक बनते हैं। फिर भी अक्षर हैं ना आम और खास। तो खास भारत का है, उनमें भी खास जो बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में आकर मिलते हैं अर्थात् जो पहले-पहले सृष्टि पर आते हैं। तुम बच्चे जानते हो तो कैसे सबका सहायक आकर बनते हैं। भगत भगवान को याद करते हैं, परन्तु भगवान को जानते नहीं हैं। जब भगवान को ही नहीं जानते हैं तो भगवान जो नई ब्राह्मण मुख वंशावली रचते हैं, उनको भी नहीं जानते। परमपिता परमात्मा आकर पहले-पहले ब्राह्मण सम्प्रदाय रचते हैं, यह कोई को पता ही नहीं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म तो है सतयुग में। बाकी संगमयुग को भूल गये हैं क्योंकि गीता के भगवान को ही द्वापर में ले गये हैं। सतयुग के आदि और कलियुग के अन्त के संगम का किसको पता नहीं है। न गीता के भगवान को जानते हैं। गीता तो है ही सभी शास्त्रों की मात-पिता। ऐसे नहीं कि सिर्फ भारत के शास्त्रों की मात-पिता है। नहीं, जो भी बड़े ते बड़े शास्त्र सारी दुनिया में हैं, सभी की मात-पिता है। भगवानुवाच - मैं तुमको फिर से सहज राजयोग सिखाता हूँ जिसको फिर गीता नाम दिया है। तो अपने को भी कहना पड़ता है कि हम नई गीता सुनाते हैं। पुरानी गीता तो खण्डन की हुई है। यह तो भगवान खुद अपने मुख कंवल से बैठ सुनाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में परमपिता परमात्मा शिव ही याद आता है। वह है स्वर्ग का रचयिता, सबका सहायक। कृष्ण को सभी का सहायक नहीं कहेंगे। भगवान सृष्टि का रचयिता एक ही है। कृष्ण तो स्वयं रचना है। बगीचे का फर्स्टक्लास फूल है। परमपिता परमात्मा को बागवान भी कहते हैं, खिवैया भी कहते हैं। मनुष्य तो समझ न सकें कि खिवैया कैसे है? बरोबर असार संसार से ले जाकर फिर यहाँ नई दुनिया में भेज देते हैं। यहाँ ही फूलों का बगीचा बनाते हैं। सभी बच्चे जो भगत बन गये हैं, असुल भगवान की सन्तान थे, उनको माया दु:खी बनाती है। भगवान तो है ही एक। वह सभी भक्तों को जरूर सुख देता है। कोई भी किसको सुख देता है तब उनको याद करते हैं। स्त्री पति को अथवा बच्चा बाप को अथवा दोस्त, दोस्त को याद करते हैं। जरूर उसने सुख दिया होगा। भाई से भी दोस्त प्यारा होता है क्योंकि सुख देते हैं। तो सुख देने वाले को ही याद किया जाता है। अभी सारी सृष्टि के मनुष्य भगत हैं। मनुष्य के ही 84 जन्म गाये हुए हैं। कुत्ते बिल्ली के 84 जन्म नहीं कहेंगे। गाया भी गया है कि आत्मा परमात्मा अलग रहे.... इस समय मेला होता है। परमपिता परमात्मा सभी बच्चों के बीच आते हैं। महफिल लगी हुई है ना। एक होती है सुख की महफिल, दूसरी होती है दु:ख की। सतयुग में है सुख की महफिल। यहाँ तो दु:ख की कहेंगे। कोई मरते हैं तो भी दु:ख की महफिल लग जाती है। कोई बड़ा आदमी मरता है तो शोक में झण्डा नीचे कर देते हैं। तो दु:ख की महफिल हुई ना। भगत बहुत दु:खी होते हैं तो भगवान को याद करते हैं। परन्तु उनको जानते बिल्कुल नहीं। कहते भी हैं उसने पैदा किया। आखरीन भी उनको जानेंगे या नहीं? अन्त में गायन करते हैं हे भगवान तेरी लीला अपरमअपार है। महिमा गाई हुई है। तुम जानते हो बाप नहीं होता तो सृष्टि चक्र का राज़ कौन समझाता, कौन हमको चक्रवर्ती बनाता?
अब संगम पर तुम सदा के लिए दु:ख से छूटने का प्रयत्न कर रहे हो। संगमयुग कोई बड़ा नहीं है। अपना यह नया जन्म है। यह छोटा सा युग है - हम बच्चों के पुरुषार्थ के लिए। बड़ा इम्तहान है। इनकी सब्जेक्ट सभी इम्तहानों से न्यारी है। पांच विकारों पर जीत पानी है। बहुत मनुष्य कहते हैं पवित्र रहना तो असम्भव है। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए माया को जीतना तो बड़ा मुश्किल है। समझते हैं ऐसा उस्ताद तो मिल न सके। सन्यासी भी घरबार छोड़ने बिगर पवित्र रह नहीं सकते। तो बाप इस माया पर जीत पाने की युक्ति बताते हैं। जैसे कल्प पहले भी सिखाई थी। जब बाबा सिखाते हैं तब हम भगत से ज्ञानी बनते हैं। इसको ही भारत का प्राचीन ज्ञान और योग कहा जाता है। इसको दुनिया में कोई भी नहीं जानते। बाप समझाते हैं यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है और यह देवता धर्म भी लोप हो जाता है। ड्रामा में ही ऐसा है। जब प्राय:लोप हो जाए, सृष्टि दु:खी हो तब तो भगवान आकर फिर से स्थापन करे। यह भी कोई को पता नहीं कि कलियुग की आयु कब पूरी होती है। तुम ही बाप को और इस ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानते हो। देखने में कितने साधारण हो - कुब्जाएं-अहिल्यायें। परन्तु नॉलेज कितनी ऊंची है। अपने सारे 84 जन्मों के चक्र को तुम जानती हो। थोड़ा भी कोई याद करे तो भी अच्छा। परन्तु कोई प्रश्न पूछे और उत्तर देना न आये तो बोलना चाहिए कि हम अभी पढ़ रहे हैं। हमसे बहुत तीखे हैं। वह आपको अच्छी रीति समझा सकेंगे। अपना अहंकार नहीं रखना चाहिए। कह देना चाहिए, हमारी बड़ी बहन जी बहुत तीखी हैं। आप फिर कोई समय आना तो वह समझायेंगी। समझो कोई ऐसा प्रश्न निकलता है तो तीखी भी उसका उत्तर नहीं दे सकती तो बोलना चाहिए हम सब पढ़ रहे हैं। अन्त तक पढ़ते रहेंगे। गुह्य से गुह्य नॉलेज सुनते रहेंगे। यह प्वाइंट अभी हमको समझाई नहीं गई है। यह तो जरूर है, इतना समय जो पड़ा है तो जरूर अजुन गुह्य प्वाइंट रही हुई हैं, जो सुनाते रहेंगे। स्कूल में भी धीरे-धीरे पढ़ाया जाता है। ऐसे थोड़ेही एक ही दिन में सारी नॉलेज मिल जाती है। वैसे यहाँ भी पढ़ाई में, योग लगाने में, आप समान बनाने में समय लगता है। बाप दिन-प्रतिदिन सहज कर समझाते हैं। भगवान एक है, उनको ही सब याद करते हैं। भगवान ही हेविन स्थापन करते हैं तो जरूर देवता बनाने के लिए संगम पर ही राजयोग सिखायेंगे। तो मैनर्स भी ऐसे चाहिए। जब पाप खत्म हों तब तो विजय माला का दाना बनें। टाइम लगता है।
यह है सुहावना संगम का मेला। समझाना है सारी दुनिया के मनुष्य भगत हैं। साधना करते हैं भगवान के लिए कि वह परमात्मा आकर सभी को वापिस ले जाये। मुक्ति जीवनमुक्ति का ज्ञान दे देवे, देवता धर्म की स्थापना करे। सन्यासी तो समझते हैं सुख काग विष्टा समान है। सो तो जरूर इस दुनिया का सुख ऐसा है। परन्तु क्या भारत में कभी सुख नहीं था। सन्यासी तो पसन्द करते हैं मुक्ति को। वह कभी जीवनमुक्ति का ज्ञान दे न सके। भगवान को ही आकर राजयोग सिखाना है। सन्यासियों को नहीं सिखाना है क्योंकि वह कोई आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन नहीं करते हैं। अभी सब कहते भी हैं कि एक मत हो। परन्तु इस दुनिया में तो एकमत हो न सके। अथाह मतें हैं। माता पिता, भाई बहन, काका मामा आदि सभी अनेक मत देने वाले हैं। अब उन पर नहीं चलना है। एक की ही श्रीमत पर चलना है। भगवान आकर एक श्रीमत देते हैं तो फिर एक मत की राजधानी हो जाती है। देवी-देवतायें सदैव क्षीरखण्ड रहते हैं। यहाँ तो बहुत लड़ते झगड़ते रहते हैं। शास्त्रों में भी है कि कौरव पाण्डव दिन में लड़ते थे, रात को क्षीरखण्ड हो जाते थे। यहाँ भी बच्चे समझते हैं कि हमारे में क्रोध का अंश आ गया। बाबा हम आपसे माफी मांगते हैं। तो तुमको भी देखना चाहिए - सारे दिन में किसको दु:ख तो नहीं दिया? किससे मतभेद में तो नहीं आये? किससे ईविल तो नहीं बोला, जिससे कोई को दु:ख हुआ हो? ईविल तो कभी नहीं सुनना चाहिए, ऐसा कुछ देखा, सुना तो बाप को बतलाना चाहिए। बाप ही बच्चों को सब समझाते हैं। नहीं तो आदत पक्की हो जाए। कोई में कोई भी गन्दी आदत है तो छोड़ देना चाहिए, नहीं तो पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे। बादशाही के आगे प्रजा के नौकर चाकर गरीब ही कहेंगे ना। यह मजदूर लोग क्या हैं? वहाँ भी मकान बनाने वाले तो होंगे ना। तो बाप समझाते हैं कभी लूनपानी नहीं होना चाहिए। क्रोध करना बहुत बुरा है। जन्म-जन्मान्तर के सुख को लकीर लग जाती है। अपने ऊपर रहम करते रहो। ज्ञान मार्ग में मैनर्स बहुत अच्छे चाहिए। पांच भूतों को भगाते रहो। बाप श्रीमत देते हैं और क्या करेंगे। बहुत लिखते भी हैं कि बाबा हमारा क्रोध छूट गया है। बीड़ी पीना आदि गंदी आदतें छूट गई हैं। तो गोया अपने पर रहम किया ना। अब हेविनली गॉड फादर स्वर्ग का पद प्राप्त कराने हमको पढ़ा रहे हैं। ऐसा बुद्धि में आता है? यह नशा रहना चाहिए। जितना याद करेंगे उतनी खुशी रहेगी। भल भगवान को सभी तो नहीं जानते परन्तु न जानते भी कल्याण तो सभी का होना है। सभी को यह पता पड़ जाए कि भगवान आया है तो यहाँ भीड़ मच जाए। चीटियों मिसल आकर इकट्ठे हों, मिल भी न सकें इसलिए बड़ा कायदे से यह ड्रामा बना हुआ है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान और योग सीख, भगत से ज्ञानी तू आत्मा बनना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते माया को जीतना है। पवित्र जरूर बनना है।
2) ज्ञान मार्ग में बहुत अच्छे मैनर्स धारण करने हैं। बहुत-बहुत मीठा, निरंहकारी बनना है। ईविल बातें नहीं बोलनी हैं। मतभेद में नहीं आना है।
वरदान:
हर आत्मा से आत्मिक अटूट प्यार रख स्नेह सम्पन्न व्यवहार करने वाले सफलतामूर्त भव!
जैसे बाप के प्रति अटूट, अखण्ड, अटल प्यार है, श्रेष्ठ भावना है, निश्चय है ऐसे ब्राह्मण आत्माओं से आत्मिक प्यार अटूट और अखण्ड हो। किसी के कैसे भी संस्कार हो, चलन हो लेकिन ब्राह्मण आत्माओं का सारे कल्प में अटूट संबंध है, ईश्वरीय परिवार है, बाप ने हर आत्मा को चुनकर ईश्वरीय परिवार में लाया है, यह स्मृति रहे तो आत्मिक प्यार अटूट होने से स्नेह सम्पन्न व्यवहार होगा और सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:
अन्तर्मुखी वह है जो जिस समय चाहे आवाज में आये और जिस समय चाहे आवाज से परे हो जाए।