Wednesday, December 16, 2015

मुरली 17 दिसंबर 2015

17-12-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - सत बाप द्वारा संगम पर तुम्हें सत्य का वरदान मिलता है इसलिए तुम कभी भी झूठ नहीं बोल सकते हो”  
प्रश्न:
निर्विकारी बनने के लिए आप बच्चों को कौन सी मेहनत जरूर करनी है?
उत्तर:
आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत जरूर करनी है। भृकुटी के बीच में आत्मा को ही देखने का अभ्यास करो। आत्मा होकर आत्मा से बात करो, आत्मा होकर सुनो। देह पर दृष्टि न जाए - यही मुख्य मेहनत है, इसी मेहनत में विघ्न पड़ते हैं। जितना हो सके यह अभ्यास करो - कि “मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ”।
गीतः
ओम् नमो शिवाए........  
ओम् शान्ति।
मीठे बच्चों को बाप ने स्मृति दिलाई है कि सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। अभी तुम बच्चे जानते हो हमने बाप से जो कुछ जाना है, बाप ने जो रास्ता बताया है, वह दुनिया में कोई नहीं जानता। आपेही पूज्य, आपेही पुजारी का अर्थ भी तुम्हें समझाया है, जो पूज्य विश्व के मालिक बनते हैं, वही फिर पुजारी बनते हैं। परमात्मा के लिए ऐसे नहीं कहेंगे। अब तुम्हें स्मृति में आया कि यह तो बिल्कुल राइट बात है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का समाचार बाप ही सुनाते हैं, और किसको भी ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता है। यह महिमा श्रीकृष्ण की नहीं है। कृष्ण नाम तो शरीर का है ना। वह शरीरधारी है, उनमें सारा ज्ञान हो न सके। अभी तुम समझते हो, उनकी आत्मा ज्ञान ले रही है। यह वन्डरफुल बात है। बाप बिगर कोई समझा न सके। ऐसे तो बहुत साधू-सन्त भिन्न-भिन्न प्रकार के हठयोग आदि सिखलाते रहते हैं। वह सब है भक्ति मार्ग। सतयुग में तुम कोई की भी पूजा नहीं करते हो। वहाँ तुम पुजारी नहीं बनते हो। उनको कहा ही जाता है - पूज्य देवी-देवता थे, अब नहीं है। वही पूज्य फिर अब पुजारी बने हैं। बाप कहते हैं यह भी पूजा करते थे ना। सारी दुनिया इस समय पुजारी है। नई दुनिया में एक ही पूज्य देवी-देवता धर्म रहता है। बच्चों को स्मृति में आया बरोबर ड्रामा के प्लैन अनुसार यह बिल्कुल राइट है। गीता एपीसोड बरोबर है। सिर्फ गीता में नाम बदल दिया है। जिस समझाने के लिए ही तुम मेहनत करते हो। 2500 वर्ष से गीता कृष्ण की समझते आये हैं। अब एक जन्म में समझ जाएं कि गीता निराकार भगवान ने सुनाई, इसमें टाइम तो लगता है ना। भक्ति का भी समझाया है, झाड़ कितना लम्बा-चौड़ा है। तुम लिख सकते हो बाप हमको राजयोग सिखा रहे हैं। जिन बच्चों को निश्चय हो जाता है तो वे निश्चय से समझाते भी हैं। निश्चय नहीं तो खुद भी मूंझते रहते हैं-कैसे समझायें, कोई हंगामा तो नहीं होगा। निडर तो अभी हुए नहीं हैं ना। निडर तब होंगे जब पूरे देही-अभिमानी बन जाएं, डरना तो भक्ति मार्ग में होता है। तुम सब हो महावीर। दुनिया में तो कोई नहीं जानते कि माया पर जीत कैसे पहनी जाती है। तुम बच्चों को अब स्मृति में आया है। आगे भी बाप ने कहा था मनमनाभव। पतित-पावन बाप ही आकर यह समझाते हैं, भल गीता में अक्षर है परन्तु ऐसे कोई समझाते नहीं। बाप कहते हैं बच्चे देही-अभिमानी भव। गीता में अक्षर तो हैं ना - आटे में नमक मिसल। हर एक बात का बाप निश्चय बिठाते हैं। निश्चयबुद्धि विजयन्ती।

तुम अभी बाप से वर्सा ले रहे हो। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में भी जरूर रहना है। सबको यहाँ आकर बैठने की दरकार नहीं। सर्विस करनी है, सेन्टर्स खोलने हैं। तुम हो सैलवेशन आर्मी। ईश्वरीय मिशन हो ना। पहले शूद्र मायावी मिशन के थे, अभी तुम इश्वरीय मिशन के बने हो। तुम्हारा महत्व बहुत है। इन लक्ष्मी-नारायण की क्या महिमा है। जैसे राजायें होते हैं, वैसे राज्य करते हैं। बाकी इन्हों को कहेंगे सर्वगुण सम्पन्न, विश्व का मालिक क्योंकि उस समय और कोई राज्य नहीं होता। अभी बच्चे समझ गये हैं - विश्व के मालिक कैसे बनें? अभी हम सो देवता बनते हैं तो फिर उन्हों को माथा कैसे झुका सकेंगे। तुम नॉलेजफुल बन गये हो, जिनको नॉलेज नहीं है वह माथा टेकते रहते हैं। तुम सबके आक्यूपेशन को अभी जान गये हो। चित्र रांग कौन से हैं, राइट कौन से हैं, वह भी तुम समझा सकते हो। रावण राज्य का भी तुम समझाते हो। यह रावण राज्य है, इनको आग लग रही है। भंभोर को आग लगनी है, भंभोर विश्व को कहा जाता है। अक्षर जो गाये जाते हैं उन पर समझाया जाता है। भक्ति मार्ग में तो अनेक चित्र बनाये हैं। वास्तव में असुल होती है - शिवबाबा की पूजा, फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की। त्रिमूर्ति जो बनाते हैं वह राइट है। फिर यह लक्ष्मी-नारायण बस। त्रिमूर्ति में ब्रह्मा-सरस्वती भी आ जाते हैं। भक्तिमार्ग में कितने चित्र बनाते हैं। हनुमान की भी पूजा करते हैं। तुम महावीर बन रहे हो ना। मन्दिर में भी कोई की हाथी पर सवारी, कोई की घोड़े पर सवारी दिखाई है। अब ऐसी सवारी थोड़ेही है। बाप कहते हैं महारथी। महारथी माना हाथी पर सवार। तो उन्होंने फिर हाथी की सवारी बना दी है। यह भी समझाया है कैसे गज को ग्राह खाते हैं। बाप समझाते हैं जो महारथी हैं, कभी-कभी उनको भी माया ग्राह हप कर लेती है। तुमको अभी ज्ञान की समझ आई है। अच्छे-अच्छे महारथियों को माया खा जाती है। यह हैं ज्ञान की बातें, इनका वर्णन कोई कर न सके। बाप कहते हैं निर्विकारी बनना है, दैवीगुण धारण करने हैं। कल्प-कल्प बाप कहते हैं - काम महाशत्रु है। इसमें है मेहनत। इस पर तुम विजय पाते हो। प्रजापिता के बने तो भाई-बहन हो गये। वास्तव में असल तुम हो आत्मायें। आत्मा, आत्मा से बात करती है। आत्मा ही इन कानों से सुनती है, यह याद रखना पड़े। हम आत्मा को सुनाते हैं, देह को नहीं। असुल में हम आत्मायें भाई-भाई हैं फिर आपस में भाई-बहन भी हैं। सुनाना तो भाई को होता है। दृष्टि आत्मा तरफ जानी चाहिए। हम भाई को सुनाते हैं। भाई सुनते हो? हाँ मैं आत्मा सुनता हूँ। बीकानेर में एक बच्चा है जो सदैव आत्मा-आत्मा कह लिखता है। मेरी आत्मा इस शरीर द्वारा लिख रही है। मुझ आत्मा का यह विचार है। मेरी आत्मा यह करती है। तो यह आत्म-अभिमानी बनना मेहनत की बात है ना। मेरी आत्मा नमस्ते करती है। जैसे बाबा कहते हैं - रूहानी बच्चे। तो भ्रकुटी तरफ देखना पड़े। आत्मा ही सुनने वाली है, आत्मा को मैं सुनाता हूँ। तुम्हारी नज़र आत्मा पर पड़नी चाहिए। आत्मा भ्रकुटी के बीच में है। शरीर पर नज़र पड़ने से विघ्न आते हैं। आत्मा से बात करनी है। आत्मा को ही देखना है। देह-अभिमान को छोड़ो। आत्मा जानती है - बाप भी यहाँ भ्रकुटी के बीच में बैठा है। उनको हम नमस्ते करते हैं। बुद्धि में यह ज्ञान है हम आत्मा हैं, आत्मा ही सुनती है। यह ज्ञान आगे नहीं था। यह देह मिली है पार्ट बजाने के लिए इसलिए देह पर ही नाम रखा जाता है। इस समय तुमको देही-अभिमानी बन वापिस जाना है। यह नाम रखा है पार्ट बजाने। नाम बिगर तो कारोबार चल न सके। वहाँ भी कारोबार तो चलेगी ना। परन्तु तुम सतोप्रधान बन जाते हो इसलिए वहाँ कोई विकर्म नहीं बनेंगे। ऐसा काम ही तुम नहीं करेंगे जो विकर्म बने। माया का राज्य ही नहीं। अब बाप कहते हैं - तुम आत्माओं को वापिस जाना है। यह तो पुराने शरीर हैं फिर जायेंगे सतयुग-त्रेता में। वहाँ ज्ञान की दरकार ही नहीं। यहाँ तुमको ज्ञान क्यों देते हैं? क्योंकि दुर्गति को पाये हुए हो। कर्म तो वहाँ भी करना है परन्तु वह अकर्म हो जाता है। अब बाप कहते हैं हथ कार डे.. आत्मा याद बाप को करती है। सतयुग में तुम पावन हो तो सारी कारोबार पावन होती है। तमोप्रधान रावण राज्य में तुम्हारी कारोबार खोटी हो जाती है, इसलिए मनुष्य तीर्थ यात्रा आदि पर जाते हैं। सतयुग में कोई पाप करते नहीं जो तीर्थों आदि पर जाना पड़े। वहाँ तुम जो भी काम करते हो वह सत्य ही करते हो। सत्य का वरदान मिल गया है। विकार की बात ही नहीं। कारोबार में भी झूठ की दरकार नहीं रहती। यहाँ तो लोभ होने के कारण मनुष्य चोरी ठगी करते हैं, वहाँ यह बातें होती नहीं। ड्रामा अनुसार तुम ऐसे फूल बन जाते हो। वह है ही निर्विकारी दुनिया, यह है विकारी दुनिया। सारा खेल बुद्धि में है। इस समय ही पवित्र बनने के लिए मेहनत करनी पड़े। योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो, योगबल है मुख्य। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग के यज्ञ तप आदि से कोई भी मेरे को प्राप्त नहीं करते। सतो-रजो-तमो में जाना ही है। ज्ञान बड़ा सहज और रमणीक है, मेहनत भी है। इस योग की ही महिमा है जिससे तुमको सतोप्रधान बनना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने का रास्ता बाप ही बतलाते हैं। दूसरा कोई यह ज्ञान दे न सके। भल कोई चन्द्रमा तक चले जाते हैं, कोई पानी से चले जाते हैं। परन्तु वह कोई राजयोग नहीं है। नर से नारायण तो नहीं बन सकते। यहाँ तुम समझते हो हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे जो फिर अब बन रहे हैं। स्मृति आई है। बाप ने कल्प पहले भी यह समझाया था। बाप कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयन्ती। निश्चय नहीं तो वह सुनने आयेंगे ही नहीं। निश्चयबुद्धि से फिर संशयबुद्धि भी बन जाते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे महारथी भी संशय में आ जाते हैं। माया का थोड़ा तूफान आने से देह-अभिमान आ जाता है।

यह बापदादा दोनों ही कम्बाइन्ड हैं ना। शिवबाबा ज्ञान देते हैं फिर चले जाते हैं वा क्या होता है, कौन बताये। बाबा से पूछें क्या आप सदैव हो या चले जाते हो? बाप से तो यह नहीं पूछ सकते हैं ना। बाप कहते हैं मैं तुमको रास्ता बताता हूँ पतित से पावन होने का। आऊं, जाऊं, मुझे तो बहुत काम करने पड़ते हैं। बच्चों के पास भी जाता हूँ, उनसे कार्य कराता हूँ। इसमें संशय की कोई बात न लाए। अपना काम है - बाप को याद करना। संशय में आने से गिर पड़ते हैं। माया थप्पड़ ज़ोर से मार देती है। बाप ने कहा है बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में मैं इनमें आता हूँ। बच्चों को निश्चय है बरोबर बाप ही हमें यह ज्ञान दे रहे हैं, और कोई दे न सके। फिर भी इस निश्चय से कितने गिर पड़ते हैं, यह बाप जानते हैं। तुमको पावन बनना है तो बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, और कोई बातों में नहीं पड़ो। तुम यह ऐसी बातें करते हो तो समझ में आता है - पक्का निश्चय नहीं है। पहले एक बात को समझो जिससे तुम्हारे पाप नाश होते हैं, बाकी फालतू बातें करने की दरकार नहीं। बाप की याद से विकर्म विनाश होंगे फिर और बातों में क्यों आते हो! देखो कोई प्रश्न-उत्तर में मूंझता है तो उसे बोलो कि तुम इन बातों को छोड़ एक बाप की याद में रहने का पुरूषार्थ करो। संशय में आया तो पढ़ाई ही छोड़ देंगे फिर कल्याण ही नहीं होगा। नब्ज देखकर समझाना है। संशय में है तो एक प्वाइंट पर खड़ा कर देना है। बहुत युक्ति से समझाना पड़ता है। बच्चों को पहले यह निश्चय हो - बाबा आया हुआ है, हमको पावन बना रहे हैं। यह तो खुशी रहती है। नहीं पढ़ेंगे तो नापास हो जायेंगे, उनको खुशी भी क्यों आयेगी। स्कूल में पढ़ाई तो एक ही होती है। फिर कोई पढ़कर लाखों की कमाई करते हैं, कोई 5-10 रूपया कमाते हैं। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है नर से नारायण बनना। राजाई स्थापन होती है। तुम मनुष्य से देवता बनेंगे। देवताओं की तो बड़ी राजधानी है, उसमें ऊंच पद पाना वह फिर पढ़ाई और एक्टिविटी पर है। तुम्हारी एक्टिविटी बड़ी अच्छी होनी चाहिए। बाबा अपने लिए भी कहते हैं - अभी कर्मातीत अवस्था नहीं बनी है। हमको भी सम्पूर्ण बनना है, अभी बने नहीं हैं। ज्ञान तो बड़ा सहज है। बाप को याद करना भी सहज है परन्तु जब करें ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी बात में संशय बुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। पहले तो पावन बनने के लिए एक बाप को याद करना है, दूसरी बातों में नहीं जाना है।
2) शरीर पर नज़र जाने से विघ्न आते हैं, इसलिए भ्रकुटी में देखना है। आत्मा समझ, आत्मा से बात करनी है। आत्म-अभिमानी बनना है। निडर बनकर सेवा करनी है।
वरदान:
पुरूषार्थ और सेवा में विधिपूर्वक वृद्धि को प्राप्त करने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव!  
ब्राह्मण अर्थात् विधिपूर्वक जीवन। कोई भी कार्य सफल तब होता है जब विधि से किया जाता है। अगर किसी भी बात में स्वयं के पुरूषार्थ या सेवा में वृद्धि नहीं होती है तो जरूर कोई विधि की कमी है इसलिए चेक करो कि अमृतवेले से रात तक मन्सा-वाचा-कर्मणा व सम्पर्क विधिपूर्वक रहा अर्थात् वृद्धि हुई? अगर नहीं तो कारण को सोचकर निवारण करो फिर दिलशिकस्त नहीं होंगे। अगर विधि पूर्वक जीवन है तो वृद्धि अवश्य होगी और तीव्र पुरुषार्थी बन जायेंगे।
स्लोगन:
स्वच्छता और सत्यता में सम्पन्न बनना ही सच्ची पवित्रता है।