Thursday, February 22, 2018

23-2-18 प्रात:मुरली

23-02-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - इस समय तुम्हें निराकारी मत मिल रही है, गीता शास्त्र निराकारी मत का शास्त्र है, साकारी मत का नहीं, यह बात सिद्ध करो''
प्रश्न:
कौन सी गुह्य बात बड़ी युक्ति से फर्स्टक्लास बच्चे ही समझा सकते हैं?
उत्तर:
यह ब्रह्मा ही श्रीकृष्ण बनते हैं। ब्रह्मा को प्रजापिता कहेंगे श्रीकृष्ण को नहीं। निराकार भगवान ने ब्रह्मा मुख से ब्राह्मण रचे हैं। श्रीकृष्ण तो छोटा बच्चा है। गीता का भगवान निराकार परमात्मा है। कृष्ण की आत्मा ने पुरुषार्थ करके यह प्रालब्ध पाई। यह बहुत गुह्य बात है - जो फर्स्टक्लास बच्चे ही युक्ति से समझा सकते हैं। 20 नाखून का जोर देकर यह बात सिद्ध करो तब सर्विस की सफलता होगी।
गीत:-
कौन आया मेरे मन के द्वारे...  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने सुना यह आंख नहीं जान सकती है, किसको? भगवान को। यह आंखे श्रीकृष्ण को तो जान सकती हैं। बाकी भगवान को नहीं जान सकती। आत्मा ही परमात्मा को जान सकती है। आत्मा मानती है कि हमारा परमपिता परमात्मा निराकार है। निराकार होने कारण, इन आंखों से न देखने कारण इतनी याद नहीं ठहरती। यह निराकार बाप निराकारी बच्चों (आत्माओं) को कहते हैं। तुमको निराकारी मत मिलती है। गीता शास्त्र है ही निराकारी मत का। साकारी मत का नहीं है। गीता धर्मशास्त्र है ना। इस्लामियों आदि का भी धर्म शास्त्र है। इब्राहिम ने उच्चारा, बुद्ध ने, क्राइस्ट ने उच्चारा। उन्हों के तो चित्र हैं। गीता जो सर्व शास्त्रमई शिरोमणी है, उसके लिए मनुष्यों ने श्रीकृष्ण का चित्र दिखा दिया है। परन्तु बाप समझाते हैं यह रांग है। गीता मैंने उच्चारी, मैंने राजयोग सिखलाया और स्वर्ग की स्थापना की है। मैं हूँ निराकार परमपिता परमात्मा। मैं तुम सर्व आत्माओं का बाप मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ। मुझे ही वृक्षपति कहा जाता है। श्रीकृष्ण को वृक्षपति नहीं कहेंगे। परमपिता परमात्मा ही मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, क्रियेटर है। कृष्ण को क्रियेटर नहीं कहेंगे। वह तो सिर्फ दैवी गुण वाला मनुष्य है। कृष्ण को भगवान कहने से मनुष्य मूँझ पड़ते हैं। भगवान है एक। कृष्ण को कोई सभी का परमात्मा नहीं कह सकते। बाप कहते हैं मैं 5 हजार वर्ष के बाद कल्प के संगम पर आता हूँ। मैं सारे सृष्टि का बाप हूँ, मुझे ही गॉड फादर कहते हैं। कृष्ण का नाम देने से परमपिता परमात्मा को जान नहीं सकते। यही बड़ी भारी भूल कर दी है। गीता द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म मैंने ही स्थापन किया है। मुझे शिव वा रूद्र भगवान कहा जाता है और कोई भी सूक्ष्म देवता को वा मनुष्य को भगवान नहीं कहा जाता। लक्ष्मी-नारायण आदि कोई को भी परमात्मा नहीं कहा जाता है। कहा जाता है परमात्मा एक है। भगवानुवाच भी है तो जरूर भगवान आया होगा और आकरके राजयोग सिखाया है। बाप कहते हैं कल्प पहले भी मैंने तुम बच्चों को कहा था। कृष्ण कभी भी बच्चे-बच्चे नहीं कह सकते। परमपिता परमात्मा ही सबको बच्चे कहते हैं। कल्प पहले भी मैंने तुम बच्चों को कहा था कि देही-अभिमानी बनो, मुझ निराकार को अपना बाप भगवान समझो। साकारी बाप प्रजापिता ब्रह्मा ठहरा क्योंकि ब्रह्मा द्वारा ही भगवान ने ब्राह्मण ब्राह्मणियां रचे हैं। श्रीकृष्ण प्रजापिता नहीं है। भगवान कहते हैं मैं ब्रह्मा मुख द्वारा ब्राह्मण ब्राह्मणियां रचता हूँ। कृष्ण ऐसे कह भी न सके। ब्रह्मा बड़ा है, कृष्ण छोटा बच्चा है। ब्रह्मा ही कृष्ण बनता है। यह कितनी गुह्य बात है। यह समझाने में बड़ी युक्ति चाहिए। फर्स्टक्लास बच्चियां ही समझा सकेंगी। बाप कहते हैं बहुत अच्छा बच्चा वा बच्ची हो जो सिद्ध करे कि गीता का भगवान निराकार परमात्मा है। जिसने गीता रची उसने ही बच्चों को राजयोग सिखाया और स्वर्ग रचा। जरूर ऊंचे ते ऊंचा बाप ही राजयोग सिखायेगा। श्रीकृष्ण ने तो प्रालब्ध पाई है। प्रालब्ध देने वाला है परमपिता परमात्मा। कृष्ण है उनका बच्चा। कृष्ण की आत्मा ने पुरुषार्थ किया और प्रालब्ध पाई। पुरुषार्थ कराने वाले को उड़ाकर, पुरुषार्थ कर प्रालब्ध पाने वाले का नाम रख गीता को खण्डन कर दिया है। एक गीता को झू"ा करने से सभी झूठे हो गये हैं, तब कहते हैं झूठी माया झूठी काया...
सर्विस को बढ़ाने के लिए बच्चों को 20 नाखून का जोर देना चाहिए। गीता किसने उच्चारी? गीता द्वारा कौन सा धर्म किसने स्थापन किया? इस ही बात से तुम अच्छी रीति जीत पहन सकते हो। परमपिता परमात्मा द्वारा स्वर्ग के मालिक बनते हैं, ना कि कृष्ण द्वारा। तो इस बात पर मेहनत करनी है। सब शास्त्र हैं गीता के बच्चे। तो बच्चों से कभी वर्सा मिल नहीं सकता। वर्सा तो जरूर बाप ही देंगे। काका, चाचा, मामा, गुरू आदि कोई से भी वर्सा नहीं मिलता है। बेहद के बाप से ही बेहद का वर्सा मिलता है। यह लिखत ऐसी साफ कर लिखनी है कि समझ जायें तो बरोबर गीता खण्डन की है। गीता को डिफेम किया है, इसलिए भारत कंगाल बन गया है। कौड़ी तुल्य बन गया है। ऐसी लिखत लिखो। भारत को स्वर्ग बनाने वाला कौन है? स्वर्ग कहाँ है? कलियुग के बाद सतयुग होगा तो उनकी स्थापना जरूर संगम पर होनी चाहिए। शिव भगवानुवाच - मैं कल्प-कल्प संगम पर पावन दुनिया बनाने आता हूँ। ऐसे सिद्ध करो जो समझें कि शिव परमात्मा ही सबको दु:खों से लिबरेट करते हैं, न कि श्रीकृष्ण। गीता के भगवान को जो समझ जायेंगे वही आकर फूल चढ़ायेंगे। सभी नहीं चढ़ायेंगे, जो समझ गये वह फूल बन बलि चढ़ जायेंगे। बाबा को कोई फूल देते हैं तो बाबा कहते हैं मुझे ऐसे फूल (बच्चे) चाहिए। कांटे मेरे पर बलि चढ़ें तो मैं उनको फूल बनाऊं। बबुलनाथ भी मेरा नाम है। बबुल के कांटों को फूल बनाने वाला मुझे ही कहते हैं, श्रीकृष्ण तो स्वयं फूल है। वह है गार्डन ऑफ अल्लाह, यह है डेविल फारेस्ट। इनको फिर डीटी गार्डन बाप बनाता है। तुम ही नई दुनिया के मालिक बनते हो। लक्ष्मी-नारायण की डीटी डिनायस्टी कही गई है। ब्राह्मण कुल की डिनायस्टी नहीं कहेंगे। यह ब्राह्मण कुल है। परमपिता परमात्मा ने ब्रह्मा द्वारा प्रजा रची है, इसलिए इनको प्रजापिता कहा जाता है। शिवबाबा को वा श्रीकृष्ण को प्रजापिता नहीं कहेंगे। यह तो कृष्ण पर कलंक लगाये हैं कि 16108 रानियां थी। यह तो प्रजापिता ब्रह्मा ने इतने बच्चे और बच्चियां पैदा की हैं।
ज्ञान का सागर है ही एक परमपिता परमात्मा। पाप का दण्ड धर्मराज देते हैं। प्रेजीडेन्ट को भी बड़े से बड़ा जज कसम देंगे। राजा से कभी कसम नहीं उठवाया जाता है क्योंकि उन्हें राजा बनाता है भगवान। वह है अल्पकाल के लिए। यहाँ तो बाप 21 जन्मों के लिए राज्य-भाग्य देते हैं। वहाँ कसम उठाने की बात नहीं है। यह मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष है, कोई जंगली वृक्ष नहीं है। परमपिता परमात्मा को वृक्षपति कहा जाता है। कृष्ण इस वृक्ष का राज़ नहीं बता सकते, वृक्षपति ही समझा सकते हैं। नर से नारायण तो बाप ही बनायेगा, न कि कृष्ण। मुख्य धर्म शास्त्र हैं 4, बाकी सब हैं दन्त कथायें। पहला-पहला धर्म कौन सा स्थापन हुआ और किसके द्वारा? स्वर्ग में था देवी-देवता धर्म, तो जरूर वह बाप ही रचेगा। बाप पुरानी दुनिया से लिबरेट करते हैं क्योंकि दु:ख बहुत है। त्राहि-त्राहि करते हैं। बाप से स्वर्ग का वर्सा लेना है तो अभी लो। साधारण आदमी कोई वर्सा दे नहीं सकता। बच्चों को सर्व प्राप्ति कराने वाला है ही बाप। बेहद का बाप ही स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। ऐसी-ऐसी टैम्पटेशन देनी है। जैसे शिकारी लोग कोई से शिकार कराते हैं तो सारी तैयारी कर शिकार सामने लाकर सिर्फ उनसे शिकार कराते हैं। यहाँ शिकार कराना है माताओं से। बाप कहते हैं शिकार माताओं के आगे ले आना है। मातायें बहुत हैं। नाम एक का बाला हो जाता है। तुम शक्ति सेना हो। शक्ति डिनायस्टी नहीं कहेंगे। शक्ति सेना की मुख्य है जगदम्बा, काली, सरस्वती। बाकी चण्डिका आदि उल्टे नाम भी बहुत रख दिये हैं। तो तुम बच्चों को ऐसी बातों पर क्लीयर करना है कि ऊंचे ते ऊंचा भगवान फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर। प्रजापिता ब्रह्मा की बेटी है सरस्वती। उनको गॉडेज ऑफ नॉलेज कहते हैं। तो जरूर उनके बच्चों को भी गॉडेज ऑफ नॉलेज कहेंगे। अन्त में विजय तो तुम्हारी होने वाली है। कोई-कोई गीता से वेदों का मान ज्यादा रखते हैं। तो भी गीता का प्रचार ज्यादा है। बाप कहते हैं मैं आता हूँ संगमयुग पर। कृष्ण का चित्र है ही सतयुग का। फिर 84 जन्मों में रूप बदलता जाता है। ज्ञानी तू आत्मा तब बन सकते हैं जब परमपिता परमात्मा आकर आत्मा का ज्ञान देवे। परमपिता परमात्मा है ज्ञान का सागर। उन द्वारा तुम ज्ञानी तू आत्मा बनते हो। बाकी सब हैं भक्त तू आत्मा। बाप कहते हैं मुझे ज्ञानी तू आत्मा प्रिय लगते हैं। महिमा सारी गीता की है। ध्यानी से ज्ञानी श्रेष्ठ हैं। ध्यान ट्रांस को कहा जाता है। यह तो बाप से योग लगाना है। ध्यान में जाने से कोई भी फ़ायदा नहीं है।
बाप कहते हैं मैंने राजयोग सिखाया था। कृष्ण को यह प्रालब्ध मैंने ही दी थी। जरूर अगले जन्म में पुरुषार्थ किया होगा। सारी सूर्यवंशी राजधानी ने मेरे द्वारा ही प्रालब्ध पाई है। देलवाड़ा मन्दिर का कान्ट्रास्ट भी ऐसे लिखो जो पढ़ने से ही मनुष्यों को झट तीर लग जाये। फार्म भी भराना है कि बेहद का बाप ज्ञान का सागर है, बहुत मीठा है, हमको राजयोग सिखलाता है। उस सतगुरु बिगर है घोर अन्धियारा। ऐसे बाप की महिमा करने से बुद्धि में लव आयेगा। बाप सम्मुख आकर जन्म दे तब तो लव होगा ना। तुमको जन्म दिया है तब तो लव हुआ है। बाप कहने से ही स्वर्ग याद आता है। बाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। हम उनसे वर्सा ले रहे हैं। विश्वास करो या न करो। बेहद का बाप तो सभी का बाप है, उनसे जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलेगा। कृष्ण से वर्सा मिल न सके। बाप है ही नई दुनिया का रचयिता। तो जरूर नई दुनिया का वर्सा देगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप का प्रिय बनने के लिए बुद्धि में ज्ञान को धारण कर ज्ञानी तू आत्मा बनना है। बाप से योग लगाना है। ध्यान की आश नहीं रखनी है।
2) माताओं को आगे रख उनका नाम बढ़ाना है। अथॉरिटी से गीता के भगवान को सिद्ध करना है। 20 नाखून के जोर से सर्विस को बढ़ाना है।
वरदान:
अपने भरपूर स्टॉक द्वारा सबको शुभभावना-शुभ कामना की गिफ्ट देने वाले मास्टर भाग्य विधाता भव
आप सब भाग्य की लकीर खींचने वाले ब्रह्मा के बच्चे हो इसलिए सदा गोल्डन गिफ्ट का स्टॉक भरपूर रहे। जब भी किसी से मिलते हो तो हर एक को शुभ भावना और शुभ कामना की गिफ्ट सदा देते रहो। विशेषता दो और विशेषता लो। गुण दो और गुण दो। ऐसी गाडॅली गिफ्ट सभी को देते रहो। चाहे कोई किसी भी भावना वा कामना से आये लेकिन आप यह गिफ्ट अवश्य दो तब कहेंगे मास्टर भाग्य विधाता।
स्लोगन:
मेहनत के साथ महानता और रूहानियत का अनुभव करना ही श्रेष्ठता है।----मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -15.1.57---1) 'अपना असली लक्ष्य क्या है?"----पहले पहले यह जानना जरुरी है कि अपना असली लक्ष्य क्या है? वो भी अच्छी तरह से बुद्धि में धारण करना है तब ही पूर्ण रीति से उस लक्ष्य में उपस्थित हो सकेंगे। अपना असली लक्ष्य हैं - मैं आत्मा उस परमात्मा की संतान हूँ। असुल में कर्मातीत हूँ फिर अपने आपको भूलने से कर्मबन्धन में आ गई, अब फिर से वो याद आने से, इस ईश्वरीय योग में रहने से अपने किये हुए विकर्म विनाश कर रहे हैं। तो अपना लक्ष्य हुआ मैं आत्मा परमात्मा की संतान हूँ। बाकी कोई अपने को हम सो देवता समझ उस लक्ष्य में स्थित रहेंगे तो फिर जो परमात्मा की शक्ति है वो मिल नहीं सकेगी। और न फिर तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे अब यह तो अपने को फुल ज्ञान है, मैं आत्मा परमात्मा की संतान कर्मातीत हो भविष्य में जाकर जीवनमुक्त देवी देवता पद पायेंगे, इस लक्ष्य में रहने से वह ताकत मिल जाती है। अब यह जो मनुष्य चाहते हैं हमको सुख शान्ति पवित्रता चाहिए, वो भी जब पूर्ण योग होगा तब ही प्राप्ति होगी। बाकी देवता पद तो अपनी भविष्य प्रालब्ध है, अपना पुरुषार्थ अलग है और अपनी प्रालब्ध भी अलग है। तो यह लक्ष्य भी अलग है, अपने को इस लक्ष्य में नहीं रहना है कि मैं पवित्र आत्मा आखरीन परमात्मा बन जाऊंगी, नहीं। परन्तु हमको परमात्मा के साथ योग लगाए पवित्र आत्मा बनना है, बाकी आत्मा को कोई परमात्मा नहीं बनना है।---2) 'इस अविनाशी ज्ञान पर अनेक नाम रखे हुए हैं"---इस अविनाशी ईश्वरीय ज्ञान पर अनेक नाम धरे गये हैं (रखे गये हैं)। कोई इस ज्ञान को अमृत भी कहते हैं, कोई ज्ञान को अंजन भी कहते हैं। गुरुनानक ने कहा ज्ञान अंजन गुरू दिया, कोई ने फिर ज्ञान वर्षा भी कहा है क्योंकि इस ज्ञान से ही सारी सृष्टि सब्ज (हरी भरी) बन जाती है। जो भी तमोप्रधान मनुष्य हैं वो सतोगुणी मनुष्य बन जाते हैं और ज्ञान अंजन से अन्धियारा मिट जाता है। इस ही ज्ञान को फिर अमृत भी कहते हैं जिससे जो मनुष्य पाँच विकारों की अग्नि में जल रहे हैं उससे ठण्डे हो जाते हैं। देखो गीता में परमात्मा साफ कहता है कामेषु क्रोधेषु उसमें भी पहला मुख्य है काम, जो ही पाँच विकारों में मुख्य बीज है। बीज होने से फिर क्रोध लोभ मोह अहंकार आदि झाड़ पैदा होता है, उससे मनुष्यों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। अब उस ही बुद्धि में ज्ञान की धारणा होती है, जब ज्ञान की धारणा पूर्ण बुद्धि में हो जाती है तब ही विकारों का बीज खत्म हो जाता है। बाकी सन्यासी तो समझते हैं विकारों को वश करना बड़ी कठिन बात है। अब यह ज्ञान तो सन्यासियों में है ही नहीं। तो ऐसी शिक्षा देवें कैसे? सिर्फ ऐसे ही कहते हैं कि मर्यादा में रहो। परन्तु असुल मर्यादा कौनसी थी? वो मर्यादा तो आजकल टूट गई है, कहाँ वो सतयुगी, त्रेतायुगी देवी देवताओं की मर्यादा जो गृहस्थ में रहकर कैसे निर्विकारी प्रवृत्ति में रहते थे। अब वो सच्ची मर्यादा कहाँ है? आजकल तो उल्टी विकारी मर्यादा पालन कर रहे हैं, एक दो को ऐसे ही सिखलाते हैं कि मर्यादा में चलो। मनुष्य का पहला क्या फर्ज है, वो तो कोई नहीं जानता, बस इतना ही प्रचार करते हैं कि मर्यादा में रहो, मगर इतना भी नहीं जानते कि मनुष्य की पहली मर्यादा कौनसी है? मनुष्य की पहली मर्यादा है निर्विकारी बनना, अगर कोई से ऐसा पूछा जाए तुम इस मर्यादा में रहते हो? तो कह देते हैं आजकल इस कलियुगी सृष्टि में निर्विकारी होने की हिम्मत नहीं है। अब मुख से कहना कि मर्यादा में रहो, निर्विकारी बनो इससे तो कोई निर्विकारी बन नहीं सकता। निर्विकारी बनने के लिये पहले इस ज्ञान तलवार से इन पाँच विकारों के बीज को खत्म करना तब ही विकर्म भस्म हो सकेगा। अच्छा। ओम् शान्ति।