Thursday, February 8, 2018

08-02-18 प्रात:मुरली

08-02-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - सूर्यवंशी विजय माला का दाना बनने के लिए श्रीमत पर पूरा पावन बनो, पावन बनने वाले बच्चे धर्मराज़ की सजाओं से छूट जाते हैं”
प्रश्न:
देही-अभिमानी बनने की मेहनत में लगे हुए बच्चों को कौन सा नशा रहेगा?
उत्तर:
मैं बाबा का हूँ, मैं बाबा के ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ, बाबा से वर्सा ले विश्व का मालिक बनता हूँ। यह नशा देही-अभिमानी रहने वाले बच्चों को ही रहता, वही वारिस बनते हैं। उन्हें पुरानी दुनिया के सम्बन्ध याद नहीं रहते। देह-अभिमान में आने से ही माया की चमाट लगती है। खुशी गुम हो जाती है इसलिए बाबा कहते बच्चे देही-अभिमानी बनने की मेहनत करो। अपना चार्ट रखो।
गीत:-
आने वाले कल की तुम तकदीर हो ...  
ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हो कि शिवबाबा ने यहाँ संगमयुग पर अवतार लिया है या ऊपर से आया हुआ है और तुम शिव शक्तियां हो, शिव के वारिस। तुम्हारा नाम वास्तव में है शिवशक्तियां। शिव से पैदा हुई शक्तियां। शिव ने तुमको अपना बनाया है और तुम शक्तियों ने फिर शिवबाबा को अपना बनाया है। शिव ने आकर अपने वारिस बनाये हैं। तुम शक्तियां हो गई शिवबाबा के वारिस। अभी यह तो तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा आया हुआ है, नर्क को स्वर्ग बनाने। हम उनके वारिस उनके साथ मददगार हैं, उनसे वर्सा पाने के लिए। बाप आया हुआ है इस पतित दुनिया अथवा नर्क को पावन बनाने। पतित सृष्टि को पावन बनाने वाला निराकार परमपिता परमात्मा के सिवाए और कोई हो नहीं सकता। तुम हो निराकार शिवबाबा के बच्चे। वह यहाँ जिसमें आया हुआ है वह है साकारी तन। यूँ तो तुम जब निराकारी दुनिया में हो तो भी वारिस हो। सब आत्मायें उस परमपिता परमात्मा के बच्चे हैं। परन्तु वह हो गया निराकारी दुनिया में। वहाँ तुम जब मेरे पास हो तो मेरे ही बच्चे हो। फिर मुझे भी आना पड़ा है - पतित सृष्टि को पावन बनाने। आकर शरीर धारण करना पड़ा। अब उस निराकारी दुनिया से बाप आया हुआ है। तुम बच्चों को वारिस बनाया है वर्सा देने लिए। शिव शक्तियां तो मशहूर हैं, शिवशक्तियां अर्थात् शिव की औलाद। दुनिया में यह कोई नहीं जानते हैं कि पतित-पावन कौन है। पतित दुनिया को जरूर कलियुग कहेंगे, पावन दुनिया को सतयुग। निराकारी दुनिया में तुम आत्मायें सदैव पावन रहती हो। गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ.. भिन्न-भिन्न प्रकार से याद करते हैं। परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। यह नहीं समझते कि पावन बनाने के लिए जरूर कलियुग के अन्त में संगम पर आयेंगे। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ, आकर तुम बच्चों को अपना वारिस बनाता हूँ। गोया तुम डबल वारिस बनते हो। वैसे तो तुम शिवबाबा के बच्चे हो परन्तु अपने को भूल गये हो। अभी तुम जानते हो हम आत्मायें तो वास्तव में शिवबाबा के निर्वाणधाम के वारिस हैं। शिवबाबा कहते हैं तुम सब वारिस हो ना। ब्रह्माण्ड में रहने वाले बच्चे ब्रह्माण्ड के मालिक हो। फिर यहाँ सृष्टि पर आकर पार्ट बजाना है। बाप को सभी याद तो बहुत करते हैं। जब बहुत दु:खी होते हैं तो रड़ियां मारते हैं - हे भगवान रहम करो। अजुन तो बहुत दु:ख आने वाला है। जैसे चीनी आदि पर कन्ट्रोल रखते, वैसे अनाज पर भी रखेंगे। मनुष्यों को अन्न तो चाहिए ना। फिर भूख मरेंगे तो मारपीट लूटमार करेंगे। जब दुनिया बहुत दु:खी हो तब तो बाप आकर सुखी दुनिया स्थापन करे ना। तो अब बाप की श्रीमत पर पूरा पावन बन दिखाना है। पूरा पावन बनने वाले ही सूर्यवंशी विजय माला के दाने बनते हैं। वह धर्मराज की सज़ायें नहीं खायेंगे। बाप हर एक बात अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। यह तो समझाया है जगत पिता है तो जगत अम्बा भी है। परन्तु उनका गीता में कुछ वर्णन है नहीं। गीता का कनेक्शन सारा बिगड़ा हुआ है। भक्त भगवान को याद करते हैं। भगवान ही सब मनुष्यों की मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं, इसलिए उनको याद करते हैं। कृष्ण तो मनोकामना पूरी कर न सके। एक ही भगवान को कहा जाता है सभी की मनोकामना पूरी करने वाला। दूसरा फिर है जगत अम्बा, भगवती, सब मनोकामनायें पूरी करने वाली। जगत अम्बा कौन है? पूरा वारिस ब्रह्मा की बच्ची, शिवबाबा की पोत्री। और मनुष्य बड़े-बड़े राजाओं आदि के वारिस होते हैं। यह वारिस अक्षर फैमिली से लगता है। सन्यासियों से नहीं लगता है। तुम जानते हो हम अभी शिवबाबा के वारिस बने हुए हैं। वहाँ तो बाबा के साथ रहते हैं। वहाँ वर्से की कोई बात नहीं। यहाँ तो हमको वर्सा चाहिए। बाप की मिलकियत है स्वर्ग, वहाँ दु:ख की बात ही नहीं होती। अब तुम बच्चों को दादे की मिलकियत मिलती है, तो उनको याद करना है।
तुम हो ईश्वर के वारिस, बाकी सब हैं रावण के वारिस। रावण सम्प्रदाय गाया जाता है ना। यहाँ तुम हो ब्राह्मण सम्प्रदाय। वह हैं आसुरी रावण सम्प्रदाय। उनको वर्सा मिल रहा है रावण से। रावण राज्य है ना। 5 विकारों का वर्सा मिला हुआ है, जिस वर्से को फिर तुम आकर शिवबाबा को दान करते हो। कृष्ण को थोड़ेही 5 विकारों का दान देंगे। तुम शिवबाबा को 5 विकारों का दान देते हो। देवताओं को थोड़ेही दान देंगे। कृष्ण आदि देवताओं ने तो विकारों का दान शिवबाबा को दे ऐसा पद पाया है। वह फिर दान लेंगे कैसे? शिवबाबा कहते हैं यह 5 विकारों का दान दो तो छूटे ग्रहण। ग्रहण भी ऐसा लगा हुआ है जो एक भी कला नहीं रही है। बिल्कुल काले बन पड़े हैं। अभी हमें दान दे दो फिर विकारों में नहीं जाना। दान देकर फिर वापिस नहीं लेना है। अगर विकार में जायेंगे तो पद भ्रष्ट बन पड़ेंगे। सो नारायण बनना है तो भूतों को भगाना है। बाप आते ही हैं नर से नारायण बनाने। तुम जानते हो बाबा ने हमको हकदार बनाया है - अपने घर का और जायदाद का। डबल वर्सा हुआ ना। मुक्ति और जीवनमुक्ति दोनों वर्सा बाप देते हैं। जो बाप के वारिस बच्चे हैं वे अब मेरे को याद कर योग और ज्ञान बल से विकर्म विनाश करते हैं। ज्ञान भी बल है ना। नॉलेज है, नॉलेज पढ़कर बड़ा-बड़ा दर्जा पाते हैं। पुलिस के बड़े ऑफिसर्स आदि बनते हैं। मनुष्य कितना पुलिस से डरते हैं। कोई ऐसा काम करते हैं तो पुलिस का नाम सुन पीला पड़ जाते हैं। तुम बच्चे अभी पढ़ाई से ऊंच पद पाते हो। बाप का बच्चा बनकर और बाप को याद नहीं करेंगे तो वर्सा कैसे पायेंगे। वह तो है लौकिक बाप। इस पारलौकिक बाप को तो बहुत याद करना पड़े। बहुत याद करने से ही ऊंच पद पायेंगे। जितना मेहनत करेंगे उतना पावन बन पावन दुनिया का राज्य पायेंगे। वापिस मेरे पास आकर फिर सतयुग में जाए राजाई करनी है। सब भगवान को याद करते हैं कि फिर से हम बाप के पास जायें।
कहते हैं अमरनाथ ने पार्वती को कथा सुनाई सो तो तुम सब पार्वतियां हो। शिवबाबा ने सिर्फ एक पार्वती को थोड़ेही कथा सुनाई होगी। तुम तो बहुत सुनते हो ना। सब याद करते हैं कि हमको पतित से पावन बनाओ। पावन बनाने वाला है एक। कैसे पावन बनाते हैं? पहले-पहले जगत अम्बा पावन बनती है। फिर उनकी शक्तियां हैं। स्वर्ग का रचयिता एक ही बाप है और कोई हो न सके। अभी तुम अनुभवी बन गये हो। तुम बच्चों को कितना नशा रहना चाहिए। शिवबाबा तुमको गोद में ले स्वर्ग का मालिक बनाने लायक बनाते हैं। तुम समझते हो हम ईश्वर की गोद में आये हैं। जरूर ईश्वर हमको वापिस अपने साथ ले जायेंगे। खास तुम बच्चों को वारिस बनाया है। तुम्हारा पार्ट है। अभी तुम्हारी बुद्धि कितनी विशाल हो गई है। समझना चाहिए सतयुग में है ही देवी-देवताओं का राज्य। जरूर भगवान ने स्थापन किया होगा। परन्तु कैसे किया? यह कोई नहीं जानते। नाम भी है यादव, कौरव, पाण्डव। पाण्डवों में सभी मेल्स ही दिखाते हैं। शक्ति सेना का नाम कहाँ? तुम हो गुप्त। उनको तो पता ही नहीं फिर कहते जो लड़ाई में मरेगा वह स्वर्ग में जायेगा। परन्तु कौन सी लड़ाई? यह है माया पर जीत पाने की लड़ाई। जो एक बाप ही सिखलाते हैं। जबकि तुम समझते हो बरोबर शिवबाबा ने हमको गोद में लिया है। एडाप्ट किया है। तो और सब तरफ से बुद्धियोग टूट जाना चाहिए। राजा की गोद में जायेंगे तो राजा-रानी का ही बच्चा अपने को समझेंगे। प्रिन्स-प्रिन्सेज ही मित्र-सम्बन्धी होंगे। वह कुल अथवा बिरादरी बदल जाती है। तो यहाँ भी ब्राह्मण कुल का बनना है। देवताओं अथवा शक्तियों के साथ नारद को भी बिठाते हैं। भगवान ने नारद को कहा तुम अपनी शक्ल तो देखो। नारद भक्ति करता था।
अभी तुम बच्चों को अच्छी रीति पुरुषार्थ करना है। तुम्हारे अन्दर कोई भी भूत नहीं होना चाहिए। कोई क्रोध करे तो समझो इनमें भूत है। पांच विकारों का यहाँ दान देना है, तब वह नशा चढ़ सके। फिर तुम बहुत खुश मिजाज़ रहेंगे। जैसे देवताओं के चेहरे रहते हैं। तुम रूप-बसन्त हो ना। जैसे बाबा ज्ञान रत्न देता है, तुम्हारे मुख से भी रत्न निकलने चाहिए। पुरुषार्थ करते रहो। मंजिल बहुत बड़ी है, विश्व का मालिक बनना होता है। हम ही अनेक बार विश्व के मालिक बने हैं। ऐसे और कोई सन्यासी आदि कह न सकें। बाप कहते हैं लाडले बच्चे तुम अनगिनत बार विश्व के मालिक बने हो, फिर हराया है। अब फिर जीत पहनो। है सारा पुरुषार्थ पर मदार। बच्चों को बड़ी खुशी रहनी चाहिए। हम विश्व के मालिक बनते हैं, तो वह खुशी स्थाई क्यों नहीं रहती? पुरानी दुनिया के सम्बन्ध याद आ जाते हैं। देह-अभिमान आ जाता है। पहला-पहला दुश्मन है ही देह-अभिमान। देह-अभिमान आया और लगी माया की चमाट। मैं बाबा का हूँ, बाबा के ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ। बाबा से वर्सा ले विश्व का मालिक बनता हूँ, यह नशा रहना चाहिए। देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी चाहिए। कल्प में एक ही बार बाबा आकर तुमको देही-अभिमानी बनना सिखलाते हैं। कितना कहते हैं बाबा को याद करो। फिर भी भूल जाते हैं, चार्ट लिखने में थक जाते हैं। बच्चों को अपना चार्ट देखना है। एक बाबा इतने बच्चों का चार्ट कहॉ तक देखेंगे। बाबा को कितना काम रहता है। पत्रों के जवाब लिखने में अंगुलियां ही घिस जाती हैं। परन्तु बच्चों को शौक रहता है कि बाबा के हाथ का पत्र पढ़ें। तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से लिखा पढ़ी करुँ... लिखते भी हैं शिवबाबा केअरआफ ब्रह्मा। फिर बाबा जवाब भी देते हैं। कितने पत्र लिखने पड़ें। हाँ, सर्विसएबुल बच्चे सर्विस का समाचार देंगे तो बाप भी खुश होगा। अच्छी-अच्छी चिट्ठी आयेगी तो नयनों पर रखेंगे, दिल पर रखेंगे। नहीं तो वेस्ट पेपर बॉक्स में डाल देनी पड़ती हैं। सर्विसएबुल बच्चों की बहुत महिमा करता हूँ। सर्विस करने वाले बच्चे ही दिल पर चढ़ सकते हैं। सपूत बच्चे माँ बाप को फालो करते हैं। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। भक्ति मार्ग में मनुष्य मुक्ति के लिए कितने धक्के खाते रहते हैं। परन्तु वह जानते ही नहीं कि मुक्ति कहाँ है? कुछ नहीं जानते। ज्ञान है ही एक ज्ञान सागर के पास। सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जानना, इसको ज्ञान कहा जाता है। जब तक सृष्टि के आदि मध्य अन्त को नहीं जाना तो ब्लाइन्ड हैं। महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है। बहुत तकलीफ होने वाली है। यह दुनिया बड़ी गन्दी है। बाप बच्चों को फिर भी समझाते हैं बच्चे खबरदार रहना। कोई भूत होगा तो तुम गोरे कैसे बनेंगे? तुम कहते हो बाबा हम आपकी मत पर चलेंगे तो बाबा कहते हैं भूतों को भगाओ। इस दुनिया से ममत्व नहीं रखना है। बुद्धियोग नई दुनिया में चला जाना चाहिए। तुम जानते हो हमारे लिए स्वर्ग की स्थापना हो रही है। तो याद करना पड़े ना। बाप को, स्वीट होम को और राजधानी को याद करो। शरीर निर्वाह अर्थ सर्विस भी करो। फिर यह ईश्वरीय सर्विस भी करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) रूप-बसन्त बन मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकालने हैं। देवताओं जैसा खुशमिजाज़ बनना है।
2) ज्ञान और योग बल से विकर्म विनाश कर बाप से डबल वर्सा (मुक्ति-जीवनमुक्ति का) लेना है।
वरदान:
“पहले आप” के विशेष गुण द्वारा सर्व के प्रिय बनने वाले सफल मूर्त भव!
एक दो को आगे बढ़ाने का गुण अर्थात् “पहले आप” का गुण परमार्थ और व्यवहार दोनों में ही सर्व का प्रिय बना देता है। बाप का भी यही मुख्य गुण है। बाप कहते हैं बच्चे “पहले आप”। तो इसी गुण में फालो फादर करो, यही सफलता प्राप्त करने की विधि है। जो बाप के प्रिय, ब्राह्मण परिवार के प्रिय और विश्व सेवा के प्रिय हैं वही एवररेडी हैं।
स्लोगन:
मनन शक्ति के आधार से ज्ञान खजाने को अपना बना लो तो विघ्न विदाई ले लेंगे।