Tuesday, February 13, 2018

14-02-18 प्रात:मुरली

14-02-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - श्री श्री की श्रेष्ठ मत पर चलने से ही तुम नर से श्री नारायण बनेंगे, निश्चय में ही विजय है''
प्रश्न:
ईश्वर की डायरेक्ट रचना में कौन सी विशेषता अवश्य होनी चाहिए?
उत्तर:
सदा हर्षित रहने की। ईश्वर की रचना के मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकलते रहें। चलन बड़ी रॉयल चाहिए। बाप का नाम बदनाम करने वाली चलन न हो। रोना, लड़ना-झगड़ना, उल्टा सुल्टा खाना... यह ईश्वरीय सन्तान के लक्षण नहीं। ईश्वर की सन्तान कहलाने वाले अगर रोते हैं, कोई अकर्तव्य करते हैं, तो बाप की इज्जत गँवाते हैं इसलिए बच्चों को बहुत-बहुत सम्भाल करनी है। सदा ईश्वरीय नशे में हर्षितमुख रहना है।ओम् शान्ति। बच्चों का मुखड़ा देखना पड़ता है। यह कोई साधू सन्त नहीं, बापदादा और बच्चे हैं। इसको कहा जाता है ईश्वरीय कुटुम्ब परिवार। ईश्वर यानी परमपिता, जिनका बच्चा है यह ब्रह्मा, फिर तुम हो ब्रह्माकुमार कुमारियां। वह है वर्ल्ड का फादर। यूँ सारी दुनिया के तीन फादर तो होते ही हैं। एक निराकार बाप, दूसरा प्रजापिता ब्रह्मा, तीसरा फिर लौकिक बाप। परन्तु यह किसी को भी पता नहीं है। चित्र आदि भी बनाते हैं लेकिन जानते नहीं कि यह कब आये थे? शिव का भी चित्र है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी चित्र है। परन्तु वह क्या पार्ट बजाते हैं? उन्हों का नाम क्यों गाया जाता है.... यह कोई भी नहीं जानते। भल बहुत पढ़े हुए हैं, लाखों की संख्या लेक्चर सुनने जाती है। परन्तु तुम बच्चों के आगे जैसे कुछ भी नहीं जानते। बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि हैं। बाबा आकर तुमको स्वच्छ बुद्धि बनाते हैं। तुम सब कुछ जानते हो। ऊंच ते ऊंच बाप है। अब नई रचना रच रहे हैं। नई दुनिया में नई रचना चाहिए ना। गांधी जी भी कहते थे नई दुनिया, नया राज्य चाहिए। भारत ही है जिसमें एक राज्य सतयुग में होता है। सिर्फ सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का राज्य होता है फिर चन्द्रवंशी का राज्य होता है तो सूर्यवंशी प्राय:लोप हो जाता है। फिर कहा जाता है चन्द्रवंशी राज्य। हाँ, वह जानते हैं कि लक्ष्मी-नारायण हो करके गये हैं। परन्तु कहलायेगा राम-सीता का राज्य। तो ब्रह्मा कोई क्रियेटर नहीं है। रचयिता एक बाप है। शिवबाबा रचता आते हैं, आकर बतलाते हैं कि मैं कैसे नई रचना रच रहा हूँ। ब्रह्मा द्वारा तुम ब्राह्मणों को रच रहा हूँ। तो बाप से जरूर वर्सा मिलना चाहिए। यह थोड़ी सी बात भी कोई समझ जाए तो 21 जन्मों के लिए अहो सौभाग्य। कभी भी दु:खी वा विधवा नहीं होंगे। यह किसकी बुद्धि में पूरा नशा ही नहीं है। है बहुत सहज।
गीत:-
तकदीर जगाकर आई हूँ...  
ओम् शान्ति।
तुम आते हो इस पाठशाला में, किसकी पाठशाला है? श्रीमत भगवत की पाठशाला। फिर उनका नाम गीता रख दिया है। श्रीमत श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परमात्मा की है, वह अपने बच्चों को श्रेष्ठ मत दे रहे हैं। आगे तो तुम रावण की आसुरी मत पर चलते आये हो। अब ईश्वर बाप की मत मिलती है। मैं सिर्फ तुम्हारा बाप नहीं हूँ। तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, सतगुरू भी हूँ। जो हमारे बनते हैं, कहते हैं शिवबाबा ब्रह्मा मुख द्वारा हम आपके बन गये। प्रतिज्ञा करते हैं मैं आपकी हूँ, आपकी ही रहूँगी। बाबा भी कहते हैं तुम हमारे हो। अब मेरी मत पर चलना। श्रीमत पर चलने से तुम सो श्रेष्ठ लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे। गैरन्टी है। कल्प पहले भी तुमको नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनाया था। ऐसा कोई मनुष्य कह न सके। किसको कहने आयेगा नहीं। यह बाप ही कहते हैं मेरे बच्चे मैं तुमको राजयोग सिखलाकर फिर से स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। सतयुग है अल्लाह की दुनिया। भगवती, भगवान को अल्लाह कहेंगे। इस समय सब उल्टे लटके हुए हैं। चील आकर टूँगा लगाती है ना। यहाँ भी माया टूँगा लगा देती है। दु:खी होते रहते हैं। अभी बाप कहते हैं तुमको इन दु:खों से, विषय सागर से क्षीर सागर में ले चलते हैं। अब क्षीरसागर तो कोई है नहीं। कह देते हैं विष्णु सूक्ष्मवतन में क्षीरसागर में रहते हैं। यह अक्षर महिमा के हैं। अब मैं ज्ञान सागर तुम बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। तुम काम चिता पर बैठने से जलकर काले बन जाते हो, मैं आकर तुम पर ज्ञान वर्षा करता हूँ, जिससे तुम गोरे बन जाते हो। शास्त्रों में यह अक्षर हैं, सगर राजा के बच्चे जल मरे थे। बातें तो बहुत बना दी हैं। अभी बाप कहते हैं यह सब बातें बुद्धि से निकालो। अब मेरी सुनो। संशयबुद्धि विनश्यन्ती। अब मुझ पर निश्चय रखो तो निश्चयबुद्धि विजयन्ती। विजय माला के दाने बन जायेंगे। माला का राज़ भी समझाया है। जो अच्छी सर्विस करते हैं उनकी विजय माला बनती है। सबसे अच्छी सर्विस करने वाले दाने रूद्र माला में आगे जाते हैं। फिर विष्णु की माला में आगे जायेंगे। नम्बरवार 108, फिर 16000 की भी माला एड करो। ऐसे नहीं सतयुग त्रेता में सिर्फ 108 ही प्रिन्स-प्रिन्सेज होंगे। वृद्धि होते माला बढ़ती जाती है। प्रजा की वृद्धि होगी तो जरूर प्रिन्स-प्रिन्सेज की भी वृद्धि होगी। बाप कहते हैं कुछ भी नहीं समझो तो पूछो। हे मेरे लाडले बच्चे मुझे जानने से तुम सृष्टि झाड़ को जान जायेंगे। यह झाड़ कब पुराना नहीं होता है। भक्तिमार्ग कब शुरू होता है - यह तुम जानते हो। यह है कल्प वृक्ष। नीचे कामधेनु बैठी है। जरूर उनका बाप भी होगा। अभी तुम भी कल्प वृक्ष के तले में बैठे हो, फिर तुम्हारा नया झाड़ शुरू हो जायेगा। प्रजा तो लाखों की अन्दाज में बन गई और बनती जायेगी। बाकी राजा बनना यह जरा मुश्किल है। इसमें भी साधारण, गरीब उठते हैं।
बाबा कहते हैं गरीब-निवाज़ मैं हूँ। दान भी गरीब को किया जाता है। अहिल्यायें, कुब्जायें, पाप आत्मायें जो हैं, ऐसे-ऐसे को मैं आकर वरदान देता हूँ। तुम एकदम सन्यासियों को भी बैठ ज्ञान देंगे। ब्राह्मण बनने बिगर देवता कोई भी बन न सकें। जो देवता वर्ण के थे, वह ब्राह्मण वर्ण में आयें, तब फिर देवता वर्ण में जा सकें। तुम मात पिता... गाते तो सब हैं परन्तु अब तुम प्रैक्टिकल में हो। यह है ब्राह्मणों की नई रचना। ऊंच ते ऊंच चोटी ब्राह्मण, ऊंच ते ऊंच भगवान फिर ईश्वरीय सम्प्रदाय। तो तुमको इतना नशा रहना चाहिए। हम ईश्वर के पोत्रे-पोत्रियां प्रजापिता के बच्चे हैं। अब ईश्वर के बच्चे तो सदैव हर्षित रहने चाहिए। कभी रोना नहीं चाहिए। यहाँ बहुत ब्रह्माकुमार कुमारियां कहलाने वाले भी रोते हैं। खास कुमारियां। पुरुष रोते नहीं हैं। तो रोने वाले नाम बदनाम कर देते हैं। वह माया के मुरीद देखने में आते हैं। शिवबाबा के मुरीद नहीं देखने में आते। बाबा अन्दर में तो समझते हैं परन्तु बाहर से थोड़ेही दिखलायेंगे। नहीं तो और ही गिर पड़ें। बाबा कहते अपनी सम्भाल करो। सतगुरू की निन्दा कराने वाला कभी ठौर नहीं पायेगा। वह समझ लेवे हम राजगद्दी कभी नहीं पायेंगे। तुम्हें तो सदैव हर्षित रहना चाहिए। जब तुम यहाँ हर्षित रहेंगे तब 21 जन्म हर्षित रहेंगे। भाषण करना कोई बड़ी बात नहीं, वह तो बहुत सहज है। कृष्ण जैसा बनना है। तो अभी सदा हर्षितमुख रहो और मुख से रत्न निकलते रहें। मुझ आत्मा को परमपिता परमात्मा का धन मिला है, जो मुझ आत्मा में धारण होता है, सो मैं अपने मुख से दान करता जाता हूँ। जैसे बाबा शरीर का लोन ले दान करते रहते हैं, ऐसी अवस्था चाहिए। बाबा बाहर से भल प्यार देते हैं, परन्तु देखते हैं इनकी चलन बदनामी करने वाली है तो दिल में रहता है यह ठौर नहीं पा सकेंगे। बाबा को उल्हनें भी मिलते हैं ईश्वरीय सन्तान फिर रोते क्यों? आबरू (इज्जत) तो यहाँ ईश्वर की जायेगी ना। रोते हैं, झगड़ते हैं। उल्टा सुल्टा खाते हैं। देवतायें रोते तो भी और बात, यह तो डायरेक्ट ईश्वर की सन्तान रोते हैं तो क्या गति होगी! ऐसा अकर्तव्य कार्य नहीं होना चाहिए, जो बाप की आबरू गँवाओ। हर बात में सम्भाल चाहिए। तुमको ईश्वर पढ़ाते हैं।
इस समय तो जितने मनुष्य उतनी मतें हैं - एक न मिले दूसरे से। तो बाप समझाते हैं यहाँ तुम बैठे हो अपनी ऊंच ते ऊंच तकदीर बनाने। ऊंच तकदीर सिवाए परमात्मा के और कोई बना न सके। सतयुगी सृष्टि के आदि में हैं लक्ष्मी-नारायण। वह तो भगवान ही रचते हैं। उसने लक्ष्मी-नारायण को राज्य कैसे दिया? यथा राजा रानी तथा प्रजा कैसे हुई, यह कोई नहीं जानते। बाबा समझाते हैं कल्प के संगमयुग पर ही मैं आकर लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन करता हूँ। बाबा कहते हैं तुमको राजतिलक दे रहा हूँ। मैं स्वर्ग का रचयिता तुमको राजतिलक नहीं दूँगा तो कौन देगा? कहते हैं ना तुलसीदास चन्दन घिसें.. यह बात यहाँ की है। वास्तव में राम शिवबाबा है। चन्दन घिसने की बात नहीं है। अन्दर बुद्धि से बाप को और वर्से को याद करो। मायापुरी को भूलो, इनमें अथाह दु:ख हैं। यह कब्रिस्तान है। मीठे बाबा और मीठे सुखधाम को याद करो। यह दुनिया तो खत्म होनी है। विदेशों में तो बाम्ब्स आदि गिरायेंगे तो सब मकान गिर जायेंगे, सबको मरना है। किचड़पट्टी खलास होनी है। देवतायें किचड़पट्टी में नहीं रहते हैं। लक्ष्मी का आह्वान करते हैं तो सफाई आदि करते हैं ना। अब लक्ष्मी-नारायण आयेंगे तो सारी सृष्टि साफ हो जायेगी और सब खण्ड खत्म हो जायेंगे, फिर देवतायें आयेंगे। वह आकर अपने महल बनायेंगे। बाम्बे इतनी थी नहीं। गांवड़ा था। अब देखो क्या बन गया है तो फिर ऐसा होगा और खण्ड नहीं रहेंगे। सतयुग में खारे पानी पर गांव नहीं होते हैं। मीठी नदियों पर होते हैं। फिर धीरे-धीरे वृद्धि को पाते हैं। मद्रास आदि होते नहीं। वृन्दावन, गोकुल आदि नदियों पर रहते हैं, वैकुण्ठ के महल वहाँ दिखाते हैं। तुम जानते हो हम यहाँ आये हैं नर से नारायण बनने। सिर्फ मनुष्य से देवता भी नहीं कहो। देवताओं की तो राजधानी है ना। हम आये हैं राज्य लेने। इसको कहा ही जाता है राजयोग। यह कोई प्रजा योग नहीं है। हम पुरुषार्थ करके बाप से सूर्यवंशी राज्य लेंगे। बच्चों से रोज़ पूछना चाहिए कि कोई भूलचूक तो नहीं की? किसको दु:ख तो नहीं दिया? डिस-सर्विस तो नहीं की? थोड़ी सर्विस में थक नहीं जाना चाहिए। पूछना चाहिए सारा दिन क्या किया? झूठ बोलेंगे तो गिर पड़ेंगे। शिवबाबा से कुछ छिप न सके। ऐसा मत समझना - कौन देखता है? शिवबाबा तो झट जान जायेगा। मुफ्त अपनी सत्यानाश करेंगे। सच बताना चाहिए, तब ही सतयुग में नाच करते रहेंगे। सच तो बिठो नच.. खुशी में बहुत हर्षित मुख रहना चाहिए। देखो स्त्री पुरुष हैं। एक के सौभाग्य में स्वर्ग की बादशाही हो, दूसरे के भाग्य में नहीं भी हो सकती है। कोई का सौभाग्य है जो दोनों हथियाला बांधते, हम ज्ञान चिता पर बैठ इकट्ठे जायेंगे।
तुम बच्चे जगदम्बा माँ की बायोग्राफी को जानते हो और कोई 84 जन्म मानेंगे नहीं। उनको भुजायें बहुत दे दी हैं। तो मनुष्य समझेंगे यह तो देवता है, जन्म-मरण रहित है। अरे चित्र तो मनुष्य का है ना। इतनी बाहें तो होती नहीं। विष्णु को भी 4 भुजायें दिखाते हैं - प्रवृत्ति को सिद्ध करने के लिए। यहाँ तो दो भुजायें ही होती हैं। मनुष्यों ने फिर नारायण को 4 भुजा, लक्ष्मी को दो भुजायें दी हैं। कहाँ फिर लक्ष्मी को 4 भुजायें दी हैं। नारायण को सांवरा, लक्ष्मी को गोरा बना दिया है। कारण का कुछ भी पता नहीं पड़ता। तुम अभी जानते हो - देवतायें जो गोरे थे, द्वापर में आकर जब काम चिता पर बैठते हैं तो आत्मा काली बन जाती है। फिर बाप आकर उन्हें काले से गोरा बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मीठे बाबा और मीठे सुखधाम को याद करना है। इस मायापुरी को बुद्धि से भूल जाना है।
2) सर्विस में कभी थकना नहीं है। विजय माला में आने के लिए अथक हो सर्विस करनी है। शिवबाबा से सच्चा रहना है। कोई भूल-चूक नहीं करनी है। किसी को दु:ख नहीं देना है।
वरदान:
एक शमा के पीछे परवाने बन फिदा होने वाले कोटों में कोई श्रेष्ठ आत्मा भव
सारे विश्व के अन्दर हम कोटों में कोई, कोई में भी कोई श्रेष्ठ आत्मायें हैं, जिन्होंने स्वयं अनुभव करके यह महसूस किया है, कि हम कल्प पहले वाली वही श्रेष्ठ आत्मायें हैं, जिन्होंने स्वयं को बाप शमा के पीछे फिदा किया है। हम चक्र लगाने वाले नहीं, परवाने बन फिदा होने वाले हैं। फिदा होना अर्थात् मर जाना। तो ऐसे जल मरने वाले परवाने हो ना! जलना ही बाप का बनना है, जलना अर्थात् सम्पूर्ण परिवर्तन होना।
स्लोगन:
बाबा के मिलन की और सर्व प्राप्तियों की मौज में रहना ही संगमयुग की विशेषता है।