Friday, December 4, 2015

मुरली 05 दिसंबर 2015

05-12-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - रोज़ विचार सागर मंथन करो तो खुशी का पारा चढ़ेगा, चलते-फिरते याद रहे कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं”  
प्रश्न:
अपनी उन्नति करने का सहज साधन कौन-सा है?
उत्तर:
अपनी उन्नति के लिए रोज़ पोतामेल रखो। चेक करो-आज सारा दिन कोई आसुरी काम तो नहीं किया? जैसे स्टूडेन्ट अपना रजिस्टर रखते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी दैवी गुणों का रजिस्टर रखो तो उन्नति होती रहेगी।
गीतः
दूर देश के रहने वाला........  
ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं दूर देश किसको कहा जाता है। दुनिया में एक भी मनुष्य नहीं जानता। भल कितना भी बड़ा विद्वान हो, पण्डित हो इनका अर्थ नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो। बाप, जिसको सब मनुष्यमात्र याद करते हैं कि हे भगवान... वह जरूर ऊपर मूलवतन में है, और किसको भी यह पता नहीं है। इस ड्रामा के राज़ को भी अभी तुम बच्चे समझते हो। शुरू से लेकर अभी तक जो हुआ है, जो होने का है, सब बुद्धि में है। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह बुद्धि में रहना चाहिए ना। तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं। विचार सागर मंथन नहीं करते हैं इसलिए खुशी का पारा भी नहीं चढ़ता है। उठते-बैठते बुद्धि में रहना चाहिए कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं। आदि से अन्त तक मुझ आत्मा को सारे सृष्टि के चक्र का मालूम है। भल तुम यहाँ बैठे हो, बुद्धि में मूलवतन याद आता है। वह है स्वीट साइलेन्स होम, निर्वाणधाम, साइलेन्स धाम, जहाँ आत्मायें रहती हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में झट आ जाता है, और कोई को पता नहीं। भल कितने भी शास्त्र आदि पढ़ते सुनते रहे, फायदा कुछ भी नहीं। वह सब हैं उतरती कला में। तुम अभी चढ़ रहे हो। वापिस जाने के लिए खुद तैयारी कर रहे हो। यह पुराना कपड़ा छोड़ हमको घर जाना है। खुशी रहती है ना! घर जाने के लिए आधाकल्प भक्ति की है। सीढ़ी नीचे उतरते ही गये। अभी बाबा हमको सहज समझाते हैं। तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए। बाबा भगवान हमको पढ़ाते हैं-यह खुशी बहुत रहनी चाहिए। बाप सम्मुख पढ़ा रहे हैं। बाबा जो सभी का बाप है, वह हमको फिर से पढ़ा रहे हैं। अनेक बार पढ़ाया है। जब तुम चक्र लगाकर पूरा करते हो तो फिर बाप आते हैं। इस समय तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी। तुम विष्णुपुरी के देवता बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। दुनिया में और कोई भी यह नॉलेज दे न सके। शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं, यह खुशी कितनी रहनी चाहिए। बच्चे जानते हैं यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के हैं, यह सद्गति के लिए नहीं। भक्ति मार्ग की सामग्री भी चाहिए ना। अथाह सामग्री है। बाप कहते हैं इससे तुम गिरते आये हो। कितना दर-दर भटकते हैं। अभी तुम शान्त होकर बैठे हो। तुम्हारा धक्का खाना सब छूट गया। जानते हो बाकी थोड़ा समय है, आत्मा को पवित्र बनाने के लिए बाप वही रास्ता बता रहे हैं। कहते हैं मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे फिर सतोप्रधान दुनिया में आकर राज्य करेंगे। यह रास्ता कल्प-कल्प अनेक बार बाप ने बताया है। फिर अपनी अवस्था को भी देखना है, स्टूडेन्ट पुरूषार्थ कर अपने को होशियार बनाते हैं ना। पढ़ाई का भी रजिस्टर होता है और चलन का भी रजिस्टर होता है। यहाँ तुम्हें भी दैवीगुण धारण करने हैं। रोज़ अपना पोतामेल रखने से बहुत उन्नति होगी-आज सारा दिन कोई आसुरी काम तो नहीं किया? हमको तो देवता बनना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र सामने रखा है। कितना सिम्पुल चित्र है। ऊपर में शिवबाबा है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा यह वर्सा देते हैं तो जरूर संगम पर ब्राह्मण-ब्राह्मणियां होंगे ना। देवतायें होते हैं सतयुग में। ब्राह्मण हैं संगम पर। कलियुग में हैं शूद्र वर्ण वाले। विराट रूप भी बुद्धि में धारण करो। हम अभी हैं ब्राह्मण चोटी, फिर देवता बनेंगे। बाप ब्राह्मणों को पढ़ा रहे हैं देवता बनाने के लिए। तो दैवी गुण भी धारण करने हैं, इतना मीठा बनना है। कोई को दु:ख नहीं देना है। जैसे शरीर निर्वाह के लिए कुछ न कुछ काम किया जाता है, वैसे यहाँ भी यज्ञ सर्विस करनी है। कोई बीमार है, सर्विस नहीं करते हैं तो उनकी फिर सर्विस करनी पड़ती है। समझो कोई बीमार है, शरीर छोड़ देते हैं, तुमको दु:खी होने की वा रोने की बात नहीं। तुमको तो बिल्कुल ही शान्ति में बाबा की याद में रहना है। कोई आवाज़ नहीं। वह तो शमशान में ले जाते हैं तो आवाज़ करते जाते हैं राम नाम संग है। तुमको कुछ भी कहना नहीं है। तुम साइलेन्स से विश्व पर जीत पाते हो। उन्हों की है साइंस, तुम्हारी है साइलेन्स। हो। ज्ञान है समझ और विज्ञान है सब कुछ भूल जाना, ज्ञान से भी तुम बच्चे ज्ञान और विज्ञान का भी यथार्थ अर्थ जानते परे। तो ज्ञान भी है, विज्ञान भी है। आत्मा जानती है हम शान्तिधाम के रहने वाले हैं फिर ज्ञान भी है। रूप और बसन्त। बाबा भी रूप-बसन्त है ना। रूप भी है और उनमें सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान भी है। उन्होंने विज्ञान भवन नाम रखा है। अर्थ कुछ नहीं समझते। तुम बच्चे समझते हो इस समय साइंस से दु:ख भी है तो सुख भी है। वहाँ सुख ही सुख है। यहाँ है अल्पकाल का सुख। बाकी तो दु:ख ही दु:ख है। घर में मनुष्य कितने दु:खी रहते हैं। समझते हैं कहाँ मरें तो इस दु:ख की दुनिया से छूटें। तुम बच्चे तो जानते हो बाबा आया हुआ है हमको स्वर्गवासी बनाने। कितना गद्गद् होना चाहिए। कल्प- कल्प बाबा हमको स्वर्गवासी बनाने आते हैं। तो ऐसे बाप की मत पर चलना चाहिए ना।

बाप कहते हैं - मीठे बच्चे, कभी कोई को दु:ख न दो। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। हम भाई-बहन हैं, यह है प्यार का नाता। और कोई दृष्टि जा नहीं सकती। हर एक की बीमारी अपनी-अपनी है, उस अनुसार राय भी देते रहते हैं। पूछते हैं बाबा यह-यह हालत होती है, इस हालत में क्या करें? बाबा समझाते हैं भाई-बहन की दृष्टि खराब नहीं होनी चाहिए। कोई भी झगड़ा न हो। मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ ना। शिवबाबा ब्रह्मा तन से बोल रहे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा बच्चा हुआ शिवबाबा का, साधारण तन में ही आते हैं ना। विष्णु तो हुआ सतयुग का। बाप कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर नई दुनिया रचने आया हूँ। बाबा पूछते हैं तुम विश्व के महाराजा-महारानी बनेंगे? हाँ बाबा, क्यों नहीं बनेंगे। हाँ, इसमें पवित्र रहना पड़ेगा। यह तो मुश्किल है। अरे, तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, तुम पवित्र नहीं रह सकते हो? लज्जा नहीं आती है? लौकिक बाप भी समझाते हैं ना-गंदा काम मत करो। इस विकार पर ही विघ्न पड़ते हैं। शुरू से लेकर इस पर हंगामा चलता आया है। बाप कहते हैं-मीठे बच्चों, इस पर जीत पानी है। मैं आया हूँ पवित्र बनाने। तुम बच्चों को राइट-रांग, अच्छा-बुरा सोचने की बुद्धि मिली है। यह लक्ष्मी-नारायण है एम ऑब्जेक्ट। स्वर्गवासियों में दैवीगुण हैं, नर्कवासियों में अवगुण हैं। अभी रावणराज्य है, यह भी कोई समझ नहीं सकते। रावण को हर वर्ष जलाते हैं। दुश्मन है ना। जलाते ही आते हैं। समझते नहीं कि यह है कौन? हम सब रावण राज्य के हैं ना, तो जरूर हम असुर ठहरे। परन्तु अपने को कोई असुर समझते नहीं। बहुत कहते भी हैं यह राक्षस राज्य है। यथा राजा-रानी तथा प्रजा। परन्तु इतनी भी समझ नहीं। बाप बैठ समझाते हैं रामराज्य अलग होता है, रावणराज्य अलग होता है। अभी तुम सर्वगुण सम्पन्न बन रहे हो। बाप कहते हैं मेरे भक्तों को ज्ञान सुनाओ, जो मन्दिरों में जाकर देवताओं की पूजा करते हैं। बाकी ऐसे-ऐसे आदमियों से माथा नहीं मारो। मन्दिरों में तुमको बहुत भक्त मिलेंगे। नब्ज भी देखनी होती है। डॉक्टर लोग देखने से ही झट बता देते हैं कि इनको क्या बीमारी है। देहली में एक अजमलखाँ वैद्य मशहूर था। बाप तो तुमको 21 जन्मों के लिए एवर हेल्दी, वेल्दी बनाते हैं। यहाँ तो हैं ही सब रोगी, अनहेल्दी। वहाँ तो कभी रोग होता नहीं। तुम एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनते हो। तुम अपने योगबल से कर्मेन्द्रियों पर विजय पा लेते हो। तुम्हें यह कर्मेन्द्रियाँ कभी धोखा नहीं दे सकती हैं। बाबा ने समझाया है याद में अच्छी रीति रहो, देही-अभिमानी रहो तो कर्मेन्द्रियाँ धोखा नहीं देंगी। यहाँ ही तुम विकारों पर जीत पाते हो। वहाँ कुदृष्टि होती नहीं। रावण राज्य ही नहीं। वह है ही अहिंसक देवी-देवताओं का धर्म। लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। यह लड़ाई भी अन्तिम लगनी है, इनसे स्वर्ग का द्वार खुलना है। फिर कभी लड़ाई लगती ही नहीं। यज्ञ भी यह लास्ट है। फिर आधाकल्प कोई यज्ञ होगा ही नहीं। इसमें सारा किचड़ा स्वाहा हो जाता है। इस यज्ञ से ही विनाश ज्वाला निकली है, सारी सफाई हो जायेगी। फिर तुम बच्चों को साक्षात्कार भी कराया गया है, वहाँ के शूबीरस आदि भी बहुत स्वादिष्ट फर्स्टक्लास चीजें होती हैं। उस राज्य की अभी तुम स्थापना कर रहे हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए।

तुम्हारा नाम भी है शिव शक्ति भारत मातायें। शिव से तुम शक्ति लेते हो सिर्फ याद से। धक्के खाने की कोई बात नहीं। वह समझते हैं जो भक्ति नहीं करते हैं वह नास्तिक हैं। तुम कहते हो जो बाप और रचना को नहीं जानते हैं वह नास्तिक हैं, तुम अभी आस्तिक बने हो। त्रिकालदर्शी भी बने हो। तीनों लोकों, तीनों कालों को जान गये हो। इन लक्ष्मी-नारायण को बाप से यह वर्सा मिला है। अभी तुम वह बनते हो। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। शिवबाबा खुद कहते हैं कि मैं इनमें प्रवेश कर समझाता हूँ। नहीं तो मैं निराकार कैसे समझाऊं। प्रेरणा से पढ़ाई होती है क्या? पढ़ाने लिए तो मुख चाहिए ना। गऊ मुख तो यह है ना। यह बड़ी मम्मा है ना, ह्यूमन माता है। बाप कहते हैं मैं इन द्वारा तुम बच्चों को सृष्टि के आदि- मध्य-अन्त का राज़ समझाता हूँ, युक्ति बतलाता हूँ। इसमें आशीर्वाद की कोई बात नहीं। डायरेक्शन पर चलना है। श्रीमत मिलती है। कृपा की बात नहीं। कहते हैं-बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाता है, कृपा करो। अरे, यह तो तुम्हारा काम है याद करना। मैं क्या कृपा करूँगा। हमारे लिए तो सब बच्चे हैं। कृपा करूँ तो सभी तख्त पर बैठ जाएं। पद तो पढ़ाई अनुसार पायेंगे। पढ़ना तो तुमको है ना। पुरूषार्थ करते रहो। मोस्ट बिलवेड बाप को याद करना है। पतित आत्मा वापिस जा न सके। बाप कहते हैं जितना तुम याद करेंगे तो याद करते-करते पावन बन जायेंगे। पावन आत्मा यहाँ रह नहीं सकेगी। पवित्र बने तो शरीर नया चाहिए। पवित्र आत्मा को शरीर इमप्योर मिले, यह लॉ नहीं। सन्यासी भी विकार से जन्म लेते हैं ना। यह देवतायें विकार से जन्म नहीं लेते, जो फिर सन्यास करना पड़े। यह तो ऊंच ठहरे ना। सच्चे-सच्चे महात्मा यह हैं जो सदैव सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। वहाँ रावण राज्य है नहीं। है ही सतोप्रधान रामराज्य। वास्तव में राम भी कहना नहीं चाहिए। शिवबाबा है ना। इसको कहा जाता है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र वा शिव एक ही है। कृष्ण का तो नाम नहीं है। शिवबाबा आकर ज्ञान सुनाते हैं वह फिर रूद्र यज्ञ रचते हैं तो मिट्टी का लिंग और सालिग्राम बनाते हैं। पूजा कर फिर तोड़ देते हैं। जैसे बाबा देवियों का मिसाल बताते हैं। देवियों को सजाकर खिलाए पिलाए पूजा कर फिर डुबो देते हैं। वैसे शिवबाबा और सालिग्रामों की बड़े प्रेम और शुद्धि से पूजा कर फिर खलास कर देते हैं। यह है सारा भक्ति का विस्तार। अभी बाप बच्चों को समझाते हैं-जितना बाप की याद में रहेंगे उतना खुशी में रहेंगे। रात्रि को रोज़ अपना पोतामेल देखना चाहिए। कुछ भूल तो नहीं की? अपना कान पकड़ लेना चाहिए-बाबा आज हमसे यह भूल हुई, क्षमा करना। बाबा कहते हैं सच लिखेंगे तो आधा पाप कट जायेगा। बाप तो बैठा है ना। अपना कल्याण करना चाहते हो तो श्रीमत पर चलो। पोतामेल रखने से बहुत उन्नति होगी। खर्चा तो कुछ है नहीं। ऊंच पद पाना है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई को भी दु:ख नहीं देना है। कोई कुछ कहता है तो सुना-अनसुना कर देना है। यह मेहनत करनी है। बाप आते ही हैं तुम बच्चों का दु:ख दूर कर सदा के लिए सुख देने। तो बच्चों को भी ऐसा बनना है। मन्दिरों में सबसे अच्छी सर्विस होगी। वहाँ रिलीजस माइन्डेड तुमको बहुत मिलेंगे। प्रदर्शनी में बहुत आते हैं। प्रोजेक्टर से भी प्रदर्शनी मेले में सर्विस अच्छी होती है। मेले में खर्चा होता है तो जरूर फायदा भी है ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप ने राइट-रांग को समझने की बुद्धि दी है, उसी बुद्धि के आधार पर दैवीगुण धारण करने हैं, किसी को दु:ख नहीं देना है, आपस में भाई-बहन का सच्चा प्यार हो, कभी कुदृष्टि न जाए।
2) बाप के हर डायरेक्शन पर चल अच्छी तरह पढ़कर अपने आप पर आपेही कृपा करनी है। अपनी उन्नति के लिए पोतामेल रखना है, कोई दु:ख देने वाली बातें करता है तो सुनी-अनसुनी कर देना है।
वरदान:
चलते-फिरते फरिश्ते स्वरूप का साक्षात्कार कराने वाले साक्षात्कारमूर्त भव!   
जैसे शुरू में चलते फिरते ब्रह्मा गुम होकर श्रीकृष्ण दिखाई देते थे। इसी साक्षात्कार ने सब कुछ छुड़ा दिया। ऐसे साक्षात्कार द्वारा अभी भी सेवा हो। जब साक्षात्कार से प्राप्ति होगी तो बनने के बिना रह नहीं सकेंगे इसलिए चलते फिरते फरिश्ते स्वरूप का साक्षात्कार कराओ। भाषण वाले बहुत हैं लेकिन आप भासना देने वाले बनो-तब समझेंगे यह अल्लाह लोग हैं।
स्लोगन:
सदा रूहानी मौज का अनुभव करते रहो तो कभी भी मूंझेंगे नहीं।