Monday, December 28, 2015

मुरली 29 दिसंबर 2015

29-12-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - मधुबन होलीएस्ट ऑफ दी होली बाप का घर है, यहाँ तुम किसी भी पतित को नहीं ला सकते”  
प्रश्न:
इस ईश्वरीय मिशन में जो पक्के निश्चय बुद्धि हैं उनकी निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:
1- वे स्तुति-निंदा ... सबमें धीरज से काम लेंगे, 2. क्रोध नहीं करेंगे, 3. किसी को भी दैहिक दृष्टि से नहीं देखेंगे। आत्मा को ही देखेंगे, आत्मा होकर बात करेंगे, 4. स्त्री-पुरूष साथ में रहते कमल फूल समान रहेंगे, 5. किसी भी प्रकार की तमन्ना (इच्छा) नहीं रखेंगे।
गीतः
जले न क्यों परवाना........
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं अर्थात् भगवान पढ़ा रहे हैं रूहानी स्टूडेन्ट को। उन स्कूलों में जो बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें कोई रूहानी स्टूडेन्ट नहीं कहेंगे। वे तो हैं ही आसुरी विकारी सम्प्रदाय के। आगे तुम भी आसुरी अथवा रावण सम्प्रदाय के थे। अब राम राज्य में चलने के लिए 5 विकारों रूपी रावण पर जीत पाने का पुरूषार्थ कर रहे हो। यह जो नॉलेज प्राप्त नहीं करते उन्हों को समझाना पड़ता है-तुम रावण राज्य में हो। खुद समझते नहीं हैं। तुम अपने मित्र-सम्बन्धियों आदि को कहते हो हम बेहद के बाप से पढ़ते हैं तो ऐसे नहीं कि वह निश्चय करते हैं। कितना भी बाप कहे या भगवान कहे तो भी निश्चय नहीं करते। नये को तो यहाँ आने का हुक्म नहीं है। बिगर चिट्ठी वा बिगर पूछे तो कोई आ भी नहीं सकते। परन्तु कहाँ-कहाँ कोई आ जाते हैं, यह भी कायदे का उल्लंघन है। एक-एक का पूरा समाचार, नाम आदि लिख पूछना होता है। इनको भेज देवें? फिर बाबा कहते हैं भले भेज दो। अगर आसुरी पतित दुनिया के स्टूडेण्ट होंगे तो बाप समझायेंगे, वह पढ़ाई तो विकारी पतित पढ़ाते हैं। यह ईश्वर पढ़ाते हैं। उस पढ़ाई से पाई-पैसे का दर्जा मिलता है। भल कोई बहुत बड़ा इम्तहान पास करते हैं, फिर कहाँ तक कमाते रहेंगे। विनाश तो सामने खड़ा है। नैचुरल कैलेमिटीज भी सब आने वाली हैं। यह भी तुम समझते हो, जो नहीं समझते हैं उन्हों को बाहर विजिटिंग रूम में बिठाए समझाना होता है। यह है ईश्वरीय पढ़ाई, इसमें निश्चयबुद्धि ही विजयन्ती होंगे अर्थात् विश्व पर राज्य करेंगे। रावण सम्प्रदाय वाले तो यह जानते नहीं। इसमें बड़ी खबरदारी चाहिए। परमीशन बिगर कोई भी अन्दर आ नहीं सकता। यह कोई घूमने-फिरने की जगह नहीं है। थोड़े समय में कायदे कड़े हो जायेंगे क्योंकि यह है होलीएस्ट ऑफ दी होली। शिवबाबा को इन्द्र भी कहते हैं ना। यह इन्द्र सभा है। 9 रत्न अंगूठी में भी पहनते हैं ना। उन रत्नों में नीलम भी होता है, पन्ना, माणिक भी होता है। यह सब नाम रखे हुए हैं। परियों के भी नाम हैं ना। तुम पारियाँ उड़ने वाली आत्मायें हो। तुम्हारा ही वर्णन है। परन्तु मनुष्य इन बातों को कुछ भी समझते नहीं हैं। अंगूठी में भी रत्न जब डालते हैं, तो उनमें कोई पुखराज, नीलम, पेरूज़ भी होते हैं। कोई का दाम हज़ार रूपया तो कोई का दाम 10-20 रूपया। बच्चों में भी नम्बरवार हैं। कोई तो पढ़कर मालिक बन जाते हैं। कोई फिर पढ़कर दास-दासियाँ बन जाते हैं। राजधानी स्थापन होती है ना। तो बाप बैठ पढ़ाते हैं। इन्द्र भी उनको ही कहा जाता है। यह ज्ञान वर्षा है। ज्ञान तो सिवाए बाप के कोई दे न सके। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है। अगर निश्चय हो जाए कि ईश्वर पढ़ाते हैं फिर वह पढ़ाई को छोड़ेंगे नहीं। जो होंगे ही पत्थरबुद्धि, उनको कभी तीर नहीं लगेगा। आकर चलते-चलते फिर गिर पड़ते हैं। 5 विकार आधाकल्प के शत्रु हैं। देह-अभिमान में आकर थप्पड़ मार देते हैं। फिर आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो जाते। माया बड़ी दुश्तर है। एक ही थप्पड़ से गिरा देती है। समझते हैं हम कभी नहीं गिरेंगे फिर भी माया थप्पड़ लगा देती है। यहाँ स्त्री-पुरूष दोनों को पवित्र बनाया जाता है। सो तो ईश्वर के सिवाए कोई बना न सके। यह है ईश्वरीय मिशन। बाप को खिवैया भी कहा जाता है, तुम हो नईया। खिवैया आते हैं, सभी की नईया को पार लगाने। कहते भी हैं सच की नईया डोलेगी परन्तु डूबेगी नहीं। कितने ढेर के ढेर मठ पंथ हैं। ज्ञान और भक्ति की जैसे लड़ाई होती है। कभी भक्ति की भी विजय होगी, आखिर तो ज्ञान की ही विजय होगी। भक्ति के तरफ देखो कितने बड़े-बड़े योद्धे हैं। ज्ञान मार्ग की तरफ भी कितने बड़े-बडे योद्धे हैं। अर्जुन भीम आदि नाम रखे हैं। यह तो सब कहानियाँ बैठ बनाई हैं। गायन तो तुम्हारा ही है। हीरो-हीरोइन का पार्ट तुम्हारा अभी बज रहा है। इस समय ही युद्ध चलती है। तुम्हारे में भी बहुत हैं जो इन बातों को बिल्कुल समझते नहीं हैं। जो अच्छे-अच्छे होंगे उनको ही तीर लगेगा। थर्डक्लास तो बैठ न सकें। दिन-प्रतिदिन बहुत कड़े कायदे होते जायेंगे। पत्थरबुद्धि जो कुछ नहीं समझते उनको तो यहाँ बैठना भी बेकायदे है। यह हाल होलीएस्ट ऑफ होली है। पोप को होली कहते हैं। यह तो बाप है होलीएस्ट ऑफ होली। बाप कहते हैं इन सभी का मुझे कल्याण करना है। यह सब विनाश हो जाने वाले हैं। यह भी कोई सब थोड़ेही समझते हैं। भल सुनते हैं परन्तु एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देते हैं। न कुछ धारण करते हैं, न कराते हैं। ऐसे गूंगे-बहरे भी बहुत हैं। बाप कहते हैं हियर नो ईविल.... वह तो बन्दर का चित्र दिखाते हैं। परन्तु यह तो मनुष्य के लिए कहा जाता है। मनुष्य इस समय बन्दर से भी बदतर हैं। नारद की भी कहानी बैठ बनाई है। उनको बोला तुम अपनी शक्ल तो देखो-5 विकार तो अन्दर में नहीं हैं? जैसे साक्षात्कार होता है। हनुमान का भी साक्षात्कार होता है ना। बाप कहते हैं कल्प-कल्प यह होता है। सतयुग में यह कुछ भी बातें होती नहीं। यह पुरानी दुनिया ही खत्म हो जायेगी। जो पक्के निश्चयबुद्धि हैं, वह समझते हैं कल्प पहले भी हमने यह राज्य किया था। बाप कहते हैं-बच्चे, अब दैवी गुण धारण करो। कोई बेकायदे काम नहीं करो। स्तुति-निंदा सबमें धीरज धारण करना है। क्रोध नहीं होना चाहिए। तुम कितने ऊंच स्टूडेण्ट हो, भगवान बाप पढ़ाते हैं। वह डायरेक्ट पढ़ा रहे हैं फिर भी कितने बच्चे भूल जाते हैं क्योंकि साधारण तन है ना। बाप कहते हैं देहधारी को देखने से तुम इतना उठ नहीं सकेंगे। आत्मा को देखो। आत्मा यहाँ भ्रकुटी के बीच रहती है। आत्मा सुनकर कांध हिलाती है। हमेशा आत्मा से बात करो। तुम आत्मा इस शरीर रूपी तख्त पर बैठी हो। तुम तमोप्रधान थी अब सतोप्रधान बनो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने से देह का भान छूट जायेगा। आधाकल्प का देह-अभिमान रहा हुआ है। इस समय सब देह-अभिमानी हैं। अब बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो। आत्मा ही सब कुछ धारण करती है। खाती-पीती सब कुछ आत्मा करती है। बाप को तो अभोक्ता कहा जाता है। वह है निराकार। यह शरीरधारी सब कुछ करते हैं। वह खाता-पीता कुछ नहीं, अभोक्ता है। तो इसकी फिर वो लोग कॉपी बैठ करते हैं। कितना मनुष्यों को ठगते हैं। तुम्हारी बुद्धि में अभी सारा ज्ञान है, कल्प पहले जिन्होंने समझा था वही समझेंगे। बाप कहते हैं मैं ही कल्प-कल्प आकर तुमको पढ़ाता हूँ और साक्षी हो देखता हूँ। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जो पढ़ा था वही पढ़ेंगे। टाइम लगता है। कहते हैं कलियुग अभी 40 हज़ार वर्ष शेष है। तो घोर अन्धियारे में हैं ना। इसको अज्ञान अंधियारा कहा जाता है। भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में रात-दिन का फ़र्क है। यह भी समझने की बातें हैं। बच्चे बड़ी खुशी में डूबे हुए रहने चाहिए। सब कुछ है, कोई तमन्ना नहीं। जानते हैं कल्प पहले मिसल हमारी सब कामनायें पूरी होती हैं इसलिए पेट भरा रहता है। जिनको ज्ञान नहीं, उनका थोड़ेही पेट भरा रहेगा। कहा जाता है - खुशी जैसी खुराक नहीं। जन्म-जन्मान्तर की राजाई मिलती है। दास-दासी बनने वालों को इतनी खुशी नहीं रहेगी। पूरा महावीर बनना है। माया हिला न सके। बाप कहते हैं आंखों की बड़ी सम्भाल रखनी है। क्रिमिनल दृष्टि न जाए। स्त्री को देखने से चलायमान हो जाते हैं। अरे तुम तो भाई-बहन, कुमार-कुमारी हो ना। फिर कर्मेन्द्रियाँ चंचलता क्यों करती! बड़े-बड़े लखपति, करोड़पति को भी माया खलास कर देती है। गरीबों को भी माया एकदम मार डालती है। फिर कहते बाबा हमने धक्का खाया। अरे 10 वर्ष के बाद भी हार खा ली। अब तो पाताल में गिर पड़े। अन्दर में समझते हैं इनकी अवस्था कैसी है। कोई-कोई तो बड़ी अच्छी सार्विस करते हैं। कन्याओं ने भी भीष्म पितामह आदि को बाण मारे हैं ना। गीता में थोड़ा बहुत है। यह तो है ही भगवानुवाच। अगर कृष्ण भगवान ने गीता सुनाई तो फिर ऐसा क्यों कहते मैं जो हूँ जैसा हूँ, कोई विरला जानते। कृष्ण यहाँ होता तो पता नहीं क्या कर देते। कृष्ण का शरीर तो होता ही है सतयुग में। यह नहीं जानते कि कृष्ण के बहुत जन्मों के अन्त के शरीर में मैं प्रवेश करता हूँ। कृष्ण के आगे तो झट सब भाग आयें। पोप आदि आते हैं तो कितना झुण्ड जाकर इकट्ठा होता है। मनुष्य यह थोड़ेही समझते कि इस समय सब पतित तमोप्रधान हैं। कहते भी हैं हे पतित-पावन आओ परन्तु समझते नहीं कि हम पतित हैं। बच्चों को बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। बाबा की बुद्धि तो सब सेन्टर्स के अनन्य बच्चों तरफ चली जाती है। जब जास्ती अनन्य बच्चे यहाँ आते हैं तो फिर यहाँ देखता हूँ, नहीं तो बाहर में बच्चों को याद करना पड़ता है। उनके आगे ज्ञान डांस करता हूँ। मैजारिटी ज्ञानी तू आत्मा होते हैं तो मजा भी आता है। नहीं तो बच्चियों पर कितना अत्याचार होते हैं। कल्प-कल्प सहन करना पड़ता है। ज्ञान में आने से फिर भक्ति भी छूट जाती है। घर में समझो मन्दिर है, स्त्री-पुरूष दोनों भक्ति करते हैं, स्त्री को ज्ञान की चटक लग जाती है और भक्ति छोड़ देती तो कितना हंगामा हो जायेगा। विकार में भी न जाये, शास्त्र आदि भी न पढ़े तो झगड़ा होगा ना। इसमें विघ्न बहुत पड़ते हैं, और सतसंग में जाने के लिए रोकते नहीं हैं। यहाँ है पवित्रता की बात। पुरूष तो नहीं रह सकते तो जंगल में चले जाते, स्त्रियाँ कहाँ जायें। स्त्रियों के लिए वह समझते हैं नर्क का द्वार है। बाप कहते हैं यह तो स्वर्ग का द्वार हैं। तुम बच्चियाँ अभी स्वर्ग स्थापन करती हो। इनसे पहले नर्क का द्वार थी। अभी स्वर्ग की स्थापना होती है। सतयुग है स्वर्ग का द्वार, कलियुग है नर्क का द्वार। यह समझ की बात है। तुम बच्चे भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझते हो। भल पवित्र तो रहते हैं। बाकी ज्ञान की धारणा नम्बरवार होती है। तुम तो वहाँ से निकलकर यहाँ आकर बैठे हो, परन्तु अब तो समझाया जाता है गृहस्थ व्यवहार में रहना है। उन्हों को तकलीफ होती है। यहाँ रहने वालों के लिए तो कोई तकलीफ नहीं है। तो बाप समझाते हैं कमल फूल समान गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहो। सो भी इस अन्तिम जन्म की बात है। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए अपने को आत्मा समझो। आत्मा ही सुनती है, आत्मा ही यह बनी है। आत्मा ही जन्म-जन्मान्तर भिन्न-भिन्न ड्रेस पहनती आई है। अब हम आत्माओं को वापिस जाना है। बाप से योग लगाना है। मूल बात है यह। बाप कहते हैं मैं आत्माओं से बात करता हूँ। आत्मा भ्रकुटी के बीच रहती है। इन आरगन्स द्वारा सुनती है। आत्मा इनमें नहीं होती तो शरीर मुर्दा बन जाता। बाप कितना वण्डरफुल ज्ञान आकर देते हैं। परमात्मा बिगर तो यह बातें कोई समझा न सके। सन्यासी आदि कोई आत्मा को थोड़ेही देखते हैं। वह तो आत्मा को परमात्मा समझते हैं। दूसरा फिर कहते आत्मा में लेप-छेप नहीं लगता है। शरीर को धोने गंगा में जाते हैं। यह नहीं समझते आत्मा ही पतित बनती है। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप समझाते रहते हैं, यह मत समझो हम फलाना हूँ, यह फलाना है...। नहीं, सब आत्मायें हैं। जाति-पाति का कोई भेद नहीं रहना चाहिए। अपने को आत्मा समझो। गवर्मेन्ट कोई धर्म को नहीं मानती। यह सब धर्म तो देह के हैं। परन्तु सब आत्माओं का बाप तो एक ही है। देखना भी आत्मा को है। सभी आत्माओं का स्वधर्म शान्त है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते |
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जो बात काम की नहीं है, उसे एक कान से सुन दूसरे से निकाल देना है, हियर नो ईविल...... बाप जो शिक्षायें देता है उसे धारण करना है।
2) कोई भी हद की तमन्नायें नहीं रखनी है। आंखों की बड़ी सम्भाल रखनी है। क्रिमिनल दृष्टि न जाए। कोई भी कर्मेन्द्रिय चलायमान न हो। खुशी से भरपूर रहना है।
वरदान:
लक्ष्य के प्रमाण लक्षण के बैलेन्स की कला द्वारा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले बाप समान सम्पन्न भव!  
बच्चों में विश्व कल्याण की कामना भी है तो बाप समान बनने की श्रेष्ठ इच्छा भी है, लेकिन लक्ष्य के प्रमाण जो लक्षण स्वयं को वा सर्व को दिखाई दें उसमें अन्तर है इसलिए बैलेन्स करने की कला अब चढ़ती कला में लाकर इस अन्तर को मिटाओ। संकल्प है लेकिन दृढ़ता सम्पन्न संकल्प हो तो बाप समान सम्पन्न बनने का वरदान प्राप्त हो जायेगा। अभी जो स्वदर्शन और परदर्शन दोनों चक्र घूमते हैं, व्यर्थ बातों के जो त्रिकालदर्शी बन जाते हो-इसका परिवर्तन कर स्वचिन्तक स्वदर्शन चक्रधारी बनो।
स्लोगन:
सेवा का भाग्य प्राप्त होना ही सबसे बड़ा भाग्य है।