Wednesday, February 21, 2018

22-02-18 प्रात:मुरली

22-02-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - तुम ब्राह्मण अभी बहुत ऊंची यात्रा पर जा रहे हो, इसलिए तुम्हें डबल इंजन मिली है, दो बेहद के बाप हैं तो दो मां भी हैं''
प्रश्न:
संगमयुग पर कौन सा टाइटिल तुम बच्चे अपने ऊपर नहीं रखवा सकते?
उत्तर:
हिज होलीनेस वा हर होलीनेस का टाइटिल तुम बी.के. अपने पर नहीं रखवा सकते या लिख सकते क्योंकि तुम्हारी आत्मा भल पवित्र बन रही है लेकिन शरीर तो तमोप्रधान तत्वों से बने हुए हैं। यह बड़ाई अभी तुम्हें नहीं लेनी है। तुम अभी पुरुषार्थी हो।
गीत:-
यह कहानी है दीवे और तूफान की.....  
ओम् शान्ति।
बेहद का बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं। यह तो बच्चे समझ गये हैं कि बेहद के दो बाप हैं तो माँ भी जरूर दो होंगी। एक जगदम्बा, दूसरी यह ब्रह्मा भी माता ठहरी। दोनों बैठ समझाते हैं तो तुमको जैसे डबल इन्जन मिल गई। पहाड़ी पर जब गाड़ी जाती है तो डबल इन्जन लगाते हैं ना! अब तुम ब्राह्मण भी ऊंची यात्रा पर जा रहे हो। तुम जानते हो अभी घोर अन्धियारा है। जब अन्त का समय आता है, तो बहुत हाहाकार होता है। दुनिया बदलती है तो ऐसे होता है। जब राजाई बदली होती है तो भी लड़ाई मारामारी होती है। बच्चे जानते हैं कि अब नई राजधानी स्थापन हो रही है। घोर अन्धियारे से फिर घोर सोझरा हो रहा है। तुम इस सारे चक्र की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानते हो तो तुमको फिर औरों को भी समझाना है। बहुत मातायें अथवा बच्चियां हैं जो स्कूल में पढ़ाती हैं वह भी बच्चों को बैठ अगर बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझायें तो इसमें कोई गवर्मेन्ट नाराज़ नहीं होगी। उन्हों के बड़ों को भी समझाना चाहिए तो और ही खुश होंगे। उन्हों को समझाना चाहिए कि जब तक इस बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को नहीं समझा है तब तक बच्चों का कल्याण नहीं हो सकता। दुनिया में जयजयकार नहीं हो सकती। बच्चों को सर्विस करने का इशारा दिया जाता है। टीचर है तो अपने कॉलेज में अगर यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बैठ समझाये तो बच्चे त्रिकालदर्शी बन सकते हैं। और त्रिकालदर्शी बनने से चक्रवर्ती भी बन सकते हैं। जैसे बाप ने तुमको त्रिकालदर्शी, स्वदर्शन चक्रधारी बनाया है तो तुमको फिर औरों को आप समान बनाना है, औरों को समझाना है कि अब यह पुरानी दुनिया बदल रही है। तमोप्रधान दुनिया बदल सतोप्रधान बन रही है। सतोप्रधान बनाने वाला एक ही परमपिता परमात्मा है जो सहज राजयोग और स्वदर्शन चक्र का ज्ञान देते हैं। चक्र को समझाना तो बड़ा सहज है। अगर यह चक्र सामने रखा जाए तो भी मनुष्य आकर समझ सकें कि सतयुग में कौन-कौन राज्य करते थे। फिर द्वापर से कैसे अनेक धर्मों की वृद्धि होती है। ऐसा अच्छी रीति समझाया जाए तो बुद्धि के कपाट जरूर खुलेंगे। यह चक्र सामने रख तुम अच्छी रीति समझा सकते हो। टॉपिक भी रख सकते हो। आओ तो हम तुमको त्रिकालदर्शी बनने का रास्ता बतायें, जिससे तुम राजाओं का राजा बन सकते हो। तुम ब्राह्मण ही इस चक्र को जानते हो तब तो चक्रवर्ती राजा बनते हो। परन्तु बनेंगे वह जो इस चक्र को बुद्धि में फिराते रहेंगे। बाप तो है ही ज्ञान का सागर, वह बैठ बच्चों को सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। और मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते। ईश्वर सर्वव्यापी कहने से ज्ञान की बात ही नहीं उठती। ईश्वर को जानने का भी कोई पुरुषार्थ नहीं कर सकते हैं फिर तो भक्ति भी चल न सके। परन्तु जो कुछ कहते हैं वह कुछ समझते नहीं। कच्चे समझा भी नहीं सकेंगे कि सर्वव्यापी कैसे नहीं है। कोई एक ने कह दिया बस सभी ने मान लिया। जैसे कोई ने आदि देव को महावीर कहा तो वह नाम चला दिया। जिसने जो नाम बेसमझी से रखा वह चला आता है। अब बाप बैठ समझाते हैं कि तुम मनुष्य होकर ड्रामा के रचयिता और रचना को नहीं जानते हो, देवताओं की पूजा करते हो परन्तु उन्हों की बायोग्राफी को नहीं जानते हो तो इसको ब्लाइन्ड फेथ कहा जाता है। इतने देवी-देवता राज्य करके गये हैं तो जरूर वह समझदार थे तब तो पूज्य बने। अब तुम ब्रह्मा मुख वंशावली यह ज्ञान सुनकर समझदार बनते हो। बाकी तो सारी दुनिया को रावण ने जेल में डाल रखा है। यह है रावण का जेल जिसमें सभी शोक वाटिका में पड़े हैं। कान्फ्रेन्स करते रहते हैं कि शान्ति कैसे हो? तो जरूर अशान्ति दु:ख है, गोया सभी शोक वाटिका में बैठे हैं। अभी शोक वाटिका से अशोक वाटिका में कोई फट से नहीं जाता है। इस समय कोई भी शान्ति वा सुख की वाटिका में नहीं हैं। अशोक वाटिका कहेंगे सतयुग को, यह तो संगमयुग है तुमको कोई सम्पूर्ण पवित्र कह न सके। हिज होलीनेस कोई बी.के. अपने को कहला नहीं सकते वा लिखवा नहीं सकते। हिज होलीनेस वा हर होलीनेस सतयुग में होते हैं। कलियुग में कहाँ से आये! भल आत्मा यहाँ पवित्र बनती है परन्तु शरीर भी तो पवित्र चाहिए तब हिज होलीनेस कह सकते, इसलिए बड़ाई लेनी नहीं चाहिए। अभी तुम पुरुषार्थी हो। बाप कहते हैं श्री श्री वा हिज होलीनेस सन्यासियों को भी कह नहीं सकते। भल आत्मा पवित्र बनती है परन्तु शरीर पवित्र कहाँ है? तो अधूरे हुए ना। इस पतित दुनिया में हिज वा हर होलीनेस कोई हो नहीं सकता। वह समझते हैं आत्मा परमात्मा सदैव शुद्ध है परन्तु शरीर भी शुद्ध चाहिए। हाँ, लक्ष्मी-नारायण को कह सकते हैं क्योंकि वहाँ शरीर भी सतोप्रधान तत्वों से बनते हैं। यहाँ तत्व भी तमोप्रधान हैं। इस समय किसी को भी सम्पूर्ण पावन नहीं कहेंगे। ऐसे पवित्र तो छोटे बच्चे भी होते हैं। देवताएं सम्पूर्ण निर्विकारी थे।
तो बाप बैठ समझाते हैं तुम कितने समझदार बन रहे हो। तुमको चक्र का भी पूरा-पूरा ज्ञान है। परमपिता परमात्मा जो इस चैतन्य झाड़ का बीज है, उनको सारे झाड़ की नॉलेज है, वही तुमको नॉलेज सुना रहे हैं। इस सृष्टि चक्र के ज्ञान पर तुम कोई को भी प्रभावित कर सकते हो। समझाना चाहिए - तुम परमधाम से आकर यहाँ चोला धारण कर एक्ट कर रहे हो। अभी अन्त में सभी को वापिस जाना है फिर आकर अपना पार्ट बजाना है। यहाँ अभी जो पुरुषार्थ करेगा वह ऐसे ही राजे रजवाड़े वा धनवान के पास जन्म लेगा। सभी नम्बरवार पद पाते हैं। नम्बरवार ट्रांसफर होते जायेंगे। यह भी दिखाया हुआ है - जहाँ जीत वहाँ जन्म... अभी इन बातों को उठाया नहीं जाता है। आगे चलकर रोशनी मिलती जायेगी, इतना तो है अभी जो शरीर छोड़ते हैं उनको जरूर अच्छे घर में जन्म मिलेगा। जो बच्चे जास्ती पुरुषार्थ करते हैं उनको खुशी भी जास्ती चढ़ती है। जो सर्विस में तत्पर रहते हैं उन्हों को नशा रहता है। तुम्हारे सिवाए तो सब अन्धकार में हैं। गंगा स्नान आदि करने से तो कोई के पाप नहीं धुल सकते हैं। योग अग्नि से ही पाप भस्म होते हैं। इस रावण की जेल से छुड़ाने वाला एक बाप ही है तब तो गाते हैं पतित-पावन.. परन्तु अपने को पाप आत्मा समझते नहीं हैं। बाप कहते हैं कल्प पहले भी इन्हों का तुम कन्याओं द्वारा ही उद्धार कराया था। गीता में भी लिखा हुआ है परन्तु कोई समझते नहीं हैं। तुम समझा सकते हो - इस पतित दुनिया में कोई भी पावन नहीं है। परन्तु समझाने में भी बड़ी हिम्मत चाहिए। तुम जानते हो अब दुनिया बदल रही है। तुम अब ईश्वर की सन्तान बने हो। यह ब्राह्मण कुल है सबसे ऊंच। तुमको स्वदर्शन चक्र का ज्ञान है। फिर जब विष्णु के कुल में जायेंगे तो तुमको यह ज्ञान नहीं होगा। अभी ज्ञान है इसलिए तुम्हारा नाम रखा है स्वदर्शन चक्रधारी। इस गुह्य बातों को तुम्हारे बिगर कोई नहीं जानते। कहने मात्र तो सब कह देते हैं कि ईश्वर की सब सन्तान हैं परन्तु प्रैक्टिकल में तुम अभी बने हो। अच्छा-
सभी मीठे-मीठे बच्चों को यादप्यार गुडमार्निंग। बाप का फर्ज है बच्चों को याद करना और बच्चों का फर्ज है बाप को याद करना। परन्तु बच्चे इतना याद नहीं करते, अगर याद करते हैं तो अहो सौभाग्य। अच्छा-मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।

रात्रि क्लास - 8-4-68
यह ईश्वरीय मिशन चल रही है। जो अपने देवी-देवता धर्म के होंगे वही आ जायेंगे। जैसे उन्हों की मिशन है क्रिश्चियन बनाने की। जो क्रिश्चियन बनते हैं उनको क्रिश्चियन डिनायस्टी में सुख मिलता है। वेतन अच्छा मिलता है, इसलिये क्रिश्चियन बहुत हो गये हैं। भारतवासी इतना वेतन आदि नहीं दे सकते। यहाँ करप्शन बहुत है। बीच में रिश्वत न लें तो नौकरी से ही जवाब। बच्चे बाप से पूछते हैं इस हालत में क्या करें? कहेंगे युक्ति से काम करो फिर शुभ कार्य में लगा देना।
यहाँ सभी बाप को पुकारते हैं कि आकर हम पतितों को पावन बनाओ, लिबरेट करो, घर ले जाओ। बाप जरूर घर ले जायेंगे ना। घर जाने लिये ही इतनी भक्ति आदि करते हैं। परन्तु जब बाप आये तब ही ले जाये। भगवान है ही एक। ऐसे नहीं सभी में भगवान आकर बोलते हैं। उनका आना ही संगम पर होता है। अभी तुम ऐसी-ऐसी बातें नहीं मानेंगे। आगे मानते थे। अभी तुम भक्ति नहीं करते हो। तुम कहते हो हम पहले पूजा करते थे। अब बाप आया है हमको पूज्य देवता बनाने लिये। सिक्खों को भी तुम समझाओ। गायन है ना मनुष्य से देवता....। देवताओं की महिमा है ना। देवतायें रहते ही हैं सतयुग में। अभी है कलियुग। बाप भी संगमयुग पर पुरुषोत्तम बनने की शिक्षा देते हैं। देवतायें हैं सभी से उत्तम, तब तो इतना पूजते हैं। जिसकी पूजा करते हैं वह जरूर कभी थे, अभी नहीं हैं। समझते हैं यह राजधानी पास्ट हो गई है। अभी तुम हो गुप्त। कोई जानते थोड़ेही हैं कि हम विश्व के मालिक बनने वाले हैं। तुम जानते हो हम पढ़कर यह बनते हैं। तो पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन देना है। बाप को बहुत प्यार से याद करना है। बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं तो क्यों नहीं याद करेंगे। फिर दैवीगुण भी चाहिए।

दूसरा - रात्रि क्लास 9-4-68
आजकल बहुत करके यही कान्फ्रेन्स करते रहते हैं कि विश्व में शान्ति कैसे हो! उन्हों को बताना चाहिए देखो सतयुग में एक ही धर्म, एक ही राज्य, अद्वैत धर्म था। दूसरा कोई धर्म ही नहीं जो ताली बजे। था ही रामराज्य, तब ही विश्व में शान्ति थी। तुम चाहते हो विश्व में शान्ति हो। वह तो सतयुग में थी। पीछे अनेक धर्म होने से अशान्ति हुई है। परन्तु जब तक कोई समझे तब तक माथा मारना पड़ता है। आगे चलकर अखबारों में भी पड़ेगा, फिर इन सन्यासियों आदि के भी कान खुलेंगे। यह तो तुम बच्चों की खातिरी है कि हमारी राजधानी स्थापन हो रही है। यही नशा है। म्युज़ियम का भभका देख बहुत आयेंगे। अन्दर आकर वन्डर खायेंगे। नये नये चित्रों पर नई नई समझानी सुनेंगे।
यह तो बच्चों को मालूम है - योग है मुक्ति जीवनमुक्ति के लिये। सो तो मनुष्य मात्र कोई सिखला न सके। यह भी लिखना है सिवाय परमपिता परमात्मा के कोई भी मुक्ति-जीवनमुक्ति के लिये योग सिखला नहीं सकते। सर्व का सद्गति दाता है ही एक। यह क्लीयर लिख देना चाहिए, जो भल मनुष्य पढ़ें। सन्यासी लोग क्या सिखाते होंगे। योग-योग जो करते हैं, वास्तव में योग कोई भी सिखला नहीं सकते हैं। महिमा है ही एक की। विश्व में शान्ति स्थापन करना वा मुक्ति जीवन्मुक्ति देना बाप का ही काम है। ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन कर प्वाइन्ट्स समझानी है। ऐसा लिखना चाहिए जो मनुष्यों को बात ठीक जंच जाये। इस दुनिया को तो बदलना ही है। यह है मृत्युलोक। नई दुनिया को कहा जाता है अमरलोक। अमरलोक में मनुष्य कैसे अमर रहते हैं, यह भी वन्डर है ना। वहाँ आयु भी बड़ी रहती है और समय पर आपे ही शरीर बदली कर देते हैं, जैसे कपड़ा चेंज किया जाता है। यह सभी समझाने की बाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप व दादा का याद प्यार, गुडनाईट और नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सृष्टि चक्र के ज्ञान से स्वयं भी त्रिकालदर्शी और स्वदर्शन चक्रधारी बनना है और दूसरों को भी बनाने की सेवा करनी है।
2) संगम पर शोक वाटिका से निकल सुख शान्ति की वाटिका में चलने के लिए पवित्र जरूर बनना है।
वरदान:
हंस आसन पर बैठ हर कार्य करने वाले सफलता मूर्त विशेष आत्मा भव
जो बच्चे हंस आसन पर बैठकर हर कार्य करते हैं उनकी निर्णय शक्ति श्रेष्ठ हो जाती है इसलिए जो भी कार्य करेंगे उसमें विशेषता समाई हुई होगी। जैसे कुर्सी पर बैठकर कार्य करते हो वैसे बुद्धि इस हंस आसन पर रहे तो लौकिक कार्य से भी आत्माओं को स्नेह और शक्ति मिलती रहेगी। हर कार्य सहज ही सफल होता रहेगा। तो स्वयं को हंस आसन पर विराजमान विशेष आत्मा समझ कोई भी कार्य करो और सफलतामूर्त बनो।
स्लोगन:
स्वभाव के टक्कर से बचने के लिए अपनी बुद्धि, दृष्टि व वाणी को सरल बना दो।