मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - यह बना-बनाया नाटक है, इस नाटक से एक भी आत्मा
प्रश्न:- ऊंचे ते ऊंचा पतित-पावन बाप भोलानाथ कैसे है?
उत्तर:- तुम बच्चे उन्हें चावल मुट्ठी दे महल ले लेते हो, इसलिए ही बाप को भोलानाथ
धारणा के लिये मुख्य सार :-
1) वशीकरण मन्त्र सबको देना है। पढ़ाई की मेहनत से राजाई का तिलक लेना है।
2) संगमयुग पर पुरूषोत्तम बनने का पुरूषार्थ करना है। बाप को याद करने की ड्रिल
वरदान:- आत्मिक शक्ति के आधार पर तन की शक्ति का अनुभव करने वाले सदा स्वस्थ भव
इस अलौकिक जीवन में आत्मा और प्रकृति दोनों की तन्दरूस्ती आवश्यक है। जब
स्लोगन:- दिल से, तन से, आपसी प्यार से सेवा करो तो सफलता निश्चित मिलेगी।
छूट नहीं सकती, मोक्ष किसी को मिल नहीं सकता''
प्रश्न:- ऊंचे ते ऊंचा पतित-पावन बाप भोलानाथ कैसे है?
उत्तर:- तुम बच्चे उन्हें चावल मुट्ठी दे महल ले लेते हो, इसलिए ही बाप को भोलानाथ
कहा जाता है। तुम कहते हो शिवबाबा हमारा बेटा है, वह बेटा ऐसा है जो कभी कुछ
लेता नहीं, सदा ही देता है। भक्ति में कहते हैं जो जैसा कर्म करता है वैसा फल पाता है।
परन्तु भक्ति में तो अल्पकाल का मिलता। ज्ञान में समझ से करते इसलिये सदाकाल
का मिलता है।
धारणा के लिये मुख्य सार :-
1) वशीकरण मन्त्र सबको देना है। पढ़ाई की मेहनत से राजाई का तिलक लेना है।
इन दु:खों के पहाड़ को हटाने में अपनी अंगुली देनी है।
2) संगमयुग पर पुरूषोत्तम बनने का पुरूषार्थ करना है। बाप को याद करने की ड्रिल
करनी है। बाकी योग-योग कह मूँझना नहीं है।
वरदान:- आत्मिक शक्ति के आधार पर तन की शक्ति का अनुभव करने वाले सदा स्वस्थ भव
इस अलौकिक जीवन में आत्मा और प्रकृति दोनों की तन्दरूस्ती आवश्यक है। जब
आत्मा स्वस्थ है तो तन का हिसाब-किताब वा तन का रोग सूली से कांटा बनने के
कारण, स्व-स्थिति के कारण स्वस्थ अनुभव करते हैं। उनके मुख पर चेहरे पर बीमारी
के कष्ट के चिन्ह नहीं रहते। कर्मभोग के वर्णन के बदले कर्मयोग की स्थिति का
वर्णन करते हैं। वे परिवर्तन की शक्ति से कष्ट को सन्तुष्टता में परिवर्तन कर सन्तुष्ट
रहते और सन्तुष्टता की लहर फैलाते हैं।
स्लोगन:- दिल से, तन से, आपसी प्यार से सेवा करो तो सफलता निश्चित मिलेगी।