Saturday, December 19, 2015

मुरली 20 दिसंबर 2015

20-12-15 प्रातःमुरली ओम् शान्ति अव्यक्त-बापदादा रिवाइजः13-03-81 मधुबन

"डबल रूप से सेवा द्वारा ही आध्यात्मिक जागृति"
आज बापदादा सर्व शुभ चिन्तक संगठन को देख रहे हैं। शुभ चिन्तक अर्थात् सदा शुभ चिन्तन में रहने वाले, स्व-चिन्तन में रहने वाले– ऐसे स्व-चिन्तक वा शुभ चिन्तक, सदा बाप द्वारा मिली हुई सर्व प्राप्तियाँ, सर्व खजाने वा शक्तियाँ, इन प्राप्तियों के नशे में, साथ-साथ सम्पूर्ण फरिश्ते वा सम्पूर्ण देवता बनने के निशाने के स्मृति स्वरूप रहते हैं? जितना नशा उतना निशाना स्पष्ट होगा। समीप होने कारण ही स्पष्ट होता है। जैसे अपने पुरुषार्थ का रूप स्पष्ट है वैसे सम्पूर्ण फरिश्ता रूप भी इतना ही स्पष्ट अनुभव होगा। बनूंगा या नहीं बनूंगा - यह संकल्प भी उत्पन्न नहीं होगा। अगर ऐसा कोई संकल्प आता है कि बनना तो चाहिए वा जरूर बनेंगे ही। इससे सिद्ध होता है अपना फरिश्ता स्वरूप इतना समीप वा स्पष्ट नहीं है। जैसे अपना ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी का स्वरूप स्पष्ट है और निश्चयबुद्धि होकर कहेंगे कि हाँ हम ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, ऐसे नहीं कहेंगे कि हम भी ब्रह्माकुमार कुमारी होने तो चाहिए। हूँ तो मैं ही। यह ‘तो’ शब्द नहीं निकलेगा। कहेंगे हाँ हम ही हैं। क्वेश्चन नहीं उठेगा कि मैं हूँ या नहीं हूँ। कोई कितना भी क्रास एग्जामिन करे कि आप ब्रह्माकुमार कुमारी नहीं हो, भारत के ही ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, बड़े-बड़े महारथी ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, आप तो विदेशी क्रिश्चियन हो, ब्रह्मा तो भारत का है, आप कैसे ब्रह्माकुमार कुमारी बनेंगे! गलती से क्रिश्चियन कुमार कुमारी के बदले ब्रह्माकुमार कुमारी कहते हो। ऐसा कोई कहे तो मानेंगे? नहीं मानेंगे ना। निश्चय बुद्धि हो उत्तर देंगे कि ब्रह्माकुमार कुमारी हम अभी के नहीं हैं लेकिन अनेक कल्पों के हैं। ऐसा निश्चय से बोलेंगे ना वा कोई पूछेगा तो सोच में पड़ जायेंगे? क्या करेंगे? सोचेंगे वा निश्चय से कहेंगे कि हम ही हैं, जैसे यह ब्रह्माकुमार कुमारी का पक्का निश्चय है, स्पष्ट है, अनुभव है, ऐसे ही सम्पूर्ण फरिश्ता स्टेज भी इतनी क्लीयर अनुभव में आती है? आज पुरुषार्थी हैं कल फरिश्ता। ऐसा पक्का निश्चय हो जो कोई भी इस निश्चय से टाल न सके। ऐसे निश्चयबुद्धि हो? फरिश्ते स्वरूप की तस्वीर स्पष्ट सामने है? फरिश्ते स्वरूप की स्मृति, वृत्ति, दृष्टि, कृति वा फरिश्ते स्वरूप की सेवा क्या होती है उसकी अनुभूति है? क्योंकि ब्रह्माकुमार वा कुमारी स्वरूप की सेवा का रूप तो हरेक यथा शक्ति अनुभव कर रहे हैं। इस सेवा का परिणाम आदि से अब तक देख लिया। इस रूप की सेवा की भी आवश्यकता थी जो हुई और हो भी रही है, होती भी रहेगी।

आगे चल समय और आत्माओं की इच्छा की आवश्यकता अनुसार डबल रूप के सेवा की आवश्यकता होगी। एक ब्रह्माकुमार कुमारी स्वरूप अर्थात् साकारी स्वरूप की, दूसरी सूक्ष्म आकारी फरिश्ते स्वरूप की। जैसे ब्रह्मा बाप की दोनों ही सेवायें देखी। साकार रूप की भी और फरिश्ते रूप की भी। साकार रूप की सेवा से अव्यक्त रूप के सेवा की स्पीड तेज है। यह तो जानते हो, अनुभवी हो ना? अब अव्यक्त ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूपधारी बन अर्थात् फरिश्ता रूप बन बच्चों को अव्यक्त फरिश्ते स्वरूप की स्टेज में खींच रहे हैं। फालो फादर करना तो आता है ना। ऐसे तो नहीं सोचते हम भी शरीर छोड़ अव्यक्त बन जावें। इसमें फालो नहीं करना। ब्रह्मा बाप फरिश्ता बना ही इसलिए कि अव्यक्त रूप का एग्जैम्पुल देख फालो सहज कर सको। साकार रूप में न होते हुए भी फरिश्ते रूप से साकार रूप समान ही साक्षात्कार कराते हैं ना। विशेष विदेशियों को अनुभव है। मधुबन में साकार ब्रह्मा की अनुभूति करते हो ना। कमरे में जा करके रूहरिहान करते हो ना! चित्र दिखाई देता है या चैतन्य दिखाई देता है? अनुभव होता है तब तो जिगर से कहते हो ब्रह्मा बाबा। आप सबका ब्रह्मा बाबा है या पहले वाले बच्चों का ब्रह्मा बाबा है? अनुभव से कहते हो वा नॉलेज के आधार से कहते हो? अनुभव है? जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाप साकार रूप की पालना दे रहे हैं। साकार रूप की पालना का अनुभव करा रहे हैं, वैसे आप व्यक्त में रहते अव्यक्त फरिश्ते रूप का अनुभव करो। सभी को यह अनुभव हो कि यह सब फरिश्ते कौन हैं और कहाँ से आये हुए हैं! जैसे अभी चारों ओर यह आवाज फैल रहा है कि यह सफेद वस्त्रधारी कौन हैं और कहाँ से आये हैं! वैसे चारों ओर अब फरिश्ते रूप का साक्षात्कार हो। इसको कहा जाता है डबल सेवा का रूप। सफेद वस्त्रधारी और सफेद लाइटधारी। जिसको देख न चाहते भी ऑख खुल जाए। जैसे अन्धकार में कोई बहुत तेज लाइट सामने आ जाती है तो अचानक ऑख खुल जाती है ना कि यह क्या है, यह कौन है, कहाँ से आई! तो ऐसे अनोखी हलचल मचाओ। जैसे बादल चारों ओर छा जाते हैं, ऐसे चारों ओर फरिश्ते रूप से प्रगट हो जाओ। इसको कहा जाता है– आध्यात्मिक जागृति। इतने सब जो देश विदेश से आये हो, ब्रह्माकुमार कुमारी स्वरूप की सेवा की! आवाज बुलन्द करने की जागृति का कार्य किया। संगठन का झण्डा लहराया। अब फिर नया प्लैन करेंगे ना। जहाँ भी देखें तो फरिश्ते दिखाई दें, लण्डन में देखें, इण्डिया में देखें जहाँ भी देखें फरिश्ते-ही-फरिश्ते नज़र आयें। अमेरिका, आस्ट्रेलिया में देखें तो भी फरिश्ते-ही-फरिश्ते इसके लिए क्या तैयारी करनी है? वह तो 10 सूत्री प्रोग्राम बनाया था, इसके कितने सूत्र हैं? वह 10 सूत्री कार्यक्रम, यह है 16 कला के सूत्र का कार्यक्रम। इस पर आपस में भी रूहरिहान करना और फिर आगे सुनाते रहेंगे। प्लैन बताया अब प्रोग्राम बनाना। मुख्य थीम बता दी है, अब डिटेल प्रोग्राम बनाना।

ऐसे सदा शुभ-चिंतन में रहने वाले, शुभ चिन्तक, डबल रूप द्वारा सेवा करने वाले, डबल सेवाधारी, ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, निराकार बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, सदा बाप समान सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

टीचर्स के साथ - टीचर्स तो है ही सदा भरपूर आत्मायें। ड्रामा अनुसार निमित्त बने हो, अच्छी मेहनत कर रहे हो और आगे भी करते ही रहेंगे। रिजल्ट अच्छी है और भी अच्छी होगी। समय समीप आने के कारण जल्दी-जल्दी सेवा का विस्तार बढ़ता ही जायेगा क्योंकि संगम पर ही त्रेता के अन्त तक की प्रजा, रॉयल फैमली और साथ-साथ कलियुग के अन्त तक की अपने धर्म की आत्मायें तैयार करनी है। विदेश के सभी स्थान पिकनिक के स्थान बनेंगे लेकिन ब्राह्मण आत्मायें तो राजाई घराने में आयेंगी, वहाँ राजाई नहीं करनी है, राजाई तो यहाँ करेंगे। सब अच्छी सेवा कर रहे हो लेकिन अभी और भी सेवा में, मन्सा सेवा पावरफुल कैसे हो, इसका विशेष प्लैन बनाओ। वाचा के साथ-साथ मंसा सेवा भी बहुत दूर तक कार्य कर सकती है। ऐसे अनुभव होगा - जैसे आजकल फ्लाईग सासर देखते हैं वैसे आप सबका फरिश्ता स्वरूप चारों ओर देखने में आयेगा और आवाज निकलेगा कि यह कौन हैं जो चक्र लगाते हैं। इस पर भी रिसर्च करेंगे। लेकिन आप सबका साक्षात्कार ऊपर से नीचे आते ही हो जायेगा और समझेंगे यह वही ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं जो फरिश्ते रूप में साक्षात्कार करा रही हैं। अभी यह धूम मचाओ। अन्तः वाहक शरीर से चक्र लगाने का अभ्यास करो। ऐसा समय आयेगा जो प्लेन भी नहीं मिल सकेगा। ऐसा समय नाजुक होगा तो आप लोग पहले पहुँच जायेंगे। अन्तःवाहक शरीर से चक्र लगाने का अभ्यास जरूरी है। ऐसा अभ्यास करो जैसे प्रैक्टिकल में सब देखकर मिलकर आये हैं। दूसरे भी अनुभव करें– हाँ यह हमारे पास वही फरिश्ता आया था। फिर ढूंढने निकलेंगे फरिश्तों को। अगर इतने सब फरिश्ते चक्र लगायें तो क्या हो जाये? ऑटोमेटिकली सबका अटेन्शन जायेगा। तो अभी साकारी के साथ-साथ आकारी सेवा भी जरूर चाहिए। अच्छा– अभी अमृतबेले शरीर से डिटैच हो कर चक्र लगाओ।

प्रश्नः सबसे बड़े ते बड़ी सेवा कौन-सी है जो तुम रूहानी सेवाधारियों को जरूर करनी है?

उत्तरः किसी के दुःख लेकर सुख देना यह है सबसे बड़ी सेवा। तुम सुख के सागर बाप के बच्चे हो, तो जो भी मिले उनका दुःख लेते जाना और सुख देते जाना। किसका दुःख लेकर सुख देना यही सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य का काम है। ऐसे पुण्य करते-करते पुण्यात्मा बन जायेंगे।

प्रश्नः ब्राह्मण पन की वा मरजीवा जन्म की पहली-पहली छाप कौन सी है? उसकी निशानियां क्या होगी? उत्तरः पहले-पहले जब ब्रह्मा-मुख वंशावली ब्राह्मण बने तो ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी की छाप लगी। ब्रह्माकुमार कुमारी अर्थात् हर संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क और सेवा सभी में ब्राह्मण स्टेज के प्रमाण प्रैक्टिकल लाइफ में चलने वाले। कोई भी शूद्रपन का संस्कार दिखाई न दे। ब्राह्मण रूप में हर कर्म व हर संकल्प ब्रह्मा बाप के समान हो, जैसा बाप वैसे बच्चे। जो स्वभाव, संस्कार या संकल्प बाप का है वही बच्चों का हो। जैसे बाप के व्यर्थ व कमजोर संकल्प उत्पन्न नहीं होते, बाप अचल, अटल, अडोल स्थिति में सदा स्थित हैं तो ब्राह्मणों का व बच्चों का फर्ज है फॉलो फादर करना।

प्रश्नः फालो फादर का यथार्थ अर्थ क्या है?

उत्तरः फॉलो फादर अर्थात् सिर्फ यह नहीं कि ईश्वरीय सेवाधारी बन गये। लेकिन फॉलो फादर अर्थात् हर कदम पर व हर संकल्प में फॉलो ब्रह्मा बाप। जैसे बाप के ईश्वरीय संस्कार, दिव्य स्वभाव, दिव्य वृत्ति व दिव्य दृष्टि सदा है, वैसे ही वृत्ति, दृष्टि, स्वभाव व संस्कार हों। ऐसे ईश्वरीय सीरत वाली सूरत हो जिस सूरत द्वारा बाप के गुणों और कर्तव्यों की रूप-रेखा दिखाई दे। जैसे बाप के गुणगान करते हो या चरित्र वर्णन करते हो वैसे ही अपने में वह सर्वगुण धारण हों।

प्रश्नः बच्चों के कौन से कर्म सदा के लिए यादगार बन जाते हैं?

उत्तरः जो कर्म याद में रहकर करते हो वह कर्म यादगार बन जाते हैं। कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योग-युक्त, युक्ति-युक्त, शक्ति-युक्त हो।

प्रश्नः जो कर्मयोगी हैं उनकी निशानी क्या होगी? उत्तरः उन्हें कोई भी कर्म अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता। योगी अपनी योगशक्ति से कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराता है। जो कर्म के वश होकर चलने वाले हैं उन्हें कर्मयोगी नहीं, कर्मभोगी कहेंगे क्योंकि जो कर्म के भोग के वश हो जाते हैं अर्थात् कर्म के भोग भोगने में अच्छे व बुरे में कर्म के वशीभूत हो जाते हैं, वह योगी नहीं कहला सकते। आप राजयोगी आत्मायें कभी कर्म के अधीन, कर्मो के परतत्र नहीं हो सकते। अच्छा।
वरदान:
ईश्वरीय मर्यादाओं के आधार पर विश्व के आगे एग्जाम्पल बनने वाले सहजयोगी भव!  
विश्व के आगे एग्जाम्पल बनने के लिए अमृतवेले से रात तक जो ईश्वरीय मर्यादायें हैं उसी प्रमाण चलते रहो। विशेष अमृतवेले के महत्व को जानकर उस समय पावरफुल स्टेज बनाओ, तो सारे दिन की जीवन महान बन जायेगी। जब अमृतवेले विशेष बाप से शक्ति भर लेंगे तो शक्ति स्वरूप हो चलने से किसी भी कार्य में मुश्किल का अनुभव नहीं होगा और मर्यादापूर्वक जीवन बिताने से सहजयोगी की स्टेज भी स्वतः बन जायेगी फिर विश्व आपके जीवन को देखकर अपनी जीवन बनायेगी।
स्लोगन:
अपनी चलन और चेहरे से पवित्रता की श्रेष्ठता का अनुभव कराओ।